ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 2 with Answers

ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 2 with Answers

Maximum Marks: 40
Time: 1 1/2 Hours

Section-A [20 Marks]

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 200 words on any one of the following topics:
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 200 शब्दों में निबंध लिखिए: [12]
(i) करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान – इस कहावत को आधार बनाकर विद्यार्थी जीवन में परिश्रम का महत्व बताते हुए निबंध लिखिए।
(ii) ‘मोबाइल फोन’ आज की अनिवार्य आवश्यकता है। इस कथन पर पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
(iii) देश-प्रेम सर्वोच्च भावना है, इससे ही मानव में त्याग व बलिदान की भावना का विकास होता है। – इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
(iv) जैसी करनी वैसी भरनी–इस कहावत को आधार बनाकर एक मौलिक कहानी लिखें।
(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिये और चित्र को आधार बनाकर, उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा कहानी लिखिये। जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 2 with Answers 1
Answer:
“करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान।”
अर्थात् कुएँ से पानी खींचते समय रस्सी पत्थर पर गहरा निशान डाल देती है, इसलिए अभ्यास वह मूलमंत्र है, जिससे मूर्ख भी विद्वान बन जाता है और विद्वान और भी कुशल हो जाता है। अभ्यास और परिश्रम का मार्ग अपनाकर मनुष्य सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। अभ्यास मनुष्य के गुणों को विकसित करता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि अभ्यास और परिश्रम के बल पर मनुष्य ने असंभव को भी संभव कर दिखाया। अर्जुन तथा एकलव्य निरंतर अभ्यास और परिश्रम करने के कारण ही महान धनुर्धर बन सके। वाल्मीकि सतत् अभ्यास के कारण ही आदिकवि वाल्मीकि बने। मुहम्मद गौरी ने सत्रह बार पराजित होकर भी हार नहीं मानी, इसलिए अठारहवीं बार पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर सका। हॉकी के प्रसिद्ध खिलाड़ी ध्यानचंद अभ्यास के कारण ही हॉकी के जादूगर बन सके।

जो लोग अभ्यास से मुँह मोड़ते हैं, सफलता उनसे कोसों दूर रहती है। संस्कृत में एक कहावत है-‘अनभ्यासे विष विद्या’ अर्थात् अभ्यास के बिना विद्या विष के समान हो जाती है, इसलिए विद्यार्थी जीवन में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। जो विद्यार्थी आलस्य के कारण परिश्रम से मुँह मोड़ते हैं, वे अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते। जीवन के सभी क्षेत्रों में, चाहे वह खेल-कूद हो या पढ़ाई, संगीत हो या कला-कौशल अभ्यास करने पर ही निपुणता प्राप्त होती है। अभ्यास न केवल व्यक्ति, बल्कि पूरे समाज व देश के उत्थान का मूलमंत्र है। निरंतर अभ्यास से ही मनुष्य की मानसिक तथा आध्यात्मिक उन्नति संभव है, अतः हमें इससे अपने कदम पीछे नहीं हटाने चाहिए।

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(ii) मोबाइल फोन-आज की अनिवार्य आवश्यकता
आधुनिक युग में तेज़ रफ्तार से दौड़ते जीवन में मोबाइल फोन अनिवार्य अंग बन गया है। ‘मोबाइल’ शब्द का अर्थ है-चलते-फिरते, एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते-जाते। अतः जिस फोन का प्रयोग कहीं भी, किसी भी स्थान पर किया जा सकता है, मोबाइल फोन कहलाता है। पक्ष में आज मोबाइल फोन ने समय-स्थान की दूरी को कम कर दिया है। आज कहीं भी, किसी से भी बात चीत कर सकते हैं। घर बैठे-बैठे ही दफ्तर का बहुत-सा काम पूरा कर लेते हैं।

क्योंकि मोबाइल फोन हर समय उनके पास है। इसकी तकनीकी में नित्य विकास भी हो रहा है। अब रंगीन और कैमरे वाले मोबाइल फोन आ गए हैं जिनसे फोटो खींचने के साथ-साथ संगीत भी सुना जा सकता है। इनमें कैलकुलेटर होने के कारण कहीं भी बैठकर हिसाब-किताब किया जा सकता है। इन पर फिल्में भी देखी जा सकती हैं। वर्तमान में तो पढ़ाई, नौकरी, व्यवसाय, खरीददारी आदि सभी कार्य मोबाइल के माध्यम से ही किए जा रहे हैं। मोबाइल की लोकप्रियता और कार्यक्षमता का अनुमान केवल इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ वर्षों में ही इसके उपभोक्ताओं की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है।

वर्तमान में उद्योगपतियों से लेकर श्रमिक तक, यहाँ तक कि पहली, दूसरी कक्षा के बच्चों तक के हाथ में मोबाइल फोन दिखाई देने लगा है। इस प्रकार इसके बढ़ते प्रयोग से आदमी हर कार्य आसानी से कर सकता है। इसलिए आज का युग मोबाइल फोन का युग है। विपक्ष में-परन्तु किसी भी वस्तु का प्रयोग एक सीमा तक ही ठीक है। अधिक प्रयोग करने से उसके कई नुकसान भी हो सकते है। मोबाइल ज्यादा प्रयोग करने से सिरदर्द, नींद में गड़बड़ी, याददाश्त, चिड़चिड़ापन, हाथ और गर्दन में दर्द और आँखों से कम दिखाई, देने जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है इसलिए फोन से रेडिएशन से उत्पन्न खतरों में सबसे ज्यादा कैंसर का है। साथ ही अन्य बीमारियों का शिकार भी हो सकते हैं। इस कारण मोबाइल फोन का प्रयोग, उपयोग आवश्यकता होने पर ही करना चाहिए।

(iii)
देश प्रेम
“जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।
वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है।”
जिस धरती पर हमने जन्म लिया, जिस पर लोट-लोट कर बड़े हुए, जिसने अपने अन्न से हमें पाला-पोसा, उस धरती की भाषा, संस्कृति परंपराओं के प्रति प्रेम, स्नेह की भावना ही देश-प्रेम है। यह गुण मानव हृदय में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहता है, इसीलिए, मनुष्य चाहे विश्व के किसी भी कोने में रहे, वहाँ सारी सुख-सुविधाएँ भोगते हुए भी उसका हृदय देश की मिट्टी के लिए तरसता है। मातृभूमि के आँचल की छाँव में उसे जो आनंद मिलता है, जिस सुख की अनुभूति होती है, वह अन्यत्र नहीं है। इसलिए कहा गया है-
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
अर्थात् माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। मनुष्य की तो बात ही क्या है, पशु-पक्षियों तक में यह भावना पाई जाती है। वे भी जन्मभूमि के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार रहते हैं। इसी प्रेम से प्रेरित होकर वे दिन-भर घूम-फिर कर रात को अपने बसेरे में लौट आते हैं। फूल-पौधों तक में मातृभूमि के प्रति असीम प्रेम होता है। कविवर माखनलाल चतुर्वेदी पुष्प की इसी अभिलाषा को व्यक्त करते हुए कहते हैं
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक।
देश-प्रेम सर्वोच्च भावना है, इससे ही मानव में त्याग व बलिदान की भावना का विकास होता है। यह भावना ही मनुष्य को देश की रक्षा, कल्याण और विकास के लिए प्रेरित करती है। जिस देश ने हमें जीवन दिया, पालन-पोषण किया, उस देश की सेवा करना हमारा परम कर्तव्य है। व्यक्तिगत स्वार्थों की तुलना में राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि स्थान देना चाहिए, जिससे देश उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सके। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम अपने मताधिकार का उचित प्रयोग करते हुए योग्य व्यक्तियों को ही चुनें। हम देश की सभ्यता, संस्कृति की रक्षा कर, समाज में फैली कुरीतियों को दूर कर, ईमानदारी व निष्ठा से अपना काम करके देश की सेवा कर सकते हैं। किसान अन्न उपजाकर, धनी धन देकर, मजदूर परिश्रम से, वैज्ञानिक नए आविष्कार कर अपने देश-प्रेम का परिचय दे सकते हैं। अतः प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है कि वह देश की उन्नति में पूर्ण सहयोग दे, समय पड़ने पर देश के लिए अपना तन-मन-धन सब कुछ न्योछावर करने के लिए तत्पर रहे, तभी हमारे देश का गौरव बढ़ेगा।

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(iv) जैसी करनी वैसी भरनी
एक बार की बात है किसी गाँव में एक किसान रहता था। जोकि दूध से दही और मक्खन बनाकर उसे बेचकर अपना जीवनयापन करता था। एक दिन उसकी पत्नी ने उसे मक्खन तैयार करके दिया, वो उसे बेचने के लिए अपने गाँव से शहर की तरफ रवाना हो गया। वे मक्खन गोल-मोल पेड़े की शक्ल में बना हुआ था और हर पेड़े का वजन एक किलोग्राम था। शहर में किसान ने उस मक्खन को रोज की तरह एक दुकानदार को बेच दिया और दुकानदार से चायपत्ती, साबुन, चीनी, रसोई का तेल वगैरह खरीदकर वापस अपने गाँव जाने के लिए रवाना हो गया। उस किसान के जाने के बाद उस दुकानदार ने मक्खन को फ्रीजर में रखना चाहा और अचानक उसे ख्याल आया कि क्यों न इनमें से एक पेड़े का वजन जाँचा जाए, वजन तोलने पर पेड़े 900 ग्राम का निकला। हैरत और निराशा से उसने सोर पेड़े तोल डालें मगर किसान के लाए हुए सभी पेड़े 900-900 ग्राम के ही निकले।

ठीक अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज पर चढ़ा। दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा-तू दफा हो जा यहाँ से, किसी बेईमान और धोखेबाज शख्स से कारोबार करना, पर मुझसे नहीं। 900 ग्राम मक्खन को पूरा एक किलो कह कर बेचने वाले शख्स को वो शक्ल भी देखना गवारा नहीं करता। किसान ने बड़ी ही विनम्रता से दुकानदार से कहा, “मेरे भाई मुझसे नाराज मत होना। हम तो गरीब और बेचारे लोग हैं, हमारे पास माप-तोल के लिए बाट खरीदने की हैसियत कहाँ, आपसे जो एक किलो चीनी लेकर जाता हूँ उसी को तराजू के एक पलडे में रखकर दूसरे पलडे में उतने ही वजन का मक्खन तोलकर ले आता हूँ। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है।”
“जो हम दूसरों को देंगे, वही लौटकर आएगा……..
फिर चाहे वो इज्जत, सम्मान हो, या फिर धोखा…….!!!”
अतः हम जो दूसरों को देते है, बदले में हमें वही मिल जाता है। यही संसार का नियम है। यही तो है-जैसी करनी, वैसी भरनी।

(v)
कोरोना : एक वैश्विक महामारी
कोरोना एक प्राणघातक रोग है और इससे बचाव ही इसकी दवा है। यह रोग चीन के वुहान शहर से शुरू होकर पूरे विश्व में फैल गया और इतना विकराल हो गया कि विश्व के अधिकतर देशों को पूरी तरह बंद घोषित कर दिया गया। यह महामारी एक वायरस जनित रोग है, जिसने महामारी का रूप ले लिया है और समस्त संसार में तबाही मचा रहा है। इस रोग की शुरूआत जुकाम एवं खाँसी मात्र से होती है जो धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर लेती है और रोगी के श्वसन तंत्र को बुरी तरह प्रभावित करती है। अंत में व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है।

कोरोना की उत्पत्ति सबसे पहले 1930 में एक मुर्गी से हुई थी और इसने मुर्गी के श्वसन प्रणाली को प्रभावित किया था। आगे चलकर 1940 में कई अन्य जानवरों में पाया गया था। इन सबके बाद 2019 में इसे दुबारा विकराल रूप में चीन में देखा गया और बाद में पूरे विश्व में फैल गया। कोरोना से बचाव ही समझदारी है क्योंकि यह एक संक्रामक रोग है जो बहुत ही तेजी से एक-दूसरे में फैलता है। डब्लू. एच. ओ. ने कुछ सावधानियों की सूची निकाली है और यह भी बताया है कि कोरोना से बचाव के ये मूल मंत्र हैं। ये मंत्र निम्न हैं –
1. सदैव बाहर से आने के बाद अपने हाथों को साबुन से करीब 20-30 सेकेंड तक अवश्य धोएँ।
2. अपने हाथों को मुख से दूर रखें, जिससे संक्रमण होने पर भी आपके मुख में अंदर न जा पाए।
3. लोगों से 5 से 6 फीट की दूरी अवश्य बनायें।
4. सदैव मास्क व सैनिटाइजर का प्रयोग करें।
5. संक्रमण की स्थिति में खुद को दूसरों से अलग रखें और नजदीकी अस्पताल में सूचित करें।
कोरोना का संक्रमण बड़ी तेजी से फैल रहा है। इसकी अब तक कोई निश्चित दवा नहीं है, इसलिए इसे बहुत ही प्राणघातक रोग की श्रेणी में रखा गया है। इसलिए बताई गई सावधानी अवश्य बरतें और सतर्क रहें। साथ ही इस बीमारी को दुनिया से खत्म करने की जंग में एक बहुमूल्य योगदान दें।

Question 2.
Write a letter in Hindi of approximately 120 words on any one of the topics given below: [8]
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए: आपका छोटा भाई छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहा है। उसने आपसे परीक्षा की तैयारी के लिए मार्ग-दर्शन चाहा है। परीक्षा की तैयारी की सलाह देते हुए पत्र लिखिए।
अथवा
आपके विद्यालय में खेल-कूद संबंधी सुविधाओं की कमी है। इस ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कक्षा मॉनीटर की ओर से अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को एक पत्र लिखिए।
Answer:
ए-2/243,
सुचेता कृपलानी मार्ग
गोमती नगर, लखनऊ (उ. प्र.)
08 जनवरी, 20XX
प्रिय अनुज,
मधुर स्नेह।
तुम्हारा पत्र मिला। पत्र पढ़कर सब हाल मालूम किया। तुम वहाँ सकुशल हो, यह जानकर खुशी हुई। मैं इस पत्र के माध्यम से बताना चाहता हूँ कि अच्छे अंक लाने के लिए कैसे तैयारी करो।
अनुज, तुम्हारी परीक्षाएँ मार्च के प्रथम सप्ताह से आरम्भ होंगी। अब तुम कम से कम पाँच घंटे पढ़ने की समय सारिणी बना लो। अर्थात् प्रत्येक विषय के लिए एक घंटा समय निकालो। कुछ छात्र कठिन विषयों को खूब पढ़ते हैं पर आसान विषयों पर ध्यान नहीं देते हैं। परिणामस्वरूप आसान विषयों में ही उनके अंक अच्छे नहीं आते हैं। हाँ, गणित और विज्ञान जैसे विषयों के लिए अतिरिक्त समय पर पढ़ाई करो। इन दो विषयों के लिए प्रात:काल का अध्ययन बेहतर होगा। प्रात:काल का समय पढ़ाई के लिए सर्वोत्तम होता है, इसलिए प्रातः पढ़ाई करो। मेरी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं। पत्र में लिखना कि तुमने मेरी सलाह को कितना अपनाया।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में
तुम्हारा अग्रज
मयंक

अथवा

सेवा में,
प्रधानाचार्य जी,
राजकीय विद्यालय,
द्वारिका, दिल्ली।
विषय-खेल-कूद संबंधी सुविधाओं के अभाव के संबंध में
महोदय,
विनम्र निवेदन है कि मैं इस विद्यालय की दसवीं कक्षा का मॉनीटर हूँ। यह विद्यालय पठन-पाठन की उत्तम व्यवस्था एवं उच्च शिक्षण व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है, जिसका प्रमाण विगत कई वर्षों का उच्च परीक्षा परिणाम है।
श्रीमान जी, विद्यालय में यदि किसी चीज की कमी खटकती है तो वह है खेल-कूद संबंधी सुविधाओं की। हम छात्र प्रतिवर्ष खेल प्रति स्पर्धाओं में भाग लेते हैं पर कोई पुरस्कार या उपलब्धि अर्जित नहीं कर पाते हैं। कई साल पहले हमारा विद्यालय खेलों में भी पदक जीता करता था। खेल-कूद के लिए जो सामान हमें दिए जाते हैं वे पुराने तथा टूटे-फूटे होते हैं, जिनसे अभ्यास नहीं हो पाता है। इसके अलावा इस विद्यालय में दो साल से क्रीड़ा अध्यापक भी नहीं है, जिससे हमारा अभ्यास प्रभावित होता है। आपसे प्रार्थना है कि खेलों के लिए नए सामान खरीदकर खेल-कूद संबंधी सुविधाएँ बढ़ाने की कृपा करें ताकि खेल-कूद में भी हम छात्र पदक जीतकर विद्यालय का गौरव बढ़ाएँ।
धन्यवाद सहित,
आपका आज्ञाकारी शिष्य
प्रकाश शर्मा
(मॉनीटर-दसवीं)
15 दिसम्बर, 20XX

Section-B [20 Marks]
(Answer questions from any of the two books that you have studied.)
साहित्य सागर-संक्षिप्त कहानियाँ

Question 3.
(i) आनंदी का ब्याह श्रीकंठ सिंह के साथ कैसे हो गया? [2]
(ii) रंगीन प्राणी कौन थे? उनके विषय में बूढ़े सियार ने क्या जानकारी दी? [2]
(iii) आबादी के बढ़ने से देश पर क्या प्रभाव पड़ता है? [3]
(iv) चित्रा को घर लौटने में देर क्यों हुई? [3]
Answer:
(i) भूपसिंह अपनी चौथी लड़की आनंदी के विवाह के लिए लड़के देख रहा था तभी एक दिन श्रीकंठसिंह उनके पास नागरी-प्रचार का चंदे का रुपया माँगने गया। भूपसिंह उनके स्वभाव पर रीझ गए और धूमधाम से श्रीकंठसिंह का आनंदी के साथ ब्याह हो गया।

(ii) रंगीन प्राणी वास्तव में तीन रंगे सियार थे जो क्रमशः नीले, पीले और हरे रंग में रंगे हुए थे। बूढ़े सियार ने इन रंगीन प्राणियों का परिचय देते हुए कहा कि ये सभी स्वर्ग लोक के प्राणी हैं, प्राणी नहीं बल्कि देवता हैं। ये पीले रंग वाले विचारक हैं, कवि और लेखक हैं। नीले वाले नेता हैं और स्वर्ग में पत्रकार हैं तथा हरे वाले धर्मगुरु हैं।

(iii) देश में जनसंख्या की वृद्धि होने से देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अन्न उत्पादन जनसंख्या की अपेक्षा कम होता है। इससे महँगाई और बेरोजगारी बढ़ती है। रोजगार सीमित लोगों को ही मिल पाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, यातयात सम्बन्धी सुविधाएँ महँगी हो जाती हैं और सबको उपलब्ध नहीं हो पातीं। जनसंख्या के बढ़ने से देश में गरीबी बढ़ती है। लेखक ने इस लेखक के माध्यम से बताया कि बाबू, कमलाकांत का परिवार बड़ा होने के कारण वह अपनी सीमित आमदनी में से न तो सुखद आवास दे पाता है और न ही पौष्टिक भोजन। परिणामस्वरूप उसके परिवार के सदस्य बीमार रहते हैं और धन की कमी के कारण ठीक प्रकार से इलाज भी नहीं हो पाता।

(iv) चित्रा को चित्रकला के संबंध में विदेश जाना था इसलिए वह अपने गुरुजी से मिलकर वापस घर लौट रही थी। घर लौटते समय उसने देखा कि पेड़ के नीचे एक भिखारिन मरी पड़ी थी और उसके दोनों बच्चे उसके सूखे हुए शरीर से चिपक कर बुरी तरह रो रहे थे। उस दृश्य को चित्रा अपने कैनवास पर उतारने लग गई और इसी कारण उसे घर लौटने में देर हो गई।

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साहित्य सागर-पद्य

Question 4.
(i) ‘आज मेरे सामने है रास्ता इतना पड़ा’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। [2]
(ii) तुलसीदास के अनुसार जीवन में सुख किस प्रकार प्राप्त हो सकता है? [2]
(iii) सूरदास जी का जीवन परिचय लिखिए। [3]
(iv) मेघों के लिए ‘बन-ठन के, सँवर के’ आने की बात क्यों कही गई है? [3]
Answer:
(i) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि का आशय है कि मंजिल तक पहुँचने के लिए रास्ते में बहुत रुकावटें आती हैं। उन रुकावटों को दूर करते हुए लक्ष्य तक पहुँचना ही मनुष्य के जीवन का उद्देश्य है। क्योंकि जीवन पथ बहुत लम्बा है इसे पार करने और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए गतिशील रहना अनिवार्य है। निष्क्रिय रहकर काम नहीं चलेगा।

(ii) कवि का कहना है कि भगवान श्रीराम की कृपा से मनुष्य को जीवन में हर प्रकार के सुख प्राप्त हो सकते हैं, क्योंकि श्रीराम बड़े दयालु हैं। वे बिना सेवा के ही गरीब और दीन-दुखियों का कल्याण कर देते हैं।

(iii) भक्तिकाल के प्रेमाश्रयी शाखा के महान कवि सूरदास जी का जन्म 1478 में आगरा-मथुरा मार्ग में स्थित रुनकता नामक क्षेत्र में हुआ था। लेकिन कुछ विद्वान सूरदास का जन्मस्थान सीही नामक क्षेत्र को बताते हैं। सूरदास के पिता का नाम रामदास बैरागी था। सूरदास सगुण भक्ति धारा से युक्त श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। इसीलिए उन्होंने भगवान विष्णु को अपना आराध्य देव मानकर कृष्ण से संबंधित विभिन्न रचनाओं का सृजन किया। जिनमें सूर-सागर, साहित्य-लहरी, सूर-सारावली आदि प्रमुख रचनाएँ हैं।

(iv) बहुत दिनों तक ना आने के कारण गाँव में मेघ की प्रतीक्षा की जाती है जिस प्रकार मेहमान बहुत दिनों बाद आते हैं उसी प्रकार मेघ भी बहुत समय बाद आये हैं अतिथि जब घर आते हैं उसी प्रकार मेघ भी बहुत समय बाद आये हैं अतिथि जब घर आते हैं तो संभवतः उनके देर होने का कारण उनका बन-ठन कर आना ही होता है। कवि ने मेघों में सजीवता डालने के लिए मेघों के ‘बन ठन के, सँवर के’ आने की बात कही है।

नया रास्ता

Question 5.
(i) विवाह के अलावा मीनू के जीवन का क्या लक्ष्य था? [2]
(ii) वर्षों के प्यार-दुलार के बाद लड़की को अपने परिवार से बिछुड़ना क्यों पड़ता है? [2]
(iii) सामाजिक बंधन से क्या मीनू मुक्त हो सकी? स्पष्ट कीजिए। [3]
(iv) मीनू समाज के झूठे आवरण को हठाकर क्या सत्य दिखाना चाहती थी? [3]
Answer:
(i) मीनू के जीवन का लक्ष्य एक कुशल अधिवक्ता बनकर आत्मनिर्भर बनना था। मीनू कठिन मेहनत व लगन से पढ़ाई कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहती थी और समाज में विवाह के अतिरिक्त भी कुछ उद्देश्य हो सकता है, इस आदर्श को भी स्थापित करना चाहती थी।

(ii) समाज में यह परंपरा है कि लड़की के विवाह के बाद वह अपने ससुराल अर्थात् पति के घर जाती है। अतः ससुराल जाने के लिए उसे अपने घर से विदा लेनी पड़ती है। विवाह के बाद ससुराल ही उसका वास्तविक घर माना जाता है। यह विधान हिन्दू परंपरा के अनुसार

(iii) मीनू कभी भी सामाजिक बंधन को तोड़ना नहीं चाहती थी, बल्कि वह विवाह जैसी परम्परा में विश्वास रखती थी। वह आत्मनिर्भर बनकर, नवयुवतियों में नवचेतना व जाग्रति भरना चाहती थी, न कि सामाजिक शोषण का शिकार होना चाहती थी। वकील बन जाने पर वह सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर बन गई और अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया था।

(iv) मीनू को बार-बार लड़के द्वारा अस्वीकृत किए जाने के कारण उसके अंदर हीनभावना घर कर गई थी। अब वह समाज में अपना एक अलग स्थान बनाना चाहती थी। वह आत्मनिर्भर बनकर समाज में सम्मान का जीवन व्यतीत करना चाहती थी, न कि बार-बार रूप और रंग के कारण अस्वीकृत होना। वह समाज में अपनी काबिलियत दिखाना चाहती थी।

एकांकी संचय

Question 6.
(i) एकांकी के अंत में बेला रुंधे गले से क्या कहती है? [2]
(ii) इंदु को बेला की कौन-सी बात सबसे अधिक परेशान करती है? क्यों? [2]
(iii) बनवीर कौन था? परिचय दीजिए। [3]
(iv) ‘दीपदान’ उत्सव का आयोजन किसके द्वारा कराया गया और क्यों? [3]
Answer:
(i) एकांकी के अंत में बेला रुंधे कंठ से दादा जी से यह कहती है कि आप परिवार रूपी इस पेड़ की किसी डाली का टूट जाना पसंद नहीं करते। पर क्या आप यह चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी कोई डाली सूख कर मुरझा जाए? प्रतीकात्मक शब्दों में बेला घर की परेशानी व्यक्त करती है।

(ii) बेला का स्वभाव घमंडी है। अपने स्वभाव के कारण वह अपने मायके को सबसे ऊपर समझती है। उसके लिए बाकी सभी चीजें बेकार हैं। वह दूसरों को मूर्ख गँवार और असभ्य समझती है। बेला की यह बातें इंदु को सबसे अधिक परेशान करती है क्योंकि इसी के कारण घर में शांति व एकता भंग हो रही थी और परिवार टूटने की कगार पर आ पहुँचा था।

(iii) राणा साँगा के भाई पृथ्वीराज की दासी से उत्पन्न एक पुत्र था, जिसका नाम बनवीर था। उसे राजकुमार उदयसिंह की रक्षा का भार सौंपा गया था। बनवीर के मन में चित्तौड़ के सिंहासन पर अधिकार करने की लालसा जाग उठी। उसने विक्रमादित्य के शासन से असंतुष्ट सरदारों, सामंतों और सैनिकों को अपने पक्ष में कर लिया। एक रात राजमहल में बनवीर ने नृत्य-संगीत का उत्सव कराया और धोखे से विक्रमादित्य की हत्या कर दी। वह उदयसिंह को भी मारना चाहता था, किन्तु पन्ना धाय की स्वामिभक्ति और बुद्धिमत्ता ने उदयसिंह को बचा लिया।

(iv) ‘दीपदान’ उत्सव का आयोजन चित्तौड़ के तत्कालीन संचालक बनवीर ने कराया था। उसने यह आयोजन चित्तौड़ के सिंहासन के उत्तराधिकारी उदयसिंह की हत्या करने के लिए किया था। बनवीर की योजना थी कि जब सभी उत्सव देखने में लीन होंगे तो वह रात्रि के अंधकार में जाकर उदयसिंह की हत्या कर देगा और उसके राजा बनने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।

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