ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

Maximum Marks: 40
Time: 1 1/2 Hours

General Instructions

  • Answer to this paper must be written on the paper provided separately.
  • You will not be allowed to write during the first 10 minutes.
  • This time is to be spent in reading the question paper.
  • The time given at the head of this paper is the time allowed for writing the answers.
  • This paper comprises two sections Section A and Section B.
  • Attempt all the questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

Section-A [20 Marks]

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 200 words on any one of the following topics: [12]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 200 शब्दों में निबंध लिखिए:
(i) पुस्तकालय व्यक्ति को अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए पुस्तकालय के महत्व पर प्रकाश डालिए।
(ii) समाज में ‘मद्य-निषेध’ अनिवार्य रूप से होना ही चाहिए। इस कथन के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
(iii) हर व्यक्ति के जीवन का कोई न कोई लक्ष्य होता है। आपके जीवन का क्या लक्ष्य है? इस विषय पर एक लेख लिखिए।
(iv) करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान- इस कहावत को आधार बनाकर एक मौलिक कहानी लिखें।
(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर, उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers 1
Answer:
(i) एक कमरा, ढेर सारी किताबें, और मनचाही शांति। ऐसा माहौल या तो किसी ध्यानालय में या तो किसी पुस्तकालय में ही दिखाई देगा। पुस्तकालय, जिसमें असीम शांति के साथ ज्ञान की उस गंगा का स्रोत होता है, जिसमें मानव अगर डुबकी लगाता है तो उसके जीवन के अज्ञान का अँधेरा लुप्त हो जाता है और उसे ज्ञान पाते रहने की प्रेरणा भी मिलती है।

किसी भी उम्र का व्यक्ति अपनी रूचि के अनुसार पुस्तकें पढ़कर अपना ज्ञानवर्धन कर सकता है। अलग-अलग विषयों की किताबें पढ़ने से व्यक्ति में हर क्षेत्र का ज्ञान बढ़ता है। कॉमिक्स, किस्से-कहानियाँ, उपन्यास, नाटक आदि पढ़ने से व्यक्ति में काल्पनिकता बढ़ती है। किताब पढ़ते वक्त व्यक्ति किताब में लिखी कहानी या घटना में खोकर काल्पनिकता में चला जाता है। पढ़ाई से सम्बन्धित किताब पढ़ने से व्यक्ति शिक्षित होकर अपने जीवन में आगे बढ़ता है। किताबें पढ़ने से जागरूकता आती है। साहित्यिक किताबें सामाजिक जानकारी देती हैं। खेलकूद से सम्बन्धित पुस्तकें व्यक्ति को जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना बनाने में सक्षम करने में मददगार होती है तथा शरीर के विभिन्न अंगों के उचित संचालन का महत्त्व बताती है।

साहस भरी कथाएँ मनुष्य को प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कुछ कर गुजरने की इच्छाशक्ति प्रदान करती हैं। पुस्तकालयों में कई ऐतिहासिक किताबें भी उपलब्ध रहती हैं जिसे पढ़कर व्यक्ति देश और दुनिया के रोचक इतिहास को जान सकता है। वैज्ञानिक पुस्तकें पढ़कर मनुष्यों के जरिए समाज और राष्ट्र का भी विकास होता है। पुस्तकालय ज्ञान का एक ऐसा मंदिर है, जहाँ साहित्य, संगीत, कला, दर्शन, धर्म, राजनीति, विज्ञान, समाज, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय आदि सभी स्तरों की किताबों के माध्यम से मनुष्य के सभी वर्ग के अज्ञान का अँधेरा दूर होता है। किसी भी व्यक्ति के लिए दुनिया की सारी किताबें खरीदना नामुमकिन है। ऐसी स्थिति में कम दाम में अधिकतम पुस्तकों की उपलब्धिता पुस्तकालयों में होती है जिनके माध्यम से ज्ञान प्राप्त करके अज्ञान का अँधेरा दूर करने में सहायता होती है और मनुष्य को ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है।

(ii) पक्ष में: सन् 1927 में महात्मा गाँधीजी ने कहा था कि ‘मैं भारत में कुछ हज़ार शराबी देखने के बजाय देश को अत्यधिक गरीब देखना पसंद करूंगा। पूर्ण नशाबंदी के लिए सारा देश अनपढ़ भी रह जाए, तो भी नशाबंदी के उद्देश्य के लिए यह कोई मूल्य नहीं है।’ बापूजी ने कई साल पहले ही देश को शराब के गंदे नशे से बचाने की जो कोशिश की थी, उसे भला हम नाकाम कैसे होने दें? गौतम बुद्ध जी ने भी कहा कि शराब से सदा भयभीत रहना क्योंकि यह पाप तथा अनाचार की जननी है। जब ऐसी महान हस्तियों ने भी शराब या मद्य जैसी वस्तु को मानसिक विवेक का नाश करने वाली और घृणास्पद बताया है तो हमें भी इसके विपरीत परिणामों की जानकारी होना जरुरी है।

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शराब या मद्य शरीर को खोखला तो बना ही देता है साथ-ही-साथ मानसिक संतुलन को भी बिगाड़ता है। कुछ त्योहारों में और जीवन में किसी जीत का जश्न मनाने के लिए मद्य पान करना शान तथा खुशी का प्रतीक माना जाता है। किन्तु मद्य पान जब जरुरत से अधिक बढ़ जाता है और व्यक्ति को उसकी लत लग जाती है तो परिवार का विनाश होता है, चरित्र की हानि होती है, धन बर्बाद हो जाता है, स्वास्थ्य तथा बुद्धि नष्ट हो जाती है। और ऐसे हालात में आदमी जिए कैसे? तो फिर मृत्यु अटल ही है। जब आदमी खत्म होता है तो समाज और राष्ट्र की उन्नति की कामना हम कैसे कर सकते हैं? इसीलिए समाज के लोगों को खासकर युवाओं को मद्य के सेवन से बचाने के लिए कानून के अंतर्गत ही नियम घोषित करने चाहिए। समाज में मद्य निषेध अनिवार्य रूप से होना ही चाहिए, इस विचार से मैं दिल से सहमत हूँ।

विपक्ष में: यदि भारत देश का उत्थान हम चाहते हैं तो मद्यपान पर रोक लगा देना उचित ही है। किंतु जहाँ मद्यपान के गिने-चुने किंतु लाभ देने वाले परिणाम पर जायें तो वहाँ मद्यसेवन पर प्रतिबंध बनाना अनुकूल नहीं होगा। मद्यसेवन करना कोई गुनाह नहीं है, परंतु उसकी मात्रा पर नियंत्रण होना आवश्यक है। यदि मद्य सेवन करने वाला व्यक्ति मद्य या शराब पर शारीरिक तथा मानसिक रूप से निर्भर बन जाता है, तभी सामाजिक तथा आर्थिक रूप से वह विकलांग बन जाता है और मद्यपान एक समस्या बनकर रह जाता है। किंतु, विदेशी टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात करें, तो होटलों में से उसके उत्पाद उपलब्ध कराये जाएं और उनकी खपत या हिसाब की जिम्मेदारी रखी जाए तो मद्यसेवन कानून के दायरे में ही आयेगा। खुशी या मनोरंजन के अवसर पर मद्यसेवन की आवश्यक और उचित मात्रा हो तो उस खुशी के अवसर पर चार चाँद ही तो लगेंगे। वैसे ही उचित मात्रा में सेवन करें तो मद्यसेवन के औषधि लाभ भी होते

(iii) मनुष्य को अपने जीवन में कोई तो ऐसा लक्ष्य रखना चाहिए जिससे वह अपने सपने सफल कर पाए। लक्ष्य को हासिल करने के लिये मनुष्य परिश्रम, सूझ-बूझ, और हौसले के साथ कई चुनौतियों को पार करता है। बिना लक्ष्य का जीवन यानि बिना नींव की इमारत जो कभी भी गिर सकती है। मैं अपने जीवन में ऐसा लक्ष्य रखती हूँ, जिसे कई साल पहले एक भारत की बेटी, भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला जी ने रखा था। मैं किसी भी देश या क्षेत्र से बाधित नहीं रहना चाहती।

मैं मानव जाति का गौरव बनना चाहती मैं भी ऐसा असाधारण लक्ष्य रखती हूँ। मैं अंतरिक्ष यात्री बनना चाहती हूँ। इस विश्व का अचरज़ मुझे बचपन से ही रहा है। मैं ब्रह्माण्ड को खोजना चाहती हूँ। जिनको हम सामान्य आँखों से देख भी नहीं पाते ऐसे ग्रह, उपग्रह और तारों के बारे में जानना चाहती हूँ। इस निराकार विश्व की गहराई नापना चाहती हूँ। अंतरिक्ष की पढ़ाई तथा यात्रा करके मैं विश्व के तमाम रहस्यों को उजागर करना चाहती हूँ। मैं अंतरिक्ष यात्रा में बिना गुरुत्वाकर्षण की स्थिति का अनुभव करना चाहती हूँ। अंतरिक्ष का वह हिस्सा जिससे अभी भी लोग परिचित नहीं हैं उसका अध्ययन करके मैं सारी दुनिया को उसे अवगत कराना चाहती हूँ। अगर मैं अपने लक्ष्य को हासिल कर पायी तो मुझ पर भारत माता को जरूर गर्व होगा। मैं इस लक्ष्य को सकारात्मक दृष्टिकोण, अथक मेहनत और एक उचित योजना के द्वारा जरूर पा लूँगी।

(iv)
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत-जात ते, सिल पर परत निशान॥
जिस प्रकार बार-बार रस्सी के आने जाने से कठोर पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं, उसी प्रकार बार-बार अभ्यास करने पर मूर्ख व्यक्ति भी एक दिन कुशलता प्राप्त कर लेता है। सिमरन को चित्रकला का बचपन से ही शौक था। उसकी चित्रकला में एक अद्भुत जादू था जो देखने वाले को अपनी तरफ खींचता था। उसकी हाथों की उँगलियों से बने हुए चित्र मानो कैनवास में जान डाल देते थे। लेकिन एक दिन ऐसी दुर्घटना हुई कि सिमरन को अपने दोनों हाथ गंवाने पड़े। सिमरन इस दुःख से संभल ही नहीं पा रही थी।

उसे अपनी चित्रकला फिर से शुरू करनी थी लेकिन बिना हाथों के वो कैसे करें? फिर मन ही मन उसने ठान लिया की वो पैरों से कैनवास फिर से सजायेगी। ये तो बहुत ही कठिन कार्य था। लेकिन जिद्दी सिमरन ने हार न मानते हुए अथक परिश्रम किए। शुरुआत के दिनों में उसे बहुत ही दर्द सहना पड़ा लेकिन वह पैरों से चित्र बनाने का निरंतर प्रयास करती रही। दिन रात एक करके, बिना रूकावट के अपनी मंजिल को पाने के लिये उसने आखिरकार पैरों से चित्र बनाने में कुशलता पा ही ली। यह कहानी ‘करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’ इस कहावत को पुष्टि देते हुए यह साबित करती हैं कि किसी भी क्षेत्र तथा विषय में नियमित और निरंतर अभ्यास करने से उस विषय में महारत तथा प्रवीणता हासिल होती है।

अभ्यास की आवश्यकता शारीरिक और मानसिक दोनों कार्यों में समान रूप से पड़ती है। प्रस्तुत चित्र देखकर ये स्पष्ट होता है कि एक बालिका हाथों में कटोरी लेकर रास्ते पर भूखे बैठे कुत्ते को कुछ भोजन देने का प्रयास कर रही है। दिखने में यह बालिका गरीबी से पीड़ित लगती है। रास्ते पर बैठा कुत्ता भी बहुत दिनों का भूखा लग रहा है। इतनी छोटी उम्र में इस मासूम बालिका ने इस कुत्ते में अपना दोस्त ढूँढ लिया है और अपने हिस्से का खाना वह भूखे कुत्ते को दे रही है। इस बालिका की यह मासूमियत और निस्वार्थता देखकर एक तथ्य और मन की सच्चाई सामने आती है। जो हाथ देने के लिए आगे किये जाते हैं, वो कितने भी छोटे क्यों न हो, उनके दिल की सच्चाई मन जीत लेती है। गरीब होते हुए भी खुद से ज्यादा दूसरों के बारे में सोचना और उनकी मदद करना, ऐसा ही कुछ इस चित्र की बालिका के माँ-पिताजी ने उसे सिखाया होगा, ऐसे प्रतीत होता है।

मैंने एक बार देखा था कि एक अस्पताल में एक गरीब घायल व्यक्ति ने अपने पास की पूँजी अपने करीबी दोस्त को बचाने में खर्च की, जब कि डॉक्टरों का कहना था कि वो दोस्त मरने की कगार पर है और उसे बचाने के लिए और भी पैसे लगेंगे। तब इस घायल दोस्त ने खुद के इलाज को पीछे छोड़कर पहले दोस्त की जान बचाने की सोच में अपनी किडनी बेच डाली ताकि उस पैसों से वह अपने दोस्त को बचा पाए। इस बालिका का यह कृत्य हमें शिक्षा देता है कि अपने पास कुछ ना होते हुए भी दूसरों की मदद का जज्बा रखना बहुत ही महान कार्य है। मानवता को जीवित रखते हुए हमें इसका पालन करना चाहिए।

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Question 2.
Write a letter in Hindi of approximately 120 words on any one of the topics given below: [8]
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए: आपका छोटा भाई किसी दूसरे शहर में पढ़ने गया है, वहाँ वह खेलने के लिए समय नहीं निकाल पा रहा है। खेलों का महत्व समझाते हुए, उसे एक पत्र लिखें।
अथवा
विद्यालय की विज्ञान प्रयोगशाला को अत्याधुनिक बनाने की आवश्यकता समझाते हुए, विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखें।
Answer:
21, कमला नगर,
छात्रीय आवास,
परीक्षा भवन, शिमला।
दिनांक : 21 नवम्बर, 2021
प्रिय अनुज, शिवांश,
स्नेहाशीष।
कल ही तुम्हारी कुशलता की खबर, तुम्हारे आवासीय मित्र श्रवण के पिताजी से मिली जो हाल ही में तुम्हारे शिमला आवास से मुम्बई में लौटे हैं। उन्होंने बताया कि तुम अध्ययन में काफी तरक्की कर रहे हो किन्तु खेलकूद को पीछे छोड़ चले हो। उनसे ये भी जानकारी मिली के अगले महीने में तुम्हारे छात्रीय आवास में खेलकूद की प्रतियोगिता का आयोजन होने जा रहा है, जिसमें पढ़ाई का कारण बताते हुये तुमने हिस्सा नहीं लिया है। हमें गर्व है कि तुम पढ़ाई में बहुत ही अव्वल हो। पढ़ाई और अध्ययन में तुमने अपने आप को ऐसे ढाला है कि अपने जीवन से अलविदा कर दिया है। यह एक गंभीर बात है, शिवांश। मेरी तुम्हें यह अनमोल सलाह है कि भले ही तुम खेलकूद को प्रतियोगिता मानकर उसमें हिस्सा ना लो परन्तु खेलकूद में तुम यह सोचकर शामिल हो जाओ के उसके कारण तुम्हारा शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य बना रहेगा। खेलकूद या क्रीड़ा से चुस्ती फुर्ती मिलती है।

शरीर की माँसपेशियाँ भी बलवान हो जाती हैं। छोटे-छोटे खेलों में भाग लेना भी तुम्हारे लिए लाभदायक होगा क्योंकि इससे तुम्हारी भूख न लगने की और कमजोरी महसूस होने की समस्या भी दूर हो पाएगी। अखंड एक कमरे में पढ़ाई में खुद को व्यस्त रखने से मन और शरीर की ऊबन छू मंतर हो जाएगी। भोजन ठीक से पचने लगेगा और तंदुरुस्ती महसूस होगी। इतना ही नहीं बल्कि भाईचारे की भावना, सहनशीलता और धैर्य जैसे गुण भी खेलकूद में हिस्सा लेने से पनपते हैं। अभी तो तुम्हारी परीक्षाएँ भी खत्म हो चुकी हैं और ये अच्छा मौका है कि तुम खेलकूद में हिस्सा लेना आरम्भ कर दो। तुम्हें अपने आप में जो फर्क नज़र आएगा उसकी जानकारी मुझे अगले पत्र में जरूर करवा देना और एक बड़ी सी मुस्कान और दिल खोलकर धन्यवाद के साथ। किसी सामग्री की आवश्यकता हो तो भी लिखना और अगली छुट्टियों में तुम्हें लेने मैं जरूर आऊँगा। परिवार की शुभकामनाओं के
और मेरे आशीर्वाद के साथ इस पत्र की समाप्ति कर रहा हूँ।
तुम्हारा अग्रज,
अ.ब.स.

अथवा

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
शिमला उच्च विद्यालय,
शिमला।
दिनांक : 21 नवम्बर, 2021
विषयः विद्यालय की विज्ञान प्रयोगशाला अत्याधुनिक बनाने के लिए निवेदन।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय के कक्षा दसवीं ‘अ’ का छात्र हूँ जिसने पिछले साल आप ही के हाथों परीक्षा में अव्वल आने का पुरस्कार पाया था। अपने विद्यालय में छात्रों के उज्जवल भविष्य निर्माण करने की हमेशा कोशिश रही है। हमारे विद्यालय को बड़े सम्मान की नज़र से देखा जाता है। लेकिन हाल ही में हम छात्रों ने विद्यालय में विज्ञान के प्रयोगशाला में कुछ कमियाँ पायी है।

इस पत्र के माध्यम से मैं आपको अवगत करना चाहता हूँ कि अपने विद्यालय की प्रयोगशाला काफी पुरानी हैं और विद्यालय का जो ऊँचा स्तर है उसमें वह मेल नहीं खाती। प्रयोगशाला में कार्य करने से छात्रों में अवलोकन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, शक्ति, धैर्य, तर्कशक्ति, निष्कर्ष, निरूपण, स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का सहज ही विकास होता है। लेकिन उसके लिए आधुनिक तंत्रज्ञान से प्रविष्ट उपकरण और साधनों की आवश्यकता होती है। फिलहाल, हमारे विद्यालय के प्रयोगशाला के सारे उपकरण पुराने होने के कारण सही नतीजा नहीं दे पा रहे हैं। अतः आपसे अनुरोध है कि छात्रों के विज्ञान के कौशल प्रशिक्षण के लिए अपने विद्यालय की प्रयोगशाला को अत्याधुनिक बनाने हेतु पर्याप्त उपकरण और सामग्री प्रदान करने की व्यवस्था करें।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
अ.ब.स.
कक्षा दसवीं ‘अ’

Section-B [20 Marks]
साहित्य सागर-संक्षिप्त कहानियाँ

(Answer questions from any of the two books that you have studied.)

Question 3.
(i) बेनी माधव सिंह ने किसका साथ दिया और क्यों? [2]
(ii) चित्रा एवं अरूणा कौन हैं? संक्षेप में उनका परिचय दीजिए। [2]
(iii) “भाई नाम तो तुम्हारा लिख लेता हूँ पर जल्दी नौकरी पाने की कोई आशा मत करना”- यह संवाद किसने, किससे और कब कहा? [3]
(iv) भेड़िए की बात सुनकर बूढ़े सियार ने उसे क्या सलाह दी? और भेड़िए ने उसे क्या उत्तर दिया? [3]
Answer:
(i) बेनी माधव सिंह एक जमींदार और समझदार व्यक्ति होने के बावजूद भी उनकी स्त्रियों के प्रति सोच कुछ हीन और छोटे दर्जे की थी। वे पुरुष प्रधान सोच रखते थे। इसी के परिणामस्वरूप, उन्होंने अपने छोटे बेटे लालबिहारी का साथ देते हुए उसके दुर्व्यवहार को समर्थन दिया। अपनी बहू आनंदी के बारे में बिना जाने उन्होंने गलत सोच बना रखी थी। स्त्रियों को सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए, यह सोच रखने वालों में से बेनी माधव जी भी थे।

(ii) चित्रा और अरुणा लेखिका मन्नू भंडारी लिखित ‘दो कलाकार’ कहानी की, दो मुख्य पात्र हैं। ये दोनों एक दूसरे की अच्छी सहेलियाँ हैं और हॉस्टल के रूम में छः साल से साथ रहती हैं किन्तु उनके स्वभाव और शौक दोनों भिन्न-भिन्न हैं। अरुणा समाजसेवा में रूचि रखती है तो चित्रा सुन्दर चित्र बनाने में सजीव शोषित, पीड़ित, असहाय प्राणियों की मदद करने में ही सच्ची कला होती है ऐसे अरुणा मानती है। चित्रा के अनुसार, अच्छे चित्र बनाना ही महान चित्रकार की पहचान है। महान चित्रकार बनना चित्र के जीवन का लक्ष्य है तो एक सच्ची समाज सेविका बनना अरुणा के जीवन का उद्देश्य है। एक सहेली (चित्रा) कला के प्रति समर्पित है और जीवन को कागज के कैनवास पर उतारकर सफलता पाना चाहती है तो दूसरी सहेली (अरुणा) असल जीवन में पीड़ितों के प्रति सेवाभाव रखने की तमन्ना रखती है। चित्रा अपने क्षेत्र में विदेश जाकर बहुत बुलंदियाँ हासिल कर लेती है किन्तु भिखारन के बच्चों के जिस चित्र की वजह से चित्रा को कामयाबी मिली होती है उसी भिखारन के अनाथ बच्चों को अरुणा गोद लेकर, उनका पालन-पोषण करके उन्हें अपना नाम देती है।

(iii) दीनानाथ, जो श्यामलकांत बाबू का बड़ा लड़का है, जब रोजगार कार्यालय में नौकरी पाने हेतु अपना नाम दर्ज करवाने जाता है, उस समय रोजगार कार्यालय के अधिकारी उपर्युक्त कथन कहते हुए दीनानाथ को बताते हैं कि उन्होंने दीनानाथ का नाम तो लिख दिया है परन्तु वे जल्दी नौकरी पाने की आशा न करें क्योंकि उसकी योग्यता के समान अन्य हजारों लोग नौकरी पाने की उम्मीद में दीनानाथ के पहले से ही कतार में हैं।

(iv) वन प्रदेश में होने वाले पंचायत के चुनाव की बात भेड़िये ने बूढ़े सियार को बता दी। दुखी मन से भेड़िये ने सियार से कहा कि चुनाव करीब आने के कारण उन्हें अब जंगल से भागने के अलावा अन्य कोई चारा नहीं है। तब बूढ़े सियार ने उसे सर्कस में भर्ती होने की सलाह दी। तब भेड़िये ने जवाब में कहा कि सर्कस में भेड़िये बदनाम होने के कारण उन्हें वहाँ कोई नहीं पूछता और सिर्फ शेर तथा रीछ को ही वहाँ लेते हैं। इस उत्तर पर बूढ़े सियार ने भेड़िये को अजायबघर जाने की दूसरी सलाह दी किन्तु भेड़िया उसके लिए भी तैयार नहीं था क्योंकि अजायबघर में जगह नहीं है और वहाँ आदमी रखे जाने लगे हैं। फिर ध्यानमग्न होने का अभिनय करते हुए बूढ़े सियार ने, भेड़ों के पंचायत में भेड़िया जाति का बहुमत होने का प्रस्ताव रखा। उस पर भेड़िये ने गुस्से से अपनी बात रखते हुए कहा कि भेड़ों
और अन्य पशुओं के मुकाबले भेड़ियों की संख्या कम होने के कारण बूढ़े सियार की दी हुई सलाह वास्तविकता में असंभव है।

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साहित्य सागर-पद्य

Question 4.
(i) खिलौना न मिलने की स्थिति में श्री कृष्ण यशोदा माता को क्या-क्या कहकर डरा रहे हैं? [2]
(ii) पाहुन के आने से गाँव में क्या हलचल हुई? [2]
(iii) तुलसीदास जी का परिचय लिखिए। [3]
(iv) निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए: [3]
(A) प्रबल
(C) विषद
(B) अवरुद्ध
(D) रफ्तार
(E) बयार
(F) दामिनी
Answer:
(i) बाल कृष्ण माता यशोदा से रूठे हुए हैं और हठ कर रहे हैं कि उन्हें चन्द्रमा रूपी खिलौना चाहिए। अपनी चंद्र रूपी खिलौना पाने की जिद पूरी करने के लिए वह माता यशोदा को तरह-तरह की धमकियाँ देकर डरा रहे हैं। वे कहते हैं कि अगर माता यशोदा उन्हें चन्द्रमा रूपी खिलौना नहीं दिलवाएंगी तो वे सफेद गाय का दूध नहीं पिएंगे तथा चोटी नहीं गुँथवायेंगे। ढीला वस्त्र (कुर्ती) और गले में मोतियों की माला भी नहीं पहनेंगे। इतना ही नहीं कृष्ण माँ यशोदा को यह कहकर डरा रहे हैं कि वे जमीन पर लेट जायेंगे और उनकी गोदी में नहीं आएंगे। वे यशोदा माता के पुत्र नहीं बल्कि उनके पिता नन्द बाबा के पुत्र कहलायेंगे। खिलौना न मिलने की स्थिति में कृष्ण अपनी जिद पूरी करने के लिए यशोदा माता को इस तरह से डरा रहे हैं।

(ii) जैसे शहर के मेहमान या दामाद सज-धज कर गाँव में बहुत दिनों के बाद प्रवेश करते हैं उसी तरह मेघरूपी पाहुन (मेहमान तथा अतिथि/ दामाद) लम्बे समय बाद गाँव में पधारते हैं। उनके आने से गाँव में काफी हलचल होती हुई दिखाई देती है। जिस प्रकार गाँव में मेहमान आने पर बड़े-बूढ़े आगे बढ़कर उसका अभिवादन करते हैं वैसे ही मेघ रूपी दामाद/मेहमान आने पर गाँव के बुजुर्ग पीपल के पेड़ आगे बढ़कर उनका अभिवादन करते हैं। मेहमान के आने पर जिस तरह घर के सदस्य झुककर प्रणाम करते हैं, उसी तरह गाँव में बादल के रूप में मेहमान के आने पर पेड़ हवा के वेग से झुके और डोलने लगे। ऐसे प्रतीत होता है कि गाँव वालों में अतिथि का स्वागत करने की चाह और उसे देखने की जिज्ञासा भी है। धीरे-धीरे हवा आँधी में बदल गयी और धूल उड़ाने लगी। धूल का गुबार देखकर ऐसे लग रहा है जैसे कोई गाँव की युवती किसी अनजान व्यक्ति को गाँव में देखकर अपना लहँगा समेटकर भागी चली जा रही है। बादलों के घिरने से नदी भी ठिठककर देखने लगी मानो मेहमान के आने के समाचार से गाँव की बहुओं ने यूंघट ओढ़ लिया हो और जिज्ञासा भरी तिरछी नज़र से गाँव के पाहुन को देख रही हों।

(iii) हिंदी साहित्य के इतिहास में तुलसीदास जी का स्थान महत्वपूर्ण है। उनके जन्मस्थल के बारे में दो राय हैं किन्तु बहुतांश विद्वान मानते हैं कि तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में राजापुर गाँव में हुआ था। उनके गुरु नरहरिदास थे जिनसे उन्होंने वेद, पुराण और अन्य शास्त्र की शिक्षा ली तथा रामायण की कथा भी सुनी। तुलसीदास जी राम के अनन्य भक्त थे और उनकी भक्ति दास्य भाव की थी। उन्होंने ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने राम चरित्र पर आधारित महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ की रचना की। मानव जीवन के सभी उच्च आदर्शों का समावेश करके उन्होंने राम के जरिए शक्तिशील और सौंदर्य का अपूर्व संगम अपने काव्य में किया। उनकी रचनाओं में सामाजिक और मानवीय मूल्य और आदर्शों का जैसे, न्याय, धर्म, प्रेम, दया, सहानुभूति, आदि का समागम देखने मिलता है। ‘रामचरितमानस’ के अलावा उन्होंने ‘जानकी मंगल’, ‘बरवै रामायण’, ‘गीतावली’, ‘दोहावली’, ‘विनय पत्रिका’, ‘वैराग्य संदीपनी’ आदि रचनाएँ भी की।

(iv) (A) प्रबल–तीव्र, तेज, शक्तिशाली, बलवान।
(B) अवरुद्ध-बाधित, बंद, रुकना, सीमित, निश्चल।
(C) विषद/विशद-विस्तृत, सफेद, लम्बा-चौड़ा, बड़ा, निर्मल, चमकीला।
(D) रफ्तार–वेग, गति, चाल।
(E) बयार-पवन, हवा, वायु, समीर।
(F) दामिनी-तड़ित, सौदामिनी, विद्युत, गाज, बिजली।

नया रास्ता

Question 5.
(i) आशा के विवाह में आई दूसरी महिलाएँ मीनू के बारे में क्या बातें कर रही थीं? [2]
(ii) क्या अमित मेरठ वाली लड़की से शादी करने के लिए इच्छुक था? यदि नहीं, तो शादी तय कैसे हो गई? [2]
(iii) अमित को नीलिमा से क्या ज्ञात हुआ था? उसे सुनकर उसने क्या निर्णय लिया था? [3]
(iv) मीनू का चरित्र-चित्रण करें। [3]
Answer:
(i) अपनी बहन आशा के विवाह में मीनू ने विवाह की कुछ रस्म निभाने के लिए हरे रंग की साड़ी पहनकर साज शृंगार किया था जिसमें वह खूबसूरत लग रही थी। शादी में आयी हुई एक महिला, वधु यानि आशा की बहन के बारे में पूछताछ करती है तो दूसरी महिला मीनू की तरफ इशारा करते हुए उसी को आशा यानि वधु की बहन बताती हैं। तब वह महिला मीनू के खूबसूरत होने के बावजूद भी शादी न होने पर आशंका व्यक्त करती है। तब मीनू के परिवार को जानने वाली महिला मीनू की शादी को मना करने की वजह उसकी वकालत की पढ़ाई बताती है। तब दूसरी महिला ताने कसते हुए कहती है कि पढ़ाई के चक्कर में मीनू की उम्र ढल रही है। आजकल की लड़कियों के बड़े नखरे होते हैं। बड़ी को छोड़कर छोटी बेटी की शादी क्यों की जा रही है। इस तरह से, आशा के विवाह में आयी दूसरी महिलायें मीनू की शादी न करने और वकालत करने के फैसले को गलत बताते हुए मीनू की शादी को लेकर व्यंग्यात्मक और कटाक्षभरी बातें कर रही थीं।

(ii) अमित मेरठ वाली लड़की से शादी करने के लिए इच्छुक नहीं था क्योंकि उसका मानना था कि मेरठ की वो बड़े घर की लड़की अमित के मध्यमवर्गीय परिवार के वातावरण में घुलमिल नहीं पाएगी। लेकिन उसके माता-पिता की इच्छा के सामने अमित कुछ न बोल पाया था। अमित और मेरठ वाली लड़की सरिता (जो धनीमल जी की सुपुत्री है) का रिश्ता एक लालच की योजना से तय हुआ था। धनीमल जी ने मायाराम जी से (जो अमित के पिता हैं) अपनी बेटी के लिए उनके बेटे का हाथ माँगा था और पाँच लाख रुपये का लालच भी दिया था। मायाराम जी के इस प्रस्ताव को साफ मना करने पर धनीमल जी ने उन्हें अधिक धन का प्रलोभन दिया। अमित की माँ धन के लोभ में आकर अमित का रिश्ता मेरठ के धनीमल की बेटी सरिता से जोड़ने की जिद करती हैं और उसके इस जिद भरे निर्णय के आगे परिवार वाले झुक जाते हैं और इस प्रकार अमित की मेरठ वाली लड़की से शादी तय हो जाती है।

(iii) अमित को नीलिमा से मीनू के बारे में जानकारी मिली कि वह मेरठ में ही वकालत की पढ़ाई कर रही है। नीलिमा ने यह भी बताया कि डेढ़ वर्ष पूर्व मेरठ से आए रिश्ते ने जब उसे नामंजूर कर दिया था तब मीनू बहुत निराश हो गई थी और उसने शादी ना कर अपने पाँव पर खड़े होने का निश्चय कर लिया। अमित ने नीलिमा को यह नहीं बताया कि मेरठ वाला लड़का वही है। अमित को आत्मग्लानि महसूस हुई। घर लौटते समय अमित के मस्तिष्क में मीनू ही छायी हुई थी।

(iv) मीनू दयाराम जी की सबसे बड़ी संतान है। वह बचपन से ही पढ़ने में तेज़ हैं। एम.ए. तक की परीक्षा और उसके पश्चात वकालत की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद वह मेरठ जिले की प्रतिष्ठित वकील बनती है और खुद को अदालत में एक कुशल अधिवक्ता साबित करती है। वह इस कहानी की मुख्य पात्र है। मीनू अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित है। वो दृढ़ता और साहब की मूर्ति है और महत्वाकांक्षी तथा मिलनसार हैं। मीनू एक प्रतिभासम्पन्न युवती है जो घरेलू कामों में निपुण होने के बावजूद प्रगतिशील है और दहेज़ प्रथा के विरुद्ध है। अपने सांवले रंग के कारण शादी के रिश्तों में बार-बार अस्वीकृत कर दिए जाने पर हीनभावना से ग्रसित इस लड़की ने खोखले समाज की भत्सना करते हुए स्वावलम्बी बनने का और शादी न करने का क्रांतिकारी फैसला लिया है और समाज में व्याप्त रुढ़ियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है। पारिवारिक जिम्मेदारी महसूस करके अपने परिवार को छोटी बहन की शादी पहले कर देने की सलाह भी देती है। पड़ोसी स्त्रियों के व्यंग बाणों को अपनी प्रगतिशीलता का उदाहरण देकर चुप कराती है। अपना रास्ता खुद चुनकर आत्मनिर्भर बनकर दिखाती है।

एकांकी संचय

Question 6.
(i) ‘सूखी डाली’ एकांकी में बेला ने ससुराल के फर्नीचर के विषय में क्या-क्या कहा था? यह बात कौन बता रहा था? [2]
(ii) सूखी डाली एकांकी में इंदू कौन है? उसने मिसरानी के विषय में बेला से क्या-क्या कहा था? यह बात उसने किसके समक्ष कही थी? [2]
(iii) ‘दीपदान’ एकांकी में सोना कौन थी? वह बनवीर की प्रशंसा करते हुए पन्ना धाय से क्या कहती है? [3]
(iv) दीपदान एकांकी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। [3]
Answer:
(i) ‘सूखी डाली’ एकांकी में बेला ने ससुराल में वर्षों से रखे हुए फर्नीचर को बाहर निकालकर रखते हुए कहा था कि वह फर्नीचर सड़ा-गला है। और वह ऐसे फर्नीचर को अपने कमरे में नहीं रखेगी। बेला ये भी कहती हैं कि ऐसे फर्नीचर पर बैठने से अच्छा है, कि वो ज़मीन पर चटाई बिछाकर बैठे। ये कहते हुए वह अपने मायके के फर्नीचर की प्रशंसा करती रही। यह बात मंझली बहू घर की अन्य स्त्रियों को बता रही थी।

(ii) ‘सूखी डाली’ एकांकी में ‘इंदु’ दूसरी प्रमुख नारी पात्र व दादा मूलराज की पोती और बेला की ननद है। वह परिवार में सबसे अधिक शिक्षित है जिसने प्राइमरी शिक्षा ग्रहण की है। वह बहुत गुस्सैल स्वभाव की है और उसकी भाभी बेला उसे एक आँख नहीं भाती है। उसने मिसरानी के विषय में बेला से यह कहा था कि दस साल से यही मिसरानी (पारो) घर का काम कर रही है। घर भर की सफाई करती है, बर्तन मांजती है, कपड़े धोती है। बेला का कौन-सा काम है जो मिसरानी को नहीं आता है इसका आश्चर्य भी वो बेला से व्यक्त करती है। इंदु मिसरानी के बारे में बेला से यह भी कहती है कि नौकरों से काम लेने की तमीज़ होनी चाहिए। इंदु का बेला से उपहासपूर्वक कहना था कि अगर हम गँवार हैं तो बेला भाभी को मायके से एक मिसरानी को लेकर आना था ताकि इंदु का परिवार
उससे कामकाज सीख लेता। इंदु यह बात घर की बड़ी बहू के सामने कहती है।

ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

(iii) ‘दीपदान’ एकांकी में सोना चित्तौड़ के रावल सरूप सिंह की सोलह वर्षीय अत्यंत रूपवती, वाक्यपटु, नृत्य निपुण और शिष्टाचार पालन करने वाली भोली, सीधी परन्तु नटखट लड़की थी। बनवीर की प्रशंसा करते हुए वो पन्ना धाय से कहती है कि वह बनवीर को ‘महाराज बनवीर’ कहकर सम्मान से पुकारे। उन्होंने बागड़ के इलाके से हाथी-घोड़े की बड़ी-बड़ी झूल लाए थे। सोना के लिए भी वे रेशम की एक ऐसी झूल लाए थे जिसे सिर से ओढ़कर नाचने से सोना को यह अनुभव होता था कि जैसे मकड़ी के जाले के आरपार चन्द्रमा की किरणें थिरक रही हैं। सोना बनवीर की प्रशंसा करते थकी नहीं थी। पन्ना धाय से बनवीर का गुणगान गाते हुए यह भी कहा कि महल में उत्सव का दिन न होने पर भी बनवीर लोगों को खुशियों से नाचने-झूमने के लिए और उनके बनाये हुए मयूर पक्ष कुंड में दीपदान करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे।

(iv) दीपदान का स्थूल अर्थ एक उत्सव से है जिसमें युवतियाँ दीप प्रज्ज्वलित करके पानी में बहाती हैं, जिसका दृश्य बहुत ही मनोहारी होता है। एकांकी का आरम्भ भी दीपदान के उत्सव से होता है। ‘दीपदान’ का दूसरा प्रतीकात्मक अर्थ, जो एकांकी से प्रतीत होता है वो ये है कि ‘दीप’ जीवन को उजागर और सजीव रखने का माध्यम है। जहाँ सम्पूर्ण चित्तौड़ राज्य खुशियों से झूमकर भवानी माता के समक्ष दीपदान का उत्सव मना रहा है तभी धाय माँ अपने दीप याने पुत्र चन्दन, जो उसका जीवन ही है, उसे मातृभूमि तथा राज्य के लिए दान कर देती है। ऐसा करते हुए वह अपने त्याग और साहस का परिचय देती है और कहती है “आज मैंने भी दीपदान किया है। अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।” चित्तौड़ रियासत के युवराज उदय सिंह की रक्षा के लिए पन्ना धाय अपने पुत्र के प्राणों की आहुति दे देती है। त्याग, बलिदान, कर्तव्यनिष्ठा, देशभक्ति से जुड़ा हुआ यह शीर्षक एकांकी के उद्देश्य को हर तरह से सार्थक बनाता है।

ICSE Class 10 Hindi Question Papers with Answers

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