ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

Max Marks :80
[2 Hours]

General Instructions

  • Answer to this paper must be written on the paper provided separately.
  • You will not be allowed to write during the first 15 minutes.
  • This time is to be spent in reading the question paper.
  • The time given at the head of this paper is the time allowed for writing the answers.
  • This paper comprises two sections Section A and Section B.
  • Attempt all the questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

Section-A [40 Marks]

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics : [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए
(i) उस घटना का वर्णन कीजिए जिससे आपने अपने जीवन का बहुमूल्य सबक सीखा। यह बताइए यह सबक क्या था ?
(ii) खेलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए। इस कथन पर विचार करते हुए बताइए कि विश्व के खेलों में भारत के स्तर को कैसे ऊँचा उठा सकते हैं ?
(iii) पर्वतारोहण एक बेहतरीन शौक एवं साहसिक कार्य है। पर्वतारोहण का महत्त्व बताते हुए पर्वतारोहण के लिए आवश्यक वस्तुएँ बताइए और कुछ पर्वतारोहियों के उदाहरण देते हुए पर्वतों की सुन्दरता का वर्णन कीजिए।
(iv) एक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित लोकोक्ति हो :
“प्रत्येक चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।”
(v) नीचे दिये गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुये कोई लेख घटना अथवा कहानी लिखिए जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए
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Answer:
(i) यह बात तब की है जब मैं नौवीं कक्षा में पढ़ता था। मैं कक्षा में अग्रणी छात्र था, विद्यालय में एक अच्छा वक्ता था और हॉकी में विद्यालय का श्रेष्ठ खिलाड़ी था। मेरा एक मित्र अनुराग मेरा सहवक्ता था और हॉकी का खिलाड़ी भी था। वह स्वभाव से चंचल, शरारती और मनमौजी था, लेकिन उसका साथ मुझे भाता था। मैं उसके किसी प्रस्ताव का विरोध न तो करना चाहता था और न ही कर पाता था।

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एक दिन उसने मुझे सलाह दी कि आज विद्यालय न जाकर अवधपुरी के बाग में चलें। उस बाग का माली मेरा परिचित है, अत: वहाँ मीठे-मीठे फल खाएँगे और खेतों में घूमकर मस्ती करेंगे। एकाएक मैं उस प्रस्ताव का विरोध न कर सका। मेरे मन में भी गुदगुदी होने लगी, लेकिन पकड़े जाने का भय, पिताजी का रौब और माताजी का स्नेह याद आया और मैंने अपनी असहमति प्रकट कर दी। उस दिन वह विद्यालय नहीं आया।

उसी दिन शाम को वह मेरे घर आया और बताया कि आज उसने पके-पके अमरूद और पेड़ों की शीतल छाया में बैठकर स्कूल का समय काटा। घर में किसी को भनक भी नहीं लगी। मुझे भी लगने लगा कि काश मैं भी उसके साथ गया होता। उसने अपने आनन्दमय समय को रोचकता से मेरे सामने प्रस्तुत किया कि मुझे भी लगने लगा कि एक-आध दिन इस प्रकार के मनोरंजन से कोई हानि नहीं है।

उसने मुझे अगले दिन फिर से वहीं जाने के लिए तैयार कर लिया। उससे मुझे बस अड्डे के पीछे पानी की प्याऊ के पास मिलना था। ठीक समय पर वह मेरा इंतजार करता हुआ मुझे मिला। मुझे वहाँ बहुत डर लग रहा था। ऐसा लग रहा था मानो सभी लोग मेरी ओर देख रहे हैं।

मुझे ऐसा लगा कि सभी साइकिल सवार मेरी शिकायत करने मेरे घर ही जा रहे हैं या वहीं से शिकायत करके आ रहे हैं। मैं डर ही रहा था कि अनुराग ने कहा-सोच क्या रहे हो ? डरा नहीं करते । लाओ, बस्ता यहीं पटको पनवाड़ी की दुकान पर। यह हमारा दोस्त है।

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फिर चलेंगे दोनों यार अवधपुरी के बाग में । मैं तुरंत अनुराग के साथ पनवाड़ी की दुकान पर बस्ता रखकर बाग की ओर चल दिया कि कहीं यहाँ खड़े-खड़े कोई देख न ले। राह-भर मैं डरता रहा। मुझे अनुभव हुआ कि अपराधी की आत्मा बहुत कमजोर होती है। मुझे लगा कि चेहरा सिमटकर छोटा हो गया है।

मैंने देखा, अनुराग बिल्कुल निश्चित था। शायद वह अक्सर वहाँ आया करता था। बाग के अंदर एक कुआँ था, जिसके बाहर एक जंजीर तथा बाल्टी लटकी हुई थी। कुएँ का चौड़ा-सा पाट था। अनुराग उस पाट पर लेट गया। उसने मुझे भी लेटने को कहा, किंतु मैं डर रहा था कि कहीं कोई आ न जाए। तभी वहाँ एक स्कूटर रुकने का स्वर आया। स्कूटर की घर-घर की आवाज से मुझे लगा कि लो, पिताजी आ गए हैं।

मेरी रंगत उड़ गई। अनुराग ने मुझे बताया कि घबराने की कोई बात नहीं, उसका मित्र मनीष आया है। सच ही, उसका मित्र मनीष अपने एक साथी के साथ वहाँ आया था। मैं हैरान था कि वे स्कूटर कहाँ से ले आए हैं। पता चला कि उनमें से दूसरा लड़का पढ़ाई छोड़कर स्कूटर-मैकेनिक का काम सीखने लगा था। वह अपनी दुकान से स्कूटर लाया था, जो किसी ग्राहक का होगा।

चारों के मध्य मुझे ऐसा अनुभव हुआ, जैसे मैं इनके बीच फँस गया हूँ या मुझे फंसाया गया है। अनुराग ने अपनी जेब से ताश निकाली। वे ताश खेलने लगे। मैंने उन्हें मना कर दिया। उसके दोनों मित्र मेरे भय को देखकर हँसने लगे। मैं अपमानित-सा, उखड़ा-सा वहाँ बैठा रहा। वे सिगरेट पीते हुए पैसे से खेलने लगे। जुआ का नाम सुनकर मैं घबरा गया।

जब वे दोनों एक घंटे बाद खेलकर स्कूटर पर चले गए तो, अनुराग ने बतलाया कि उसने उस दिन उनसे पचास रुपये जीते हैं। उसने मुझे फिल्म दिखाने का वचन दिया। बाग के साथ ही एक संन्यासी की कुटिया थी। अनुराग मुझे उस कुटिया में ले चला। बोला-वहाँ मोटेमोटे बेर खाने को मिलेंगे। वहाँ जाकर मुझे बड़ा आनन्द आ गया। कुटिया का वातावरण सुन्दर, शांत तथा हरियाली से पूर्ण था। वहाँ मैं घास पर बैठ गया। कुटिया की दीवारों पर कुछ उपदेश लिखे थे। एक उपदेश पढ़ा तो मैं सोचता ही रह गया। वह उपदेश था-‘एक झूठ बोलने

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पर, उसे छिपाने के लिए सौ झूठ और बोलने पड़ते हैं। इसलिए समझदार प्राणी को पहले झूठ पर ही रुक जाना चाहिए।’ यह पढ़ते ही मेरे भीतर उथल-पुथल होने लगी। दोपहर एक बजे, जब छुट्टी का समय हुआ, हमने पनवाड़ी की दुकान से बस्ता उठाया और घर जा पहुँचे। मेरा मन अब भयभीत नहीं था, बल्कि रुआँसा-सा था। मैं उस उपदेश पर सोचे जा रहा था और मन-ही-मन अपने अपराध पर पछता रहा था।

आज चेहरे पर वैसी खुशी नहीं थी, जो पहले होती थी। घर पहुंचा तो पता चला कि मामाजी आए हुए हैं और वे मेरा ही इंतजार कर रहे हैं। मामा जी ने मुझे प्यार से उठा लिया, पिताजी ने भी मुझे प्यार किया, किंतु मैं अभी भी कुम्हलाया हुआ था। चेहरे पर प्रसन्नता न देखकर मामा ने पूछा-क्या बात है शिवम् ? तभी पिता ने कहा-शायद, आज इसकी तबीयत खराब है। पिता ने मेरी प्रशंसा करते हुए कहा-हमारा शिवम् पढ़ाई में बहुत तेज, सच्चा और ईमानदार बच्चा है। मुझे यह सुनकर लगा कि ये शब्द मेरा उपहास उड़ा रहे हैं। मैं अंदर के कमरे में भाग गया।

माता ने मेरी तबीयत का हाल पूछा तो मैं फूट-फूटकर रो दिया और मैंने अपनी गलती पर क्षमा माँगते हुए स्वयं सारी बात माँ को बता दी। मेरी माँ ने न मुझे मारा, न पीटा, न डाँटा, बल्कि स्नेह से मेरे बाल सहलाती रही और मैं माँ के आँचल में लिपटा रोता रहा। माँ ने बस मुझे यही कहा-बेटा ! रो मत ! मेरे लिए तो खुशी का दिन है। तू आज जिंदगी की परीक्षा में पास हो गया है। तूने आज पाप को हरा दिया है।

(ii) खेलों में राजनीति

खेल आपसी मृदुल, स्नेहिल सम्बन्धों को अधिक प्रगाढ़ करते हैं। विश्व के ध्रुवीकरण के समय में यह आवश्यक हो जाता है कि सभी राष्ट्रों के मध्य सम्बन्ध एक दूसरे के हितों के साधक हों, अवरोधक न हों। अन्य सभी स्तरों के अतिरिक्त खेल इस कार्य में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। खेलों के साथ राष्ट्रीय एकता की भावना सम्बद्ध रहती है। संगठन को खेलों का पर्याय कह सकते हैं। यदि कोई एकल प्रतियोगिता है तो उसमें भी राष्ट्र की भावनाएँ उसे संगठनात्मक बना देती हैं और राष्ट्रीय ऊर्जा का प्रतीक बना देती हैं।

मेरे देश के खिलाड़ी अधिक विजयी हों, वे स्वर्णपदक, रजतपदक और विभिन्न पुरस्कार जीतें। इसी में सभी देशवासी अपना गौरव अनुभव करते हैं। – भारत के खिलाड़ी इंग्लैण्ड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान आदि से विभिन्न खेलों में प्रतियोगिताएँ करते रहते हैं।

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विश्व के देशों में क्रिकेट, हॉकी, कुश्ती आदि में हमारा नाम प्रायः आगे रहता है, परन्तु कुछ वर्षों से हम पिछड़ रहे हैं। संसार के छोटे-छोटे देश भी हमसे कई क्षेत्रों में आगे निकल गए हैं। हमें विचार करना है कि हम किस प्रकार खेलों में अपने स्तर को ऊँचा बनाए रख सकते हैं। इसके लिए निम्नलिखित कुछ उपाय हैं :

खिलाड़ियों के चुनाव के लिए उनके शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और बौद्धिक चातुर्य को स्थान देना चाहिए। खेलों में राजनीति का दखल स्वीकार नहीं करना चाहिए। जो खिलाड़ी जिसं खेल में देश भर में अधिक योग्य हों, उन्हें उसी खेल के लिए चुना जाना चाहिए। हमारे देश में क्षेत्रीय, मंडलीय, राज्य तथा अन्तर्राज्यीय स्तर पर प्रायः प्रतियोगिताएं होती रहती हैं।

यदि किसी खेल में नहीं होती तो प्रतियोगिताएँ करवानी चाहिए। इसके लिए ऐसी चुनाव-समिति होनी चाहिए जो निष्पक्ष हो और जिसमें अनुभवी खिलाड़ी हों। प्रान्तीयता, जातीयता या भाई-भतीजावाद का पक्ष करके यह चुनाव नहीं होना चाहिए। इससे खिलाड़ियों का गलत चुनाव हो जाता है।

‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’ इस उक्ति के अनुसार विभिन्न खेलों के लिए चुने गए खिलाड़ियों को सतत अभ्यास करवाते रहना चाहिए। अभ्यास प्रतिभा में निखार लाता है। श्रेष्ठ का विकास श्रेष्ठतर की ओर करता है। इससे जड़मति सुजान हो जाती है और सुजान कार्यकुशल।

अभ्यास क्षेत्रीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक रहना चाहिए। देश के कोने-कोने में बसन्त पंचमी, होली, बैशाखी, दीवाली, दशहरा आदि उत्सवों के अवसर पर विभिन्न प्रकार के खेलों के मेले आयोजित होने चाहिए। इन मेलों से खेलों के प्रति जन-जीवन की रुचि जाग्रत होगी और बहुत से बालक और युवक अपने खेल-कौशल का प्रदर्शन करने के लिए खूब अभ्यास करेंगे।

किसी भी कार्य में पुरस्कार प्रेरक का कार्य करता है। पुरस्कार विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं-कहीं पदकों के रूप में, कहीं प्रमाणपत्र में। सभी स्तरों पर जो खिलाड़ी अच्छा स्थान प्राप्त करते हैं, उन्हें पुरस्कार देते रहने से खेलों को प्रोत्साहन प्राप्त होगा और भारतीय खेलों के स्तरों में सुधार होगा।

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कई खिलाड़ी खेलने में कुशल होते हुए भी घरों की हीन आर्थिक स्थिति के कारण दूर-दूर के खेलों में भाग नहीं ले सकते। ऐसे खिलाड़ियों के मार्ग-व्यय की व्यवस्था तो होनी चाहिए। उन्हें घर से निश्चिन्त करने के लिए भी कुछ सहायता दी जानी आवश्यक है।

खेलों के अच्छे प्रशिक्षकों के अभाव में खिलाड़ी अपनी छिपी हुई कुशलता का पूर्ण प्रदर्शन नहीं कर पाते। अत: यह आवश्यक है कि विभिन्न खेलों को सिखाने के लिए उत्तम प्रशिक्षक हों, जो वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक पद्धति से खेलों का सरलतापूर्वक प्रशिक्षण कर सकें। अच्छे खिलाड़ियों को शरीर बनाये रखने के लिए ऊर्जा देने वाले खाद्य-पदार्थ ही दिये जाने चाहिए। यदि कोई खिलाड़ी ऐसे पदार्थ निर्धनता के कारण प्राप्त नहीं कर सकता, तो सरकार की ओर से उसका प्रबन्ध होना चाहिए।

साल में कम से कम दो बार भिन्न-भिन्न स्थानों पर खेलों के सभी स्तरों के शिविर लगाने चाहिए। इन शिविरों में देश के अलगअलग प्रदेशों के उत्तम खिलाड़ियों को आमंत्रित करना चाहिए। यह सब निष्पक्ष हो राजनीति से प्रेरित न हो।

यहाँ आए हुए अच्छे प्रशिक्षक खिलाड़ियों को चुने हुए खेलों में प्रशिक्षण दें और अभ्यास भी कराएँ। खेलों का स्तर सुधारने के लिए खेलों के मैदानों को महत्त्व दें। अनेक विद्यालयों में तो खेलों के मैदान ही नहीं हैं। इन उपायों से विश्व के खेलों में भारत का स्तर सुधरेगा और राजनीति का दखल कम होगा। राजनीति के दखल से भारत की टीम के लिए गलत चुनाव हो जाते हैं और भारत को हार का मुख देखना पड़ता है।

(iii) पर्वतारोहण एक बेहतरीन शौक एवं साहसिक कार्य

संसार में अनेक प्रकार के शौक हैं। विद्वान् लोग नई पुस्तकों को पढ़ने और साहित्यिक आनन्द उठाने के शौकीन होते हैं। कई लोग कविताओं का रसास्वादन करने के व्यसनी होते है। बच्चे ही नहीं, बूढ़े भी कहानियों को चाव से सुनते हैं। कुछ लोग कुत्ते रखने, कुत्तों को लड़ाने तथा मुर्गों और तीतरों का युद्ध देखने का चाव रखते हैं। इसी प्रकार और बहुत से शौक हैं। उनमें से पर्वतारोहण भी एक शौक है।।
भारत में हिमालय, विन्ध्याचल, अरावली और पूर्वी घाट एवं पश्चिमी घाट के अनेकानेक पर्वत हैं।

पर्वतों के ऊँचे और निचले शिखर, उन पर लगी वनस्पतियाँ, उनमें बहने वाले झरने, उनसे निकलने वाले खनिज, वहाँ के छोटे-छोटे खेत और उनके विभिन्न सम-विषम भागों पर चढ़ने का साहस विरले लोग ही करते हैं। कहा जाता है-‘पर्वताः सुदूरतः रम्याः ‘ अर्थात् पहाड़ दूर से ही सुहाने लगते हैं। जब उन पर चढ़ने लगो, तो साँस फूलने लगती है और पाँव भारी-भारी हो जाते हैं। अतः पर्वतों पर चढ़ने का शौक सब में होता है पर कुछ विरले लोगों में ही स्थायी रूप ले पाता है।

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पर्वतारोहण करने के अनेक लाभ होते हैं। इससे सर्वप्रथम तो यह लाभ होता कि मनुष्य में साहसिक प्रवृत्ति के कारण जिस भी कार्य में हाथ डालते हैं, उसी में सफलता अनुभव करने लगते हैं। जीवन में भी पर्वतों के मोड़ों में समान भयंकर मोड़ आते हैं। पर्वतारोही इन मोड़ों को भी ऐसे साहस से पार कर जाता है, जैसे पर्वत के मोड़ों को किया जाता है।पर्वतारोहण के शौक का दूसरा लाभ है-शुद्ध वायु की प्राप्ति और टाँगों एवं फेफड़ों आदि के लिए उत्तम व्यायाम का होना। स्वच्छ वायु के सेवन तथा पर्वतारोहण के व्यायाम की सहायता से मनुष्य स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनता है।

पर्वतारोहण के शौक का तीसरा लाभ है-पर्वतों पर ज्ञानवृद्धि करना। पर्वतारोही ही चीड़, देवदार, सागौन जैसे पेड़ों के सौन्दर्य का आनन्द उठा सकता है। वह ही पर्वतों पर होने वाली अनेक जड़ी-बूटियों को समझ कर उनसे लाभ ले सकता है। वह ही पर्वतों पर होने वाले अन्य प्राणियों एवं पक्षियों के स्वरूप, स्वभाव एवं उनसे होने वाले लाभों को जान सकता है। शेर, चीते, हिरण, हाथी, नीलगाय, जंगली-भैंस, भेड़िए, कस्तूरी मृग, चकोर तथा रंगबिरंगे पक्षी पहाड़ी जंगलों में ही देखे जा सकते हैं। पर्वतों की छोटी-छोटी गायें और भैंसों तथा गड़रियों के भेड़-बकरी युक्त शिखरों की शोभा पर्वतारोही ही अनुभव कर सकता है।

पर्वतारोही ही हिम-शिखरों, नदियों, झरनों एवं स्रोतों के सौन्दर्य का अन्वेषण करने का अवसर पा सकता है। नदियाँ कैसे बनती हैं, उनकी लम्बी यात्रा में वे क्या-क्या करती हैं, हम तक वह जल कैसे पहुँचता है और लोग मार्ग में उससे क्या-क्या लाभ उठाते हैं, यह पर्वतारोहण का शौकीन प्रत्यक्ष जान लेता है।

पर्वतारोहण के महत्त्व के कारण ही सैनिकों को पर्वतारोहण की शिक्षा दी जाती है, पर्वतारोहण में चतुर सैनिक भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखने में अपनी अच्छी भूमिका निभाते हैं। पर्वतों पर बसन्त में फूलों की शोभा, वर्षा में उमड़ते-घुमड़ते पास जाने वाले बादलों के दृश्य, बाढ़ों की भयंकरता, शरद् ऋतु का शान्त वातावरण, सर्दियों में हिमपात का सुहावना दृश्य-सभी कुछ तो पर्वतारोही ही देख पाता है। एक ओर ऊँचे पर्वत-शिखरों और दूसरी ओर गहरी घाटियों के प्राकृतिक भयंकर परन्तु सुन्दर दृश्य पर्वतारोही ही देख सकता है। पर्वतारोहण के शौक वाला ही इन दृश्यों से आनन्द उठा सकता है।

सतपुड़ा के घने जंगलों वाले पर्वत और अरावली की सूखी पर्वतश्रेणियों में भी उनका अपना सौन्दर्य पर्वतारोही ही जान पाता है। पर्वतों से पत्थर, लोहा, कोयला आदि खनिज कैसे निकाले जाते हैं, पर्वतारोही ही इस तथ्य को समझ पाता है। एडमंड हिलैरी और शेरपा तेनजिंग !वे ने पर्वतारोहण के शौक द्वारा ही विश्व के सबसे ऊँचे पर्वतशिखर माउण्ट एवरेस्ट को सन् 1956 में विजित कर संसार में यश और धन दोनों कमाए।

भारत के दार्जिलिंग क्षेत्र में तो शेरपा तेनजिंग ने पर्वतारोहण का एक विद्यालय खोला था, जिसे भारत सरकार का पूर्ण सहयोग प्राप्त था यहाँ से प्रशिक्षित होकर कितने ही पर्वतारोही दलों ने अनेक पर्वतशिखरों पर विजय प्राप्त की। जो पर्वतशिखर पहले कभी अविजेय समझे जाते थे, पर्वतारोहण के शौकीनों ने उन्हें पद्दलित कर अपना नाम अमर कर दिया।

पर्वतारोहण के लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना अति आवश्यक है। इसके लिए प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए। पर्वतों पर बहुत अधिक सर्दी होती है। इसलिए गर्म वस्त्र साथ रखने चाहिए। इसके साथ कुदाल, रस्सी, लोहे की खूटियाँ, छोटे टेंट का सामान, चाय बनाने के बर्तन, चूल्हा आदि भी रखने पड़ते हैं। यदि कई दिनों का पर्वतारोहण करना है तो पर्वतारोहण के लिए जूते भी विशेष प्रकार के होते हैं।

पर्वतों की पगडंडियों पर कैसे चलना चाहिए। फिसलन से कैसे बचना चाहिए। पर्वतों पर चढ़ते समय पाँव कैसे रखा जाय और उतरते समय कैसे-इन बातों का प्रशिक्षण और अभ्यास दोनों आवश्यक हैं। मौसम को समझना, ऊँची चोटियों पर श्वास लेने के लिए आक्सीजन साथ रखना, रोगी होने पर चिकित्सा का प्रबन्ध भी रखना आवश्यक है। बर्फ से ढकी चोटियों के मध्य छिपी खाइयों से बचकर निकलना, खड़े ढालों पर रस्सों द्वारा चढ़ना आदि भी प्रशिक्षण में शामिल है।

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आज के युवकों में पर्वतारोहण के लिए विशेष उत्साह है। पर्वतारोहण के प्रशिक्षण आदि के लिए सरकार का अलग विभाग है। दार्जिलिंग में तो शेरपा तेनजिंग की देखरेख में प्रशिक्षण चलता था। सभी पर्वतारोहण के विभागों से सम्पर्क कर विशेष सूचनाएँ और सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। पर्वतारोहण में भारत का भविष्य सुनहरा है।

(iv) “प्रत्येक चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।”

किसी गाँव के बाहर रसीले मीठे फल वाला एक पेड़ लगा था। उस पर सुन्दर, मन को लुभावने वाले फल लगे थे। पेड़ फलों से लदा हुआ था। मीठे रसीले फलों को देखकर उधर से गुजरने वाले यात्री ललचाई दृष्टि से उन फलों को देखते और तोड़कर खा लेते थे, लेकिन कुछ ही देर में उनकी तबियत खराब हो जाती और वे उल्टियाँ करने लगते। इसका कारण था मीठे रसीले होने के साथ-साथ वह जहरीले थे।

एक दिन उसी गाँव से होकर व्यापारियों की गाड़ियों का काफिला निकल रहा था। गाड़ियाँ बहुमूल्य चीजों से लदी थीं। उसी पेड़ के पास चार ठग भी रहते थे। उन्हें उस पेड़ की असलियत पता थी, लेकिन वे किसी को बताते नहीं थे, क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति उस पेड के फल खाता, कुछ दूर जाने पर वह गिर जाता, तो ये ठग उसका माल लूट लेते थे।

उन व्यापारियों की गाड़ियाँ देखकर वे बहुत खुश हुए, लेकिन उनमें से एक व्यापारी बहुत चतुर था। उसकी गाड़ी सबसे पीछे थी। आगे वाली गाड़ी के व्यापारी ने जब पके फल देखे, तो मुँह में पानी आ गया और उसने एक फल तोड़कर खाया, उसे वह बहुत स्वादिष्ट लगा। उसने कुछ फल तोड़कर गाड़ी में रख लिए कि रास्ते में काम आयेंगे। उसको देखकर दूसरे व्यापारियों ने भी ऐसा ही किया। चतुर व्यापारी ने यह देखा तो चिल्लाया फल मत खाओ ये जहरीले हैं। फिर उसने अपने साथ चल रहे अपने नौकर से कहा कि जल्दी जाओ और उनको रोको जिन्होंने फल खा लिए हैं उनको उल्टियाँ कराओ और जिन्होंने अपनी गाड़ी में रखे हैं उन्हें फेंकने को कहो। नौकर ने ऐसा ही किया कुछ व्यापारियों की हालत ज्यादा खराब थी। उस चतुर व्यापारी के कारण सबकी जान बच गई।

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जब कुछ लोगों ने उस चतुर व्यापारी से पूछा कि जब तुमको पहले से पता था तो तुमने रोका क्यों नहीं ? इस पर व्यापारी ने उत्तर दिया कि मुझे नहीं पता था, मैं भी पहली बार इस रास्ते से यात्रा कर रहा हूँ, लेकिन मैंने देखा कि इतना बड़ा पेड़ जो कि सुन्दर मीठे रसीले फलों से लदा है फल भी मीठे हैं और गाँव भी पास में है, तो क्या कारण है कि लोग इसके फल नहीं खा रहे हैं। मैंने अपनी सामान्य बुद्धि से सोचा कि यह फल जरूर जहरीले होंगे, वरना गाँव के लोग तो कच्चे ही फल खा जाते। तब उन सभी व्यापारियों ने अपने नौकरों से कहकर उस पेड़ को कटवा दिया, ताकि कोई राही फिर से धोखा न खा जाए। इसीलिए कहते हैं कि प्रत्येक चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।

(v) अभूतपूर्व जनयात्रा चित्र अध्ययन

आज के ग्लोबल दौर में जनयात्रा एक आश्चर्य को लेकर आती है। राजनेता अपनी रैलियों में अपार जनसमूह इकट्ठा करते हैं, वह बस या रेल से यात्रा करके निर्दिष्ट स्थल तक पहुँचते हैं। उन लोगों को व्यवस्थित करने के लिए बहुत सारी पुलिस लगानी पड़ती है फिर भी अव्यवस्था फैल जाती है, लेकिन बिना किसी सरकारी तामझाम के 15-20 हजार लोगों को बैनर और पोस्टर लेकर पैदल दिल्ली के लिए कूच करना आश्चर्यजनक तो है ही साथ ही महात्मा गाँधी की पैदल यात्रा (दाँडी मार्च) की याद दिलाता है।

ग्वालियर से दिल्ली तक पैदल मार्च, जिसमें हर प्रदेश का प्रतिनिधत्व हो, नर-नारी, वृद्धों और बच्चों की व्यवस्थित कतारें, अभूतपूर्व प्रेरणा देती है। यह यात्रा प्रारम्भ से लेकर अन्त तक व्यवस्थित और शान्तिप्रिय रही। राह में एक दुर्घटना हुई जिसमें तीन चार यात्री मृत्यु के ग्रास बने, लेकिन जनसमूह ने अपना धैर्य कायम रखा और दिल्ली तक पहुँचे अपनी भूमि, जल और आवास की माँग लेकर। अधिकतर लोग भूमिहीन हैं। बिहार से भी काफी लोग इस यात्रा में भाग लेने आए।

350 किलोमीटर दूर से आए जनादेश 2007 के तहत लगभग पच्चीस हजार कार्यकर्ता दिल्ली की सड़कों पर शान्तिपूर्ण विरोध जताने उतरे। महिलाएं भी काफी तादाद में थीं। यात्रा में ट्राइसाइकिल पर सवार विकलांग, दृष्टिहीन, किशोर, धनुषबाण लिए आदिवासी, विदेशी समर्थक आदि लोगों की संख्या काफी थी। राजधानी की सड़कों पर उमड़े जन-सैलाव को देखकर यह मालूम पड़ रहा था कि लोकतंत्र में जनता की शक्ति ही मायने रखती है। जनादेश रैली को नेताओं ने भी सम्बोधित किया।

इस रैली में कोई हिंसक घटना नहीं हुई। सभी कुछ शान्तिपूर्ण तरीके से चला। नेताओं ने कहा कि भूमिहीनों को जमीन मिलनी चाहिए। सामाजिक व्यवस्था बदलने के लिए वह अहिंसात्मक आन्दोलन था। रैली की ओर से प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा गया। उसमें भूमि प्राधिकरण की स्थापना, समस्त भूमिहीनों को भूमि का अधिकार, वनभूमि पर काबिजों को मालिकाना हक, आदिवासी दलित और वंचित समर्थित जनाधिकार नीति, भूमि सुधार प्रक्रिया सभी राज्यों में लागू करना, कृषि योग्य भूमि का गैर कृषि के लिए उपयोग पर पूर्ण रोक आदि माँगें थीं।

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अन्त में देश भर में आए 25 हजार भूमिहीनों के जनादेश के समक्ष केन्द्र सरकार झुक गई और उनकी समस्त माँगों को जायज ठहराते हुए मान लिया। भूमि से सम्बन्धित सभी मामलों को हल करने के लिए दो समितियों बनाई जाएँगी। यह सब प्रधानमंत्री की देखरेख में होगा।

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the following topics : [7]
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए
(i) अपने पिताजी को पत्र लिखकर वन-विहार या किसी बाँध को देखने जाने की अनुमति प्राप्त कीजिए।
हैरो पब्लिक स्कूल,
Answer:
मुरादाबाद।
दिनांक : 10.05.20xx
पूज्य पिताजी,
सादर चरण स्पर्श।
आपका प्यार भरा पत्र मिला, पढ़कर बेहद खुशी हुई। मुझे प्रसन्नता है कि आप हर हफ्ते पत्र लिख देते हो। बड़े भाई ने तो कई हफ्तों से कोई पत्र नहीं लिखा है। मेरी पढ़ाई अच्छी तरह से चल रही है। अगले महीने परीक्षा होगी।

हमारे विद्यालय में फरवरी में एक-दो दिन के लिये दसवीं कक्षा के छात्र वन-विहार या किसी बाँध को देखने के लिए जाते हैं। इस वर्ष मेरी कक्षा नरोरा बाँध को देखने के लिए जा रही है। हमारे प्रधानाध्यापक ने वहाँ के अधीक्षण अभियन्ता से सम्पर्क कर एक रात वहाँ रुकने और एक दिन बाँध का निरीक्षण करने के लिए कह दिया है। हमारे साथ दो अध्यापक जाएंगे। बाँध की जानकारी हमें वहाँ के एक कुशल अभियन्ता द्वारा दी जायेगी।

इस बहाने हमें गंगा स्नान भी मिल जाएगा। इसके लिए हर छात्र को 200 रुपये जमा करने हैं। पहले तो मुझे आपसे वहाँ जाने के लिये आज्ञा चाहिए। यदि आप हाँ कहते हैं तो फिर मैं जाने की तैयारी करूँ और कक्षा अध्यापक को अपना नाम दे दूँ। यदि मैं वहाँ जाता हूँ तो इस माह की फीस के साथ 200 रुपये जमा करने पड़ेंगे।
माताजी एवं बड़े भाई को चरण स्पर्श।
पत्र की प्रतीक्षा में,
आपका पुत्र,
संजय
कक्षा 10-अ
श्री गौरीशंकर जी,
3/164, विद्यानगर,
अलीगढ़।

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(ii) आपने अपने घर पर दूरभाष लगवाने के लिए प्रार्थना-पत्र दिया था। दूरभाष विभाग के अध्यक्ष को पत्र लिखकर अपनी आवश्यकता बताते हुए शीघ्रातिशीघ्र दूरभाष लगवाने की प्रार्थना कीजिए।
Answer:
19 ए, कमला नगर,
आगरा।
दिनांक : 15.03.20xx
सेवा में,
श्रीमान् अध्यक्ष महोदय
दूरभाष विभाग,
आगरा।
विषय-शीघ्रातिशीघ्र दूरभाष लगवाने हेतु प्रार्थना-पत्र।
श्रीमान्
निवेदन है कि मैंने गत वर्ष अपने मकान में दूरभाष लगवाने के लिए आवश्यक शुल्क जमा करके आवेदन-पत्र भरा था। कई बार मैंने अधिकारियों से बात की, लेकिन उत्तर यही मिला कि मेरी तरफ जमीन के नीचे तार डाले जा रहे हैं जब काम पूरा हो जायेगा तो लग जायेगा। मुझे कोई निश्चित उत्तर नहीं मिला है।

मैं कपड़े का व्यापारी हूँ। शहर के बाहर भी मेरा काम है। अत: दूरभाष से सम्पर्क करने में मुझे आसानी होगी। समय और आने-जाने में जो धन खर्च होता है वह भी बचेगा। देश से बाहर भी मैं अपना दूसरा काम खोलना चाहता हूँ। दूरभाष के अभाव में, मैं अन्य व्यापारियों से सम्पर्क नहीं कर पाता और अनेक आवश्यक सूचनाओं से वंचित रह जाता हूँ। इसका सीधा असर मेरे व्यापार पर पड़ता है।

मुझे आशा है कि आप मेरी आवश्यकता और समस्या को अवश्य समझेंगे और मेरा कार्य शीघ्रातिशीघ्र कराने की कृपा करेंगे।
सधन्यवाद।
भवदीय
राजीव जैन

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow using your own language as far as possible. [10]
नीचे लिखे गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए।

किसी भी जाति की सभ्यता और संस्कृति का परिचय हमें उसकी लोक-कलाओं और लोक-जीवन में मिलता है। मध्य हिमालय का गढ़वाल तथा कुमाऊँ क्षेत्र जिसे हम ‘उत्तराखण्ड’ के नाम से जानते हैं, प्राकृतिक वैभव के साथ ही भारतीय संस्कृति की कई प्राचीनताओं को भी अपने आँचल में समेटे है, लेकिन इधर कुछ वर्षों में पहाड़ का चेहरा बड़ी तेजी से बदलने के कारण उसके रूप में भी बदलाव आया है।

पहाड़ के गाँव कभी अपनी विविध लोक-कलाओं-काष्ठकला, आभूषण-निर्माण कला, वाद्यकला, भित्तिचित्र कला, चित्रकारी, मेले, लोकोत्सव और नृत्य आदि के लिये जाने जाते थे, लेकिन बदलाव की हवा ने उन्हें भी अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया है। परिवर्तन की इस लहर ने यहाँ की लोक-कलाओं को ही नहीं, बल्कि भवन निर्माण शैली को सबसे अधिक प्रभावित किया है। चीड़ और देवदारु के पेड़ों के बीच बने पक्के मकानों को देखकर सहज ही विश्वास नहीं होता कि ये वही पहाड़ हैं, जहाँ कभी मिट्टी, पत्थर और लकड़ी के छोटे-छोटे कलात्मक घर हुआ करते थे।

आधुनिकता के नाम पर बदलाव का यह सिलसिला चन्द गाँवों या शहरों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि सुदूर क्षेत्रों में भी पहुँच चुका है। वहाँ भी सीमेण्ट, कंक्रीट के आधुनिक मकान दिखाई देने लगे हैं। यहाँ के पुराने मकानों को गौर से देखें तो इनमें कच्चे माल के रूप में उन्हीं वस्तुओं का उपयोग होता था, जो यहाँ आसानी से उपलब्ध थीं। ईंट के स्थान पर पत्थरों को अलग-अलग आकारों में काट-छाँटकर एक के ऊपर एक रखकर चिना जाता था। दो पत्थरों के बीच सीमेंट का कोई उपयोग नहीं होता था। बीच-बीच में साल, सागौन, देवदारु, चीड़ या दूसरी उपलब्ध लकड़ी के स्लीपर डाले जाते थे।

दरवाजे और खिड़कियों में भी स्थानीय लकड़ी का भरपूर सदुपयोग किया जाता था। कुछ घरों में पशुओं के लिये नीचे व्यवस्था की जाती थी, जिसे ‘सन्नी’ या ‘गोठ’ कहा जाता था। परिवार पहली मंजिल पर रहता था। पारम्परिक मकानों के ऊपर की मंजिल पर एक खुला आँगन जिसे ‘तिबारी’ या ‘खूटकूण’ कहा जाता था, अवश्य निकाला जाता था जो एक तरह के बैठक का भी काम करता था।

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

दिन-भर के काम से निपटने के बाद यहीं बैठकर पूरा परिवार हँसी-खुशी से बातें करता था। आज नये आधुनिक शैली के मकानों में यह परम्परा बड़ी तेजी से लुप्त हो रही है। मकानों के दरवाजों, खिड़कियों और छज्जों पर जो बारीक काष्ठकला का काम होता था वह भी अब लुप्तप्राय है। यह परिवर्तन न तो यकायक आया है और न ही जरूरतों की उपज है, बल्कि यह तथाकथित आधुनिकता के अन्धानुकरण का ही उदाहरण है।

(i) किसी भी जाति की सभ्यता और संस्कृति का परिचय हमें किससे प्राप्त होता है और किस प्रकार ? समझाकर लिखिए।
(ii) हिमालय के मध्य को किस नाम से जाना जाता है ? इस क्षेत्र की क्या विशेषताएँ हैं ?
(iii) यह क्षेत्र पहले किस बात के लिये जाने जाते थे? इस समय इनकी क्या स्थिति है ?
(iv) आधुनिक परिवर्तन ने लोक-कलाओं के अलावा किसको अधिक प्रभावित किया है और कैसे ? यह प्रभाव कहाँ तक पहुँचा है ?
(v) इस परिवर्तन से पहले पहाड़ों में मकानों का निर्माण किस प्रकार होता था ?
Answer:
(i) किसी भी जाति, सभ्यता और संस्कृति का परिचय हमें उसकी लोक-कलाओं और लोक-जीवन से प्राप्त होता है। प्राकृतिक वैभव के साथ ही भारतीय संस्कृति की कई प्राचीनताओं को भी उत्तराखण्ड अपने आँचल में समेटे हुए है।

(ii) हिमालय के मध्य को गढ़वाल तथा कुमाऊँ क्षेत्र जिसे हम उत्तराखण्ड के नाम से जानते हैं। ये प्राकृतिक वैभव को अपने अन्दर समाए हुए हैं।

(iii) यह क्षेत्र विविध लोक-कलाओं, काष्ठकला, आभूषण-निर्माण कला, वाद्यकला, भित्तिचित्र कला, चित्रकारी, मेले, लोकोत्सव और नृत्य के लिए जाने जाते थे, लेकिन परिवर्तन की इस लहर ने इनको भी प्रभावित किया है।

(iv) आधुनिक परिवर्तन ने लोक-कलाओं के अलावा वहाँ के घरों को भी प्रभावित किया है, क्योंकि वहाँ पहले मकान, मिट्टी पत्थर और लकड़ी के छोटे-छोटे कलात्मक हुआ करते थे। अब घर ईंट और सीमेण्ट के होते हैं। यह प्रभाव उत्तराखण्ड के दूर-दूर के गाँव तक भी पहुँच गया है।

(v) मकानों का निर्माण ईंट के स्थान पर पत्थरों को अलग-अलग कर, भिन्न-भिन्न आकारों में काँट-छाँटकर, एक के ऊपर एक रखकर चिना जाता था। दो पत्थरों के बीच सीमेण्ट का कोई उपयोग नहीं होता था। बीच-बीच में साल, सागौन, देवदारु, चीड़ या दूसरी उपलब्ध लकड़ी के स्लीपर डाले जाते थे।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए —
(i) निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए —
भागना, स्वस्थ।
Answer:
(i) भागना — भगदड़
स्वस्थ — स्वास्थ्य

(ii) निम्नलिखित शब्दों में से दो के विशेषण बनाइए —
बुराई, भावुकता, बैर, शुद्धता।
Answer:
बुराई – बुरा
भावुकता — भावुक
बैर – बैरी
शुद्धता – शुद्ध

(iii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द का दो पर्यायवाची शब्द लिखिए —
बादल, स्वतन्त्र
Answer:
बादल – मेघ, वारिद
स्वतन्त्र स्वच्छन्द, स्वेच्छाचारी

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(iv) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो के विपरीतार्थक शब्द लिखिए
पवित्र, निराश, प्रश्न, भविष्य।
Answer:
पवित्र – अपवित्र
निराश – जिसको आशा न हो।
प्रश्न – उत्तर
भविष्य – भूत

(v) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक से वाक्य बनाइए………
(क) छाती पर साँप लोटना,
(ख) डूबते को तिनके का सहारा।
Answer:
(क) जब राम को व्यापार में चौगुना लाभ हुआ तो श्याम की छाती पर साँप लोटने लगे।
(ख) रमेश ने कहा कि श्याम ऐसी विकट परिस्थिति में तुम्हारी ये छोटी सी रकम डूबते को तिनके का सहारा होगी।

(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए
(a) अन्त में आचार्य निराश हो गए। ‘आशा’ का प्रयोग करिए लेकिन वाक्य का अर्थ न बदले)
(b) दोनों युवक पदार्थ लेकर अपने-अपने घर चले गए। (‘दोनों युवकों ने’ से वाक्य प्रारम्भ करिए)
(c) युवक ने सकुचाते हुए उत्तर दिया। (‘संकोच’ का प्रयोग कीजिए)
Answer:
(a) अन्त में आचार्य को आशा न रही।
(b) दोनों युवकों ने पदार्थ लिया और अपने-अपने घर चले गए।
(c) युवक ने संकोच से उत्तर दिया।

Section-B
साहित्य सागर (संक्षिप्त कहानियाँ)

Question 5.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow: [10]

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए
“दूसरे दिन मुकदमा शेख सलीमुद्दीन की कचहरी में पेश हुआ। रसीला ने तुरन्त अपना अपराध स्वीकार कर लिया। उसने कोई बहाना न बनाया। चाहता तो कह सकता था कि यह साजिश है।”
—’बात अठन्नी की’
लेखक-सुदर्शन

(i) कौन-सा मुकदमा शेख सलीमुद्दीन की कचहरी में पेश हुआ ?
(ii) इंजीनियर साहब ने क्रोध में आकर क्या किया?
(iii) रसीला अपना अपराध स्वीकार न कर क्या कह सकता था ?
(iv) लेखक ने शेख साहब पर क्या व्यंग्य किया था?
Answer:
(i) इंजीनियर साहब ने अपने नौकर रसीला को पाँच रुपये देकर बाजार से मिठाई मँगवाई थी। रसीला ने उसमें से अठन्नी बचाकर साढ़े चार रुपये की मिठाई लाकर दी। इंजीनियर साहब को शक हुआ नौकर को हलवाई के पास ले जाकर असलियत मालूम की। इंजीनियर साहब ने नौकर पर दया न की, बल्कि उसे पुलिस में दे दिया। वही मुकदमा शेख सलीमुद्दीन की कचहरी में पेश हुआ।

(ii) इंजीनियर साहब जगतसिंह की आँखों से आग बरसने लगी। उन्होंने निर्दयता से रसीला को खूब पीटा फिर घसीटते हुए पुलिस थाने ले गये। सिपाही के हाथ में पाँच का नोट रखते हुए कहा कि वह उससे जुर्म मनवा ले।

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(iii) यदि रसीला चतुर-चालाक होता तो अपना अपराध स्वीकार न कर कह सकता था कि यह उसके खिलाफ साजिश है। वह इंजीनियर साहब के यहाँ नौकरी नहीं करना चाहता, इसलिए हलवाई से मिलकर उसे फँसा रहे हैं, पर यह झूठ बोलने का अपराध वह न कर पाया।

(iv) लेखक ने जिला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन पर करारा व्यंग्य किया है कि शेख साहब न्यायप्रिय आदमी थे। उन्होंने रसीला को छह महीने की सजा सुना दी और रुमाल से मुँह पोंछा। यह वही रुमाल था जिसमें एक दिन पहले किसी ने हजार रुपये बाँधकर दिये थे।

Question 6.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :
“सेठ ने आद्योपांत सारी कथा सुनाई। सुनकर सेठानी की सारी वेदना जाने कहाँ विलीन हो गई। हृदय उल्लसित हो उठा। विपत्ति में भी सेठ ने धर्म नहीं छोड़ा।” —’महायज्ञ का पुरस्कार’
लेखक-यशपाल
(i) सेठ ने कौन-सी कथा आद्योपांत सुनाई ?
(ii) सेठानी की कौन-सी वेदना क्या सुनकर विलीन हो गई ?
(iii) धन्ना सेठ की पत्नी ने कौन-सा यज्ञ बेचने को इस सेठ से कहा? उसने किसे महायज्ञ बताया ?
(iv) सेठ ने उस यज्ञ को क्यों नहीं बेचा ? उनका वह कार्य क्या था ?
Answer:
(i) सेठ ने अपने घर लौटकर अपनी पत्नी को वहाँ से जाने, रास्ते में अपने भोजन की चारों रोटी एक भूखे कुत्ते को खिलाने, धन्नासेठ के यहाँ जो बातचीत हुई उसे बताने और धन्नासेठ की पत्नी की ‘महायज्ञ’ खरीदने की बात और स्वयं के इन्कार करने की बात बताई। यही आद्योपांत कथा थी जो घर आकर थके-हारे सेठ ने अपनी पत्नी को सुनाई।

(ii) अगले दिन शाम को सेठजी अपने घर पहुँचे। सेठानी बड़ी-बड़ी आशाएँ लगाये बैठी थी। सेठ को खाली हाथ वापस लौटकर आया हुआ देखकर उसका हृदय वेदना से भर गया। जब उसे पता चला कि सेठ ने विपत्ति में भी अपना धर्म नहीं छोड़ा तो उसकी वेदना जाने कहाँ विलीन हो गई और उसका हृदय उल्लसित हो उठा।

(iii) कुन्दरपुर के धन्नासेठ की पत्नी को कोई दैवी शक्ति प्राप्त थी, जिससे वह तीनों लोकों की बात जान लेती थी। जब ये सेठ अपना यज्ञ बेचने वहाँ पहुँचे तो धन्नासेठ की पत्नी ने उस सेठ से आज दिन में भूखे कुत्ते को जो चार रोटी खिलाकर उसकी भूख से रक्षा की और इस योग्य बनाया कि किसी गाँव तक पहुँच सकेगा, वह ‘महायज्ञ’ वह खरीदने को तैयार है।

(iv) अपना ‘यज्ञ’ बेचने को आये सेठ ने कहा कि यह तो कोई ‘यज्ञ’ नहीं है। भूखे को अन्न देना सभी का कर्तव्य है। उसमें ‘यज्ञ’ जैसी कोई बात नहीं है। उन्हें मानवोचित कर्तव्य का मूल्य लेना उचित नहीं लगा। सेठ स्वभाव से विनम्र, उदार और धर्मपरायण थे तथा वे अपनी धनाभाव जैसी विपत्ति में भी अपने कर्तव्य से न हटे।

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Question 7.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“दूसरी बार जब हालदार साहब उधर से गुजरे तो उन्हें मूर्ति में कुछ अन्तर दिखाई दिया। ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है। पहले मोटे फ्रेमवाला चौकोर चश्मा था, अब तार के फ्रेमवाला गोल चश्मा है।”
‘नेताजी का चश्मा’
लेखक-स्वयं प्रकाश
(i) हालदार साहब की जीप जब कस्बे से बाहर निकल गई तो हालदार साहब ने सोचने के बाद क्या निष्कर्ष निकाला?
(ii) हालदार साहब को क्या आदत पड़ गई थी?
(iii) उन्होंने पानवाले से क्या पूछा और उसने क्या जवाब दिया ?
(iv) आखिर में हालदार साहब की समझ में क्या बात आई ?
Answer:
(i) हालदार साहब की जीप जब कस्बा छोड़कर बाहर निकल गई तो वह सोचते रहे और अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा जायेगा। महत्व मूर्ति के रंग-रूप का नहीं, उस भावना का है वरना तो देशभक्ति भी आजकल मजाक की चीज होती जा रही है।

(ii) हालदार साहब को यह आदत पड़ गई थी कि हर बार कस्बे से गुजरते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब वे अपने कौतूहल को दबा न सके तो पानवाले से पूछ ही लिया कि नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है

(iii) जब हालदार साहब की समझ में यह बात नहीं आई की हर बार मूर्ति की आँखों पर चश्मा बदल क्यों जाता है तो उन्होंने यह बात पानवाले से पूछी। इस प्रश्न को सुनकर पानवाला आँखों ही आँखों में हँसा और बोला कि यह काम कैप्टन चश्मेवाला करता है। जब कोई ग्राहक मोटे फ्रेमवाला चश्मा चाहता है तो वह मूर्ति से उतारकर उसे दे देता है और मूर्ति पर दूसरा चश्मा पहना देता है।

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अब हालदार साहब को बात कुछ-कुछ समझ में आई। एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। उसे नेताजी की बगैर चश्मे वाली मूर्ति अच्छी नहीं लगती है, बल्कि आहत करती है, मानो चश्मे के बिना नेताजी को असुविधा हो रही हो। इसलिए वह अपनी छोटीसी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है। जब कोई ग्राहक उस फ्रेम को माँगता है तो वह उसे वह फ्रेम दे देता है और नेताजी की मूर्ति पर दूसरा फ्रेम लगा देता है।

Question 8.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :
“काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।” —’साखी’ कवि-कबीरदास
(i) क्या कबीर पढ़े-लिखे थे। उनके बारे में क्या कहा जाता है ?
(ii) वे किसके उपासक थे और उन्होंने किसका विरोध किया ?
(iii) क्या कबीरदास जी ने हिन्दू-मुसलमानों की एकता का प्रयास किया ?
(iv) प्रस्तुत दोहे का अर्थ लिखिए।
Answer:
(i) कबीरदास जी पढ़े-लिखे नहीं थे। इनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ या ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा जाता है। संकलित साखियों में इन्होंने समाज को विभिन्न प्रकार की सीख दी है। इनकी साखियों में एक समाज-सुधारक का निर्भीक स्वर सुनाई पड़ता है।

(ii) कबीरदास जी निर्गुण तथा निराकार ईश्वर के उपासक थे, इसलिए इन्होंने मूर्ति-पूजा, कर्मकांड तथा बाहरी आडम्बरों का खुलकर विरोध किया।

(iii) कबीरदास जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता का नारा भी बुलन्द किया तथा दोनों ही सम्प्रदायों में व्याप्त रूढ़ियों तथा धार्मिक कुरीतियों का खुलकर विरोध किया तथा राम-रहीम की एकता में विश्वास पैदा करने की कोशिश की। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज को सीख दी। वे चाहते थे कि हिन्दू और मुसलमान एक होकर रहें तभी समाज का उद्धार होगा।

(iv) कबीरदास जी कहते हैं कंकड़-पत्थर इकट्ठा करके मुसलमानों ने एक मस्जिद का निर्माण कर लिया। उस पर चढ़कर मुल्ला जोर-जोर से अल्लाह को पुकारता है जैसे कि खुदा बहरा हो जो उसकी धीमी गुहार को सुन नहीं सकेगा। उनका मन्तव्य यह था कि पूजा पाठ में दिखावा जरूरी नहीं है। खुदा तो दिल की धड़कन भी सुन लेता है फिर जोर से नमाज़ पढ़ने की जरूरत नहीं है।

Question 9.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।”
—’मेघ आये’
कवि-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(i) यहाँ पर किस ऋतु का वर्णन किया गया है ? बरस बाद सुधि लीन्हीं’ का क्या तात्पर्य है ?
(ii) वर्षा ऋतु से क्या-क्या लाभ हैं ?
(iii) वर्षा ऋतु से क्या हानियाँ भी होती हैं। यदि हाँ तो बताइए?
(iv) उक्त पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
Answer:
(i) कवि की इस कविता में वर्षा ऋतु का वर्णन किया गया है। बरस बाद सुधि लीन्हीं’ का तात्पर्य है कि बादलों ने एक वर्ष बाद पृथ्वी की प्यास बुझाने की सुधि (याद) ली है।

(ii) वर्षा ऋतु से अनेक लाभ हैं। यह भीषण गर्मी से.आहत मनुष्य, पशु-पक्षी आदि को शीतलता प्रदान करती है। किसान वर्षा का स्वागत करता है, क्योंकि वर्षा ही उसकी खेती का आधार है। नदियों, ताल-तलैयों में पानी भर जाता है जीवन का आधार धरती पर चारों ओर हरियाली छा जाती है जिससे दृश्य बड़ा ही मनोरम लगता है। बागों की मोर की कुहू कुहू की बोली बड़ी सुहावनी लगती है।

(iii) वर्षा ऋतु से कभी-कभी हानियाँ भी होती हैं। अधिक वर्षा होने से नदियों में बाढ़ आ जाती है जिससे फसलें नष्ट हो जाती हैं, गाँवों में लोगों के घर और पशुओं की हानि हो जाती है। यह तभी होता है जब वर्षा बहुत अधिक मात्रा में हो जाती है। गाँवों में कीचड़ खूब हो जाती है और विषैले जीव-जन्तुओं का खतरा बना रहता है।

(iv) कवि कहता है बूढ़े पीपल के वृक्ष ने आगे बढ़कर मेघों को सिर झुकाया। वह मेघों के आने से बहुत प्रसन्न है और उसने कहा कि हे मेघो! तुमने एक वर्ष बाद यहाँ आकर बरसने की सुधि ली है। गर्मी से व्याकुल लता भी किवाड़ की ओट से झाँकी और प्रसन्न हो गई। ताल-तलैया भी हरसाये और मेघों के बरसने से पूरे पानी से भर गये।

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Question 10.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा शमित न होगा
कोलाहल संघर्ष नहीं कम होगा।”
-‘स्वर्ग बना सकते हैं’
कवि-रामधारीसिंह ‘दिनकर’
(i) कवि की यह कैसी कविता है ? कवि क्या चाहता है ?
(ii) मनुष्यों का कोलाहल कब शान्त होगा ?
(iii) क्या यह सम्भव है कि सबका सुख भाग समान हो जाये ?
(iv) इन पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
Answer:
(i) कवि की इस कविता में राष्ट्रीयता की गूंज है। कवि चाहता है कि हम सब मिलकर इस जगत को स्वर्ग के समान सुन्दर और सुखदायी बना दें। यह तभी सम्भव है जब हम परस्पर एक-दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ें।

(ii) जब मनुष्यों में समानता होगी, समान व्यवहार होगा और सुख-साधन भी सबको समान रूप से प्राप्त होंगे, तभी कोलाहल शान्त होगा। आपस में संघर्ष तभी होता है जब धन या सम्पत्ति का बँटवारा समान रूप से या न्यायोचित नहीं होता है।

(iii) सबका सुख-भाग समान हो जाये यह तभी सम्भव है जब सब लोग अन्य असहायों या निर्धनों को समान अधिकार दिलवायें और जो समर्थ हैं वे दीन-दुःखियों की मदद करें और त्याग की भावना रखें। सभी ईश्वर की सन्तान हैं यह मानकर एक-दूसरे की मदद करें और निर्धनों के सहयोग के लिए आगे आयें। सब लोग भाग्य को प्रधानता न देकर कर्म को प्रधानता दें। जिनके पास अधिक है उन्होंने अधिक परिश्रम किया होगा।

(iv) उक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि जब तक मनुष्य-मनुष्य के बीच असमानता है तब तक न तो संघर्ष कम होगा और न ही कोलाहल कम होगा। सुख के साधन बराबर की मात्रा में बाँट दिये जायें, सबमें समता का भाव व्याप्त हो और परस्पर मिलकर एक-दूसरे को साथ लेकर चलें, एक-दूसरे का दुःख-दर्द बाँटें और निर्धन व्यक्तियों की धन से या अन्य साधनों से मदद करें।

नया रास्ता

Question 11.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow: [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :
“कितनी जालिम है ये दुनिया ! सब कुछ पैसा ही है इस दुनिया में ? इंसान की इंसानियत, शर्म, लज्जा कुछ भी तो नहीं रही है। पिताजी के मन में अन्तर्द्वन्द्व चल रहा था। घर पर सभी उम्मीद लगाये बैठे थे कि आशा का रिश्ता पक्का हो जायेगा।”
(i) दयारामजी लड़के वालों के घर में बैठे थे तो किससे मुलाकात हुई ?
(ii) उस सज्जन ने उन्हें क्या बताया ?
(iii) दयारामजी ने वहाँ अधिक ठहरना उचित क्यों नहीं समझा ?
(iv) दयारामजी के घर पर सभी क्या आशा लगाये बैठे थे ? दयारामजी के चेहरे को देखकर वे क्या समझ गये ?
Answer:
(i) दयाराम जी मेरठ शहर लड़के वालों के घर अपनी छोटी बेटी आशा का रिश्ता अमित के लिए लेकर गये थे। बड़ी उम्मीद थी उन्हें क्योंकि आशा से रिश्ता करने की बात स्वयं उन्होंने ही पत्र में लिखी थी। घर में उस समय कोई नहीं था। नौकर ने दरवाजा खोला और उन्हें अन्दर बिठा दिया। इतने में ही कोई सज्जन चमचमाती कार से उतरकर आये और वहीं दयाराम जी के पास आकर बैठ गये।

(ii) उस सज्जन का नाम धनीमल था। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी सरिता का रिश्ता अमित के साथ तय हो गया है और शादी में वे पाँच लाख रुपये लगा रहे हैं। दयाराम जी को बड़ा अजीब लगा कि उनसे उनकी लड़की के लिए लिखा था और अब यहाँ पर ये मामला है।

(iii) अमित का रिश्ता सरिता के साथ हो गया है यह ज्ञात होते ही दयारामजी के पाँव तले धरती खिसक गई। अब उन्होंने एक मिनट भी वहाँ ठहरना उचित नहीं समझा और वहाँ से उठ खड़े हुए। अब वहाँ ठहरने का कोई मतलब भी नहीं था क्योंकि स्थिति उनके सामने स्पष्ट हो चुकी थी।

(iv) दयारामजी के घर पर सब यह सोच रहे थे कि अमित के साथ आशा का रिश्ता तो तय हो ही जायेगा क्योंकि पत्र में अमित के पिता ने आशा से अमित की शादी करने की बात स्वयं स्वीकार की थी। परन्तु घर पहुँचने पर दयारामजी का उदास चेहरा देखकर सभी परिवारीजन समझ गये कि आशा के रिश्ते के लिए भी मना हो गई है। वास्तविकता जानने पर सबका हृदय मायारामजी के परिवार के प्रति घृणा से भर गया।

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Question 12.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“बस इतनी-सी बात सोच रहा है। अमित, तुम हमारे एक मात्र पुत्र हो। एक ही बहू घर में आनी है। दो-चार जगह से पसन्द करके ही तो ली जायेगी और फिर शादी गुड्डे-गुड़िया का खेल तो नहीं है, जो जब चाहे शादी कर ले और जब चाहे छोड़ दे।”
(i) यहाँ कौन किससे बात कर रहा है ? श्रोता क्या सोच रहा है ?
(ii) श्रोता (सुनने वाले) ने मीनू के बारे में क्या बताया ?
(iii) श्रोता ने वक्ता से सरिता के बारे में क्या कहा ?
(iv) मौसी का उदाहरण किसने और क्या कहकर दिया?
Answer:
(i) यहाँ अमित की माँ अमित से बात कर रही है। अमित यह सोच रहा है कि जब मीनू को देखने गये थे और बाद में मनाकर दिया था तो उन सबके दिल पर क्या बीती होगी। यह सोचकर उसका चेहरा उदास हो गया।

(ii) अमित ने मीनू के बारे में अपनी माँ को बताया कि मीनू में भी कोई कमी नहीं थी। देखने में भी ठीक है, पढ़ी-लिखी है, अच्छे खानदान की है और सबसे बड़ी बात है कि वह सारे काम में चतुर है। उसे विश्वास है कि मीनू एक कुशल गृहिणी की तरह घर को सँभाल सकेगी।

(iii) फिर अमित ने माँ को सरिता के बारे में बताया कि बड़े घर की लड़की यहाँ आकर न तो घर का कोई काम करेगी और न ही तुम्हें कोई आराम देगी। घर नौकरों के भरोसे छोड़ना पड़ेगा।

(iv) अमित ने अपनी माँ को समझाने के लिए उसने अपनी मौसी का उदाहरण दिया। बड़ी मौसी ने अपने इकलौते बेटे के लिए बड़े खानदान की सुन्दर बहू ली। देख ली सुन्दर-सलोनी बहू ने क्या हालत बना रखी है मौसी की ? वह घर का सारा काम करती हैं, घर के काम से बहू को कोई मतलब नहीं है। हाँ क्लब जाने के लिए हमेशा तैयार रहती है। घर के काम के लिए उसने कह दिया कि घर के काम की तो उसे आदत ही नहीं है क्योंकि उसके पिता के यहाँ तो घर का सारा काम नौकर करते हैं।

Question 13.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“नीलिमा के घर जाने के लिए मीनू ने अपना हरे रंग का सलवार सूट निकालकर पहना। तभी माँ रसोई से बाहर निकली। मीनू को सलवार सूट पहना देखकर बोली, “बेटी, आज तो साड़ी पहन लेती।”
(i) मीनू हॉस्टल से अपने घर क्यों आई है ?
(ii) हॉस्टल में और घर में क्या फर्क है ? उसने नाश्ते के लिए क्या बनवाया ?
(iii) आज मीनू के हृदय में विशेष उत्साह क्यों है ?
(iv) नीलिमा के यहाँ जाने के लिए वह तैयार हुई तो उसे कैसा लगा ?
Answer:
(i) मीनू हॉस्टल से अपने घर इसलिए आई है, क्योंकि उसकी घनिष्ठ सहेली नीलिमा की शादी है और उसमें जाना आवश्यक था। नीलिमा तो उसे शादी से पहले ही आने के लिए बुला आई थी।

(ii) हॉस्टल में और घर में यह फर्क है कि वहाँ तो चाय भी अपने आप बनानी पड़ती है और घर में सुबह होते ही माँ उसे चाय लाकर बिस्तर पर ही दे देती है तथा नाश्ता भी अपनी पसन्द का मिल जाता है। घर तो घर है इसमें अपनापन होता है।

(iii) आज मीनू के हृदय में विशेष उत्साह इसलिए था क्योंकि आज उसकी सहेली नीलिमा की बारात आनी थी। तभी उसके हृदय में एक पीड़ा-सी अनुभव हुई कि काश वह भी नीलिमा जैसी सुन्दर होती। तभी किसी ने उसे पुकारा कि नीलिमा ने उसे बुलाया है। नीलिमा का भाई अशोक उसे लेने आया था।

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(iv) माँ ने उसे साड़ी पहनने को कहा तो उसने माँ से कह दिया कि रात तक साड़ी सँभालना मुश्किल होगा, बारात आने से पहले वह साड़ी पहन लेगी। शीशे के सामने खड़े होकर मीनू ने सुन्दर ढंग से अपने केश सँभाले। इससे रूप और सलोना हो उठा। गेहुँआ रंग होने पर भी उसके तीखे नाक-नक्श उसकी सुन्दरता में चार-चाँद लगा रहे थे, परन्तु मीनू के हृदय में हीन-भावना घर कर गई थी, जिसके कारण वह अपने को सुन्दर नहीं समझती थी। फिर उसने दर्पण के सामने खड़े होकर अपने को हर ओर से देखा। उसे आभास हुआ कि वह बदसूरत तो नहीं है।

एकांकी संचय

Question 14.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए : ।
“आ गई मेरी गौरी ! (राजेश्वरी से) अरे, खड़ी-खड़ी मेरा मुँह क्या देख रही हो ? अन्दर से मिठाई का थाल लाओ।” राजेश्वरी उसी प्रकार खड़ी रहती है। उसकी दृष्टि द्वार की ओर है।
-‘बहू की विदा’
लेखक : विनोद रस्तोगी
(i) यहाँ वक्ता कौन है तथा वह किसका इन्तजार कर रहा है ? उसे लेने कौन गया था और वह कहाँ से आनी है ?
(ii) राजेश्वरी अन्दर क्यों नहीं गई ?
(iii) वक्ता का बेटा खाली हाथ क्यों लौट आया?
(iv) दहेज के बारे में वक्ता ने क्या कहा और राजेश्वरी का क्या विचार था ?
Answer:
(i) यहाँ वक्ता जीवनलाल है। वह अपनी बेटी (गौरी) का इन्तजार कर रहा है। बेटी को लेने उसका (जीवनलाल) बेटा गया था। वह अपनी ससुराल से मायके आनी थी।

(ii) जीवनलाल के बार-बार कहने पर भी राजेश्वरी अन्दर इसलिए नहीं गई क्योंकि उसने देख लिया था कि उसका बेटा रमेश अकेला ही लौटकर आया है उसके साथ गौरी नहीं है। वह दरवाजे की ओर देख रही थी।

(iii) जीवनलाल का बेटा रमेश अकेला ही लौटकर आ गया था क्योंकि गौरी के ससुराल वालों ने गौरी को उसके मायके नहीं भेजा। सावन के महीने में विवाहित लड़कियाँ अपने मायके में आती हैं और अपनी सहेलियों से मिल लेती हैं और सावन के गीत गाकर झूला झूलती हैं, गौरी की ससुराल वालों ने उसे इसलिए नहीं भेजा था क्योंकि उसके पिता ने उसकी शादी में दहेज पूरा नहीं दिया था।

(iv) दहेज कम देने की बात सुनकर जीवनलाल ने कहा कि उन्होंने तो जीवन भर की कमाई दे दी और उनकी नजर में दहेज पूरा नहीं दिया, कितने लोभी हैं वे। राजेश्वरी यद्यपि दहेज के खिलाफ है, लेकिन वह अपने पति जीवनलाल को सुनाने के लिए कहती है कि बेटी वाले चाहे अपना घर-द्वार बेचकर दे दें पर बेटे वालों की नाक-भौं सिकुड़ी ही रहती है।

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Question 15.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“यह आप क्या कहते हैं महाराणा ? आपके विवेक पर सबको विश्वास है। मैं आपसे निवेदन करने आई हूँ कि यद्यपि समय के फेर से आप हाड़ा शक्ति और साधनों में मेवाड़ के उन्नत राज्य से छोटे हैं, फिर भी वे वीर हैं।”
—’मातृभूमि का मान’
लेखक हरिकृष्ण ‘प्रेमी’
(i) वक्ता किसके बारे में बात कर रहा है ? उसने महाराणा को क्या सलाह दी ?
(ii) महाराणा ने उससे ऐसा क्यों कहा कि वह देर से आई ?
(iii) सेनापति ने उसे क्या कहकर बात साधी ?
(iv) वक्ता ने फिर सेनापति को क्या राय दी ?
Answer:
(i) यहाँ वक्ता चारणी है। वह बूंदी राज्य के बारे में और वहाँ के हाड़ा वीरों के बारे में बात कर रही है। मेवाड़ राज्य से छोटे होते हुए भी हाड़ा वंश के राजपूत बड़े वीर हैं। उसने महाराणा को उचित सलाह दी कि वे मेवाड़ को विपत्ति के दिनों में सहायता देते रहे हैं। यदि उनसे कोई धृष्टता बन पड़ी हो, तो महाराणा उसे भूल जायें और राजपूत शक्तियों में स्नेह का सम्बन्ध बना रहने दें।

(ii) महाराणा लाखा को उसकी यह बात यद्यपि उचित लगी, लेकिन अब देर हो चुकी थी। बूंदी के शासक राव हेमू के इस उत्तर को सुनकर कि बूंदी राज्य स्वतन्त्र है और स्वतन्त्र ही रहेगा, किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करेगा, महाराणा को बहुत दुःख हुआ और वे बँदी को जीतने की प्रतिज्ञा कर चुके थे।

(iii) चारणी की राय जो समयानुसार उचित थी, सेनापति अभयसिंह को भी अच्छी लगी, लेकिन उन्होंने उसे बताया कि महाराणा ने यह प्रतिज्ञा ले ली है कि जब तक वे बूंदी राज्य पर आक्रमण करके उसे जीत नहीं लेंगे तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। यह प्रतिज्ञा उनके प्राणों का संकट बन गई है क्योंकि बूंदी को जीतना कोई आसान काम नहीं है।

(iv) चारणी बड़ी चतुर और संस्कारित सेविका है। सभी उसका यथोचित आदर करते हैं। महाराणा भी उसकी बात मानते हैं। यह जानकर कि महाराणा के प्राण संकट में हैं, उसने राय दी कि इसका एक ही उपाय है कि यहीं पर बूंदी का एक नकली दुर्ग बनाया जाये। महाराणा उसे विध्वंस करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लें। यदि महाराणा को उसका यह प्रस्ताव स्वीकार हो तो ऐसा करें।

Question 16.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow: [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“अतुल ! इसीलिए मैं कहती हूँ, तू एक बार मुझे उनके पास ले चल। वह निर्मम है, पर मैं माँ हूँ। मुझे निर्मम नहीं होना चाहिए। मैं उसके पास चलूंगी।”
—’संस्कार और भावना’
लेखक-विष्णु प्रभाकर

(i) माँ का हृदय परिवर्तन कैसे हुआ ?
(ii) अतुल ने चलने से पहले माँ से क्या कहा ?
(iii) माँ की कौन-सी बात सुनकर अतुल प्रसन्न हो गया ?
(iv) अन्त में उमा ने क्या कहा?
Answer:
(i) माँ अपने बड़े बेटे अविनाश से नाराज थी, क्योंकि उसने एक विजातीय बंगाली लड़की से शादी कर ली थी। माँ को यह स्वीकार नहीं था इसलिए अविनाश उनसे अलग रहता था। माँ को पता चला था कि अविनाश बीमार रहा था और उसकी बहू ने लगन और मेहनत से उसे बचा लिया था। अब अविनाश की बहू बीमार पड़ी है और अविनाश उसे बचा नहीं पायेगा। यह बात जानकर माँ का हृदय परिवर्तन हुआ और उसका मातृत्व तड़प उठा अपने बड़े बेटे और बहू के लिए और कहने लगी कि वह अविनाश की बहू को अपने घर ले आयेगी और उसे बचा लेगी।

(ii) अतुल ने अपने बड़े भाई के पास चलने से पहले अपनी माँ से कहा कि यदि वह उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं ला सकी तो वहाँ जाने से कोई लाभ नहीं होगा। माँ के स्वीकारात्मक संकेत से अतुल को प्रसन्नता हुई और उसने तुरन्त ताँगा लाने को रामसिंह से कहा।

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(iii) माँ द्वारा मन से अविनाश को और उसकी बहू को अपनाने की बात जानकर अतुल प्रसन्न हो गया। अतुल और उसकी बहू उमा तो पहले से ही चाहते थे कि अविनाश और माँ के बिगड़े हुए सम्बन्ध फिर से ठीक हो जायें और माँ अविनाश को अपने घर में बुलाकर और मनमुटाव भुलाकर अपना लें।

(iv) इस समय वातावरण में शान्ति और स्निग्धता है। सहसा उमा को पुस्तक के वाक्य याद आते हैं और धीरे-धीरे फुसफुसाती है “जिन बातों का हम प्राण देकर भी विरोध करने को तैयार रहते हैं एक समय आता है, जब चाहे किसी कारण से भी हो, हम उन्हीं बातों को स्वीकार कर लेते हैं।”

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