ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 3 with Answers

ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 3 with Answers

Maximum Marks: 40
Time: 1 1/2 Hours

Section-A [20 Marks]

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 200 words on any one of the following topics:
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 200 शब्दों में निबंध लिखिए: [12]
(i) ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
(ii) “राष्ट्रवादी एवं धार्मिक संगठन लोगों को एक करने के बजाय विभाजित करते हैं”-इस कथन के पक्ष या विपक्ष पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
(iii) वर्तमान समय में लड़का-लड़की एक समान हैं। इस विषय पर प्रकाश डालिए।
(iv) घर का भेदी लंका ढाए-इस कहावत को आधार बनाकर एक मौलिक कहानी लिखें।
(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर, उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 3 with Answers 1
Answer:
आजादी का अमृत महोत्सव
“ये हमारा सौभाग्य है कि समय ने, देश ने, इस अमृत-महोत्सव को साकार करने की जिम्मेदारी हम सबको दी है……एक तरह से ये प्रयास है कि कैसे आजादी के 75 साल का ये प्रायोजन, आजादी का ये अमृत महोत्सव भारत के जन-जन का, भारत के हर मन का पर्व बने।
नरेन्द्र मोदी
(भारत के प्रधानमंत्री)
आजादी का महोत्सव किसी विशेष जाति, धर्म अथवा राज्य के लिए नहीं वरन सम्पूर्ण भारत के लिए महत्वपूर्ण है। इस महोत्सव को मनाने के लिए समस्त राज्यों ने विशेष तैयारी की है। आजादी का अमृत महोत्सव हर स्कूल, कार्यालय, समिति-समूह एवं कई प्रकार की संस्थाओं व केंद्र द्वारा धूमधाम से मनाया जाता रहा है। इस आजादी को पाने के लिए अनेकों आंदोलन चलाने पड़े अपने सुख-साधनों का परित्याग करना पड़ा और अनेक अवसरों पर अपना रक्त बहाना पड़ा। असंख्य कुर्बानियों के पश्चात ही अंग्रेजों ने भारत की बागडोर भारतीयों को सौंपी थी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु ने 15 अगस्त, 1947 को रात में स्वतंत्रता पाने की घोषणा की थी। भारत माता की जय के नारों से सारा भारत गूंज उठा था। सभी सरकारी भवनों में राष्ट्रीय ध्वज फहरा उठे। राष्ट्रीय धुनों, गीतों और नारों के मध्य जैसे सारा भारत ही झूम उठा हो। इस वर्ष आजादी की 75वीं वर्षगांठ 2021 में पूर्ण हो रही है।

इस वर्ष को विशेष बनाने के लिए पूरे देश में आज़ादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। अनेकों सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। अतः अब हमारा कर्तव्य है कि इस स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव को अक्षुण्ण बनाए रखें। यह पर्व प्रत्येक भारतीय को राष्ट्र और तिरंगे ध्वज का मान रखने का संदेश देता है। अंत में हम यही शपथ लेते हैं
“अब देश प्रेम की रंगत में
रम गया हमारा जीवन।
उसके ही लिए समर्पित है,
सब कुछ अपना तन-मन-धन।”

ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 3 with Answers

(ii) “राष्ट्रवादी एवं धार्मिक संगठन लोगों को एक करने के बजाय विभाजित करते हैं।”
भारत अनेक धर्मों, जातियों और भाषाओं का देश है। धर्म, जाति एवं भाषाओं की दृष्टि से विविधता होते हुए भी भारत में प्राचीन काल से ही एकता की भावना विद्यमान रही है। जब कभी उस एकता को खण्डित करने का प्रयास किया जाता है, भारत का हर नागरिक सजग हो उठता है और राष्ट्रीय एकता को खण्डित करने वाली शक्तियों के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ हो जाता है। राष्ट्रीय एकता हमारे राष्ट्रीय गौरव की प्रतीक है और जिस व्यक्ति को अपने राष्ट्रीय गौरव का अभिमान नहीं है वह नर नहीं पशु के समान है। राष्ट्र की आन्तरिक शान्ति, सुव्यवस्था और बाहरी दुश्मनों से देश की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता आवश्यक है, लेकिन हमारे राष्ट्रवादी और धार्मिक संगठन अपने हितों की पूर्ति हेतु भारतीयों को एक करने के बजाय विभाजित करने की कोशिश करते हैं। इस कार्य में उनका हित हो सकता है, लेकिन भारत का अहित होता है।

‘भारतीय राष्ट्रीय एकता सम्मेलन’ में बोलते हुए पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गाँधी ने कहा था-“जब जब भी हम असंगठित हुए, हमें आर्थिक और राजनीतिक रूप में इसकी कीमत चुकानी पड़ी। जब-जब विचारों में संकीर्णता आई, आपस में झगड़े हुए और जब कभी नए विचारों से अपना मुख मोड़ा हानि ही हुई और हम विदेशी शासन के अधीन हो गए।” उनका कथन अक्षरशः सत्य है। राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्र को महान मानते हुए अपनी मान्यताओं के अनुसार चलाना चाहते हैं जिसे लोग पसंद नहीं करते और विचारों में दरार पड़ जाती है। दूसरी ओर धार्मिक संगठन अपने धर्म को ही प्रमुखता देते हैं। दूसरे धर्मों के प्रति समभाव नहीं रखते। भारत में सभी धर्मों के लिए समान अधिकार हैं।

जो लोग धर्म को लेकर लोगों को बाँटते है वे देश का अहित करते हैं। राष्ट्रवादी संगठन भी धर्म की भावना को समझें और लोगों को बाँटने का काम न करें उन्हें एकता के सूत्र में बाँधे। स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद हमारे कर्णधारों ने सोचा था कि पारस्परिक भेदभाव की खाई पट जाएगी, किन्तु साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, अनेकता ने हम सबको अलग-अलग बाँट रखा है। यदि राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधना है तो हमें साम्प्रदायिक विद्वेष और राष्ट्र विरोधी भावों को अपने से दूर रखना होगा। राष्ट्रवादी भावना ऐसी होनी चाहिए जो पूरे देश को जोड़कर चले। वहीं धार्मिक संगठन दूसरे धर्मों के प्रति समभाव रखें और विद्वेष की भावना को त्याग दें तभी देश का भला हो सकता है। हमारे देश के विचारक, साहित्यकार, दार्शनिक और समाज-सुधारक अपनी-अपनी सीमाओं में निरन्तर इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं कि देश में भाईचारे और सद्भावना का वातावरण बने।

अलगाव, पारस्परिक तनाव और विद्वेष की भावना समाप्त हो, लेकिन हम देखते हैं कि धार्मिक उन्माद भड़कता है और देश जल उठता है। ऐसे में राष्ट्रवादी संगठन भी एक-दूसरे पर दोषारोपण करने लग जाते हैं, इससे लोगों के दिलों में नफरत पैदा हो जाती है। अप्रिय घटनाओं की पुनरावृत्ति इस बात का संकेत देती है कि टकराव और बिखराव पैदा करने वाले तत्वों को हम रोक नहीं पा रहे हैं। इन समस्याओं का समाधान केवल नेताओं अथवा प्रशासनिक अधिकारियों के स्तर पर नहीं हो सकता, इसके लिए हम सबको मिलजुलकर प्रयास करना चाहिए। धर्म हमारे लिए आध्यात्मिक उन्नति का साधन है। धर्म अलग-अलग हो सकता है, लेकिन राष्ट्र अलग नहीं हो सकता। आज विकास के साधन बढ़ते जा रहे हैं और भौगोलिक दूरियाँ कम होती जा रही हैं, तब भी आदमी और आदमी के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। डॉ. गिरिजाशरण अग्रवाल की निम्न पंक्तियाँ देखिए-
“साधनों की मुठ्ठियों में धरतियाँ सिमटी हुईं,
और फिर भी फासला ही फासला चारों तरफ।”
उनका तात्पर्य यह था कि साधनों के बढ़ने और देशों की दूरियाँ कम होने से इन्सान को इन्सान के निकट आना चाहिए दूर नहीं। राष्ट्रवादी संगठन अपनी देशभक्ति के प्रवाह में कुछ ऐसे काम कर जाते हैं, जिससे दूसरे धर्म अपने को प्रभावित समझकर बैरभाव मानने लगते हैं और अलगाव शुरू हो जाता है। इन दोनों संगठनों को मिल-जुलकर कार्य करना चाहिए। ये दोनों लोगों को अलग न करके जोड़ने का प्रयास करें तभी देश का भला होगा। सभी धर्मों, जातियों और भावनाओं को मिलाकर ही देश बनता है। इसमें अलगाव नहीं होना चाहिए।”

(iii) लड़का-लड़की एक समान
नर और नारी जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नगण्य है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों के सहयोग से ही समाज का विकास संभव है। फिर लड़का-लड़की में भेद कैसा? भारतीय इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस देश की धरती पर सीता, सावित्री, अनुसूया, गार्गी, मैत्रेयी, विद्योत्तमा, भारती जैसी विदुषी नारियों ने जन्म लिया है। हमारे समाज की तो मान्यता ही है-“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।” नर यदि बाहरी विपत्तियों से देश, परिवार की रक्षा करता है, तो नारी परिवार की घरेलू मुसीबतों से रक्षा करती है।

मध्यकाल में मुसलमान शासकों के आगमन से पुरुषों का वर्चस्व बढ़ा। स्त्रियाँ घर की सीमा में कैद होकर रह गईं। उन्हें शिक्षा से वंचित रखा गया। फलतः दिन-प्रतिदिन उनकी स्थिति दयनीय होती गई। यहाँ तक कि राजस्थान में लड़की को जन्म के समय ही मार दिया जाता था। फलतः समाज में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या में कमी आती जा रही है। अनुपात की यह भिन्नता चिंता का विषय है। स्वतंत्रता के उपरांत इस संबंध में लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। नारी-पुरुष दोनों को समान अधिकार दिए गए हैं। यही कारण है कि श्रीमती इंदिरा गाँधी, सरोजिनी नायडू, किरन बेदी, लता मंगेशकर, सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज्य, श्रीमती प्रतिभा पाटिल जैसी विख्यात नारियों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। नारी के उदार दृष्टिकोण व करुणामय रूप की ओर संकेत करते हुए कविवर जयशंकर प्रसाद ने कहा था
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग-पग-तल में
पीयूष स्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में।”
भले ही संविधान में लड़का-लड़की, पुरुष-नारी को समान माना है, पर सशक्त समाज के निर्माण के लिए इन नियमों का पालन करना भी अनिवार्य है। यदि हम अपनी आधी जनसंख्या अर्थात् नारी की उपेक्षा करेंगे तो समाज का विकास संभव नहीं। इसके लिए लड़का-लड़की दोनों को समान महत्व देना होगा तभी हमारा देश और समाज विकास के पथ पर अग्रसर हो सकेगा।

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(iv) घर का भेदी लंका ढाए
एक घने जंगल के बीचों-बीच बहुत सुंदर नदी बहती थी। उस नदी के एक छोर पर हंसों का राज्य था और दूसरे छोर पर मोरों का राज्य। हंसों के राजा का नाम हिरण्यगर्भ था और मोरों के राजा का नाम चित्रवर्ण था। दोनों राजाओं में चिरकाल से बड़ा मनमुटाव था। या यूँ कहें कि जितनी अप्रसन्नता हिरण्यगर्भ को चित्रवर्ण के उस पार रहने से थी उतनी ही अप्रसन्नता चित्रवर्ण को हिरण्यगर्भ के इस पार रहने से थी। दोनों लड़ने का बहाना खोजते रहते थे। फिर बहाना मिलने में भी देर न लगी।

हुआ यूँ कि एक दिन हिरण्यगर्भ का मंत्री बगुला नदी में तैरते-तैरते बहकर उस पार जा लगा। फिर क्या? चित्रवर्ण के सिपाहियों और पहरेदारों ने उसको घेर लिया। तो बगुले ने बड़ी मिन्नत करके कहा-कृपया जाने दो मुझे। इस बार क्षमा कर दो। मैं नदी के वेग से बहकर इस किनारे आ लगा हूँ। अब मेरी जान बख्श दी जाए और मुझे लौटने दिया जाए। बेचारा बगुला चित्रवर्ण के सिपाहियों-कौवों-मुर्गों से घिरा-प्रार्थना करता चला जा रहा था। सहसा उसके मन में विचार आया-

अद्भुत अवसर आया हाथ, सूझी अनोखी बात
इसी सोच में बगुला एक-एक स्थान, वृक्ष, तालाब ध्यान में देखता इसी सोच में बगुला एक-एक स्थान, वृक्ष, तालाब ध्यान से देखते हुए राजा के सामने हाजिर हुआ। चित्रवर्ण ने पूछा-तुम कहाँ से आए हो? बगुले ने अपना परिचय दिया और कहा कि उनका मंत्री हूँ। चित्रवर्ण ने कहा कि मेरे सामने हंस को राजा नहीं कह सकते, न महाराज कह सकते हो। चित्रवर्ण ने बगुले से पूछा कि तुम्हें हमारा राज्य अच्छा लगता है या हिरण्यगर्भ का। बगुले ने चतुराई से उत्तर दिया-मैं आपके राज्य को अच्छी तरह देखे बिना कैसे बता सकता हूँ कि आपका राज्य अच्छा है या नहीं? बगुले की चालाकी चित्रवर्ण को समझ नहीं आई। उसने अपने सिपाही मुर्गे के साथ बगुले को सारा राज्य देखने की आज्ञा दे दी।

बगुला इसी बहाने से चित्रवर्ण के राज्य के गुप्त स्थानों को पता लगाने के लिए चल पड़ा। बाद में लौटने पर चित्रवर्ण ने बगुले से पूछा कि हमारा सारा राज्य कैसा लगा? तो उत्तर में बगुला हँस दिया। और बोला-स्वर्ग सरीखा राज्य हमारा, नरक जैसा देश तुम्हारा। बगुले के इस उत्तर से चित्रवर्ण नाराज हो गया और युद्ध की चुनौती दे डाली। फिर चित्रवर्ण ने अपने मंत्री कौए को हंस के राज्य में जासूसी के लिए भेजा। हिरण्यगर्भ ने उस कौए को अपने यहाँ नौकर रख लिया। हंस के स्वभाव व अच्छाई से कौआ मुग्ध हो गया और इसी राज्य में मित्रवत रहने लगा। साथ ही साथ उसने चित्रवर्ण के राज्य के समस्त गुप्त भेद भी हिरण्यगर्भ को बता दिए। इसे कहते हैं कि घर का भेदी लंका ढाए।

(v) शारीरिक शिक्षा का तात्पर्य ऐसी शिक्षा से है, जिसमें शारीरिक गतिविधियों के द्वारा शरीर को स्वस्थ रखने की कला सिखाई जाती है। शारीरिक विकास के साथ-साथ इससे व्यक्ति का मानसिक, सामाजिक एवं भावनात्मक विकास भी होता है। शारीरिक शिक्षा में योग का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका उद्देश्य शरीर, मन एवं आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करना होता है। यह मन शांत एवं स्थिर रखता है, तनाव को दूर कर सोचने की क्षमता, आत्मविश्वास एवं एकाग्रता को बढ़ाता है। नियमित रूप से योग करने से शरीर स्वस्थ तो रहता ही है, साथ ही यदि कोई रोग है तो इसके द्वारा उसका उपचार भी किया जा सकता है।

कुछ रोगों में तो दवा से अधिक लाभ योग करने से होता है। तमाम शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि योग संपूर्ण जीवन की चिकित्सा पद्धति है। पश्चिमी देशों में भी योग के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है और लोग तेज़ी से इसे अपना रहे हैं। योग की बढ़ती लोकप्रियता एवं महत्त्व का ही प्रमाण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी योग का समर्थन करते हुए 21 जून को योग दिवस घोषित कर दिया वर्तमान परिवेश में योग न सिर्फ हमारे लिए लाभकारी है बल्कि विश्व के बढ़ते प्रदूषण एवं मानवीय व्यस्तताओं से उपजी समस्याओं के निवारण में इसकी सार्थकता और भी बढ़ गई है। यही कारण है कि धीरे-धीरे ही सही, आज पूरी दुनिया योग की शरण ले रही है।

Question 2.
Write a letter in Hindi of approximately 120 words on any one of the topics given below:
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए: [8]
अपने पिता को अपने जीवन की भावी योजनाओं के बारे में बताते हुए पत्र लिखिए।
अथवा
अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखकर स्थानांतरण प्रमाण पत्र प्राप्त करने हेतु अनुरोध कीजिए।
Answer:
परीक्षा भवन,
नई दिल्ली
7 मार्च, 20XX
पूज्य पिताजी,
सादर चरण स्पर्श
मैं यहाँ कुशल रहकर आशा करता हूँ कि आप भी सकुशल होंगे और ईश्वर से यही कामना भी करता हूँ। आपने पिछले पत्र में मेरे जीवन की भावी योजनाओं के बारे में जानना चाहा था। इस पत्र में मैं आपको अपनी भावी योजनाओं के बारे में बता रहा हूँ।

पिताजी, सर्वप्रथम दसवीं परीक्षा ‘ए’ ग्रेड में उत्तीर्ण होकर ग्यारहवीं कक्षा में विज्ञान संकाय में प्रवेश लेना चाहता हूँ। मैं भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा गणित में खूब परिश्रम करना चाहता हूँ। बारहवीं में आते-आते मैं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए भी कुछ समय देना चाहता हूँ। इससे बारहवीं की परीक्षा अच्छे ग्रेड से उत्तीर्ण होने के साथ-साथ किसी अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश ले पाऊँगा। वहाँ इंजीनियरिंग की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कर इंजीनियरिंग सेवा में जाना चाहता हूँ। मैं सरकारी कार्य करते हुए इंजीनियर की अलग छवि पेश करना चाहता हूँ। ईश्वर की कृपा और आपके आशीर्वाद से मैं अपने उद्देश्य में अवश्य सफल होऊँगा। घर में सभी को यथोचित प्रणाम एवं स्नेह। मुझे पत्रोत्तर की प्रतीक्षा रहेगी।
आपका प्रिय पुत्र अनुराग

अथवा

सेवा में,
प्रधानाचार्य जी,
राजकीय विद्यालय सदर,
आगरा।
विषयः स्थानांतरण प्रमाण-पत्र प्राप्त करने हेतु।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैंने इस वर्ष आपके विद्यालय से कक्षा नौंवी की परीक्षा उत्तीर्ण की है और मैं अभी दसवीं कक्षा में अध्ययनरत हूँ। अचानक ही मेरे पिताजी द्वारा यहाँ की नौकरी से त्याग-पत्र देकर करनाल जाने के कारण मुझे भी करनाल जाकर दसवीं कक्षा में प्रवेश लेना होगा। इसके लिए मुझे स्थानांतरण प्रमाण-पत्र की आवश्यकता होगी।
अतः आपसे निवेदन है कि मुझे एक स्थानांतरण प्रमाण-पत्र उपलब्ध कराया जाए, जिसमें मेरी शैक्षणिक योग्यताओं के अतिरिक्त खेल तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का भी उल्लेख किया गया हो। यह मुझे वहाँ प्रवेश दिलाने में अतिरिक्त मदद करेगा।
धन्यवाद
आपका आज्ञाकारी छात्र
शिवम चौहान
कक्षाः दसर्वी ‘अ’

Section-B [20 Marks]
(Answer questions from any of the two books that you have studied.)
साहित्य सागर-संक्षिप्त कहानियाँ

Question 3.
(i) श्रीकंठ सिंह के स्वभाव के बारे में लिखिए। [2]
(ii) विदेश में चित्रा के किस चित्र को अनेक प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार मिल चुका था? [2]
(iii) लेखक ने दीनानाथ को नौकरी के प्रसंग में क्या परामर्श दिया? [3]
(iv) वन प्रदेश की भेड़ों की क्या विशेषता थी और बढ़े सियार की बातों का भेड़ों पर क्या प्रभाव पड़ा? [3]
Answer:
(i) श्रीकंठ सिंह बेनीमाधव सिंह के बड़े लड़के थे। बैद्यक ग्रंथों पर उनका विशेष प्रेम था। प्राचीन हिन्दू सभ्यता का गुणगान उनकी धार्मिकता का प्रधान अंग था। संयुक्त प्रेम को वे पसंद करते थे। अंग्रेजी पढ़े होने के बावजूद भी वे अंग्रेजी सामाजिक प्रथाओं के विशेष प्रेमी नहीं थे। दशहरा के उत्सव में वे बड़े उत्साह से भाग लेते थे।

(ii) चित्रा ने उस मरी हुई भिखारिन और उसके सूखे शरीर से चिपके उसके बच्चों का चित्र बनाया था जिसे उसने ‘अनाथ’ शीर्षक दिया था। विदेश में उसका यही ‘अनाथ’ शीर्षक वाला चित्र अनेक प्रतियोगिताओं में प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुका था।

(iii) लेखक ने अपने मित्र श्यामला कांत के बड़े पुत्र दीनानाथ को परामर्श दिया कि आजकल जगह-जगह पर अनेकों रोजगार कार्यालय खुल गए हैं अत: नौकरी पाने के लिए दीनानाथ को उसका सहारा लेना चाहिए ताकि उचित अवसर हाथ से निकल न जाए। बढ़ती जनसंख्या के कारण संसाधन भी कम पड़ते जा रहे हैं।

(iv) वन प्रदेश में भेड़ों की संख्या बहुत अधिक थी। वे बहुत ही नेक, ईमानदार, कोमल, विनम्र, दयालु प्रवृत्ति की थीं, जो कि इतनी निर्दोष थीं कि घास को भी फूंक-फूंक कर खातीं थीं। बूढ़े सियार की बातों से भेड़ें बहुत प्रभावित हुईं। पहले वे बहुत घबराई लेकिन बाद में उन्होंने बूढ़े सियार की बातों को सुना। असली बात उन्हें समझ में नहीं आई और भ्रमित होकर चुनाव में भेड़िये को वोट दे आईं।

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साहित्य सागर-पद्य

Question 4.
(i) तुलसीदास ने किसे उदार कहा है? [2]
(ii) माता यशोदा नींद से क्या शिकायत करती हैं? [2]
(iii) मेघ को कविता में किस रूप में दर्शाया गया है? [3]
(iv) ‘चलना हमारा काम है’ कविता की अंतिम पंक्ति में कवि ने क्या संदेश दिया है? [3]
Answer:
(i) महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान श्रीराम को उदार कहा है। क्योंकि वे बिना सेवा के ही गरीब और दीन-दखियों का कल्याण करते हैं। श्रीराम बड़े दयालु हैं। उनकी कृपा से मनुष्य को जीवन में हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।

(ii) माता यशोदा नींद से शिकायत करती हैं कि नींद तू जल्दी से आकर मेरे लाल को क्यों नहीं सुलाती? तुम जल्दी से आओ। तुम्हें कृष्ण बुला रहा है। यशोदा कृष्ण की आँखें मूंदकर पालना हिलाने लगती है।

(iii) मेघ को कविता में मेहमान के रूप में दिखाया गया है। जिस प्रकार शहर से कोई अतिथि सज-धज कर बरसों बाद अपने ग्राम को वापस आता है, उसी प्रकार मेघ भी बन-संवर कर वापस आते हैं। यहाँ पर कवि ने मेघ को प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत किया है।

(iv) कविता की अंतिम पंक्ति में कवि ने यह संदेश दिया है कि जीवन के मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। इनसे हारकर या डरकर कोई बीच रास्ते में रूक जाता है तो कोई हार मान लेता है। जीवन किसी के लिए रूकता नहीं है। जो गिरकर आगे बढ़ता है, सफलता उसी की सुखद होती है। अतः निरन्तर परिश्रम करते रहने से सफलता मिलती है।

नया रास्ता

Question 5.
(i) लेखिका मीनू को दृढ़ता व साहस की मूर्ति क्यों कह रही हैं? [2]
(ii) शादी के नाम से मीनू उदास क्यों हो जाती है? नीलिमा उसकी शादी के लिए इतनी उत्साहित क्यों है? [2]
(iii) दयारामजी ने जब घण्टी बजने पर दरवाजा खोला तो उन्होंने क्या देखा और उनसे क्या बात हुई? [3]
(iv) मायाराम जी की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [3]
Answer:
(i) लेखिका ने मीनू को दृढ़ता व साहस की मूर्ति इसलिए कहा है क्योंकि मीनू को कई लड़के वालों ने विवाह के लिए अस्वीकृत कर दिया था। अमित का परिवार भी उसके साँवले रंग और कम दहेज के कारण अस्वीकृत कर चुका था। इसीलिए उसने अपनी वर्तमान परिस्थितियों से ऊपर उठकर एक आत्मनिर्भर स्त्री बनने का निश्चय किया। अपनी एक वास्तविक पहचान होने पर अब उसे कोई अस्वीकृत नहीं कर सकता था।

(ii) शादी के नाम से ही मीनू उदास हो जाती है क्योंकि दो बार लड़कों के द्वारा अस्वीकृत कर दिये जाने पर उसके हृदय में निराशा की भावना घर कर गई है। उसने शादी के बारे में सोचना ही छोड़ दिया है। नीलिमा की शादी हो चुकी है। वह चाहती है उसकी सहेली को भी शादी हो जाये। नीलिमा के भाई अशोक को मीनू बहुत पसन्द है। नीलिमा चाहती है कि मीनू हाँ कर दे तो वह अशोक से उसकी शादी करवा दे।

(iii) दरवाजा खोलने पर मायारामजी और अमित को खड़ा देखकर दयाराम जी चकित रह गये यह सोचकर कि अचानक इसका आगमन कैसे हुआ। उन्हें आदर सहित अन्दर बिठाया गया। माँ अमित को देखकर आश्चर्यचकित हो गई। मीनू ने जेसा अमित का हाल बताया था, उससे नहीं लगता कि अमित पूर्ण स्वस्थ हो जायेगा। इस समय तो अमित अच्छी तरह से चल-फिर रहा था। मायाराम जी को बोलने में कुछ संकोच हो रहा था, लेकिन उन्होंने अपनी चार साल पहले हुई भूल के लिए क्षमा माँगी और अब मीनू का रिश्ता स्वीकार करने की बात कही यदि दयाराम जी स्वीकार कर लें तो दयाराम जी यह सुनकर प्रसन्न हुए और सत्कार के बाद यह कहकर विदा किया कि मीनू के आने के बाद उससे राय लेकर जवाब दे देंगे। इसके जाने के बाद दयारामजी को अवश्य यह एहसास हो रहा था कि जैसे किसी ने उसके दुःखी हृदय को सान्त्वना दे दी हो।

(iv) अमित के पिता मायाराम जी एक भले व्यक्ति थे। वे दहेज विरोधी थे परंतु व्यक्ति होने के साथ वे अपनी पत्नी के दबाव के आगे अपनी एक नहीं चला पाते थे। वे स्वभाव से दब्बू व लालची थे। अपनी इच्छा ना होते हुए भी उनका अंततः अपनी पत्नी की बात ही माननी पड़ी।

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एकांकी संचय

Question 6.
(i) पन्ना बनवीर पर कटार से वार क्यों करती है? [2]
(ii) मंझली बहू के चरित्र की विशेषताएँ बताइए। [2]
(iii) ‘सूखी डाली’ एकांकी से हमें क्या शिक्षा मिलती है? [3]
(iv) धाय माँ का उदय सिंह के प्रति वात्सल्य स्पष्ट कीजिए। [3]
Answer:
(i) पन्ना बनवीर को धोखा देने के लिए उदय सिंह की शैया पर चंदन को सुला देती है, जब बनवीर सोए हुए चंदन को उदय सिंह समझकर उसकी हत्या करना चाहता है, तब पन्ना उसे ललकारते हुए उस पर कटार से वार करती है।

(ii) मंझली बहू का स्वभाव हंसी मजाक करने वाला है। प्रस्तुत एकांकी में उसके स्वभाव की यही विशेषता दृष्टिगोचर होती है। वह छोटी-छोटी बात पर हंसती-मुस्कुराती रहती है। परेश और बेला की बहस पर इतना हंसती है कि बेकाबू हो जाती है। उसकी हंसी बेला को और गुस्सा दिला देती है।

(iii) सूखी डाली एकांकी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परिवार के सभी सदस्यों को आपस में मिल-जुलकर रहना चाहिए। एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। हमें अपने बड़े-बुजुर्गों का आदर करना चाहिए। उनके प्रति प्रेम व जिम्मेदारी का व्यवहार रखना चाहिए। हमारे बड़े बुजुर्ग जो भी सलाह व सुझाव दे उन्हें बड़े प्यार से स्वीकार कर लेना चाहिए। कोई भी इंसान छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि योग्यता से और बुद्धि से ही इंसान की पहचान होती है। हर व्यक्ति अपने अच्छे व्यवहार के कारण ही महान बनता है।

(iv) धाय माँ ममता की साक्षात् मूर्ति है। वह कुँवर को अपने प्राणों से भी अधिक प्यार करती है। उदयसिंह की धाय होने के साथ-ही-साथ उसकी सुरक्षा का भी वह विशेष ध्यान रखती है। अतः जैसे ही उसे उदय सिंह की हत्या के षड्यंत्र के विषय में जानकारी होती है तो तुरन्त ही राजभक्त एवं झूठी पत्तल उठाने वाले कीरतबारी को विश्वास में लेकर झूठी पत्तलों के बीच में उदय सिंह को छिपाकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचा देती है। बनवीर के आने पर वह अपने सोये हुए पुत्र चंदन का बलिदान करके अपनी स्वामिभक्ति का परिचय देती है।

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