ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 2 with Answers

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 2 with Answers

Section-A [40 Marks]

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics :
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए :
(i) ‘सदाचार के समक्ष धन-सम्पत्ति एवं ऐश्वर्य सब तुच्छ हैं।’ इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
(ii) त्योहारों का व्यापारीकरण उनके वास्तविक महत्त्व को समाप्त कर देता है। स्पष्ट कीजिए।
(iii) परिवार बालक की प्रथम पाठशाला स्पष्ट कीजिए।
(iv) ‘बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख’—इस उक्ति पर आधारित एक मौलिक कहानी लिखिए।
(v) नीचे दिये गये चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र के आधार बनाकर उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए।
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Answer:
(i) सदाचार सच्चरित्रता या सदाचार ही वस्तुतः

जीवन का सार है। संसार की बड़ी से बड़ी सम्पत्ति, महान् साम्राज्य, कोई भी लौकिक वस्तु चाहे वह कितनी ही मूल्यवान हो, चरित्र के सामने उसका कोई भी मूल्य नहीं। धन से श्रेष्ठ स्वास्थ्य है, स्वास्थ्य से भी श्रेष्ठ चरित्र है। अंग्रेजी में एक कहावत है-“धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और यदि चरित्र गया तो सब कुछ ही नष्ट हो गया।” सच्चरित्रता के सामने धन और स्वास्थ्य का कोई भी मूल्य नहीं है। चरित्रवान व्यक्ति हर स्थान पर समादरित होता है।

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सदाचार अनेक गुणों का मिला-जुला रूप है। सत्य आचरण, श्रेष्ठ व्यवहार, अच्छा चाल-चलन, इन्द्रिय संयम, उदारता, पवित्रता, नम्रता, प्रेम और ईमानदारी इसके अन्तर्गत आते हैं, जिसका अर्थ है-श्रेष्ठ आचरण। मन, वचन और कर्म से सदाचार का पालन करने वाला व्यक्ति महात्मा होता है और हर स्थान पर पूज्य होता है। विद्वान् की विद्वत्ता, शक्तिशाली की शक्ति, धनी का धन चरित्र से ही शोभित होते हैं। बिना सच्चरित्रता के बल, विद्या और धन का कोई मूल्य नहीं। दुराचारी ब्राह्मण से सदाचारी शूद्र अच्छा होता है। सदाचारी व्यक्ति को इसके लिए कड़ी साधना करनी पड़ती है। विनय ही मनुष्यों का आभूषण है। विनयशील मनुष्य सभी का प्रिय होता है और विनय सदाचार से ही उत्पन्न होती है।

सदाचार से विनय के अलावा अन्य गुण जैसे—धैर्य, शिष्टाचार, संयम, आत्मविश्वास तथा निर्भीकता का विकास होता है। हमारे देश की प्रतिष्ठा सदाचार के कारण ही है। भारत में अनेक सदाचारी पुरुषों ने जन्म लिया है जैसे—पुरुषोत्तम राम, आद्य शंकराचार्य, महाराणा प्रताप, शिवाजी, स्वामी विवेकानन्द आदि। इन विभूतियों ने अपने चरित्र से इतिहास के पृष्ठों को उज्ज्वल किया है। इसी प्रकार चैतन्य महाप्रभु, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी दयानन्द अपनी सच्चरित्रता के बल पर ही समाज का उद्धार कर सके। जो भी पुरुष महान् हुए हैं वे संयम और सदाचार से ही उन्नति को प्राप्त हुए हैं। सदाचार ही महिमा शास्त्रों में भी वर्णित है जैसे—

आचाराल्लभते ह्यायु राचाराल्लभते श्रियम्।
आचाराल्लभते कीर्तिम् आचारः परमं धनम्॥

अर्थात् सदाचार से आयु बढ़ती है, सदाचार से लक्ष्मी बढ़ती है, सदाचार से कीर्ति बढ़ती है और सदाचार ही सबसे बड़ा धन है। इसलिए सदाचार की सदा रक्षा करनी चाहिए। सदाचार के बिना मनुष्य के पास कुछ नहीं बचता। सदाचार से ही सम्मान प्राप्त होता है। सदाचारी संन्यासी सदाचारी मनुष्य और सदाचारी विद्यार्थी हर स्थान पर आदरणीय होता है। सदाचार से ही अधार्मिकता मिटती है। देश में जो आज संकट की स्थिति बनी हुई है वह सदाचार के अभाव में ही है। लोग सदाचार का पाठ भूल गए हैं।

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भारतवासी दिव्य आर्यों की सन्तान हैं। उनका लक्ष्य देश, धर्म और समाज को उन्नत करना था। बड़े-बड़े ऋषियों ने समाज को सद्गुणों से अवगत कराया और मनुष्यों के चरित्र को ऊपर उठाया। आज सभी की यह अभिलाषा है कि हमारा देश उन्नति के पथ पर अग्रसर होता रहे। यह तभी सम्भव है जब सभी भारतवासी सच्चरित्र बनें, सहृदयता लाएँ, समानभाव से एक दूसरे से मिलें और धार्मिक सद्भाव रखें। हम ऐसे कार्य करें कि देश को हम पर गर्व हो।

अतः यह कहना उचित है कि सदाचार के समक्ष धन-सम्पत्ति एवं ऐश्वर्य सब तुच्छ हैं।

(ii) त्योहारों का व्यापारीकरण उनके वास्तविक महत्त्व को समाप्त कर देता है।

त्योहार वह अवसर है जब हम उसे मनाकर हार्दिक प्रसन्नता का प्रदर्शन करते हैं। सभी लोग एक-दूसरे से मिलकर उल्लसित होते हैं। त्योहार नीरस जीवन को भी सरस बनाते हैं और समाज में शान्ति और खुशी लाते हैं। समाज में मेल-जोल और प्रेम बढ़ता है। सभी धर्मों के लोग अपने-अपने रंगीन त्योहार बड़ी खुशी से मनाते हैं। भारत विभिन्न धर्मों, विभिन्न भाषाओं और मिली-जुली संस्कृति का देश है इसलिए भारतीय पूरे वर्ष में अनेक त्योहार मिल-जुलकर कर मनाते हैं, लेकिन आजकल देखा जाता है कि त्योहारों के व्यापारीकरण ने उनके वास्तविक महत्त्व को कम कर दिया है।

अब उन्हें किसी व्यापार के उच्चीकरण का साधन बना लिया गया है। भारतीय त्योहार अपने-अपने मतों के अनुसार भिन्नता रखते हैं। सभी धर्म के लोग अपना-अपना त्योहार मनाते हैं, लेकिन उनका आधुनिक रूप पहले के रूप से भिन्नता रखता है।

राष्ट्रीय त्योहार जैसे स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस और गांधी जयन्ती देश-भक्ति की भावना से मनाए जाने चाहिए। इन त्योहारों पर पूरे राष्ट्र में छुट्टी घोषित रहती है और सभी प्रदेशों की राजधानियों में बड़ी धूम-धाम और सज-धज के साथ मनाए जाते हैं, लेकिन कभीकभी देखने में आता है कि इन त्योहारों के संयोजक अपने निहित स्वार्थों के कारण आपस में लड़ने लगते हैं।

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भारत की राजधानी दिल्ली में सभी राष्ट्रीय त्योहार मुख्य रूप से बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। गणतन्त्र दिवस पर जो सेना के तीनों अंगों की परेड, प्रदेशों की झाँकियाँ और नई-नई मशीनों का प्रदर्शन हमें भारत के प्रति गौरवान्वित करता है, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि पारितोषिक उसी को मिलते हैं जिसकी सरकार में पहुँच है। व्यापारिक कम्पनियाँ अपने माल का प्रदर्शन करती हैं।

विज्ञापन का बोलबाला शत-प्रतिशत बना रहता है। योग्यता के आधार पर पारितोषिक या पदक दिये जाने चाहिए। अतः हम अनुभव करते हैं कि राष्ट्रीय त्योहारों में भी व्यापारीकरण हावी होता जा रहा है। अब आते हैं धार्मिक त्योहार । इन त्योहारों का धार्मिक महत्त्व समाप्त होकर व्यापारीकरण के अन्दर ‘पियो, प्रसन्न रहो और जिओ’ का सिद्धान्त अपना लिया है। दीपावली का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है।

रात को लक्ष्मी की पूजा की जाती है। बाजार और घर रोशनी से सजाया जाता है। धार्मिक महत्त्व को भूलकर लोग पटाखों, शराब और जुआ खेलने में मस्त रहते हैं। पूरे भारत में अरबों के पटाखे जला दिये जाते हैं जो वातावरण को प्रदूषित करते हैं। त्योहारों पर व्यापारियों की खूब चाँदी होती है। सभी लोग त्योहारों पर अधिक खर्च करते हैं, नये कपड़े बनवाते हैं, घरों को रोशनी से सजाते हैं आदि आदि।

अधिक रोशनी करने से बिजली की खपत अधिक होती है। संगीत के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इससे लोग देर रात तक जागते हैं। पटाखों के चलने से ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण बढ़ता है, लेकिन पटाखों के व्यापारियों को आर्थिक लाभ होता है। दीपावली पर अधिक खर्च करने के बजाय गरीबों की मदद करनी चाहिए।

इसी प्रकार होली भी रंगों का त्योहार हो गया है। रंगों की बिक्री होली के अवसर पर अधिक होती है। इस त्योहार में भी शराब पीकर दंगा करने की बुराई घुस गई है। ईद पर भी कम खुशी नहीं होती। यह त्योहार मुसलमान भाई बड़ी खुशी से और धूम-धाम से मनाते हैं। नये कपड़े बनते हैं, मीठी सिवइयाँ बनती हैं। यानी इस त्योहार पर भी खर्चा बहुत होता है। ऐसा लगता है कि सभी त्योहारों का व्यापारीकरण कर दिया गया।

त्योहारों पर दिखावा अधिक होने के कारण वे लोग भी अधिक खर्च करते हैं जो खर्च करने लायक नहीं हैं। इससे कर्जदार हो जाते हैं और उन्हें अपने खर्चे के बजट में कमी करनी पड़ती है। राखी के त्योहार पर भी बहनें भाइयों के राखी बाँधती हैं। एक साधारण राखी इस त्योहार का प्रतीक थी, लेकिन आजकल बहुत महँगी-महँगी राखियाँ बाजार में महीनों पहले से ही सजाकर रख दी जाती हैं। दिखावे के लिहाज से महँगी राखी खरीदी जाती है।

जैसा कि हम जानते हैं कि त्योहार भारतीय संस्कृति से अटूट सम्बन्ध रखते हैं। ये हमारी दैनिक जिन्दगी में थोड़ा-सा बदलाव लाते हैं। इन त्योहारों के कारण ही हम एक-दूसरे से प्रेम से मिलते हैं। इनसे धार्मिक सद्भाव बढ़ता है और राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है। इन त्योहारों के धार्मिक महत्त्व को समझकर हम अपने जीवन में पवित्रता लाएँ, आपसी प्रेम-भाव बढ़ाएँ और दिखावे या व्यापारीकरण की ओर न बढ़ें।

इन त्योहारों से भाईचारा बढ़े और हम ऐसा प्रयास करें कि धार्मिक-सद्भाव बढ़ता चला जाय। हमें चाहिए कि हम लोगों को त्योहारों का वास्तविक महत्त्व समझाएँ। एक-दूसरे में प्रेम बढ़े और पारस्परिक मन-मुटाव कम हो। यह तभी होगा जब हम त्योहारों के वास्तविक महत्त्व को समझेंगे।

(iii) परिवार बालक की प्रथम पाठशाला

इस सम्पूर्ण विश्व में जितनी भी सजीव वस्तुएँ हैं, उन सबका कभी न कभी जन्म हुआ होगा। मनुष्य भगवान के घर से सभी कार्यों में पारंगत होकर नहीं आता, बल्कि वह एक ऐसे अबोध बालक के रूप में जन्म लेता है, जो दुनिया की जद्दोजहद से दूर अपने भोलेपन के विशाल सागर में डूबा रहता है। उसे दुनिया से कोई मतलब नहीं होता, परन्तु दुनिया को उससे मतलब होता है। एक नन्हा-सा बालक हमारे इस समाज की कुरीतियों से परे होता है, परन्तु, जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है, उसे उसके माता-पिता समाज के अनुरूप ढालने के लिए शिक्षा देते हैं।
एक परिवार में जब किसी शिशु का जन्म होता है, तो हर्षोल्लास का वातावरण बन जाता है।

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यह अपार हर्ष अनेक कारणों से होता है। जैसे कि लोगों को लगता है कि उनके बीच एक नया साथी आया है, उनके परिवार में एक नया सदस्य आया है। विवाह उपरान्त एक स्त्री का स्वप्न या दूसरे शब्दों में उसकी कामना केवल माँ बनने की होती है और माँ बनने के साथ-साथ वह एक सम्पूर्ण नारी बन जाती है। अपने बच्चे को देखकर उसकी ममता बढ़-चढ़कर सामने आती है। उसमें मातृत्व का एक अनोखा संचार हो जाता है। एक निर्दयी से निर्दयी औरत भी माँ बनने के बाद एक दयालु और भावुक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो जाती है।

माँ बनने के बाद वह अपना सारा ध्यान व समय अपने अबोध शिशु पर लगा देती है। उसकी हर संकट से रक्षा करती है और उस दिन का बेसब्री से इन्तजार करने लगती है जिस दिन वह नन्हा प्राणी उसे माँ कहे। धीरे-धीरे यह दिन भी आ जाता है कि बच्चा यह सम्बोधन करता है। अब उसके परिवारीजन उसे आगे बोलना सिखाते हैं। यहीं से उसका शैक्षिक जीवन आरम्भ होता है। उसे अपने सभी रिश्तेदारों का सम्बोधन कराया जाता है।

ढाई-तीन साल का होते-होते वह अबोध बालक सबको पहचानने लगता है और उसकी किलकारियों से घर आँगन झूम उठता है। धीरे-धीरे बच्चा शरारती होने लगता है। शुरू में तो छोटी-मोटी शरारतें सबको अच्छी लगती हैं, लेकिन जब उसकी शरारतें बढ़ती जाती हैं, तब उसके माता-पिता उसके गुरु बनकर उसे समझाने लगते हैं। उसमें नवीन आदर्शों का समावेश कराते हैं और समाज में उठना-बैठना सिखाते हैं, उसे अच्छे और बुरे का अन्तर समझाया जाता है।

उसे गलत काम करने पर रोका जाता है, परन्तु सही काम करने को प्रोत्साहित किया जाता है। अगर बच्चा यह सब बातें गृहण कर लेता है तो हम कहते हैं कि माता-पिता ने अपने बच्चों की मजबूत नींव डाली बच्चे तो गीली मिट्टी की तरह होते हैं और उनके माता-पिता कुम्हार। जैसे कुम्हार मिट्टी को ढालेगा वैसा ही बर्तन बनेगा। अगर कुम्हार बर्तन को ठीक से नहीं बनाएगा तो बर्तन खराब हो जाएगा।

ठीक इसी प्रकार से अनेक माता-पिता अपने बच्चे का सही तरीके से पालन-पोषण नहीं करते, उनका ध्यान नहीं रखते जिससे वह बिगड़ जाता है। बहुत से परिवारों में यह भी पाया जाता है कि बच्चे को अपने माता-पिता द्वारा डाँटा जाना दादा-दादी को अच्छा नहीं लगता है और वह अपने लाड़-प्यार से उसे बिगाड़ देते हैं। यद्यपि प्यार और स्नेह के जल से ही बालक रूपी पौधे को सींचना चाहिए, लेकिन हर चीज की अति बुरी होती है।

चार वर्ष की आयु का होते-होते बालक को हिन्दी व अंग्रेजी के वर्ण सिखाये जाते हैं। उसको गिनतियाँ भी सिखाई जाती हैं, परन्तु यह सब तो माता-पिता तभी सिखा सकते हैं, जब वह स्वयं शिक्षित हों। बच्चों में अच्छे संस्कार डालने के लिए परिवारीजनों का स्वयं सांस्कारिक होना अनिवार्य है, परन्तु चूँकि हमारे देश में अत्यधिक गरीबी और निरक्षरता है इसलिए चाहते हुए भी वह अपने बच्चों को कुछ अच्छा नहीं सिखा पाते हैं, क्योंकि उनका पूरा समय अपनी आजीविका कमाने में निकल जाता है। वह हमारे देश के भावी कर्णधारों का गुरु बनने के सौभाग्य से वंचित रह जाते हैं और न ही बालक की प्रथम पाठशाला उसका परिवार बनता है।

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निरक्षर लोग बच्चों को पाठशाला भेजने का सपना तो देखते हैं, परन्तु यह नहीं समझ पाते कि पाठशाला भेजने से पहले भी बालक को कुछ पढ़ाया जाता है, उसे कुछ सिखाया जाता है। बच्चों को सिखाने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी गुरुजनों की नहीं होती, वह तो सिर्फ किताबी ज्ञान देते हैं, परन्तु अच्छे संस्कारों का श्रेष्ठ ज्ञान देने वाले उसके माता-पिता ही होते हैं, उसके परिवारीजन ही होते हैं, जो पाठशाला जाने से पहले ही उसमें अधिकांश गुणों का समावेश कर देते हैं, इसलिए हम कह सकते हैं कि परिवार ही बालक की प्रथम पाठशाला होती है।

(iv) बिन माँगे मोती मिले माँग मिले न भीख।

यह कहावत सत्य है कि “बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख”। माँगने से सम्मान और प्रेम समाप्त हो जाता है। निम्नलिखित दोहे में बखूबी इस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया गया है:

“आव गई आदर गया नैननि गया सनेह।
ये तीनों तब ही गए जबहिं कहा कछु देइ॥”

अत: माँगने से तो जहाँ तक हो बचना ही चाहिए और अपने पुरुषार्थ पर भरोसा कर कर्म करना चाहिए। हमारे देश में भिक्षावृत्ति बहुत बढ़ गई है। अपाहिज को तो छोड़ दीजिए, हट्टे-कट्टे लोग भीख माँग कर अपना आलसी जीवन बिताते हैं। ऐसे लोगों को भीख देने से हम भिक्षावृत्ति को प्रोत्साहित करते हैं। सरकार द्वारा भिखारी वर्ग के लिए कोई ऐसी योजना चलानी चाहिए जिससे कि उन्हें कुछ रोजगार मिले और भिक्षावृत्ति छूट जाय।

इसी कहावत पर मुझे ध्यान आ रहा है मेरे गाँव के मक्खन सिंह का। वह निहायत ही गरीब था। परिवार में उसकी पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चे थे। कहने को तो उसके पास एक खेत था, लेकिन काम न करने के कारण वह बंजर पड़ा था। वह रोज किसी न किसी से पैसे उधार ले लेता और अपना खर्च चलाता।

वह उधार के नाम पर माँगता, लेकिन गाँव के लोग उसे खैरात समझ कर दे देते। कुछ दिन बाद लोगों ने उसे देना बन्द कर दिया। गाँव के लोग कुछ न कुछ बहाना बनाकर उससे पीछा छुड़ा लेते। भाग्य की बात एक दिन एक साहूकार को रात हो गई और वह मक्खन सिंह के घर पर रुक गया। मक्खन सिंह गरीब तो था, लेकिन उसकी दयानतदारी में कमी न थी।

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उसकी पत्नी ने पड़ोस से खाने का सामान उधार लेकर उस साहूकार के लिए भोजन बनाया और एक कमरे में उसके सोने का प्रबन्ध कर दिया। सुबह होते ही वह सेठ जाने को तैयार हुआ। वह मक्खन सिंह की आवभगत से प्रसन्न हुआ और उसकी ईमानदारी के लिए उसे पाँच सोने की मुहरें दे गया।

मुहरें प्राप्त कर मक्खन सिंह का परिवार बहुत खुश हुआ। उसने उन्हें बेचकर अपने घर पर ही एक छोटी-सी दुकान खोल ली। वह दुकान चल निकली और मक्खन सिंह के वारे-न्यारे होने लगे। अब उसने अपने खेत को भी कराना शुरू कर दिया। अब उसके दिन खुशहाली में बीतने लगे।

लोगों को उसके दिन फिरने पर आश्चर्य हुआ। बात ही बात में लोगों ने उसका रहस्य जान लिया कि उस साहूकार से उसे कुछ धन प्राप्त हुआ था जिसे उसने कारोबार करने में लगा दिया। ईश्वर की कृपा हुई और मक्खन सिंह के भाग्य ने पलटा खाया कि उसे बिन माँगे मोती मिल गए।

(v) चित्र अध्ययन

हमारे देश में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में भी वनों का विशेष महत्व है। वृक्षारोपण की आवश्यकता हमारे देश में आदिकाल से ही रही है और आज भी इसकी आवश्यकता ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। आज भी वस्तु-स्थिति उससे बहुत अधिक भिन्न नहीं है। स्थितियों में समय के अनुसार कुछ परिवर्तन तो अवश्य माना जा सकती है। आज भी वस्तु-स्थिति उससे बहुत अधिक भिन्न नहीं है। स्थितियों में समय के अनुसार कुछ परिवर्तन तो अवश्य माना जा सकता है, पर जो वस्तु जहाँ की है, वह वास्तविक शोभा और जीवन-शक्ति वहीं से प्राप्त कर सकती है।

इस कारण वन-संरक्षण की आवश्यकता आज भी पहले के तरह ही ज्यों-की त्यों बनी हुई है। आज जिस प्रकार की नवीन परिस्थितियाँ बन गई हैं, जिस तेजी से नए-नए कल-कारखानों उद्योग-धन्धों की स्थापना हो रही है। नए-नए रसायन, गैसें, अणु, उद्जन, कोर्बोल्ट आदि बमों का निर्माण और निरन्तर परीक्षण जारी है, जैविक शस्त्रास्त्र बनाए जा रहे हैं।

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इन सभी के धुएँ, गैसों और कचरे आदि के निरन्तर निस्सरण से मानव तो क्या सभी तरह के जीव-जन्तुओं का पर्यावरण अत्यधिक प्रदूषित हो गया है। केवल वन ही हैं, जो इस सारे विषैले और मारक प्रभाव से प्राणी जगत् की रक्षा कर सकते हैं। उन्हीं के रहते समय पर उचित मात्रा में वर्षा होकर धरती की हरियाली बनी रह सकती है। हमारी सिंचाई और पेय जल की समस्या का समाधान भी वन-संरक्षण से ही सम्भव हो सकता है।

वन हैं तो नदियाँ भी अपने भीतर जल की अमृत धारा सँजो कर प्रवाहित कर रही है। जिस दिन वन नहीं रह जाएँगे, सारी धरती वीरान, बंजर और रेगिस्तान बन जाएगी। यदि आज की तरह ही निहित स्वार्थों की पूर्ति, अपनी शानो-शौकत दिखाने के लिए वनों का कटाव होता रहा, तो धीरे-धीरे अन्य सभी का भी सुनिश्चित अन्त हो जाएगा। वृक्षारोपण की आवश्यकता इसीलिए होती है कि वृक्ष सुरक्षित रहें।

वनों के अभाव में प्रकृति का संतुलन बिगड़ जायेगा। प्रकृति का संतुलन जब बिगड़ जायेगा तब सम्पूर्ण वातावरण इतना दूषित और अशुद्ध हो जायेगा कि हम न ठीक से साँस ले सकेंगे और न ठीक से अन्न-जल ही ग्रहण कर पाएंगे। इस प्रकार से वृक्षारोपण की आवश्यकता हमें सम्पूर्ण रूप से प्रभावित करती हुई हमारे जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है। वृक्षारोपण की आवश्यकता की पूर्ति होने से हमारे जीवन और प्रकृति का परस्पर संतुलन क्रम बना रहता है।

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Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the topics given below:
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए :
(i) अपने शहर की सड़कों की दुरावस्था की शिकायत करते हुए समाचार-पत्र के सम्पादक को एक पत्र लिखिए।
Answer:
सेवा में,
श्रीमान् सम्पादक महोदय,
दैनिक जागरण,
आगरा
विषय : शहर की सड़कों की दुरावस्था हेतु शिकायत-पत्र
मान्यवर,
आपके दैनिक समाचार-पत्र के माध्यम से सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारियों का ध्यान अपने शहर की सड़कों की दुरावस्था की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। आशा है कि आप इस पत्र को प्रकाशित कर अनुगृहीत करेंगे। आगरा एक ऐतिहासिक नगर है। बाहर इसे ‘ताज की नगरी’ कहते हैं। नाम से लगता है कि यह बड़ी सुन्दर नगरी है और व्यवस्थित, चौड़े और सुन्दर राजमार्ग हैं पर स्थिति इसके विपरीत ही है।

सड़कें छोटी और अव्यवस्थित हैं। जगह-जगह गड्ढे हो रहे हैं फलस्वरूप आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। सड़क एक बार बनकर अगले दस वर्ष तक मरम्मत की राह देखती रहती है। सड़कों का रख-रखाव नहीं होता है। स्थान-स्थान पर नल निकालने के लिये सड़कें खोद दी गई हैं उनकी पुनः मरम्मत नहीं हुई है। अन्य सड़कों की तो बात छोड़िए सिविल लाइन्स और माल रोड तक की सड़कें गड्ढों से भरी हुई हैं। सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था नहीं है।

आशा है कि सम्बन्धित अधिकारी यथा स्थान सड़कों की मरम्मत करायेंगे और उन पर बिजली की रोशनी की व्यवस्था करेंगे ताकि आए दिन की दुर्घटनाओं से बचा जा सके।
भवदीय
नवल शाह
48, कमला नगर, आगरा।
दिनांक : 15.3.20xx

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(ii) मित्र को पत्र लिखकर उसे वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम आने के लिए बधाई दीजिए।
Answer:
6, महात्मा गाँधी मार्ग,
आगरा।
दिनांक-20-3-20XX
प्रिय मित्र रोहित,
कल तुम्हारा प्यार-भरा पत्र प्राप्त हुआ। मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि तुम अपने विद्यालय में मनाए गए सांस्कृतिक सप्ताह में हिन्दी वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम आए हो। मित्र तुम इसके लिए बधाई के पात्र हो क्योंकि वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय ‘हिन्दी राष्ट्रभाषा के रूप में देश के लिए हितकर है’ एक गम्भीर विषय है। तुम्हारा विपक्ष में बोलना और भी मुश्किल विषय है। विपक्ष में बोलते हुए प्रथम आना वास्तव में प्रशंसनीय है।
हमें इस प्रकार की प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहना चाहिए। इससे ज्ञानार्जन तो होता ही है साथ-साथ भाषण देने की कला भी आती है। मैं भी इस तरह की प्रतियोगिताओं में भाग लिया करूँगा। शेष कुशल है। तुम्हारे माता-पिता को मेरा चरण स्पर्श व छोटे भाई को प्यार।
तुम्हारा मित्र,
गौरव सिंह
कक्षा 10

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Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow using your own language as far as possible :
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िये और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपकी भाषा में होने चाहिए।
विदिशा नामक राज्य में एक सुरम्य वन था। उस वन का प्राकृतिक वैभव तथा असाधारण सौन्दर्य देखने के योग्य था। उसकी प्राकृतिक छटा को देखकर ऐसा लगता था मानो प्रकृति ने उस वन को अपूर्व सौन्दर्य, असीम सुख और अनुपम शान्ति का वरदान दिया हुआ हो।

उस वन में एक दयालु एवं परोपकारी सन्त का आश्रम था। आश्रम में एक बहुत बड़ा सरोवर था। वन के हिंसक और अहिंसक सभी पशु-पक्षी उस आश्रम में विश्राम करते थे। जंगल के हिंसक जीव-जन्तु भी सन्त की संगति में अहिंसक की तरह आचरण करते थे तथा पारस्परिक शत्रुता को भूलकर उस सरोवर में एक साथ एक ही घाट पर पानी पीते थे। राजा के आदेश से वहाँ शिकार करने पर कठोर प्रतिबन्ध था।

एक दिन राजा का एकमात्र पुत्र युवराज शिकार की तलाश में आश्रम में आ पहुँचा। वहाँ उसने एक मृग शावक पर अपना निशाना साधा। यह दृश्य देखकर सन्त बोला—’ठहरो युवराज ! यह निर्दोष, मूक मृग शावक इस आश्रम का निवासी है। यह निर्भीक होकर यहाँ विचरण करता है। आपके पिताजी की ओर से यहाँ शिकार करने पर प्रतिबन्ध है। आप उनके आदेश का उल्लंघन मत कीजिए।’
युवराज को सन्त की सलाह बुरी लगी। उसने क्रोध में आकर कहा—’मुझे आखेट करने से रोकने वाले तुम कौन हो ?’

सन्त ने विनम्र भाव से उत्तर दिया ‘यह राज्य आपका है। आप इसके स्वामी हैं। मैं तो आपको आपके पिता के आदेश का स्मरण करा रहा हूँ’, किन्तु सन्त की बात को अनसुना कर युवराज मृग शावक पर निशाना साधने लगा। इस पर सन्त युवराज के बाण के सामने खड़े होकर कहने लगे—’नहीं, युवराज ! मुझे मारने के बाद ही मृग शावक को अपना निशाना बना सकते हो।’ सन्त की बातों ने आग में घी का काम किया। युवराज क्रोध में आग बबूला हो उठा और उसने सन्त को अपने बाण का निशाना बना डाला।

सन्त की मृत्यु से सारा राज्य शोक-सागर में डूब गया। राजा ने युवराज को बन्दी बनाकर सामने लाने को कहा। बन्दी युवराज से राजा ने पूछा—’तुमने सन्त की हत्या की ?’ ‘वह उद्दण्ड था, मेरे शिकार में बाधा डाल रहा था।’ युवराज ने उत्तर दिया। राजा ने कठोर स्वर में पूछा-‘तुमने सन्त की हत्या की या नहीं ?’ युवराज ने उत्तर दिया—’हाँ, मैंने ही उसकी हत्या की।’

युवराज का उत्तर सुनते ही महाराज का हाथ तलवार पर गया। यह देखकर दरबारी हाथ जोड़कर बोले-‘राजन् ! युवराज प्रजा की आँखों का तारा है। सिंहासन का एकमात्र अधिकारी है इसलिए इन्हें क्षमा कर दें।’ राजा ने कहा—’जो व्यक्ति एक त्यागी सन्त महात्मा का हत्यारा हो सकता है, वह सिंहासन का उत्तराधिकारी कदापि नहीं हो सकता। कौन कहता है, यह मेरा एकमात्र उत्तराधिकारी है ? राज्य का हर सपूत—जिससे राज्य का सिर ऊँचा होता है, सिंहासन का उत्तराधिकारी होता है। न्याय सबके लिए समान है। मेरे न्याय में पुत्र-मोह आड़े नहीं आ सकता। युवराज ने हमारे कुल पर धब्बा लगाया है। वह हत्यारा है और हत्यारे की सजा मौत होती है।’ और देखते ही देखते राजा की तलवार से युवराज का सिर धड़ से अलग हो गया।
(i) सन्त का आश्रम कहाँ था ? उस आश्रम की क्या विशेषताएँ थीं?
(ii) युवराज का सन्त के आश्रम में आने का क्या प्रयोजन था ? आश्रम में आकर उसने क्या किया ? सन्त ने उसे क्या कहा?
(iii) युवराज ने सन्त को क्यों मार डाला? युवराज का यह करना उचित था अथवा अनुचित, क्यों?
(iv) सन्त की मृत्यु से राज्य पर क्या प्रभाव हुआ ? राजा ने युवराज को बन्दी बना कर क्या प्रश्न किए ? युवराज ने प्रश्नों के क्या उत्तर दिए ?
(v) युवराज के उत्तर को सुनकर राजा क्या करना चाहता था ? दरबारियों ने राजा से क्या निवेदन किया ? राजा ने दरबारियों से क्या कहा तथा अन्त में क्या न्याय किया ?
Answer:
(i) विदिशा नामक राज्य में एक सुरम्य वन था। उस वन में एक दयालु एवं परोपकारी सन्त का आश्रम था। उस आश्रम में एक बहुत बड़ा सरोवर था। वन के हिंसक और अहिंसक सभी पशु-पक्षी उस आश्रम में विश्राम करते थे। उस आश्रम की प्राकृतिक छटा अत्यन्त सुन्दर थी।

(ii) विदिशा राज्य का राजकुमार शिकार खेलने के लिए आश्रम में आया था। उसने एक मृग शावक पर निशाना साधा। सन्त ने उससे कहा, ‘ठहरो युवराज यह निर्दोष मृग शावक इस आश्रम का निवासी है। आपके पिताजी की ओर से यहाँ शिकार करने पर प्रतिबन्ध है। आप उनके आदेश का उल्लंघन मत कीजिए।’

(iii) जब युवराज मृग शावक को तीर मारने वाला था तो सन्त उसके तीर के सामने आकर खड़ा हो गया और युवराज से कहा कि तुम्हें मृग शावक को मारने से पहले मुझे मारना पड़ेगा। युवराज को क्रोध आ गया और उसने वह तीर सन्त को मार दिया। निर्दोष सन्त की हत्या करना अनुचित था। सन्त के आश्रम में राजा की आज्ञा से पशु-पक्षियों का शिकार करना वर्जित था। सन्त का यह कर्त्तव्य था कि वह किसी शिकारी को पशु-पक्षियों को मारने न दे, लेकिन युवराज के द्वारा सन्त का मारा जाना अनुचित और निन्दनीय था।

(iv) सन्त की मृत्यु से सारा राज्य शोक से भर गया। राजा ने युवराज को बन्दी बना लिया और उससे पूछा- क्या तुमने सन्त की हत्या की?’ युवराज ने उत्तर दिया-‘वह उद्दण्ड था, मेरे शिकार में बाधा डाल रहा था। राजा ने क्रोध में आकर फिर पूछा, ‘तुमने सन्त की हत्या की या नहीं ?’ तब युवराज ने उत्तर दिया, ‘हाँ, मैंने ही उसकी हत्या की।’

(v) युवराज का उत्तर सुनकर युवराज को दण्ड देने के लिए राजा का हाथ तलवार पर आ गया। यह देखकर दरबारी हाथ जोड़कर बोले कि युवराज प्रजा की आँखों का तारा है और सिंहासन का एकमात्र अधिकारी है। इन सब बातों को देखते हुए उसे क्षमा कर दें, लेकिन राजा को तो न्याय करना था। उसने तलवार लेकर युवराज का सिर धड़ से अलग कर दिया। राजा न्यायप्रिय था उसका पुत्र-मोह उसके न्याय के मार्ग में नहीं आया।

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 2 with Answers

Question 4.
Answer the following according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(i) निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाइए
राष्ट्र, नवीनता।
Answer:
राष्ट्र – राष्ट्रीय
नवीनता – नवीन

(ii) निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए
कहना, जीतना।
Answer:
कहना – कहावत
जीतना – जीत ।

(iii) निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए
निर्माण, उपलब्ध।
Answer:
निर्माण – ध्वस्त
उपलब्ध – अनुपलब्ध

(iv) निम्नलिखित अंशों में से किसी एक को अपने वाक्य में प्रयोग कीजिए
(क) आँचल में समेटे हैं,
(ख) हँसी-खुशी।
Answer:
(क) भारत का प्राचीन इतिहास विभिन्न संस्कृतियों को अपने आँचल में समेटे हुए है।
(ख) सब लोग हँसी-खुशी अपने-अपने घर चले गए।

(v) निम्नलिखित में से किसी एक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए–
बाग, भ्रम।
Answer:
बाग – बगीचा, उपवन
भ्रम – शक, संदेह

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(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए
(a) पहाड़ के गाँव कभी अपनी लोक-कलाओं के लिये जाने जाते थे। (‘अपनी’ से प्रारम्भ करें)
(b) परिवर्तन की इस लहर ने भवन-निर्माण शैली को भी प्रभावित किया है।
(भवन-निर्माण शैली भी “से प्रारम्भ करें)
(c) कुछ घरों में पशुओं के लिये नीचे व्यवस्था की जाती है। (पशुओं की से प्रारम्भ करें)
Answer:
(a) अपनी लोक-कलाओं के लिए कभी पहाड़ के गाँव में जाने जाते थे।
(b) भवन-निर्माण शैली भी इस परिवर्तन की लहर से प्रभावित हुई है।
(c) पशुओं के लिए कुछ घरों में नीचे व्यवस्था की जाती है। पशुओं की व्यवस्था घर के नीचे की जाती है।

Section-B
साहित्य सागर (संक्षिप्ति कहानियाँ)

Question 5.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
बालक कुछ ठहरा। मैं असमंजस में रहा। तब वह प्रेत गति से एक ओर बढ़ा और कुहरे में मिल गया। हम भी होटल की ओर बढ़े। हवा तीखी थी—हमारे कोटों को पार कर बदन में तीर-सी लगती थी।
— ‘अपना अपना भाग्य’ —
लेखक-जैनेन्द्र कुमार
(i) यहाँ किस लड़के के बारे में लेखक कह रहा है। प्रेत गति से क्या तात्पर्य है ?
(ii) लेखक असमंजस में क्यों है ?
(iii) ठण्डी हवा कैसी लग रही थी? वे दोनों कहाँ गये।
(iv) मित्र ने उस समय क्या कहा और लेखक ने क्या उत्तर दिया ? फिर उदास होकर मित्र ने क्या कहा?
Answer:
(i) नैनीताल की सर्द शाम का समय है। लेखक और उसका मित्र एक बैंच पर बैठे थे। जिस लड़के के बारे में कहा गया है वह एक पहाड़ी गरीब लड़का है जो अपने गाँव से भोजन के अभाव के कारण शहर भाग आया है और यहाँ किसी दुकान पर काम करता है। तीन गज की दूरी से उन्हें दिख पड़ा, एक लड़का सिर के बड़े-बड़े बाल खुजलाता चला आ रहा था। नंगे पैर, नंगे सिर, एक मैली-सी कमीज लटकाए है। प्रेत गति का मतलब होता है बहुत तीव्र गति से।

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(ii) लेखक असमंजस में यह सोचकर है कि इतनी अधिक ठण्डी में बिना कपड़ों के ये लड़का कैसे रात काटेगा? उनके प्रयास करने पर भी उनके होटल में ही ठहरे वकील साहब ने उसे काम पर नहीं रखा। यदि उसे नौकरी मिल जाती तो उसका कष्ट कम हो जाता।

(ii) ठण्डी हवा तीर की भाँति उनके बदन में लग रही थी। ऊनी कोट भी उस बर्फीली हवा से रक्षा नहीं कर पा रहे थे। वे दोनों वहाँ से उठकर अपने होटल की तरफ चल दिये।

(iv) ठण्डी से सिकुड़ते हुए मित्र ने लेखक से कहा कि भयानक शीत है और उस लड़के के पास बहुत कम कपड़े हैं। लेखक ने लापरवाही से कहा कि ‘यह संसार है’ हम क्या कर सकते हैं। पहले बिस्तर में गरम हो लें फिर किसी और की चिन्ता करेंगे। यह सुनकर मित्र उदास हो गया और कहा कि इसे लाचारी कहो, निठुराई कहो या बेहयाई।

Question 6.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। हालदार साहब भावुक हैं। इतनी सी बात पर उनकी आँखें भर आईं।”
— ‘नेताजी का चश्मा’ —
लेखक-स्वयं प्रकाश
(i) किसकी मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना चश्मा लगा था ?
(ii) यह चश्मा किसने लगाया होगा और क्यों ?
(iii) हालदार साहब यहाँ क्यों रुके ?
(iv) भावुक व्यक्ति कौन होता है उसके लक्षण बताइए?
Answer:
(i) सुभाष चन्द्र बोस अर्थात् नेताजी की मूर्ति पर सरकंडे से बना चश्मा लगा था।
(ii) यह चश्मा कस्बे के किसी देशप्रेमी ने लगाया होगा। वह कोई बच्चा हो सकता है या कोई उस कस्बे का नागरिक हो सकता है, क्योंकि उसको बिना चश्मे की मूर्ति अच्छी नहीं लगी, क्योंकि नेताजी हमेशा चश्मा लगाते थे।

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Question 7.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिएः
“लोग बड़ी कठिनता से उसे हटा पाये। काकी के दाह-संस्कार में उसे नहीं जाने दिया। एक दासी राम-राम करके उसे घर पर ही सँभाले रही।”
— काकी —
लेखक-सियारामशरण गुप्त

(i) लोग कठिनता से किसे हटा पाये तथा वहाँ क्या हुआ था?
(ii) ‘दासी राम-राम करके उसे घर पर ही सँभाले रही’ इस पंक्ति को समझाइए ?
(iii) किसी अपने प्रिय के गुजर जाने पर बच्चे पर क्या असर पड़ता है ?
(iv) बुद्धिमान गुरुजनों ने उस बच्चे को क्या बताया तथा उसे सत्य का पता कैसे लगा?

साहित्य सागर (पद्य)

Question 8.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिएः
“राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साईं तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय।।
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिये।।”
-‘कुंडलियाँ’कवि–
गिरधर कविराय

(i) ये कुंडलियाँ बहुत लोकप्रिय हैं—कैसे ?
(ii) कवि ने किसको अपना विषय बनाया है ?
(iii) राजा के दरबार में कैसा व्यवहार करना चाहिए ?
(iv) इन पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
Answer:
(i) कविराय गिरधर की कुंडलियाँ जनमानस में बहुत लोकप्रिय हैं। इनकी कुंडलियाँ नीति पर आधारित हैं। इस लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है बिल्कुल सरल, सहज़, व्यावहारिक तथा सीधी-सादी भाषा में गम्भीर तथा नीतिपरक तथ्यों का कथन।।

(ii) कवि ने नीति, वैराग्य और आध्यात्म को ही अपनी कविता का विषय बनाया है। जीवन के व्यावहारिक पक्ष का इनके काव्य में प्रभावशाली वर्णन मिलता है जिसकी पैठ जनमानस में बहुत गहरी है।

(iii)राजा के दरबार में बिना बुलाये नहीं जाना चाहिए। हमें उस स्थान पर नहीं बैठना चाहिए जहाँ से कि कोई उन्हें उठा सकता है। बिना किसी के पूछे बोलना नहीं चाहिए और जोर से ठहाका मारकर हँसना नहीं चाहिए।

(iv) कवि कहता है कि राजा के दरबार में तभी जाना चाहिए जब बुलाया जाये और समय से पहुँचना चाहिए। उस स्थान पर नहीं बैठना चाहिए जहाँ से कोई उठा दे। बिना पूछे कोई बात नहीं करनी चाहिए और ठहाका मारकर नहीं हँसना चाहिए क्योंकि यह असभ्यता मानी जाती है।

Question 9.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:

“लेकिन विघ्न अनेक अभी
इस पथ पर अड़े हुए हैं
मानवता की राह रोककर
पर्वत खड़े हुए हैं।”
-‘स्वर्ग बना सकते हैं
कवि-रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(i) कवि ने इस कविता में क्या इच्छा व्यक्त की है ? क्या यह कविता ‘राष्ट्रप्रेम’ को प्रदर्शित करती है ?
(ii) कौन से पथ पर विघ्न अड़े हुए हैं तथा उनको कैसे दूर किया जा सकता है ?
(iii) अपने देश के लिए हमारे क्या कर्तव्य हैं ?
(iv) इन पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
Answer:
(i) कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने इस कविता में यह इच्छा व्यक्त की है कि हम प्रयत्न करें तो इस देश को स्वर्ग के समान बना सकते हैं। इसके लिए परस्पर प्रेमभाव, सहयोग, एकता, न्याय और सुख का समभाव होना आवश्यक है। सभी मिलकर विकास की ओर कदम बढ़ाये। यह कविता राष्ट्रीयता से प्रेरित है।

(ii) हमारे विकास के पथ पर विघ्न-बाधाएँ खड़ी हुई हैं। हम अपने सच्चे उद्यम से उनको दूर कर सकते हैं। हर काम में बाधाएँ आती हैं, लेकिन सच्चा कर्मवीर वही है जो उनको पार करके आगे बढ़ता है। ईश्वर भी उसी व्यक्ति की सहायता करता है जो वीरता से अपने सच्चे पथ पर आगे बढ़ता है।

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 2 with Answers

(iii) अपने देश की स्वतन्त्रता की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। हम प्राण देकर भी अपने देश की रक्षा करते हैं। अपने देश को उन्नति के पथ पर ले जाने के लिए एकता, परस्पर सहयोग, सहिष्णुता और देश प्रेम की आवश्यकता है। देश की आवश्यकतानुसार हम फौज में भर्ती होकर देश की रक्षा का प्रण लें।

(iv) कवि कहता है कि मनुष्य के विकास के पथ पर अनेक विघ्न आकर खड़े हो गये हैं और मानवता का रास्ता रोके अनेक रुकावटें पर्वतों के समान अडिग होकर खड़ी हुई हैं। लेकिन सच्चा वीर इन बाधाओं को पार करता हुआ मानवता की राह में आगे बढ़ता है। कहते हैं कि कर्मवीर के सामने से बाधाएँ ऐसे उड़ जाती हैं जैसे आँधी में तिनका।

Question 10.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“ऊँचा खड़ा हिमालय,
आकाश चूमता है, नीचे चरण तले पड़, नित सिन्धु झूमता है।
गंगा, यमुना, त्रिवेणी, नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली, पग-पग पर छहर रही हैं।”
— ‘वह जन्मभूमि मेरी’ —
कवि-सोहन लाल द्विवेदी
(i) हिमालय को क्या कहा जाता है ? इसकी सुन्दरता का वर्णन करिये।
(ii) हिमालय से हमारे देश को क्या-क्या लाभ हैं ?
(iii) गंगा, यमुना कहाँ से निकलती हैं ? त्रिवेणी का क्या हुआ तथा ये नदियाँ कहाँ आकर मिलती हैं ?
(iv) प्रस्तुत पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
Answer:
(i) हिमालय पर्वत अति प्राचीन और अति सुन्दर है। प्रकृति की छटा यहाँ पर दर्शनीय है। चारों ओर बर्फ से ढंकी हुई इसकी चोटियों की छटा अत्यन्त मनोरम है। यह भारत के उत्तर में स्थित है तथा इसको भारतमाता का मुकुट कहा जाता है। धार्मिक पुस्तकों में भी इसका अभूतपूर्ण वर्णन है। इस पर स्थित कैलाश पर्वत पर भगवान शिव का निवास है। ‘मान सरोवर’ की यात्रा यहाँ के भक्तजन करते हैं।

(ii) हिमालय पर्वत हमारे देश की उत्तर दिशा में एक सबल प्रहरी की तरह खड़ा है। इससे भारत को अनेक लाभ हैं। यहाँ से निकली हुई नदियाँ भारतभूमि की सिंचाई करती हैं और पीने का पानी देती हैं। उत्तर से आने वाले आक्रमणकारियों से हिमालय भारत की रक्षा करता रहा है। अधिक ऊँचा होने के कारण प्राचीनकाल में आक्रान्ता इसे पार नहीं कर पाते थे। यहाँ पर अनेक दर्शनीय स्थल, धार्मिक

स्थल और सैलानियों के लिए ठहरने के सुन्दर स्थान हैं। गर्मी से राहत पाने के लिए धनी लोग यहाँ आकर ठहरते हैं। यहाँ अनेक वन हैं जिनमें बहुमूल्य लकड़ियाँ और जड़ी-बूटी मिलती हैं। यहाँ की चोटियाँ बादलों को आकर्षित कर वर्षा कराती हैं। सबसे ऊँची चोटी ‘ऐवरेस्ट’ यहाँ का गौरव है। यहाँ अनेक तीर्थस्थान हैं। यहाँ की गुफाओं में आज भी ऋषि-मुनि तपस्या करते हैं। यहाँ के मान सरोवर का धार्मिक महत्व है।

(iii) पवित्र नदी गंगा हिमालय के गोमुख स्थान से गिरकर गंगोत्री में आती है और फिर वहाँ से आगे बढ़ती है, जबकि यमुना का स्रोत ‘यमुनोत्री’ से है। कहते हैं पहले तीसरी नदी त्रिवेणी भी हिमालय से निकलकर मैदान में आती थी और इलाहाबाद में ‘संगम’ पर तीनों नदियाँ मिलती थीं। अन्तराल में सरस्वती नदी का लोप हो गया और वह धरती के नीचे चली गईं। अब ‘संगम’ पर मिलने वाली नदियाँ दो हैं- गंगा और यमुना। गंगा का सफेद जल और यमुना का सांवला जल साफ-साफ नजर आता है।

(iv) कवि सोहनलाल द्विवेदी कहते हैं यह जन्मभूमि मेरी है जहाँ ऊँचा पर्वत हिमालय खड़ा हुआ है जो आकाश को चूम रहा है। यह भारतमाता के मुकुट की तरह शोभित है और दक्षिण में हिन्द महासागर भारत माता के चरण धो रहा है। गंगा, यमुना, त्रिवेणी नदियाँ हर्षित होकर बह रही हैं। इसकी सुन्दर छटा अनुपम और दर्शनीय है।
नया रास्ता

नया रास्ता

Question 11.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :
“सड़क पर घोर अंधकार था। शायद सड़क पर लगी बिजली की ट्यूबें खराब हो गई थीं। अंधकार में मीनू अशोक के पीछे-पीछे चलने लगी, मीनू का पैर एक पत्थर पर पड़ने से उसका सन्तुलन बिगड़ गया। तभी उसने अपने को सँभाला, दो कदम पर उसका घर था।”
(i) मीनू कहाँ से आ रही है ? उसे देर क्यों हो गई ?
(ii) वह वहाँ क्यों गई थी ? उसे अपनी सहेली से मिलकर कैसा लगा?
(iii) उसकी सहेली ने अपने भाई को उसके साथ क्यों भेजा ?
(iv) अशोक को देखकर पिताजी ने क्या कहा ? मीनू फिर कहाँ चली गई ?
Answer:
(i) मीनू नीलिमा के घर से आ रही थी। उसे देर इसलिए हो गई क्योंकि नीलिमा की माँ ने उससे खाना खाकर जाने को कहा। अतः उसको रुकना पड़ा। नीलिमा ने भी उससे आग्रहपूर्वक खाना खाकर ही जाने की बात कही।

(ii) मीनू को अपनी सहेली नीलिमा से मिले हुए बहुत दिन हो गये थे। इसलिए वह उससे मिलने उसके घर गई। नीलिमा से मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा। मीनू के आते ही नीलिमा ने उसे गले से लगा लिया। ऐसा लग रहा था कि मानों दोनों सहेलियाँ एक लम्बे समय के बाद मिल रही हों।

(iii) खाना बनने और मीनू के खाना खाने से रात को 10 बज गये थे। मीनू को डर था कि कहीं उसके पिताजी व माँ इतनी रात गये लौटने पर नाराज न हों। तभी नीलिमा ने अपने भाई अशोक को बुलाया और उससे कहा कि वह मीनू को घर तक छोड़कर आये।

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(iv) अशोक को देखकर पिताजी ने बड़े प्रेम से उसे बुलाया और बैठने को कहा, परन्तु रात अधिक हो जाने के कारण उसने बैठने के लिए इन्कार कर दिया और अभिवादन कर चला गया। इधर मीनू सीधे अपनी माँ के कमरे में गई और कुछ देर दोनों बात करती रहीं। फ़िर मीनू को नींद आ गई और वह सो गई।

Question 12.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“यद्यपि मीनू ने कत्थक नृत्य बचपन में सीखा था, परन्तु वह शुरू से ही अपने स्कूल में व फिर बड़े होने पर कॉलेज में नृत्य का कार्यक्रम देती रही। इसलिए अभी भी कत्थक काफी कुशलतापूर्वक कर लेती थी। हमेशा अपने कत्थक नृत्य में पुरस्कार लिए थे।”
(i) सहेलियों ने मीनू के सामने क्या प्रस्ताव रखा ?
(ii) वह इस प्रस्ताव के लिए मना क्यों नहीं कर सकी?
(iii) वह लेटे-लेटे किन स्मृतियों में खो गई ?
(iv) हर कार्य में मीनू की प्रतिभा मुखरित हो उठती ? कैसे ?
Answer:
(i) हॉस्टल में मीनू को देखकर सभी सहेलियों ने उसे चारों ओर से घेर लिया। एक बार उसने बातों-बातों में माया के सामने कहा था कि उसने कत्थक नृत्य सीखा है। माया ने ही यह प्रस्ताव रखा कि मीनू का कत्थक नृत्य कॉलेज के वार्षिकोत्सव में कराया जाये। उसकी सभी सहेलियों ने आकर उसके सामने कत्थक नृत्य करने का प्रस्ताव रखा।

(ii) सभी सहेलियों के बहुत आग्रह के कारण मीनू नृत्य करने के लिए मना न कर सकी। यद्यपि वह इन सब बातों में विशेष रुचि नहीं रखती थी। इस समय उसके सामने एक ध्येय था, एक मंजिल थी, जिस पर पहुँचने के लिए उसे विशेष परिश्रम की आवश्यकता थी और फिर नीलिमा की शादी में भी उसके तीन दिन बेकार हो गये थे।

(iii) मार्ग की थकान के कारण वह अपने कमरे में आकर लेट गई। लेटे-लेटे वह अतीत की स्मृतियों में खो गई। उसने बचपन में ही कत्थक नृत्य सीखा था। उसके कस्बे में एक कत्थक नृत्य का स्कूल खुल गया था। वहाँ उसने नृत्य सीखा और अपने स्कूल में भी इस नृत्य का कार्यक्रम दिया था।

(iv) हर कार्य में मीनू की प्रतिभा मुखरित हो उठती। वह हर कार्य लगन के साथ करती। कत्थक नृत्य में भी उसने पूर्ण रुचि दिखाई। दो वर्ष में ही वह कत्थक नृत्य में निपुण हो गई थी। बाद में भी स्कूल में वह निरन्तर नृत्य करती रही, जिससे उसका अभ्यास निरन्तर बना रहा।

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Question 13.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :
अपने जीवन की परिस्थितियों से विवश होकर मीनू के हृदय में कई बार हीन भावनाएँ उत्पन्न हुईं। कई बार उसे ऐसा आभास हुआ कि उसका जीवन बिल्कुल व्यर्थ है, परन्तु मीनू जैसी योग्य तथा होनहार युवती के लिए ऐसी भावनाएँ उचित नहीं थीं।
(i) मीनू के हृदय में हीन भावनाएँ क्यों उत्पन्न हुईं ? ।
(ii) मेरठ से जो पत्र आया उसमें क्या लिखा था?
(iii) आशा का रिश्ता मेरठ वालों ने माँगा तो मीन ने अपने घर में क्या कहा?
(iv) दयाराम के घरवालों का हृदय मायाराम जी के परिवार के प्रति घृणा से क्यों भर गया ?
Answer:
अपने जीवन की परिस्थितियों को देखते हुए कई बार मीनू का हृदय हीन-भावना से भर गया। मीनू पढ़ी-लिखी है, अच्छे संस्कारों वाली है और सुन्दर है, फिर भी कई लड़कों द्वारा वह नापसन्द कर दी गई है। वह अपने को अपमानित महसूस करती है। दृढ़ता और साहस की मूर्ति होते हुए भी कभी-कभी हीन-भावना उसके हृदय में भर जाती है और वह दुःखी हो जाती है।

(ii) मेरठ से लड़के वालों के यहाँ से जो पत्र आया उसमें लिखा था कि वे लोग मीनू के बजाय उसकी छोटी बहन आशा से शादी कर सकते हैं। यदि आपको स्वीकार हो तो खबर कर दें। इस पत्र को पढ़कर सभी लोग उदास हो गये।

(iii) मीनू की छोटी बहन मीनू से सुन्दर थी, लेकिन वह अभी छोटी थी। कायदे से पहले मीन का विवाह होना चाहिए उसके बाद आशा का नम्बर आता है। मीनू का विचार था कि यदि मेरठ वालों ने आशा का रिश्ता माँगा है तो हमें कर देना चाहिए। आखिर आशा का विवाह भी तो करना ही है। मीनू की बात उसके पिताजी और माताजी को पसन्द आई और आशा का रिश्ता मेरठ वालों से करने का मन बना लिया।

(iv) दयारामजी मेरठ आशा के रिश्ते की बात करने गये, लेकिन वहाँ उन्हें पता चला कि किसी धनवान व्यक्ति की लड़की से उनका रिश्ता करीब-करीब पक्का हो गया है। दयारामजी उदास होकर लौट आये। घर पहुँचने पर दयारामजी का उदास चेहरा देखकर सभी समझ · गये कि आशा के रिश्ते के लिए भी मना हो गई है। जब उन्हें असलियत पता चली तो सबका हृदय मायारामजी के परिवार के प्रति घृणा से भर गया।

एकांकी संचय

Question 14.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“हाँ माताजी उन्होंने यही कहा था। मुझे भी अचरज हुआ। मैंने पूछा, वे यहाँ आते हैं ? तो हँसकर बोली, डरो नहीं। वे यहाँ भाई के पास नहीं आते, दफ्तर के काम से आते हैं।”
—’संस्कार और भावना’ —
लेखक-विष्णु प्रभाकर
(i) यह कथन किसने, किससे और किसके बारे में कहा है ?
(ii) जिसके बारे में वक्ता बता रही है उससे पहले उसकी क्या बातें हुई हैं ?
(iii) कौन बीमार रहा है और वह कैसे बचा ?
(iv) वक्ता का अन्तर्मन क्यों काँपने लगा था ?
Answer:
(i) यह कथन माँ की छोटी बहू उमा का है और माँ से कहा गया है। यह कथन माँ के बड़े लड़के अविनाश की पत्नी के लिए कहा गया

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(ii) उमा की इससे पहले अपनी जेठानी से बातें हुईं। जेठानी ने कहा कि वह अपने पति से बहुत प्यार करती है। यद्यपि माँ-बेटे का सम्बन्ध सबसे बड़ा होता है, लेकिन पति को दुःखी करके वह किसी और को खुश करने की कल्पना भी नहीं कर सकती। वह अपने पति को बहुत चाहती है। वह उसके विरुद्ध जाकर कोई काम नहीं कर सकती।

(iii) माँ का बड़ा बेटा अविनाश बहुत बीमार रहा है। उसकी बहू ने हर प्रकार से उसकी सेवा कर उसे बचा लिया। वह घर का सब काम भी करती थी और बाजार से दवा भी लाती थी। एक दो बार मिसरानी से दवा मँगाई थी वरना तो वह स्वयं ही दवा लाती थी। उसका पूरा ध्यान अविनाश पर ही रहता था। उसकी लगन और सेवा से ही अविनाश स्वस्थ हुआ है।

(iv) उमा ने माँ को बताया कि एक दिन वह उनसे (जिठानी) लड़ने गई थी कि उन्होंने बेटे को माँ से अलग कर दिया है, लेकिन उनके तर्कों के सामने वह कुछ न कह सकी। उसका अन्तर्मन काँपने लगा क्योंकि उनके प्रति उसके मन में मोह छा गया है। जैसे मोहग्रस्त . आदमी होता भी है और नहीं भी होता है। उसके बाद वह (उमा) वहाँ से चली आई।

Question 15.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिएः
“अब भी आँखें नहीं खली ? जो व्यवहार अपनी बेटी के लिए तुम दूसरों से चाहते हो वही दूसरे की बेटी को भी दो। जब तक बहू और बेटी को एक-सा नहीं समझोगे, न तुम्हें सुख मिलेगा और न शान्ति।”
—’बहू की विदा’
लेखक-विनोद रस्तोगी

(i) यह कथन किसका है और किससे कहा गया है ? वक्ता ने ऐसा क्यों कहा?
(ii) इस कथन में कितनी सत्यता है। क्या इससे दहेज की समस्या कुछ कम होगी?
(iii) “अब भी आँखें नहीं खुलीं” से क्या तात्पर्य है ?
(iv) अन्त में क्या निर्णय लिया गया ?
Answer:
(i) यह कथन राजेश्वरी का है और अपने पति जीवनलाल से कहा गया है। राजेश्वरी ने उनसे ऐसा इसलिए कहा कि वह अपनी बहू को उसके भाई के साथ मायके नहीं भेज रहे थे क्योंकि उन्होंने शादी में उनको कम दहेज दिया था।

(ii) इस कथन में कि बहू को अपनी बेटी के समान समझना चाहिए यह एक सत्य विचार है, पर ऐसा होता नहीं है। बहुत कम लोग इसको स्वीकार कर पाते हैं। अधिकतर संख्या तो धन के लोभियों की है जो दहेज न मिलने के कारण बहू को अपमानित करते हैं। यदि सभी लोग इस बात को स्वीकार कर लें कि बहू और बेटी एक समान हैं, उनसे वो ही व्यवहार किया जाये जो बेटी से करते हैं तो दहेज की समस्या किसी हद तक कम हो सकती है।

(iii) “अब भी आँखें नहीं खुलीं” से तात्पर्य यह है कि जीवनलाल को अब तो समझ आ जानी चाहिए कि उनकी बेटी को भी उसकी ससुराल वालों ने कम दहेज मिलने के कारण मायके नहीं भेजा है। उनका बेटा जो बहन को लिवाने गया था, अकेला वापस लौट आया था। यही गलती वह अपनी बहू को उसके भाई के साथ न भेजकर कर रहे हैं।

(iv) अन्त में जीवनलाल को समझ आई कि उसे यह गलती नहीं करनी चाहिए। मनुष्य को इतना उदार तो होना ही चाहिए तथा इसी तरह हम बुरों के साथ अच्छे बनकर समाज में सकारात्मकता ला सकते हैं। उन्होंने बहू के भाई प्रमोद से अपनी बहन को ले जाने के लिए कह दिया।

Question 16.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“और तुम जानते हो कि महाराणा इस गढ़ को जीतकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करना चाहते हैं, किन्तु क्या हम लोग अपनी मातृभूमि का अपमान होने देंगे?”
— ‘मातृभूमि का मान’ —
लेखक — हरिकृष्ण ‘प्रेमी’

(i) यहाँ कौन किससे वार्ता कर रहा है और किस सन्दर्भ में?
(ii) वक्ता का परिचय दीजिए। वह इस समय कहाँ पर है ?
(iii) दूसरे साथी के ‘नकली बूंदी कहने पर वक्ता ने क्या जवाब दिया ?
(iv) तीसरे साथी का विचार क्या था ?
Answer:
(i) यहाँ पर राणा का वीर सिपाही वीरसिंह अपने साथी से बात कर रहा है। वह यहाँ बूंदी के नकली दुर्ग की रक्षा के लिए अपने साथियों के साथ तैनात है। बूंदी के दुर्ग के सन्दर्भ में ही वह बात कर रहा है।

(ii) वक्ता वीरसिंह महाराणा लाखा की मेवाड़ सेना का वीर सिपाही है। वह एक राजपूत है और राणा के यहाँ नौकरी करता है। वह बूंदी का रहने वाला देशभक्त सिपाही है, वह राणा की सेना में है, लेकिन इस समय उसे बूंदी के नकली किले की सुरक्षा में कुछ साथियों के साथ रखा गया है और उसको यह निर्देश दिया गया है कि लड़ाई नकली होगी और थोड़े समय बाद बूंदी के नकली किले पर अधिकार कर लिया जायेगा।

(iii) दूसरे साथी ने वीरसिंह को समझाना चाहा कि यह दुर्ग तो नकली है, हमें इस नकली दुर्ग के लिए ऐसा नहीं सोचना चाहिए। तब सच्चे मातृभक्त वीरसिंह ने उसे धिक्कारा और कहा कि नकली बूंदी भी प्राणों से प्रिय है। जिस जगह एक भी हाड़ा है, वहाँ बूंदी का अपमान आसानी से नहीं किया जा सकता। आज महाराणा देखेंगे कि यह खेल ही नहीं रहेगा, बल्कि यह भूमि सिसोदियों और हाड़ाओं के खून से लाल हो जायेगी।

(iv) वीरसिंह के तीसरे साथी का विचार यह था कि हम लोग महाराणा के नौकर हैं। महाराणा के विरुद्ध तलवार उठाना उचित नहीं है। उनका शरीर महाराणा के नमक से बना है। उन्हें महाराणा की इच्छा में बाधा उत्पन्न नहीं करनी चाहिए। स्वामिभक्त होने के नाते उसका विचार भी गलत नहीं है।

ICSE Class 9 Hindi Question Papers with Answers

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

Max Marks :80
[2 Hours]

General Instructions

  • Answer to this paper must be written on the paper provided separately.
  • You will not be allowed to write during the first 15 minutes.
  • This time is to be spent in reading the question paper.
  • The time given at the head of this paper is the time allowed for writing the answers.
  • This paper comprises two sections Section A and Section B.
  • Attempt all the questions from Section A.
  • Attempt any four questions from Section B, answering at least one question each from the two books you have studied and any two other questions.
  • The intended marks for questions or parts of questions are given in brackets [ ].

Section-A [40 Marks]

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 250 words on any one of the following topics : [15]
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 250 शब्दों में संक्षिप्त लेख लिखिए
(i) उस घटना का वर्णन कीजिए जिससे आपने अपने जीवन का बहुमूल्य सबक सीखा। यह बताइए यह सबक क्या था ?
(ii) खेलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए। इस कथन पर विचार करते हुए बताइए कि विश्व के खेलों में भारत के स्तर को कैसे ऊँचा उठा सकते हैं ?
(iii) पर्वतारोहण एक बेहतरीन शौक एवं साहसिक कार्य है। पर्वतारोहण का महत्त्व बताते हुए पर्वतारोहण के लिए आवश्यक वस्तुएँ बताइए और कुछ पर्वतारोहियों के उदाहरण देते हुए पर्वतों की सुन्दरता का वर्णन कीजिए।
(iv) एक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित लोकोक्ति हो :
“प्रत्येक चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।”
(v) नीचे दिये गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर उसका परिचय देते हुये कोई लेख घटना अथवा कहानी लिखिए जिसका सीधा व स्पष्ट सम्बन्ध चित्र से होना चाहिए
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Answer:
(i) यह बात तब की है जब मैं नौवीं कक्षा में पढ़ता था। मैं कक्षा में अग्रणी छात्र था, विद्यालय में एक अच्छा वक्ता था और हॉकी में विद्यालय का श्रेष्ठ खिलाड़ी था। मेरा एक मित्र अनुराग मेरा सहवक्ता था और हॉकी का खिलाड़ी भी था। वह स्वभाव से चंचल, शरारती और मनमौजी था, लेकिन उसका साथ मुझे भाता था। मैं उसके किसी प्रस्ताव का विरोध न तो करना चाहता था और न ही कर पाता था।

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एक दिन उसने मुझे सलाह दी कि आज विद्यालय न जाकर अवधपुरी के बाग में चलें। उस बाग का माली मेरा परिचित है, अत: वहाँ मीठे-मीठे फल खाएँगे और खेतों में घूमकर मस्ती करेंगे। एकाएक मैं उस प्रस्ताव का विरोध न कर सका। मेरे मन में भी गुदगुदी होने लगी, लेकिन पकड़े जाने का भय, पिताजी का रौब और माताजी का स्नेह याद आया और मैंने अपनी असहमति प्रकट कर दी। उस दिन वह विद्यालय नहीं आया।

उसी दिन शाम को वह मेरे घर आया और बताया कि आज उसने पके-पके अमरूद और पेड़ों की शीतल छाया में बैठकर स्कूल का समय काटा। घर में किसी को भनक भी नहीं लगी। मुझे भी लगने लगा कि काश मैं भी उसके साथ गया होता। उसने अपने आनन्दमय समय को रोचकता से मेरे सामने प्रस्तुत किया कि मुझे भी लगने लगा कि एक-आध दिन इस प्रकार के मनोरंजन से कोई हानि नहीं है।

उसने मुझे अगले दिन फिर से वहीं जाने के लिए तैयार कर लिया। उससे मुझे बस अड्डे के पीछे पानी की प्याऊ के पास मिलना था। ठीक समय पर वह मेरा इंतजार करता हुआ मुझे मिला। मुझे वहाँ बहुत डर लग रहा था। ऐसा लग रहा था मानो सभी लोग मेरी ओर देख रहे हैं।

मुझे ऐसा लगा कि सभी साइकिल सवार मेरी शिकायत करने मेरे घर ही जा रहे हैं या वहीं से शिकायत करके आ रहे हैं। मैं डर ही रहा था कि अनुराग ने कहा-सोच क्या रहे हो ? डरा नहीं करते । लाओ, बस्ता यहीं पटको पनवाड़ी की दुकान पर। यह हमारा दोस्त है।

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फिर चलेंगे दोनों यार अवधपुरी के बाग में । मैं तुरंत अनुराग के साथ पनवाड़ी की दुकान पर बस्ता रखकर बाग की ओर चल दिया कि कहीं यहाँ खड़े-खड़े कोई देख न ले। राह-भर मैं डरता रहा। मुझे अनुभव हुआ कि अपराधी की आत्मा बहुत कमजोर होती है। मुझे लगा कि चेहरा सिमटकर छोटा हो गया है।

मैंने देखा, अनुराग बिल्कुल निश्चित था। शायद वह अक्सर वहाँ आया करता था। बाग के अंदर एक कुआँ था, जिसके बाहर एक जंजीर तथा बाल्टी लटकी हुई थी। कुएँ का चौड़ा-सा पाट था। अनुराग उस पाट पर लेट गया। उसने मुझे भी लेटने को कहा, किंतु मैं डर रहा था कि कहीं कोई आ न जाए। तभी वहाँ एक स्कूटर रुकने का स्वर आया। स्कूटर की घर-घर की आवाज से मुझे लगा कि लो, पिताजी आ गए हैं।

मेरी रंगत उड़ गई। अनुराग ने मुझे बताया कि घबराने की कोई बात नहीं, उसका मित्र मनीष आया है। सच ही, उसका मित्र मनीष अपने एक साथी के साथ वहाँ आया था। मैं हैरान था कि वे स्कूटर कहाँ से ले आए हैं। पता चला कि उनमें से दूसरा लड़का पढ़ाई छोड़कर स्कूटर-मैकेनिक का काम सीखने लगा था। वह अपनी दुकान से स्कूटर लाया था, जो किसी ग्राहक का होगा।

चारों के मध्य मुझे ऐसा अनुभव हुआ, जैसे मैं इनके बीच फँस गया हूँ या मुझे फंसाया गया है। अनुराग ने अपनी जेब से ताश निकाली। वे ताश खेलने लगे। मैंने उन्हें मना कर दिया। उसके दोनों मित्र मेरे भय को देखकर हँसने लगे। मैं अपमानित-सा, उखड़ा-सा वहाँ बैठा रहा। वे सिगरेट पीते हुए पैसे से खेलने लगे। जुआ का नाम सुनकर मैं घबरा गया।

जब वे दोनों एक घंटे बाद खेलकर स्कूटर पर चले गए तो, अनुराग ने बतलाया कि उसने उस दिन उनसे पचास रुपये जीते हैं। उसने मुझे फिल्म दिखाने का वचन दिया। बाग के साथ ही एक संन्यासी की कुटिया थी। अनुराग मुझे उस कुटिया में ले चला। बोला-वहाँ मोटेमोटे बेर खाने को मिलेंगे। वहाँ जाकर मुझे बड़ा आनन्द आ गया। कुटिया का वातावरण सुन्दर, शांत तथा हरियाली से पूर्ण था। वहाँ मैं घास पर बैठ गया। कुटिया की दीवारों पर कुछ उपदेश लिखे थे। एक उपदेश पढ़ा तो मैं सोचता ही रह गया। वह उपदेश था-‘एक झूठ बोलने

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पर, उसे छिपाने के लिए सौ झूठ और बोलने पड़ते हैं। इसलिए समझदार प्राणी को पहले झूठ पर ही रुक जाना चाहिए।’ यह पढ़ते ही मेरे भीतर उथल-पुथल होने लगी। दोपहर एक बजे, जब छुट्टी का समय हुआ, हमने पनवाड़ी की दुकान से बस्ता उठाया और घर जा पहुँचे। मेरा मन अब भयभीत नहीं था, बल्कि रुआँसा-सा था। मैं उस उपदेश पर सोचे जा रहा था और मन-ही-मन अपने अपराध पर पछता रहा था।

आज चेहरे पर वैसी खुशी नहीं थी, जो पहले होती थी। घर पहुंचा तो पता चला कि मामाजी आए हुए हैं और वे मेरा ही इंतजार कर रहे हैं। मामा जी ने मुझे प्यार से उठा लिया, पिताजी ने भी मुझे प्यार किया, किंतु मैं अभी भी कुम्हलाया हुआ था। चेहरे पर प्रसन्नता न देखकर मामा ने पूछा-क्या बात है शिवम् ? तभी पिता ने कहा-शायद, आज इसकी तबीयत खराब है। पिता ने मेरी प्रशंसा करते हुए कहा-हमारा शिवम् पढ़ाई में बहुत तेज, सच्चा और ईमानदार बच्चा है। मुझे यह सुनकर लगा कि ये शब्द मेरा उपहास उड़ा रहे हैं। मैं अंदर के कमरे में भाग गया।

माता ने मेरी तबीयत का हाल पूछा तो मैं फूट-फूटकर रो दिया और मैंने अपनी गलती पर क्षमा माँगते हुए स्वयं सारी बात माँ को बता दी। मेरी माँ ने न मुझे मारा, न पीटा, न डाँटा, बल्कि स्नेह से मेरे बाल सहलाती रही और मैं माँ के आँचल में लिपटा रोता रहा। माँ ने बस मुझे यही कहा-बेटा ! रो मत ! मेरे लिए तो खुशी का दिन है। तू आज जिंदगी की परीक्षा में पास हो गया है। तूने आज पाप को हरा दिया है।

(ii) खेलों में राजनीति

खेल आपसी मृदुल, स्नेहिल सम्बन्धों को अधिक प्रगाढ़ करते हैं। विश्व के ध्रुवीकरण के समय में यह आवश्यक हो जाता है कि सभी राष्ट्रों के मध्य सम्बन्ध एक दूसरे के हितों के साधक हों, अवरोधक न हों। अन्य सभी स्तरों के अतिरिक्त खेल इस कार्य में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। खेलों के साथ राष्ट्रीय एकता की भावना सम्बद्ध रहती है। संगठन को खेलों का पर्याय कह सकते हैं। यदि कोई एकल प्रतियोगिता है तो उसमें भी राष्ट्र की भावनाएँ उसे संगठनात्मक बना देती हैं और राष्ट्रीय ऊर्जा का प्रतीक बना देती हैं।

मेरे देश के खिलाड़ी अधिक विजयी हों, वे स्वर्णपदक, रजतपदक और विभिन्न पुरस्कार जीतें। इसी में सभी देशवासी अपना गौरव अनुभव करते हैं। – भारत के खिलाड़ी इंग्लैण्ड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान आदि से विभिन्न खेलों में प्रतियोगिताएँ करते रहते हैं।

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विश्व के देशों में क्रिकेट, हॉकी, कुश्ती आदि में हमारा नाम प्रायः आगे रहता है, परन्तु कुछ वर्षों से हम पिछड़ रहे हैं। संसार के छोटे-छोटे देश भी हमसे कई क्षेत्रों में आगे निकल गए हैं। हमें विचार करना है कि हम किस प्रकार खेलों में अपने स्तर को ऊँचा बनाए रख सकते हैं। इसके लिए निम्नलिखित कुछ उपाय हैं :

खिलाड़ियों के चुनाव के लिए उनके शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन और बौद्धिक चातुर्य को स्थान देना चाहिए। खेलों में राजनीति का दखल स्वीकार नहीं करना चाहिए। जो खिलाड़ी जिसं खेल में देश भर में अधिक योग्य हों, उन्हें उसी खेल के लिए चुना जाना चाहिए। हमारे देश में क्षेत्रीय, मंडलीय, राज्य तथा अन्तर्राज्यीय स्तर पर प्रायः प्रतियोगिताएं होती रहती हैं।

यदि किसी खेल में नहीं होती तो प्रतियोगिताएँ करवानी चाहिए। इसके लिए ऐसी चुनाव-समिति होनी चाहिए जो निष्पक्ष हो और जिसमें अनुभवी खिलाड़ी हों। प्रान्तीयता, जातीयता या भाई-भतीजावाद का पक्ष करके यह चुनाव नहीं होना चाहिए। इससे खिलाड़ियों का गलत चुनाव हो जाता है।

‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’ इस उक्ति के अनुसार विभिन्न खेलों के लिए चुने गए खिलाड़ियों को सतत अभ्यास करवाते रहना चाहिए। अभ्यास प्रतिभा में निखार लाता है। श्रेष्ठ का विकास श्रेष्ठतर की ओर करता है। इससे जड़मति सुजान हो जाती है और सुजान कार्यकुशल।

अभ्यास क्षेत्रीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक रहना चाहिए। देश के कोने-कोने में बसन्त पंचमी, होली, बैशाखी, दीवाली, दशहरा आदि उत्सवों के अवसर पर विभिन्न प्रकार के खेलों के मेले आयोजित होने चाहिए। इन मेलों से खेलों के प्रति जन-जीवन की रुचि जाग्रत होगी और बहुत से बालक और युवक अपने खेल-कौशल का प्रदर्शन करने के लिए खूब अभ्यास करेंगे।

किसी भी कार्य में पुरस्कार प्रेरक का कार्य करता है। पुरस्कार विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं-कहीं पदकों के रूप में, कहीं प्रमाणपत्र में। सभी स्तरों पर जो खिलाड़ी अच्छा स्थान प्राप्त करते हैं, उन्हें पुरस्कार देते रहने से खेलों को प्रोत्साहन प्राप्त होगा और भारतीय खेलों के स्तरों में सुधार होगा।

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कई खिलाड़ी खेलने में कुशल होते हुए भी घरों की हीन आर्थिक स्थिति के कारण दूर-दूर के खेलों में भाग नहीं ले सकते। ऐसे खिलाड़ियों के मार्ग-व्यय की व्यवस्था तो होनी चाहिए। उन्हें घर से निश्चिन्त करने के लिए भी कुछ सहायता दी जानी आवश्यक है।

खेलों के अच्छे प्रशिक्षकों के अभाव में खिलाड़ी अपनी छिपी हुई कुशलता का पूर्ण प्रदर्शन नहीं कर पाते। अत: यह आवश्यक है कि विभिन्न खेलों को सिखाने के लिए उत्तम प्रशिक्षक हों, जो वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक पद्धति से खेलों का सरलतापूर्वक प्रशिक्षण कर सकें। अच्छे खिलाड़ियों को शरीर बनाये रखने के लिए ऊर्जा देने वाले खाद्य-पदार्थ ही दिये जाने चाहिए। यदि कोई खिलाड़ी ऐसे पदार्थ निर्धनता के कारण प्राप्त नहीं कर सकता, तो सरकार की ओर से उसका प्रबन्ध होना चाहिए।

साल में कम से कम दो बार भिन्न-भिन्न स्थानों पर खेलों के सभी स्तरों के शिविर लगाने चाहिए। इन शिविरों में देश के अलगअलग प्रदेशों के उत्तम खिलाड़ियों को आमंत्रित करना चाहिए। यह सब निष्पक्ष हो राजनीति से प्रेरित न हो।

यहाँ आए हुए अच्छे प्रशिक्षक खिलाड़ियों को चुने हुए खेलों में प्रशिक्षण दें और अभ्यास भी कराएँ। खेलों का स्तर सुधारने के लिए खेलों के मैदानों को महत्त्व दें। अनेक विद्यालयों में तो खेलों के मैदान ही नहीं हैं। इन उपायों से विश्व के खेलों में भारत का स्तर सुधरेगा और राजनीति का दखल कम होगा। राजनीति के दखल से भारत की टीम के लिए गलत चुनाव हो जाते हैं और भारत को हार का मुख देखना पड़ता है।

(iii) पर्वतारोहण एक बेहतरीन शौक एवं साहसिक कार्य

संसार में अनेक प्रकार के शौक हैं। विद्वान् लोग नई पुस्तकों को पढ़ने और साहित्यिक आनन्द उठाने के शौकीन होते हैं। कई लोग कविताओं का रसास्वादन करने के व्यसनी होते है। बच्चे ही नहीं, बूढ़े भी कहानियों को चाव से सुनते हैं। कुछ लोग कुत्ते रखने, कुत्तों को लड़ाने तथा मुर्गों और तीतरों का युद्ध देखने का चाव रखते हैं। इसी प्रकार और बहुत से शौक हैं। उनमें से पर्वतारोहण भी एक शौक है।।
भारत में हिमालय, विन्ध्याचल, अरावली और पूर्वी घाट एवं पश्चिमी घाट के अनेकानेक पर्वत हैं।

पर्वतों के ऊँचे और निचले शिखर, उन पर लगी वनस्पतियाँ, उनमें बहने वाले झरने, उनसे निकलने वाले खनिज, वहाँ के छोटे-छोटे खेत और उनके विभिन्न सम-विषम भागों पर चढ़ने का साहस विरले लोग ही करते हैं। कहा जाता है-‘पर्वताः सुदूरतः रम्याः ‘ अर्थात् पहाड़ दूर से ही सुहाने लगते हैं। जब उन पर चढ़ने लगो, तो साँस फूलने लगती है और पाँव भारी-भारी हो जाते हैं। अतः पर्वतों पर चढ़ने का शौक सब में होता है पर कुछ विरले लोगों में ही स्थायी रूप ले पाता है।

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पर्वतारोहण करने के अनेक लाभ होते हैं। इससे सर्वप्रथम तो यह लाभ होता कि मनुष्य में साहसिक प्रवृत्ति के कारण जिस भी कार्य में हाथ डालते हैं, उसी में सफलता अनुभव करने लगते हैं। जीवन में भी पर्वतों के मोड़ों में समान भयंकर मोड़ आते हैं। पर्वतारोही इन मोड़ों को भी ऐसे साहस से पार कर जाता है, जैसे पर्वत के मोड़ों को किया जाता है।पर्वतारोहण के शौक का दूसरा लाभ है-शुद्ध वायु की प्राप्ति और टाँगों एवं फेफड़ों आदि के लिए उत्तम व्यायाम का होना। स्वच्छ वायु के सेवन तथा पर्वतारोहण के व्यायाम की सहायता से मनुष्य स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनता है।

पर्वतारोहण के शौक का तीसरा लाभ है-पर्वतों पर ज्ञानवृद्धि करना। पर्वतारोही ही चीड़, देवदार, सागौन जैसे पेड़ों के सौन्दर्य का आनन्द उठा सकता है। वह ही पर्वतों पर होने वाली अनेक जड़ी-बूटियों को समझ कर उनसे लाभ ले सकता है। वह ही पर्वतों पर होने वाले अन्य प्राणियों एवं पक्षियों के स्वरूप, स्वभाव एवं उनसे होने वाले लाभों को जान सकता है। शेर, चीते, हिरण, हाथी, नीलगाय, जंगली-भैंस, भेड़िए, कस्तूरी मृग, चकोर तथा रंगबिरंगे पक्षी पहाड़ी जंगलों में ही देखे जा सकते हैं। पर्वतों की छोटी-छोटी गायें और भैंसों तथा गड़रियों के भेड़-बकरी युक्त शिखरों की शोभा पर्वतारोही ही अनुभव कर सकता है।

पर्वतारोही ही हिम-शिखरों, नदियों, झरनों एवं स्रोतों के सौन्दर्य का अन्वेषण करने का अवसर पा सकता है। नदियाँ कैसे बनती हैं, उनकी लम्बी यात्रा में वे क्या-क्या करती हैं, हम तक वह जल कैसे पहुँचता है और लोग मार्ग में उससे क्या-क्या लाभ उठाते हैं, यह पर्वतारोहण का शौकीन प्रत्यक्ष जान लेता है।

पर्वतारोहण के महत्त्व के कारण ही सैनिकों को पर्वतारोहण की शिक्षा दी जाती है, पर्वतारोहण में चतुर सैनिक भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखने में अपनी अच्छी भूमिका निभाते हैं। पर्वतों पर बसन्त में फूलों की शोभा, वर्षा में उमड़ते-घुमड़ते पास जाने वाले बादलों के दृश्य, बाढ़ों की भयंकरता, शरद् ऋतु का शान्त वातावरण, सर्दियों में हिमपात का सुहावना दृश्य-सभी कुछ तो पर्वतारोही ही देख पाता है। एक ओर ऊँचे पर्वत-शिखरों और दूसरी ओर गहरी घाटियों के प्राकृतिक भयंकर परन्तु सुन्दर दृश्य पर्वतारोही ही देख सकता है। पर्वतारोहण के शौक वाला ही इन दृश्यों से आनन्द उठा सकता है।

सतपुड़ा के घने जंगलों वाले पर्वत और अरावली की सूखी पर्वतश्रेणियों में भी उनका अपना सौन्दर्य पर्वतारोही ही जान पाता है। पर्वतों से पत्थर, लोहा, कोयला आदि खनिज कैसे निकाले जाते हैं, पर्वतारोही ही इस तथ्य को समझ पाता है। एडमंड हिलैरी और शेरपा तेनजिंग !वे ने पर्वतारोहण के शौक द्वारा ही विश्व के सबसे ऊँचे पर्वतशिखर माउण्ट एवरेस्ट को सन् 1956 में विजित कर संसार में यश और धन दोनों कमाए।

भारत के दार्जिलिंग क्षेत्र में तो शेरपा तेनजिंग ने पर्वतारोहण का एक विद्यालय खोला था, जिसे भारत सरकार का पूर्ण सहयोग प्राप्त था यहाँ से प्रशिक्षित होकर कितने ही पर्वतारोही दलों ने अनेक पर्वतशिखरों पर विजय प्राप्त की। जो पर्वतशिखर पहले कभी अविजेय समझे जाते थे, पर्वतारोहण के शौकीनों ने उन्हें पद्दलित कर अपना नाम अमर कर दिया।

पर्वतारोहण के लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना अति आवश्यक है। इसके लिए प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए। पर्वतों पर बहुत अधिक सर्दी होती है। इसलिए गर्म वस्त्र साथ रखने चाहिए। इसके साथ कुदाल, रस्सी, लोहे की खूटियाँ, छोटे टेंट का सामान, चाय बनाने के बर्तन, चूल्हा आदि भी रखने पड़ते हैं। यदि कई दिनों का पर्वतारोहण करना है तो पर्वतारोहण के लिए जूते भी विशेष प्रकार के होते हैं।

पर्वतों की पगडंडियों पर कैसे चलना चाहिए। फिसलन से कैसे बचना चाहिए। पर्वतों पर चढ़ते समय पाँव कैसे रखा जाय और उतरते समय कैसे-इन बातों का प्रशिक्षण और अभ्यास दोनों आवश्यक हैं। मौसम को समझना, ऊँची चोटियों पर श्वास लेने के लिए आक्सीजन साथ रखना, रोगी होने पर चिकित्सा का प्रबन्ध भी रखना आवश्यक है। बर्फ से ढकी चोटियों के मध्य छिपी खाइयों से बचकर निकलना, खड़े ढालों पर रस्सों द्वारा चढ़ना आदि भी प्रशिक्षण में शामिल है।

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आज के युवकों में पर्वतारोहण के लिए विशेष उत्साह है। पर्वतारोहण के प्रशिक्षण आदि के लिए सरकार का अलग विभाग है। दार्जिलिंग में तो शेरपा तेनजिंग की देखरेख में प्रशिक्षण चलता था। सभी पर्वतारोहण के विभागों से सम्पर्क कर विशेष सूचनाएँ और सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। पर्वतारोहण में भारत का भविष्य सुनहरा है।

(iv) “प्रत्येक चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।”

किसी गाँव के बाहर रसीले मीठे फल वाला एक पेड़ लगा था। उस पर सुन्दर, मन को लुभावने वाले फल लगे थे। पेड़ फलों से लदा हुआ था। मीठे रसीले फलों को देखकर उधर से गुजरने वाले यात्री ललचाई दृष्टि से उन फलों को देखते और तोड़कर खा लेते थे, लेकिन कुछ ही देर में उनकी तबियत खराब हो जाती और वे उल्टियाँ करने लगते। इसका कारण था मीठे रसीले होने के साथ-साथ वह जहरीले थे।

एक दिन उसी गाँव से होकर व्यापारियों की गाड़ियों का काफिला निकल रहा था। गाड़ियाँ बहुमूल्य चीजों से लदी थीं। उसी पेड़ के पास चार ठग भी रहते थे। उन्हें उस पेड़ की असलियत पता थी, लेकिन वे किसी को बताते नहीं थे, क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति उस पेड के फल खाता, कुछ दूर जाने पर वह गिर जाता, तो ये ठग उसका माल लूट लेते थे।

उन व्यापारियों की गाड़ियाँ देखकर वे बहुत खुश हुए, लेकिन उनमें से एक व्यापारी बहुत चतुर था। उसकी गाड़ी सबसे पीछे थी। आगे वाली गाड़ी के व्यापारी ने जब पके फल देखे, तो मुँह में पानी आ गया और उसने एक फल तोड़कर खाया, उसे वह बहुत स्वादिष्ट लगा। उसने कुछ फल तोड़कर गाड़ी में रख लिए कि रास्ते में काम आयेंगे। उसको देखकर दूसरे व्यापारियों ने भी ऐसा ही किया। चतुर व्यापारी ने यह देखा तो चिल्लाया फल मत खाओ ये जहरीले हैं। फिर उसने अपने साथ चल रहे अपने नौकर से कहा कि जल्दी जाओ और उनको रोको जिन्होंने फल खा लिए हैं उनको उल्टियाँ कराओ और जिन्होंने अपनी गाड़ी में रखे हैं उन्हें फेंकने को कहो। नौकर ने ऐसा ही किया कुछ व्यापारियों की हालत ज्यादा खराब थी। उस चतुर व्यापारी के कारण सबकी जान बच गई।

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जब कुछ लोगों ने उस चतुर व्यापारी से पूछा कि जब तुमको पहले से पता था तो तुमने रोका क्यों नहीं ? इस पर व्यापारी ने उत्तर दिया कि मुझे नहीं पता था, मैं भी पहली बार इस रास्ते से यात्रा कर रहा हूँ, लेकिन मैंने देखा कि इतना बड़ा पेड़ जो कि सुन्दर मीठे रसीले फलों से लदा है फल भी मीठे हैं और गाँव भी पास में है, तो क्या कारण है कि लोग इसके फल नहीं खा रहे हैं। मैंने अपनी सामान्य बुद्धि से सोचा कि यह फल जरूर जहरीले होंगे, वरना गाँव के लोग तो कच्चे ही फल खा जाते। तब उन सभी व्यापारियों ने अपने नौकरों से कहकर उस पेड़ को कटवा दिया, ताकि कोई राही फिर से धोखा न खा जाए। इसीलिए कहते हैं कि प्रत्येक चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।

(v) अभूतपूर्व जनयात्रा चित्र अध्ययन

आज के ग्लोबल दौर में जनयात्रा एक आश्चर्य को लेकर आती है। राजनेता अपनी रैलियों में अपार जनसमूह इकट्ठा करते हैं, वह बस या रेल से यात्रा करके निर्दिष्ट स्थल तक पहुँचते हैं। उन लोगों को व्यवस्थित करने के लिए बहुत सारी पुलिस लगानी पड़ती है फिर भी अव्यवस्था फैल जाती है, लेकिन बिना किसी सरकारी तामझाम के 15-20 हजार लोगों को बैनर और पोस्टर लेकर पैदल दिल्ली के लिए कूच करना आश्चर्यजनक तो है ही साथ ही महात्मा गाँधी की पैदल यात्रा (दाँडी मार्च) की याद दिलाता है।

ग्वालियर से दिल्ली तक पैदल मार्च, जिसमें हर प्रदेश का प्रतिनिधत्व हो, नर-नारी, वृद्धों और बच्चों की व्यवस्थित कतारें, अभूतपूर्व प्रेरणा देती है। यह यात्रा प्रारम्भ से लेकर अन्त तक व्यवस्थित और शान्तिप्रिय रही। राह में एक दुर्घटना हुई जिसमें तीन चार यात्री मृत्यु के ग्रास बने, लेकिन जनसमूह ने अपना धैर्य कायम रखा और दिल्ली तक पहुँचे अपनी भूमि, जल और आवास की माँग लेकर। अधिकतर लोग भूमिहीन हैं। बिहार से भी काफी लोग इस यात्रा में भाग लेने आए।

350 किलोमीटर दूर से आए जनादेश 2007 के तहत लगभग पच्चीस हजार कार्यकर्ता दिल्ली की सड़कों पर शान्तिपूर्ण विरोध जताने उतरे। महिलाएं भी काफी तादाद में थीं। यात्रा में ट्राइसाइकिल पर सवार विकलांग, दृष्टिहीन, किशोर, धनुषबाण लिए आदिवासी, विदेशी समर्थक आदि लोगों की संख्या काफी थी। राजधानी की सड़कों पर उमड़े जन-सैलाव को देखकर यह मालूम पड़ रहा था कि लोकतंत्र में जनता की शक्ति ही मायने रखती है। जनादेश रैली को नेताओं ने भी सम्बोधित किया।

इस रैली में कोई हिंसक घटना नहीं हुई। सभी कुछ शान्तिपूर्ण तरीके से चला। नेताओं ने कहा कि भूमिहीनों को जमीन मिलनी चाहिए। सामाजिक व्यवस्था बदलने के लिए वह अहिंसात्मक आन्दोलन था। रैली की ओर से प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा गया। उसमें भूमि प्राधिकरण की स्थापना, समस्त भूमिहीनों को भूमि का अधिकार, वनभूमि पर काबिजों को मालिकाना हक, आदिवासी दलित और वंचित समर्थित जनाधिकार नीति, भूमि सुधार प्रक्रिया सभी राज्यों में लागू करना, कृषि योग्य भूमि का गैर कृषि के लिए उपयोग पर पूर्ण रोक आदि माँगें थीं।

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अन्त में देश भर में आए 25 हजार भूमिहीनों के जनादेश के समक्ष केन्द्र सरकार झुक गई और उनकी समस्त माँगों को जायज ठहराते हुए मान लिया। भूमि से सम्बन्धित सभी मामलों को हल करने के लिए दो समितियों बनाई जाएँगी। यह सब प्रधानमंत्री की देखरेख में होगा।

Question 2.
Write a letter in Hindi in approximately 120 words on any one of the following topics : [7]
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए
(i) अपने पिताजी को पत्र लिखकर वन-विहार या किसी बाँध को देखने जाने की अनुमति प्राप्त कीजिए।
हैरो पब्लिक स्कूल,
Answer:
मुरादाबाद।
दिनांक : 10.05.20xx
पूज्य पिताजी,
सादर चरण स्पर्श।
आपका प्यार भरा पत्र मिला, पढ़कर बेहद खुशी हुई। मुझे प्रसन्नता है कि आप हर हफ्ते पत्र लिख देते हो। बड़े भाई ने तो कई हफ्तों से कोई पत्र नहीं लिखा है। मेरी पढ़ाई अच्छी तरह से चल रही है। अगले महीने परीक्षा होगी।

हमारे विद्यालय में फरवरी में एक-दो दिन के लिये दसवीं कक्षा के छात्र वन-विहार या किसी बाँध को देखने के लिए जाते हैं। इस वर्ष मेरी कक्षा नरोरा बाँध को देखने के लिए जा रही है। हमारे प्रधानाध्यापक ने वहाँ के अधीक्षण अभियन्ता से सम्पर्क कर एक रात वहाँ रुकने और एक दिन बाँध का निरीक्षण करने के लिए कह दिया है। हमारे साथ दो अध्यापक जाएंगे। बाँध की जानकारी हमें वहाँ के एक कुशल अभियन्ता द्वारा दी जायेगी।

इस बहाने हमें गंगा स्नान भी मिल जाएगा। इसके लिए हर छात्र को 200 रुपये जमा करने हैं। पहले तो मुझे आपसे वहाँ जाने के लिये आज्ञा चाहिए। यदि आप हाँ कहते हैं तो फिर मैं जाने की तैयारी करूँ और कक्षा अध्यापक को अपना नाम दे दूँ। यदि मैं वहाँ जाता हूँ तो इस माह की फीस के साथ 200 रुपये जमा करने पड़ेंगे।
माताजी एवं बड़े भाई को चरण स्पर्श।
पत्र की प्रतीक्षा में,
आपका पुत्र,
संजय
कक्षा 10-अ
श्री गौरीशंकर जी,
3/164, विद्यानगर,
अलीगढ़।

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

(ii) आपने अपने घर पर दूरभाष लगवाने के लिए प्रार्थना-पत्र दिया था। दूरभाष विभाग के अध्यक्ष को पत्र लिखकर अपनी आवश्यकता बताते हुए शीघ्रातिशीघ्र दूरभाष लगवाने की प्रार्थना कीजिए।
Answer:
19 ए, कमला नगर,
आगरा।
दिनांक : 15.03.20xx
सेवा में,
श्रीमान् अध्यक्ष महोदय
दूरभाष विभाग,
आगरा।
विषय-शीघ्रातिशीघ्र दूरभाष लगवाने हेतु प्रार्थना-पत्र।
श्रीमान्
निवेदन है कि मैंने गत वर्ष अपने मकान में दूरभाष लगवाने के लिए आवश्यक शुल्क जमा करके आवेदन-पत्र भरा था। कई बार मैंने अधिकारियों से बात की, लेकिन उत्तर यही मिला कि मेरी तरफ जमीन के नीचे तार डाले जा रहे हैं जब काम पूरा हो जायेगा तो लग जायेगा। मुझे कोई निश्चित उत्तर नहीं मिला है।

मैं कपड़े का व्यापारी हूँ। शहर के बाहर भी मेरा काम है। अत: दूरभाष से सम्पर्क करने में मुझे आसानी होगी। समय और आने-जाने में जो धन खर्च होता है वह भी बचेगा। देश से बाहर भी मैं अपना दूसरा काम खोलना चाहता हूँ। दूरभाष के अभाव में, मैं अन्य व्यापारियों से सम्पर्क नहीं कर पाता और अनेक आवश्यक सूचनाओं से वंचित रह जाता हूँ। इसका सीधा असर मेरे व्यापार पर पड़ता है।

मुझे आशा है कि आप मेरी आवश्यकता और समस्या को अवश्य समझेंगे और मेरा कार्य शीघ्रातिशीघ्र कराने की कृपा करेंगे।
सधन्यवाद।
भवदीय
राजीव जैन

Question 3.
Read the passage given below and answer in Hindi the questions that follow using your own language as far as possible. [10]
नीचे लिखे गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए। उत्तर यथासम्भव आपके अपने शब्दों में होने चाहिए।

किसी भी जाति की सभ्यता और संस्कृति का परिचय हमें उसकी लोक-कलाओं और लोक-जीवन में मिलता है। मध्य हिमालय का गढ़वाल तथा कुमाऊँ क्षेत्र जिसे हम ‘उत्तराखण्ड’ के नाम से जानते हैं, प्राकृतिक वैभव के साथ ही भारतीय संस्कृति की कई प्राचीनताओं को भी अपने आँचल में समेटे है, लेकिन इधर कुछ वर्षों में पहाड़ का चेहरा बड़ी तेजी से बदलने के कारण उसके रूप में भी बदलाव आया है।

पहाड़ के गाँव कभी अपनी विविध लोक-कलाओं-काष्ठकला, आभूषण-निर्माण कला, वाद्यकला, भित्तिचित्र कला, चित्रकारी, मेले, लोकोत्सव और नृत्य आदि के लिये जाने जाते थे, लेकिन बदलाव की हवा ने उन्हें भी अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया है। परिवर्तन की इस लहर ने यहाँ की लोक-कलाओं को ही नहीं, बल्कि भवन निर्माण शैली को सबसे अधिक प्रभावित किया है। चीड़ और देवदारु के पेड़ों के बीच बने पक्के मकानों को देखकर सहज ही विश्वास नहीं होता कि ये वही पहाड़ हैं, जहाँ कभी मिट्टी, पत्थर और लकड़ी के छोटे-छोटे कलात्मक घर हुआ करते थे।

आधुनिकता के नाम पर बदलाव का यह सिलसिला चन्द गाँवों या शहरों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि सुदूर क्षेत्रों में भी पहुँच चुका है। वहाँ भी सीमेण्ट, कंक्रीट के आधुनिक मकान दिखाई देने लगे हैं। यहाँ के पुराने मकानों को गौर से देखें तो इनमें कच्चे माल के रूप में उन्हीं वस्तुओं का उपयोग होता था, जो यहाँ आसानी से उपलब्ध थीं। ईंट के स्थान पर पत्थरों को अलग-अलग आकारों में काट-छाँटकर एक के ऊपर एक रखकर चिना जाता था। दो पत्थरों के बीच सीमेंट का कोई उपयोग नहीं होता था। बीच-बीच में साल, सागौन, देवदारु, चीड़ या दूसरी उपलब्ध लकड़ी के स्लीपर डाले जाते थे।

दरवाजे और खिड़कियों में भी स्थानीय लकड़ी का भरपूर सदुपयोग किया जाता था। कुछ घरों में पशुओं के लिये नीचे व्यवस्था की जाती थी, जिसे ‘सन्नी’ या ‘गोठ’ कहा जाता था। परिवार पहली मंजिल पर रहता था। पारम्परिक मकानों के ऊपर की मंजिल पर एक खुला आँगन जिसे ‘तिबारी’ या ‘खूटकूण’ कहा जाता था, अवश्य निकाला जाता था जो एक तरह के बैठक का भी काम करता था।

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

दिन-भर के काम से निपटने के बाद यहीं बैठकर पूरा परिवार हँसी-खुशी से बातें करता था। आज नये आधुनिक शैली के मकानों में यह परम्परा बड़ी तेजी से लुप्त हो रही है। मकानों के दरवाजों, खिड़कियों और छज्जों पर जो बारीक काष्ठकला का काम होता था वह भी अब लुप्तप्राय है। यह परिवर्तन न तो यकायक आया है और न ही जरूरतों की उपज है, बल्कि यह तथाकथित आधुनिकता के अन्धानुकरण का ही उदाहरण है।

(i) किसी भी जाति की सभ्यता और संस्कृति का परिचय हमें किससे प्राप्त होता है और किस प्रकार ? समझाकर लिखिए।
(ii) हिमालय के मध्य को किस नाम से जाना जाता है ? इस क्षेत्र की क्या विशेषताएँ हैं ?
(iii) यह क्षेत्र पहले किस बात के लिये जाने जाते थे? इस समय इनकी क्या स्थिति है ?
(iv) आधुनिक परिवर्तन ने लोक-कलाओं के अलावा किसको अधिक प्रभावित किया है और कैसे ? यह प्रभाव कहाँ तक पहुँचा है ?
(v) इस परिवर्तन से पहले पहाड़ों में मकानों का निर्माण किस प्रकार होता था ?
Answer:
(i) किसी भी जाति, सभ्यता और संस्कृति का परिचय हमें उसकी लोक-कलाओं और लोक-जीवन से प्राप्त होता है। प्राकृतिक वैभव के साथ ही भारतीय संस्कृति की कई प्राचीनताओं को भी उत्तराखण्ड अपने आँचल में समेटे हुए है।

(ii) हिमालय के मध्य को गढ़वाल तथा कुमाऊँ क्षेत्र जिसे हम उत्तराखण्ड के नाम से जानते हैं। ये प्राकृतिक वैभव को अपने अन्दर समाए हुए हैं।

(iii) यह क्षेत्र विविध लोक-कलाओं, काष्ठकला, आभूषण-निर्माण कला, वाद्यकला, भित्तिचित्र कला, चित्रकारी, मेले, लोकोत्सव और नृत्य के लिए जाने जाते थे, लेकिन परिवर्तन की इस लहर ने इनको भी प्रभावित किया है।

(iv) आधुनिक परिवर्तन ने लोक-कलाओं के अलावा वहाँ के घरों को भी प्रभावित किया है, क्योंकि वहाँ पहले मकान, मिट्टी पत्थर और लकड़ी के छोटे-छोटे कलात्मक हुआ करते थे। अब घर ईंट और सीमेण्ट के होते हैं। यह प्रभाव उत्तराखण्ड के दूर-दूर के गाँव तक भी पहुँच गया है।

(v) मकानों का निर्माण ईंट के स्थान पर पत्थरों को अलग-अलग कर, भिन्न-भिन्न आकारों में काँट-छाँटकर, एक के ऊपर एक रखकर चिना जाता था। दो पत्थरों के बीच सीमेण्ट का कोई उपयोग नहीं होता था। बीच-बीच में साल, सागौन, देवदारु, चीड़ या दूसरी उपलब्ध लकड़ी के स्लीपर डाले जाते थे।

Question 4.
Answer the following according to the instructions given :
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए —
(i) निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए —
भागना, स्वस्थ।
Answer:
(i) भागना — भगदड़
स्वस्थ — स्वास्थ्य

(ii) निम्नलिखित शब्दों में से दो के विशेषण बनाइए —
बुराई, भावुकता, बैर, शुद्धता।
Answer:
बुराई – बुरा
भावुकता — भावुक
बैर – बैरी
शुद्धता – शुद्ध

(iii) निम्नलिखित शब्दों में से किसी एक शब्द का दो पर्यायवाची शब्द लिखिए —
बादल, स्वतन्त्र
Answer:
बादल – मेघ, वारिद
स्वतन्त्र स्वच्छन्द, स्वेच्छाचारी

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(iv) निम्नलिखित शब्दों में से किन्हीं दो के विपरीतार्थक शब्द लिखिए
पवित्र, निराश, प्रश्न, भविष्य।
Answer:
पवित्र – अपवित्र
निराश – जिसको आशा न हो।
प्रश्न – उत्तर
भविष्य – भूत

(v) निम्नलिखित मुहावरों में से किसी एक से वाक्य बनाइए………
(क) छाती पर साँप लोटना,
(ख) डूबते को तिनके का सहारा।
Answer:
(क) जब राम को व्यापार में चौगुना लाभ हुआ तो श्याम की छाती पर साँप लोटने लगे।
(ख) रमेश ने कहा कि श्याम ऐसी विकट परिस्थिति में तुम्हारी ये छोटी सी रकम डूबते को तिनके का सहारा होगी।

(vi) कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार वाक्यों में परिवर्तन कीजिए
(a) अन्त में आचार्य निराश हो गए। ‘आशा’ का प्रयोग करिए लेकिन वाक्य का अर्थ न बदले)
(b) दोनों युवक पदार्थ लेकर अपने-अपने घर चले गए। (‘दोनों युवकों ने’ से वाक्य प्रारम्भ करिए)
(c) युवक ने सकुचाते हुए उत्तर दिया। (‘संकोच’ का प्रयोग कीजिए)
Answer:
(a) अन्त में आचार्य को आशा न रही।
(b) दोनों युवकों ने पदार्थ लिया और अपने-अपने घर चले गए।
(c) युवक ने संकोच से उत्तर दिया।

Section-B
साहित्य सागर (संक्षिप्त कहानियाँ)

Question 5.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow: [10]

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए
“दूसरे दिन मुकदमा शेख सलीमुद्दीन की कचहरी में पेश हुआ। रसीला ने तुरन्त अपना अपराध स्वीकार कर लिया। उसने कोई बहाना न बनाया। चाहता तो कह सकता था कि यह साजिश है।”
—’बात अठन्नी की’
लेखक-सुदर्शन

(i) कौन-सा मुकदमा शेख सलीमुद्दीन की कचहरी में पेश हुआ ?
(ii) इंजीनियर साहब ने क्रोध में आकर क्या किया?
(iii) रसीला अपना अपराध स्वीकार न कर क्या कह सकता था ?
(iv) लेखक ने शेख साहब पर क्या व्यंग्य किया था?
Answer:
(i) इंजीनियर साहब ने अपने नौकर रसीला को पाँच रुपये देकर बाजार से मिठाई मँगवाई थी। रसीला ने उसमें से अठन्नी बचाकर साढ़े चार रुपये की मिठाई लाकर दी। इंजीनियर साहब को शक हुआ नौकर को हलवाई के पास ले जाकर असलियत मालूम की। इंजीनियर साहब ने नौकर पर दया न की, बल्कि उसे पुलिस में दे दिया। वही मुकदमा शेख सलीमुद्दीन की कचहरी में पेश हुआ।

(ii) इंजीनियर साहब जगतसिंह की आँखों से आग बरसने लगी। उन्होंने निर्दयता से रसीला को खूब पीटा फिर घसीटते हुए पुलिस थाने ले गये। सिपाही के हाथ में पाँच का नोट रखते हुए कहा कि वह उससे जुर्म मनवा ले।

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(iii) यदि रसीला चतुर-चालाक होता तो अपना अपराध स्वीकार न कर कह सकता था कि यह उसके खिलाफ साजिश है। वह इंजीनियर साहब के यहाँ नौकरी नहीं करना चाहता, इसलिए हलवाई से मिलकर उसे फँसा रहे हैं, पर यह झूठ बोलने का अपराध वह न कर पाया।

(iv) लेखक ने जिला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन पर करारा व्यंग्य किया है कि शेख साहब न्यायप्रिय आदमी थे। उन्होंने रसीला को छह महीने की सजा सुना दी और रुमाल से मुँह पोंछा। यह वही रुमाल था जिसमें एक दिन पहले किसी ने हजार रुपये बाँधकर दिये थे।

Question 6.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :
“सेठ ने आद्योपांत सारी कथा सुनाई। सुनकर सेठानी की सारी वेदना जाने कहाँ विलीन हो गई। हृदय उल्लसित हो उठा। विपत्ति में भी सेठ ने धर्म नहीं छोड़ा।” —’महायज्ञ का पुरस्कार’
लेखक-यशपाल
(i) सेठ ने कौन-सी कथा आद्योपांत सुनाई ?
(ii) सेठानी की कौन-सी वेदना क्या सुनकर विलीन हो गई ?
(iii) धन्ना सेठ की पत्नी ने कौन-सा यज्ञ बेचने को इस सेठ से कहा? उसने किसे महायज्ञ बताया ?
(iv) सेठ ने उस यज्ञ को क्यों नहीं बेचा ? उनका वह कार्य क्या था ?
Answer:
(i) सेठ ने अपने घर लौटकर अपनी पत्नी को वहाँ से जाने, रास्ते में अपने भोजन की चारों रोटी एक भूखे कुत्ते को खिलाने, धन्नासेठ के यहाँ जो बातचीत हुई उसे बताने और धन्नासेठ की पत्नी की ‘महायज्ञ’ खरीदने की बात और स्वयं के इन्कार करने की बात बताई। यही आद्योपांत कथा थी जो घर आकर थके-हारे सेठ ने अपनी पत्नी को सुनाई।

(ii) अगले दिन शाम को सेठजी अपने घर पहुँचे। सेठानी बड़ी-बड़ी आशाएँ लगाये बैठी थी। सेठ को खाली हाथ वापस लौटकर आया हुआ देखकर उसका हृदय वेदना से भर गया। जब उसे पता चला कि सेठ ने विपत्ति में भी अपना धर्म नहीं छोड़ा तो उसकी वेदना जाने कहाँ विलीन हो गई और उसका हृदय उल्लसित हो उठा।

(iii) कुन्दरपुर के धन्नासेठ की पत्नी को कोई दैवी शक्ति प्राप्त थी, जिससे वह तीनों लोकों की बात जान लेती थी। जब ये सेठ अपना यज्ञ बेचने वहाँ पहुँचे तो धन्नासेठ की पत्नी ने उस सेठ से आज दिन में भूखे कुत्ते को जो चार रोटी खिलाकर उसकी भूख से रक्षा की और इस योग्य बनाया कि किसी गाँव तक पहुँच सकेगा, वह ‘महायज्ञ’ वह खरीदने को तैयार है।

(iv) अपना ‘यज्ञ’ बेचने को आये सेठ ने कहा कि यह तो कोई ‘यज्ञ’ नहीं है। भूखे को अन्न देना सभी का कर्तव्य है। उसमें ‘यज्ञ’ जैसी कोई बात नहीं है। उन्हें मानवोचित कर्तव्य का मूल्य लेना उचित नहीं लगा। सेठ स्वभाव से विनम्र, उदार और धर्मपरायण थे तथा वे अपनी धनाभाव जैसी विपत्ति में भी अपने कर्तव्य से न हटे।

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Question 7.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“दूसरी बार जब हालदार साहब उधर से गुजरे तो उन्हें मूर्ति में कुछ अन्तर दिखाई दिया। ध्यान से देखा तो पाया कि चश्मा दूसरा है। पहले मोटे फ्रेमवाला चौकोर चश्मा था, अब तार के फ्रेमवाला गोल चश्मा है।”
‘नेताजी का चश्मा’
लेखक-स्वयं प्रकाश
(i) हालदार साहब की जीप जब कस्बे से बाहर निकल गई तो हालदार साहब ने सोचने के बाद क्या निष्कर्ष निकाला?
(ii) हालदार साहब को क्या आदत पड़ गई थी?
(iii) उन्होंने पानवाले से क्या पूछा और उसने क्या जवाब दिया ?
(iv) आखिर में हालदार साहब की समझ में क्या बात आई ?
Answer:
(i) हालदार साहब की जीप जब कस्बा छोड़कर बाहर निकल गई तो वह सोचते रहे और अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा जायेगा। महत्व मूर्ति के रंग-रूप का नहीं, उस भावना का है वरना तो देशभक्ति भी आजकल मजाक की चीज होती जा रही है।

(ii) हालदार साहब को यह आदत पड़ गई थी कि हर बार कस्बे से गुजरते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब वे अपने कौतूहल को दबा न सके तो पानवाले से पूछ ही लिया कि नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है

(iii) जब हालदार साहब की समझ में यह बात नहीं आई की हर बार मूर्ति की आँखों पर चश्मा बदल क्यों जाता है तो उन्होंने यह बात पानवाले से पूछी। इस प्रश्न को सुनकर पानवाला आँखों ही आँखों में हँसा और बोला कि यह काम कैप्टन चश्मेवाला करता है। जब कोई ग्राहक मोटे फ्रेमवाला चश्मा चाहता है तो वह मूर्ति से उतारकर उसे दे देता है और मूर्ति पर दूसरा चश्मा पहना देता है।

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अब हालदार साहब को बात कुछ-कुछ समझ में आई। एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। उसे नेताजी की बगैर चश्मे वाली मूर्ति अच्छी नहीं लगती है, बल्कि आहत करती है, मानो चश्मे के बिना नेताजी को असुविधा हो रही हो। इसलिए वह अपनी छोटीसी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है। जब कोई ग्राहक उस फ्रेम को माँगता है तो वह उसे वह फ्रेम दे देता है और नेताजी की मूर्ति पर दूसरा फ्रेम लगा देता है।

Question 8.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :
“काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।” —’साखी’ कवि-कबीरदास
(i) क्या कबीर पढ़े-लिखे थे। उनके बारे में क्या कहा जाता है ?
(ii) वे किसके उपासक थे और उन्होंने किसका विरोध किया ?
(iii) क्या कबीरदास जी ने हिन्दू-मुसलमानों की एकता का प्रयास किया ?
(iv) प्रस्तुत दोहे का अर्थ लिखिए।
Answer:
(i) कबीरदास जी पढ़े-लिखे नहीं थे। इनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ या ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा जाता है। संकलित साखियों में इन्होंने समाज को विभिन्न प्रकार की सीख दी है। इनकी साखियों में एक समाज-सुधारक का निर्भीक स्वर सुनाई पड़ता है।

(ii) कबीरदास जी निर्गुण तथा निराकार ईश्वर के उपासक थे, इसलिए इन्होंने मूर्ति-पूजा, कर्मकांड तथा बाहरी आडम्बरों का खुलकर विरोध किया।

(iii) कबीरदास जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता का नारा भी बुलन्द किया तथा दोनों ही सम्प्रदायों में व्याप्त रूढ़ियों तथा धार्मिक कुरीतियों का खुलकर विरोध किया तथा राम-रहीम की एकता में विश्वास पैदा करने की कोशिश की। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज को सीख दी। वे चाहते थे कि हिन्दू और मुसलमान एक होकर रहें तभी समाज का उद्धार होगा।

(iv) कबीरदास जी कहते हैं कंकड़-पत्थर इकट्ठा करके मुसलमानों ने एक मस्जिद का निर्माण कर लिया। उस पर चढ़कर मुल्ला जोर-जोर से अल्लाह को पुकारता है जैसे कि खुदा बहरा हो जो उसकी धीमी गुहार को सुन नहीं सकेगा। उनका मन्तव्य यह था कि पूजा पाठ में दिखावा जरूरी नहीं है। खुदा तो दिल की धड़कन भी सुन लेता है फिर जोर से नमाज़ पढ़ने की जरूरत नहीं है।

Question 9.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।”
—’मेघ आये’
कवि-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(i) यहाँ पर किस ऋतु का वर्णन किया गया है ? बरस बाद सुधि लीन्हीं’ का क्या तात्पर्य है ?
(ii) वर्षा ऋतु से क्या-क्या लाभ हैं ?
(iii) वर्षा ऋतु से क्या हानियाँ भी होती हैं। यदि हाँ तो बताइए?
(iv) उक्त पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
Answer:
(i) कवि की इस कविता में वर्षा ऋतु का वर्णन किया गया है। बरस बाद सुधि लीन्हीं’ का तात्पर्य है कि बादलों ने एक वर्ष बाद पृथ्वी की प्यास बुझाने की सुधि (याद) ली है।

(ii) वर्षा ऋतु से अनेक लाभ हैं। यह भीषण गर्मी से.आहत मनुष्य, पशु-पक्षी आदि को शीतलता प्रदान करती है। किसान वर्षा का स्वागत करता है, क्योंकि वर्षा ही उसकी खेती का आधार है। नदियों, ताल-तलैयों में पानी भर जाता है जीवन का आधार धरती पर चारों ओर हरियाली छा जाती है जिससे दृश्य बड़ा ही मनोरम लगता है। बागों की मोर की कुहू कुहू की बोली बड़ी सुहावनी लगती है।

(iii) वर्षा ऋतु से कभी-कभी हानियाँ भी होती हैं। अधिक वर्षा होने से नदियों में बाढ़ आ जाती है जिससे फसलें नष्ट हो जाती हैं, गाँवों में लोगों के घर और पशुओं की हानि हो जाती है। यह तभी होता है जब वर्षा बहुत अधिक मात्रा में हो जाती है। गाँवों में कीचड़ खूब हो जाती है और विषैले जीव-जन्तुओं का खतरा बना रहता है।

(iv) कवि कहता है बूढ़े पीपल के वृक्ष ने आगे बढ़कर मेघों को सिर झुकाया। वह मेघों के आने से बहुत प्रसन्न है और उसने कहा कि हे मेघो! तुमने एक वर्ष बाद यहाँ आकर बरसने की सुधि ली है। गर्मी से व्याकुल लता भी किवाड़ की ओट से झाँकी और प्रसन्न हो गई। ताल-तलैया भी हरसाये और मेघों के बरसने से पूरे पानी से भर गये।

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Question 10.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा शमित न होगा
कोलाहल संघर्ष नहीं कम होगा।”
-‘स्वर्ग बना सकते हैं’
कवि-रामधारीसिंह ‘दिनकर’
(i) कवि की यह कैसी कविता है ? कवि क्या चाहता है ?
(ii) मनुष्यों का कोलाहल कब शान्त होगा ?
(iii) क्या यह सम्भव है कि सबका सुख भाग समान हो जाये ?
(iv) इन पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
Answer:
(i) कवि की इस कविता में राष्ट्रीयता की गूंज है। कवि चाहता है कि हम सब मिलकर इस जगत को स्वर्ग के समान सुन्दर और सुखदायी बना दें। यह तभी सम्भव है जब हम परस्पर एक-दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ें।

(ii) जब मनुष्यों में समानता होगी, समान व्यवहार होगा और सुख-साधन भी सबको समान रूप से प्राप्त होंगे, तभी कोलाहल शान्त होगा। आपस में संघर्ष तभी होता है जब धन या सम्पत्ति का बँटवारा समान रूप से या न्यायोचित नहीं होता है।

(iii) सबका सुख-भाग समान हो जाये यह तभी सम्भव है जब सब लोग अन्य असहायों या निर्धनों को समान अधिकार दिलवायें और जो समर्थ हैं वे दीन-दुःखियों की मदद करें और त्याग की भावना रखें। सभी ईश्वर की सन्तान हैं यह मानकर एक-दूसरे की मदद करें और निर्धनों के सहयोग के लिए आगे आयें। सब लोग भाग्य को प्रधानता न देकर कर्म को प्रधानता दें। जिनके पास अधिक है उन्होंने अधिक परिश्रम किया होगा।

(iv) उक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि जब तक मनुष्य-मनुष्य के बीच असमानता है तब तक न तो संघर्ष कम होगा और न ही कोलाहल कम होगा। सुख के साधन बराबर की मात्रा में बाँट दिये जायें, सबमें समता का भाव व्याप्त हो और परस्पर मिलकर एक-दूसरे को साथ लेकर चलें, एक-दूसरे का दुःख-दर्द बाँटें और निर्धन व्यक्तियों की धन से या अन्य साधनों से मदद करें।

नया रास्ता

Question 11.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow: [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए :
“कितनी जालिम है ये दुनिया ! सब कुछ पैसा ही है इस दुनिया में ? इंसान की इंसानियत, शर्म, लज्जा कुछ भी तो नहीं रही है। पिताजी के मन में अन्तर्द्वन्द्व चल रहा था। घर पर सभी उम्मीद लगाये बैठे थे कि आशा का रिश्ता पक्का हो जायेगा।”
(i) दयारामजी लड़के वालों के घर में बैठे थे तो किससे मुलाकात हुई ?
(ii) उस सज्जन ने उन्हें क्या बताया ?
(iii) दयारामजी ने वहाँ अधिक ठहरना उचित क्यों नहीं समझा ?
(iv) दयारामजी के घर पर सभी क्या आशा लगाये बैठे थे ? दयारामजी के चेहरे को देखकर वे क्या समझ गये ?
Answer:
(i) दयाराम जी मेरठ शहर लड़के वालों के घर अपनी छोटी बेटी आशा का रिश्ता अमित के लिए लेकर गये थे। बड़ी उम्मीद थी उन्हें क्योंकि आशा से रिश्ता करने की बात स्वयं उन्होंने ही पत्र में लिखी थी। घर में उस समय कोई नहीं था। नौकर ने दरवाजा खोला और उन्हें अन्दर बिठा दिया। इतने में ही कोई सज्जन चमचमाती कार से उतरकर आये और वहीं दयाराम जी के पास आकर बैठ गये।

(ii) उस सज्जन का नाम धनीमल था। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी सरिता का रिश्ता अमित के साथ तय हो गया है और शादी में वे पाँच लाख रुपये लगा रहे हैं। दयाराम जी को बड़ा अजीब लगा कि उनसे उनकी लड़की के लिए लिखा था और अब यहाँ पर ये मामला है।

(iii) अमित का रिश्ता सरिता के साथ हो गया है यह ज्ञात होते ही दयारामजी के पाँव तले धरती खिसक गई। अब उन्होंने एक मिनट भी वहाँ ठहरना उचित नहीं समझा और वहाँ से उठ खड़े हुए। अब वहाँ ठहरने का कोई मतलब भी नहीं था क्योंकि स्थिति उनके सामने स्पष्ट हो चुकी थी।

(iv) दयारामजी के घर पर सब यह सोच रहे थे कि अमित के साथ आशा का रिश्ता तो तय हो ही जायेगा क्योंकि पत्र में अमित के पिता ने आशा से अमित की शादी करने की बात स्वयं स्वीकार की थी। परन्तु घर पहुँचने पर दयारामजी का उदास चेहरा देखकर सभी परिवारीजन समझ गये कि आशा के रिश्ते के लिए भी मना हो गई है। वास्तविकता जानने पर सबका हृदय मायारामजी के परिवार के प्रति घृणा से भर गया।

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Question 12.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“बस इतनी-सी बात सोच रहा है। अमित, तुम हमारे एक मात्र पुत्र हो। एक ही बहू घर में आनी है। दो-चार जगह से पसन्द करके ही तो ली जायेगी और फिर शादी गुड्डे-गुड़िया का खेल तो नहीं है, जो जब चाहे शादी कर ले और जब चाहे छोड़ दे।”
(i) यहाँ कौन किससे बात कर रहा है ? श्रोता क्या सोच रहा है ?
(ii) श्रोता (सुनने वाले) ने मीनू के बारे में क्या बताया ?
(iii) श्रोता ने वक्ता से सरिता के बारे में क्या कहा ?
(iv) मौसी का उदाहरण किसने और क्या कहकर दिया?
Answer:
(i) यहाँ अमित की माँ अमित से बात कर रही है। अमित यह सोच रहा है कि जब मीनू को देखने गये थे और बाद में मनाकर दिया था तो उन सबके दिल पर क्या बीती होगी। यह सोचकर उसका चेहरा उदास हो गया।

(ii) अमित ने मीनू के बारे में अपनी माँ को बताया कि मीनू में भी कोई कमी नहीं थी। देखने में भी ठीक है, पढ़ी-लिखी है, अच्छे खानदान की है और सबसे बड़ी बात है कि वह सारे काम में चतुर है। उसे विश्वास है कि मीनू एक कुशल गृहिणी की तरह घर को सँभाल सकेगी।

(iii) फिर अमित ने माँ को सरिता के बारे में बताया कि बड़े घर की लड़की यहाँ आकर न तो घर का कोई काम करेगी और न ही तुम्हें कोई आराम देगी। घर नौकरों के भरोसे छोड़ना पड़ेगा।

(iv) अमित ने अपनी माँ को समझाने के लिए उसने अपनी मौसी का उदाहरण दिया। बड़ी मौसी ने अपने इकलौते बेटे के लिए बड़े खानदान की सुन्दर बहू ली। देख ली सुन्दर-सलोनी बहू ने क्या हालत बना रखी है मौसी की ? वह घर का सारा काम करती हैं, घर के काम से बहू को कोई मतलब नहीं है। हाँ क्लब जाने के लिए हमेशा तैयार रहती है। घर के काम के लिए उसने कह दिया कि घर के काम की तो उसे आदत ही नहीं है क्योंकि उसके पिता के यहाँ तो घर का सारा काम नौकर करते हैं।

Question 13.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“नीलिमा के घर जाने के लिए मीनू ने अपना हरे रंग का सलवार सूट निकालकर पहना। तभी माँ रसोई से बाहर निकली। मीनू को सलवार सूट पहना देखकर बोली, “बेटी, आज तो साड़ी पहन लेती।”
(i) मीनू हॉस्टल से अपने घर क्यों आई है ?
(ii) हॉस्टल में और घर में क्या फर्क है ? उसने नाश्ते के लिए क्या बनवाया ?
(iii) आज मीनू के हृदय में विशेष उत्साह क्यों है ?
(iv) नीलिमा के यहाँ जाने के लिए वह तैयार हुई तो उसे कैसा लगा ?
Answer:
(i) मीनू हॉस्टल से अपने घर इसलिए आई है, क्योंकि उसकी घनिष्ठ सहेली नीलिमा की शादी है और उसमें जाना आवश्यक था। नीलिमा तो उसे शादी से पहले ही आने के लिए बुला आई थी।

(ii) हॉस्टल में और घर में यह फर्क है कि वहाँ तो चाय भी अपने आप बनानी पड़ती है और घर में सुबह होते ही माँ उसे चाय लाकर बिस्तर पर ही दे देती है तथा नाश्ता भी अपनी पसन्द का मिल जाता है। घर तो घर है इसमें अपनापन होता है।

(iii) आज मीनू के हृदय में विशेष उत्साह इसलिए था क्योंकि आज उसकी सहेली नीलिमा की बारात आनी थी। तभी उसके हृदय में एक पीड़ा-सी अनुभव हुई कि काश वह भी नीलिमा जैसी सुन्दर होती। तभी किसी ने उसे पुकारा कि नीलिमा ने उसे बुलाया है। नीलिमा का भाई अशोक उसे लेने आया था।

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

(iv) माँ ने उसे साड़ी पहनने को कहा तो उसने माँ से कह दिया कि रात तक साड़ी सँभालना मुश्किल होगा, बारात आने से पहले वह साड़ी पहन लेगी। शीशे के सामने खड़े होकर मीनू ने सुन्दर ढंग से अपने केश सँभाले। इससे रूप और सलोना हो उठा। गेहुँआ रंग होने पर भी उसके तीखे नाक-नक्श उसकी सुन्दरता में चार-चाँद लगा रहे थे, परन्तु मीनू के हृदय में हीन-भावना घर कर गई थी, जिसके कारण वह अपने को सुन्दर नहीं समझती थी। फिर उसने दर्पण के सामने खड़े होकर अपने को हर ओर से देखा। उसे आभास हुआ कि वह बदसूरत तो नहीं है।

एकांकी संचय

Question 14.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए : ।
“आ गई मेरी गौरी ! (राजेश्वरी से) अरे, खड़ी-खड़ी मेरा मुँह क्या देख रही हो ? अन्दर से मिठाई का थाल लाओ।” राजेश्वरी उसी प्रकार खड़ी रहती है। उसकी दृष्टि द्वार की ओर है।
-‘बहू की विदा’
लेखक : विनोद रस्तोगी
(i) यहाँ वक्ता कौन है तथा वह किसका इन्तजार कर रहा है ? उसे लेने कौन गया था और वह कहाँ से आनी है ?
(ii) राजेश्वरी अन्दर क्यों नहीं गई ?
(iii) वक्ता का बेटा खाली हाथ क्यों लौट आया?
(iv) दहेज के बारे में वक्ता ने क्या कहा और राजेश्वरी का क्या विचार था ?
Answer:
(i) यहाँ वक्ता जीवनलाल है। वह अपनी बेटी (गौरी) का इन्तजार कर रहा है। बेटी को लेने उसका (जीवनलाल) बेटा गया था। वह अपनी ससुराल से मायके आनी थी।

(ii) जीवनलाल के बार-बार कहने पर भी राजेश्वरी अन्दर इसलिए नहीं गई क्योंकि उसने देख लिया था कि उसका बेटा रमेश अकेला ही लौटकर आया है उसके साथ गौरी नहीं है। वह दरवाजे की ओर देख रही थी।

(iii) जीवनलाल का बेटा रमेश अकेला ही लौटकर आ गया था क्योंकि गौरी के ससुराल वालों ने गौरी को उसके मायके नहीं भेजा। सावन के महीने में विवाहित लड़कियाँ अपने मायके में आती हैं और अपनी सहेलियों से मिल लेती हैं और सावन के गीत गाकर झूला झूलती हैं, गौरी की ससुराल वालों ने उसे इसलिए नहीं भेजा था क्योंकि उसके पिता ने उसकी शादी में दहेज पूरा नहीं दिया था।

(iv) दहेज कम देने की बात सुनकर जीवनलाल ने कहा कि उन्होंने तो जीवन भर की कमाई दे दी और उनकी नजर में दहेज पूरा नहीं दिया, कितने लोभी हैं वे। राजेश्वरी यद्यपि दहेज के खिलाफ है, लेकिन वह अपने पति जीवनलाल को सुनाने के लिए कहती है कि बेटी वाले चाहे अपना घर-द्वार बेचकर दे दें पर बेटे वालों की नाक-भौं सिकुड़ी ही रहती है।

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

Question 15.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow : [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“यह आप क्या कहते हैं महाराणा ? आपके विवेक पर सबको विश्वास है। मैं आपसे निवेदन करने आई हूँ कि यद्यपि समय के फेर से आप हाड़ा शक्ति और साधनों में मेवाड़ के उन्नत राज्य से छोटे हैं, फिर भी वे वीर हैं।”
—’मातृभूमि का मान’
लेखक हरिकृष्ण ‘प्रेमी’
(i) वक्ता किसके बारे में बात कर रहा है ? उसने महाराणा को क्या सलाह दी ?
(ii) महाराणा ने उससे ऐसा क्यों कहा कि वह देर से आई ?
(iii) सेनापति ने उसे क्या कहकर बात साधी ?
(iv) वक्ता ने फिर सेनापति को क्या राय दी ?
Answer:
(i) यहाँ वक्ता चारणी है। वह बूंदी राज्य के बारे में और वहाँ के हाड़ा वीरों के बारे में बात कर रही है। मेवाड़ राज्य से छोटे होते हुए भी हाड़ा वंश के राजपूत बड़े वीर हैं। उसने महाराणा को उचित सलाह दी कि वे मेवाड़ को विपत्ति के दिनों में सहायता देते रहे हैं। यदि उनसे कोई धृष्टता बन पड़ी हो, तो महाराणा उसे भूल जायें और राजपूत शक्तियों में स्नेह का सम्बन्ध बना रहने दें।

(ii) महाराणा लाखा को उसकी यह बात यद्यपि उचित लगी, लेकिन अब देर हो चुकी थी। बूंदी के शासक राव हेमू के इस उत्तर को सुनकर कि बूंदी राज्य स्वतन्त्र है और स्वतन्त्र ही रहेगा, किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करेगा, महाराणा को बहुत दुःख हुआ और वे बँदी को जीतने की प्रतिज्ञा कर चुके थे।

(iii) चारणी की राय जो समयानुसार उचित थी, सेनापति अभयसिंह को भी अच्छी लगी, लेकिन उन्होंने उसे बताया कि महाराणा ने यह प्रतिज्ञा ले ली है कि जब तक वे बूंदी राज्य पर आक्रमण करके उसे जीत नहीं लेंगे तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। यह प्रतिज्ञा उनके प्राणों का संकट बन गई है क्योंकि बूंदी को जीतना कोई आसान काम नहीं है।

(iv) चारणी बड़ी चतुर और संस्कारित सेविका है। सभी उसका यथोचित आदर करते हैं। महाराणा भी उसकी बात मानते हैं। यह जानकर कि महाराणा के प्राण संकट में हैं, उसने राय दी कि इसका एक ही उपाय है कि यहीं पर बूंदी का एक नकली दुर्ग बनाया जाये। महाराणा उसे विध्वंस करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लें। यदि महाराणा को उसका यह प्रस्ताव स्वीकार हो तो ऐसा करें।

Question 16.
Read the extract given below and answer in Hindi the questions that follow: [10]
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में लिखिए:
“अतुल ! इसीलिए मैं कहती हूँ, तू एक बार मुझे उनके पास ले चल। वह निर्मम है, पर मैं माँ हूँ। मुझे निर्मम नहीं होना चाहिए। मैं उसके पास चलूंगी।”
—’संस्कार और भावना’
लेखक-विष्णु प्रभाकर

(i) माँ का हृदय परिवर्तन कैसे हुआ ?
(ii) अतुल ने चलने से पहले माँ से क्या कहा ?
(iii) माँ की कौन-सी बात सुनकर अतुल प्रसन्न हो गया ?
(iv) अन्त में उमा ने क्या कहा?
Answer:
(i) माँ अपने बड़े बेटे अविनाश से नाराज थी, क्योंकि उसने एक विजातीय बंगाली लड़की से शादी कर ली थी। माँ को यह स्वीकार नहीं था इसलिए अविनाश उनसे अलग रहता था। माँ को पता चला था कि अविनाश बीमार रहा था और उसकी बहू ने लगन और मेहनत से उसे बचा लिया था। अब अविनाश की बहू बीमार पड़ी है और अविनाश उसे बचा नहीं पायेगा। यह बात जानकर माँ का हृदय परिवर्तन हुआ और उसका मातृत्व तड़प उठा अपने बड़े बेटे और बहू के लिए और कहने लगी कि वह अविनाश की बहू को अपने घर ले आयेगी और उसे बचा लेगी।

(ii) अतुल ने अपने बड़े भाई के पास चलने से पहले अपनी माँ से कहा कि यदि वह उस नीच कुल की विजातीय भाभी को इस घर में नहीं ला सकी तो वहाँ जाने से कोई लाभ नहीं होगा। माँ के स्वीकारात्मक संकेत से अतुल को प्रसन्नता हुई और उसने तुरन्त ताँगा लाने को रामसिंह से कहा।

ICSE Class 9 Hindi Sample Question Paper 1 with Answers

(iii) माँ द्वारा मन से अविनाश को और उसकी बहू को अपनाने की बात जानकर अतुल प्रसन्न हो गया। अतुल और उसकी बहू उमा तो पहले से ही चाहते थे कि अविनाश और माँ के बिगड़े हुए सम्बन्ध फिर से ठीक हो जायें और माँ अविनाश को अपने घर में बुलाकर और मनमुटाव भुलाकर अपना लें।

(iv) इस समय वातावरण में शान्ति और स्निग्धता है। सहसा उमा को पुस्तक के वाक्य याद आते हैं और धीरे-धीरे फुसफुसाती है “जिन बातों का हम प्राण देकर भी विरोध करने को तैयार रहते हैं एक समय आता है, जब चाहे किसी कारण से भी हो, हम उन्हीं बातों को स्वीकार कर लेते हैं।”

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