ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 5 with Answers

ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 5 with Answers

Maximum Marks: 40
Time: 1 1/2 Hours

Section-A [20 Marks]

Question 1.
Write a short composition in Hindi of approximately 200 words on any one of the following topics:
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 200 शब्दों में निबंध लिखिए:
(i) कॉविड-19 के लॉकडाउन में रचनात्मकता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
(ii) “सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट पीना बन्द होना चाहिए।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
(iii) “ग्लोबल वार्मिंग और हमारी धरती’ विषय पर एक लेख लिखिए।
(iv) एक कहानी लिखिए जिसका आधार निम्नलिखित होः
लालच बुरी बला है।
(v) नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से देखिए और चित्र को आधार बनाकर, उसका परिचय देते हुए कोई लेख, घटना अथवा कहानी लिखिए, जिसका सीधा व स्पष्ट संबंध चित्र से होना चाहिए।
ICSE Class 10 Hindi Sample Question Paper 5 with Answers 1
Answer:
(i) कॉविड-19 के लॉकडाउन में रचनात्मकता
कोरोना वायरस जैसी भयावह बीमारी के बढ़ते संक्रमण पर रोकथाम के लिए सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन का ऐलान किया जिससे देश की अर्थव्यवस्था में कमी आना स्वाभाविक है। महामारी का आंकड़ा 15 लाख के पार हो गया है। कितने लोग संक्रमण से अपनी जान गँवा चुके हैं। अनेक लोगों की आमदनी के स्रोत बंद हो गए, कितनों को बेघर होना पड़ा, अप्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है। देशवासियों में बीमारी के भय तथा लॉकडाउन से जुड़ी मानसिक, शारीरिक व आर्थिक परेशानियों ने घर कर लिया है।

किन्तु हर चीज को समझने के दो पहलू होते हैं। जिस तरह इस लॉकडाउन ने देश की समस्याओं को एक ओर बढ़ाया है वही प्राकृतिक स्तर पर कई सकारात्मक बदलाव भी सामने आए हैं जैसे ध्वनि, वायु व जल प्रदूषणों में अप्रत्याशित कमी आना, प्राकृतिक वातावरण स्वच्छ होता प्रतीत होना मानो जैसे पृथ्वी वर्षों बाद सांस ले पा रही हो। जीवन की व्यस्तता के चलते लोगों का अपने परिवार को समय दे पाना मुमकिन नहीं था किन्तु अब सभी अपने प्रियजनों के साथ समय व्यतीत कर पा रहे हैं।

लॉकडाउन की प्रक्रिया में रचनात्मक पहलू भी उभर कर आया है। घर से बाहर न जाने से लोग अपने अंदर नई प्रतिभाओं को सीखने का या पहले की प्रतिभाओं को निखारने का प्रयास कर रहे हैं फिर चाहे वह नृत्य कला हो, गायन कला, पाक कला, फोटोग्राफी, चित्रकारी या कोई भी प्रोफेशनल ट्रेनिंग। अनेक संस्थान, विद्यालय व विश्वविद्यालय भी निजी स्तर पर अनेक ऑनलाइन क्लासेज और कोर्सेज चला रहे हैं तथा विभिन्न प्रतियोगिताएँ भी आयोजित कर रहे हैं जैसे की निबंध, कहानी व कविता लेखन इत्यादि। हमारे देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है बस जरूरत है मौके की। बी.टेक के एक छात्र ने कीप क्रिएटिव थीम के अन्तर्गत पुरानी पड़ी साइकिल को इलेक्ट्रॉनिक साइकिल में परिवर्तित कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें बच्चे हों या बड़े सभी अपने कौशल को दुनिया को दिखा पाने में सक्षम हुए हैं। इसलिए समय का सदुपयोग कर अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करें। सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करें तभी इस महामारी को जड़ से मिटाना संभव है। उम्मीद है, हम इस महामारी से सीख लेंगे और इससे जुड़े प्रभावों को जिन्दगी का हिस्सा बनाएंगे।

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(ii) “सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट पीना बन्द होना चाहिए।
जीवन में कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हें मनुष्य अपने आनन्द के लिए करता है। कुछ कार्य ऐसे भी हैं जो उसके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन फिर भी वह उन्हें करता है। सिगरेट पीना एक ऐसी आदत है जो उसको और उसके आस-पास खड़े लोगों को नुकसान पहुँचाती है। लोग सिगरेट अपने घर में और सार्वजनिक स्थलों पर भी पीते हैं। उन्हें रोकने या टोकने वाला कोई नहीं होता। यद्यपि सार्वजनिक स्थलों जैसे रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड, पार्क आदि पर नोटिस लगा होता है जिसमें लिखा होता है कि ‘सिगरेट पीना मना है’ पर उसे कोई नहीं मानता। मैं तो इसके खिलाफ हूँ कि सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट पी जाय। यह उन लोगों को भी प्रभावित करती है जो सिगरेट पीने वाले के पास बैठे हैं। ऐसे में बड़ी घुटन-सी हो जाती है और साफ हवा नहीं मिल पाती। इससे फेफड़े खराब हो जाते हैं और अधिक सिगरेट पीने वालों को कैंसर भी हो जाता है। सार्वजनिक स्थलों जैसे सिनेमाघर, रेलगाड़ी में सिगरेट जलाने के बाद माचिस की जलती हुई तीली फेंक देते हैं जिससे भीषण दुर्घटनाएँ हो जाती हैं।

सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट पीना तहजीब के खिलाफ भी है। यह तो हर प्रकार से बन्द होना ही चाहिए। सरकार ने सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट पीने पर रोक लगा दी है, पर इसका पालन अभी नहीं हो रहा है। यदि स्वयंसेवक इस जिम्मेदारी को सँभालें तो सिगरेट पीना बन्द हो सकता है। पुलिस भी इसमें सहयोग करे और जो ऐसा करता पाया जाय उस पर काफी जुर्माना हो। कहते हैं कि ‘हर सिगरेट मनुष्य के जीवन को पाँच मिनट कम कर देती है।’ यह कथन सत्य है। बस में भी कुछ लोग सिगरेट, बीड़ी पीते हैं। यह बहुत गलत है। अन्य लोगों को उन्हें रोकना चाहिए। उन्हें तो नुकसान होता ही है, लेकिन जो पास में बैठे है उन्हें बिना पिए भी नुकसान होता है। अतः हम सबका कर्तव्य है कि सार्वजनिक स्थलों पर सिगरेट पीने वालों को रोकें। जो चीज स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रही है उसे तो रोकना ही चाहिए। सिगरेट पीने की आदत को कम सिगरेट पीकर धीरे-धीरे छोड़ा जा सकता है। बहुत से लोग जो पहले कई पैकेट सिगरेट पीते थे उन्होंने बिल्कुल ही सिगरेट पीना छोड़ दिया। इसके लिये दृढ़ आत्मशक्ति की आवश्यकता है।

(iii) ग्लोबल वॉर्मिंग और हमारी धरती
पर्यावरण पर संकट किसी एक देश का नहीं अपितु यह प्रकृति द्वारा मानव जाति के लिए एक गम्भीर चेतावनी है। इससे जीव सम्बन्धी विविधता का निरन्तर क्षरण होता जा रहा है। इससे लगभग 20% जातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और आबादी के उत्तरोत्तर बढ़ने के दबाव ने जैविक विविधता पर गम्भीर खतरा उत्पन्न कर दिया है। जीवन सम्पदा अर्थात् वनस्पति और जीवन की विविधता जितनी भारत में है उतनी अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलेगी। हमारे देश में कन्याकुमारी के समुद्र तट से लेकर हिमालय और अरब की खाड़ी से लेकर बंगाल का सुन्दरवन डेल्टा तक जैव विविधता की सम्पदा से सम्पन्न व विस्तृत है। ग्लोबल वार्मिंग से जीव व वनस्पति दोनों को बहुत खतरा है इससे मानव जाति भी विलुप्त हो सकती है।

भारत ही नहीं बल्कि अनेक देशों के जीविकोपार्जन का साधन कृषि है और अधिकांश लोग कृषि पर ही आश्रित हैं। इससे स्पष्ट है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बुरा असर देश के सबसे गरीब व्यक्ति अर्थात् आम जनता पर पड़ रहा है। प्रकृति के असन्तुलन, जैसे बाढ़ या सूखे के कारण कृषि बर्बाद हो जाती है। कृषि उत्तम न होने के कारण बेरोजगारी और महँगाई व कर्ज के कारण कितने ही किसान खुदकुशी करने पर विवश हो जाते हैं। ग्लोबल वार्मिंग से ओजोन परत में छिद्र हो गये हैं जिससे सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणें सीधे जीव व वनस्पति पर हमला करती हैं। इन किरणों से मनुष्य में अनेक प्रकार की गम्भीर बीमारियाँ हो जाती हैं। पीने के पानी पर भी खतरा हो गया है। सूरज की प्रत्यक्ष तीव्र किरणों से पहाड़ों की बर्फ पिघल रही है जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ने से बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है और पीने के पानी की भी समस्या हो रही है। जब पीने के पानी पर ही संकट है तो “जल ही जीवन है।” वाली कहावत भी खतरे में है। अतः यह संकट इतना भयंकर है कि यदि यह कम नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब मानव जाति के विनाश के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा।

(iv) लालच बुरी बला है।
मनुष्य लालच में आकर अपना सब कुछ गँवा देता है।
रामपुर एक छोटा सा गाँव था, जिसके एक ओर खेती तो दूसरी ओर नदी बहती थी। गाँवों के लोग खेती करके अपना जीवन व्यतीत करते थे। कुछ लोग जंगल में जाकर लकड़ी काटकर उन्हें बेचकर अपना जीवन व्यतीत करते थे। वहीं उस गाँव में गोपाल नामक एक लकड़हारा रहता था। वह एक दिन लकड़ी काट रहा था। उसकी कुल्हाड़ी पानी में गिर गई। वह बहुत उदास हो गया और नदी के तट पर बैठा सोच रहा था कि अब वह कैसे अपने परिवार का पेट भरेगा। तभी नदी में से एक देवी निकली। उन्होंने गोपाल से उसकी उदासी का कारण पूछा।

गोपाल ने सब कुछ बता दिया। देवी पानी में गईं और सोने की कुल्हाड़ी ले आई। गोपाल ने कहा नहीं ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है, फिर देवी ने उसे चाँदी की कुल्हाड़ी दिखाई, गोपाल ने फिर मना कर दिया तब देवी लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आई, तो गोपाल ने कहा हाँ, यही उसकी कुल्हाड़ी है। देवी उससे प्रसन्न हो गईं और उन्होंने तीनों कुल्हाड़ी उसे दे दी। गोपाल के दिन अब बदल गए थे। अब वह भी पैसे वाला हो गया था। एक दिन उसका मित्र रमेश उससे मिलने आया और उसने अमीरी का कारण पूछा, तो गोपाल ने सब सच बता दिया, लेकिन रमेश लालची था। वह भी लकड़ी काटने गया और जानबूझ कर कुल्हाड़ी नदी में फेंक दी। जब देवी ने उसे सोने की कुल्हाड़ी दिखाई तो उसने तुरन्त कह दिया कि हाँ, वह मेरी है इतना कहते ही वह और सोने की कुल्हाड़ी दोनों गायब हो गईं और रमेश के पास जो कुछ था वह भी समाप्त हो गया। उसने सब कुछ पाने के स्थान पर अपना सब कुछ गंवा दिया था।

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(iv) भूकंप
दिया गया चित्र गुजरात में आए भयावह भूकम्प का है जिसने हजारों मकानों को ध्वस्त कर दिया और लगभग चालीस हजार से अधिक लोगों को काल के गाल में समा लिया। चित्र में दिखाई दे रहा है अनेक मकानों का मलबा और मलबे के ऊपर सहायता का कार्य करते हुए अनेक व्यक्ति। एक वृद्ध अपना कुछ सामान सिर पर रखे हुए जाता दिखाई दे रहा है, न जाने कितने लोग इस मलबे में दब गए होंगे। यह वाक्या है 26 जनवरी, 2001 की प्रातः का जब नई दिल्ली में राजपथ पर गणतन्त्र दिवस की परेड चल रही थी। लोगों को क्या पता था कि ऐसे खुशी के माहौल में गुजरात की तकदीर प्रकृति के निर्मम हाथों से तय होनी थी। सबसे अधिक नुकसान अहमदाबाद और भुज क्षेत्र में हुआ।

कच्छ इलाके में स्थित 100 रेलवे स्टेशनों तथा 36 रेल पुलों को भी भारी क्षति पहुँची। राजकोट तथा मोरवी में भी भयानक तबाही हुई। सेना, नौसेना तथा वायुसेना के अलावा राहत कार्यों में गुजरात स्थित सार्वजनिक प्रतिष्ठानों और निजी उद्योगों की भारी भरकम मशीनें राहत कार्य में लगाई गईं। पुलिस तथा कई समाज-सेवी संस्थाएँ राहत कार्य में जुट गईं। देश विदेश से दान-राशि सहायता कार्य के लिए आनी शुरू हो गई। जो भी जिससे बना उसने मदद की। मानवता की यही पुकार है। घायलों को अस्पताल पहुँचाया गया, मृतकों की अन्त्येष्टि की गई और बेघर लोगों के आवास और भोजन का प्रबन्ध टैण्ट लगा कर किया गया। दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में सहायता पहुँचने में विलम्ब हुआ, लेकिन सरकार ने वह भी सँभाल लिया। यह है प्रकृति का प्रकोप जो इन्सान की पहुँच के बाहर है। रक्षामन्त्री भुज के क्षेत्र में निगरानी के लिए रुक गए। प्रधानमन्त्री ने सरकारी खजाने का मुँह खोल दिया।

इस भयानक मंजर को देखकर हर एक की आँखें नम हो गईं। भूकम्प के झटके कई प्रमुख शहरों में महसूस किए गए। गृहमन्त्री और प्रधानमन्त्री ने प्रभावित इलाके में पहुँचकर स्थिति का जायजा लिया। इस प्राकृतिक आपदा से पूरा देश व्यथित हुआ। 1991 में उत्तरकाशी में भूकम्प आया था जिसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गये थे। 1993 में महाराष्ट्र के लातूर व अहमदाबाद इलाकों में आए भूकम्प से लगभग दस हजार लोग मारे गए थे। 1999 में रुद्रप्रयाग में आए भूकम्प में 120 से अधिक लोग मारे गए थे। कहते हैं कि जानवरों और पक्षियों को पहले से भूकम्प का एहसास हो जाता है। वैज्ञानिकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, कि वे भूकम्प का पहले से पता लगाएँ। ऐसे अवसरों पर हमारा कर्तव्य हो जाता है कि भूकम्प पीड़ितों की भरपूर सहायता करें।

Question 2.
Write a letter in Hindi of approximately 120 words on any one of the topics given below:
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर हिन्दी में लगभग 120 शब्दों में पत्र लिखिए: अपने मित्र को पत्र लिखिए जिसमें आपने उस घटना का वर्णन किया हो जिससे आप सम्बन्धित थे तथा जिससे आपके विद्यालय को श्रेय/ सुयश मिला था।
अथवा
आप और आपके मित्र किसी की सहायता के लिए एक रंगारंग कार्यक्रम, अपने स्कूल के हॉल में प्रस्तुत करना चाहते हैं। हॉल के प्रयोग की अनुमति लेने के लिए अपने स्कूल के प्राचार्य को पत्र लिखिए।
Answer:
53,माधव कुंज,
आगरा।
दिनांक: 10.01.20XX
प्रिय मित्र ललित,
सप्रेम नमस्ते।
बहुत समय से तुमने अपना कोई समाचार नहीं दिया। समय-समय पर पत्र तो लिखते रहो ताकि एक-दूसरे की कुशलता के प्रति आश्वस्त रह सकें। मुझे आशा है कि तुम्हारा अध्ययन सुचारू रूप से चल रहा होगा। मित्र! इधर कुछ दिनों पूर्व एक बड़ी अच्छी घटना घटी जिसमें मैं विशेष रूप से जुड़ा रहा हूँ। इसके बारे में सब कुछ लिख रहा हूँ।
बात गत् नवम्बर मास के अन्तिम सप्ताह की है। हमारे विद्यालय के विद्यार्थी अन्तर्मण्डलीय प्रतियोगिताओं के विविध कार्यक्रमों में भाग लेने हेतु लखनऊ गए हुए थे। तुम जानते ही हो कि नाटक तथा अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में मेरी विशेष रुचि है। मुझे भी नाटक से सम्बन्धित दल में सम्मिलित किया गया है। किन्तु मुझे अत्यन्त गौण भूमिका दी गयी थी। हमारे दल को अपना नाटक 26 नवम्बर को मंच पर प्रस्तुत करना था। 25 तारीख को प्रातः से ही हमारे एक साथी रंजन को ज्वर हो गया। रंजन ही हमारे द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले नाटक का नायक था। उसकी ऐसी दशा से यह स्पष्ट हो गया था कि वह अगले दिन मंच पर अभिनय कर सकने की स्थिति में नहीं था। अत: दोनों भूमिकाएँ निभाने का दायित्व मैंने संभाला। मैं जी-जान से अभ्यास में जुट गया। अगले दिन हमारा नाटक अत्यन्त सफलता से मंचित हुआ। निर्णायकों के निर्णयानुसार अन्तर्मण्डलीय नाट्य प्रतियोगिता में हमारे विद्यालय का नाटक सर्वोत्तम घोषित हुआ। हमारे शिक्षक ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह सब मेरे अभिनय के कारण ही सम्भव हो सका है। मुझे इस बात का सन्तोष था कि मैं अपने विद्यालय को सुयश दिलाने में योगदान दे सका।
घर पर सभी बड़ों को अभिवादन। टिंचू और नीना को प्यार। तुम्हारा मित्र
राजीव

अथवा

सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय,
सेण्ट फ्रांसिस स्कूल,
आगरा।
विषयः रंगारंग कार्यक्रम में हॉल के प्रयोग की अनुमति हेतु।
महोदय,
यह तो सर्वविदित है कि सम्पूर्ण देश में यह वर्ष विकलांग वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। विभिन्न संस्थाओं द्वारा उनकी सहायता के लिए विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किये जा रहे हैं। हमारे विद्यालय के छात्र भी इससे उत्साहित होकर एक रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर विकलांगों की सहायता करना चाहते हैं। अतः विद्यालय के हॉल की इस हेतु आवश्यकता होगी। कृपया हमें अनुमति प्रदान करने का कष्ट करें।

हम आपको विश्वास दिलाना चाहते हैं कि हॉल के फर्नीचर व साज-सज्जा को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होगी। हम इसके लिए विशेष रूप से सचेत रहेंगे। यह भी विश्वास दिलाना हम अपना पुनीत कर्त्तव्य समझते हैं कि इस कार्यक्रम से प्राप्त समस्त आय का हिसाब एक समिति रखेगी जिसकी देख-रेख हेतु हमारे विद्यालय के हिन्दी-अध्यापक तथा संरक्षक आप स्वयं होंगे। समस्त धनराशि विद्यालय की ओर से जिलाधीश महोदय को, जो उस कार्यक्रम के विशेष अतिथि होंगे, विकलांग सहायतार्थ भेंट की जाएगी।
अतः आपसे विनम्र प्रार्थना व आग्रह है कि हमें हॉल के प्रयोग की अनुमति प्रदान की जाए। हम आपके बहुत आभारी रहेंगे।
आदर सहित धन्यवाद!
आपके आज्ञाकारी शिष्य,
कक्षा ‘X’ के छात्र
दिनांक : 20-2-20XX

Section-B [20 Marks]
(Answer questions from any of the two books that you have studied.)
साहित्य सागर-संक्षिप्त कहानियाँ

Question 3.
(i) लाल बिहारी कौन है? उसे अपनी भावज की कौन-सी बात बुरी लगी? [2]
(ii) श्यामलाकांत जी के परिवार में कितने सदस्य हैं? उसके लिए कौन जिम्मेदार है? [2]
(iii) भेड़िए के प्रचार में सियारों ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर सफलता दिलाने का प्रयास किया, इसके पीछे छिपे कारण को स्पष्ट कीजिए। [3]
(iv) “वह काम तो तेरे लिए छोड़ दिया। मैं चली जाऊँगी तो जल्दी से सारी दुनिया का कल्याण करने के लिए झण्डा लेकर निकल पड़ना।” वक्ता की जाने की बात से श्रोता ने कैसा महसूस किया? [3]
Answer:
(i) लाल बिहारी बेनी माधव सिंह का छोटा बेटा और श्रीकंठ का भाई है। एक दिन दोपहर के समय वह दो चिड़ियाँ पकड़कर लाया और भावज से उन्हें पकाने को कहा। भावज ने घर में जो पाव भर घी था सब माँस में डाल दिया। जब लाल बिहारी खाना खाने बैठा तो दाल में घी न था। पूछने पर भावज ने सब बता दिया कि घी कहाँ गया। लाल बिहारी को भावज की यही बात बहुत बुरी लगी कि उसे किफायत का जरा भी ध्यान नहीं। इस पर वह बहस किये जा रही थी और अपने कार्य को उचित ठहरा रही थी।

(ii) श्यामलाकांत जी के परिवार में कुल नौ सदस्य हैं। यह एक बड़ा परिवार है और इसमें स्वयं श्यामलाकांत जी मुखिया हैं। उन्होंने परिवार नियोजन में लापरवाही की और बच्चों की टीम खड़ी कर अनेक समस्याओं को स्वयं ही जन्म दिया जिनका कोई समाधान दिखाई नहीं देता।

(iii) सियार अवसरवादी और स्वार्थी लोगों के प्रतीक हैं। उनका अस्तित्व शोषक वर्ग की कृपा पर ही निर्भर है। उनका सुख-सुविधापूर्ण जीवन भी उन्हीं की कृपा से चलता है। इसलिए ऐसे लोग शोषक वर्ग की चापलूसी और उनके लिए कार्य करने में लगे रहते हैं। बिना शोषक वर्ग की कृपा के उनका जीवन मुश्किल से चलेगा।

(iv) चित्रा के विदेश जाने की बात सुनकर अरुणा भावुक हो उठी। उसने कहा कि छः साल से साथ-साथ रहते हुए वह यह तो भूल ही गई थी कि अलग भी होना पड़ सकता है। दोनों में इतना स्नेह था कि हॉस्टल वाले उनकी मित्रता देखकर ईर्ष्या करते थे।

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साहित्य सागर-पद्य

Question 4.
(i) पाहुन किसे कहा गया है? पाहुन का कैसा स्वागत होता है? [2]
(ii) श्रीकृष्ण की क्या माँग है? यदि उनकी माँग पूरी न हुई तो वह क्या करेंगे? [2]
(iii) जीवन में सुख-दुःख और आशा-निराशा के प्रति हमारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए? अपने दुःखों और निराशा के लिए हमें किसको दोष देना उचित नहीं है तथा क्यों? समझाकर लिखिए। [3]
(iv) ‘अंजन कहा आँख जेहि फूटै, बहु तक कहौं कहाँ लौं।’ पंक्ति की व्याख्या कीजिए। [3]
Answer:
(i) ‘पाहुन’ बादलों को कहा गया है। पाहुन का तात्पर्य है अतिथि। बादलों का स्वागत अतिथि की तरह हो रहा है। ‘अतिथि देवो भवः’ का मन्त्र सभी को सुहाता है और अपने घर आये हुए अतिथि को देवता मानकर उसका स्वागत करते हैं।

(ii) बाल श्रीकृष्ण ने जब आकाश में खिलता हुआ चन्द्रमा देखा तो अपनी माता से जिद करने लगे कि मैं तो चन्द्रमा का खिलौना लूँगा। यदि माता ने यह खिलौना नहीं दिया तो वह धौरी गाय का दूध नहीं पियेंगे, सिर पर चोटी नहीं बँधवायेंगे, मोतियों की माला और झुंगली नहीं पहनेंगे।

(iii) जीवन में सुख-दुःख और आशा-निराशा आने पर भी हमें उनसे निराश नहीं होना चाहिए। इसके लिए हमें ईश्वर और भाग्य को दोष नहीं देना चाहिए कि मेरा भाग्य मेरे विपरीत चल रहा है या ईश्वर मेरा साथ नहीं दे रहा है। बल्कि अपने कर्म को निडरता और दृढ़तापूर्वक करते हुए आगे बढ़ना चाहिए और अपना भाग्य स्वयं बनाना चाहिए। क्योंकि गति जीवन का सत्य है।

(iv) प्रस्तुत पंक्ति के द्वारा कवि तुलसीदास ने अपने आराध्य प्रभु राम के प्रति अपनी अनन्य भक्ति को दर्शाया है। इसी संदर्भ में वे आगे कहते हैं कि जिस अंजन (काजल) को लगाने से आँखें फूट जाएँ, वह अंजन ही किस काम का? कवि कहते हैं कि जिसे प्रभु राम के चरणों में प्रेम भाव हो, वही सब प्रकार से अपना परम हितैषी, पूजनीय और प्राणों से भी अधिक प्रिय है तथा इसके विपरीत जो राम के प्रति स्नेह व भक्ति न रखता हो, वह सदा के लिए अप्रिय और त्याज्य है।

नया रास्ता

Question 5.
(i) ‘आज मीनू का सपना पूरा हो गया’ स्पष्ट करो। क्या वकील बनना ही मीनू की मंजिल थी? [2]
(ii) नीलिमा और सुरेन्द्र के जाने के बाद मीनू के मन में कैसे विचार आते रहे? वह रात उसने कैसे बिताई? [2]
(iii) मीनू के वकालत पास करने से किसे विशेष खुशी हुई? [3]
(iv) मीनू के अस्पताल मिलने आने पर अमित उसे अधिक बैठने के लिए क्यों न कह सका? उसने मीनू से मुख्यतः किस विषय पर बात की? [3]
Answer:
(i) हर लड़की का सुहाना सपना होता है, दुल्हन बनने का। मीनू का सपना भी यही था। वह भी चाहती थी कि कोई लड़का उसे पसन्द करे और वह दुल्हन बने। लेकिन उसके साँवले रंग के कारण अब तक उसे किसी ने पसन्द नहीं किया था। आज अमित ने उसे स्वीकार कर उसका सपना पूरा किया। अब तक तो मीनू की मंजिल वकील बनना ही था। वकील तो वह बन गई और प्रैक्टिस भी शुरू कर दी थी। उसकी दूसरी मंजिल दुल्हन बनने की थी और यह मंजिल भी उसने पा ली थी।

(ii) नीलिमा और सुरेन्द्र के जाने के बाद मीनू अमित के विषय में सोचने लगी। जिस अमित के लिए उसके मन में घृणा के भाव थे, उसी के लिए उसके मन में स्नेह उत्पन्न हो गया। वह रात उसके लिए बेचैनी भरी थी। बेचैनी के कारण उसे रात-भर नींद नहीं आई थी। प्रातः होते ही वह अमित से मिलने चल दी।

(iii) मीनू के वकालत पास करने से अमित की माताजी को विशेष खुशी हुई। मेरठ में ही प्रैक्टिस शुरू करने की बात से अमित को भी क्षणिक खुशी का अनुभव हुआ। अमित की माताजी मीनू के अच्छे व्यवहार व शिक्षा के कारण उसमें रुचि लेने लगी हैं। मीनू को अमित से सहानुभूति है। मीनू का अस्पताल दो बार आना यह प्रदर्शित करता है कि उसके हृदय में उनके प्रति सहानुभूति है। अत: इन बातों को सोचकर अमित की माताजी मीनू के वकालत पास करने पर विशेष खुशी का अनुभव करती हैं। जब किसी को अपना समझने लगते हैं तो उसकी उन्नति पर खुशी होती है।

(iv) अमित हृदय से चाहता था कि मीनू उसके पास और बैठे लेकिन वह मीनू के सामने शर्मिन्दा था। इसलिए चाहते हुए भी वह उसे और बैठने के लिए न कह सका। उसने मुख्यतः इस विषय पर बात की कि वह उससे सम्बन्ध न करके उसे लज्जित करने के लिए शर्मिन्दा है। उसने उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचाई है। उसकी गलती इतनी है कि उसने माता-पिता के सामने उनकी राय का विरोध नहीं किया। जिस लड़की से रिश्ता हो गया तो उससे शादी से पहले ही रिश्ता टूट गया। इसमें ईश्वर की भलाई थी। मैंने तुम्हें अपनी जीवन-संगिनी मान लिया था। इसलिए अब तक तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहा।

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एकांकी संचय

Question 6.
(i) दादाजी अपने परिवार की तुलना बरगद के पेड़ से क्यों कर रहे हैं? वे बरगद के पेड़ को महान क्यों कह रहे हैं? [2]
(ii) दादाजी के प्रयास का क्या परिणाम हुआ? वे अपने प्रयास में कहाँ तक सफल रहे? [2]
(iii) “बिलासी और अत्याचारी राजा कभी निष्कंटक राज्य नहीं कर सकता।” यह कथन किसका है और किससे कहा गया है? यह कथन किसके बारे में है? [3]
(iv) धाय माँ ने कीरत को अपनी योजना के बारे में क्या बताया और उसने क्या जवाब दिया? [3]
Answer:
(i) दादाजी का परिवार बरगद के समान विशाल है। बरगद के मजबूत तने और उसकी शाखाओं के समान दादाजी का प्रेम, उदारता तथा अनुशासन परिवार को मजबूती प्रदान कर रहा है। वे बरगद के पेड़ को महान इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह वृक्ष वर्षों से उन्हें शीतलता और छाया प्रदान कर रहा है। इसकी डालियों में सैकड़ों की संख्या में पक्षियों ने अपने घोंसले बना लिए हैं।

(ii) दादाजी के प्रयास का परिणाम सफल रहा। वह विचार तथा वातावरण की विभिन्नता के कारण पैदा होने वाली अशान्ति को खत्म करके परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम, सहयोग, सहनशीलता और उदारता की भावना को जन्म देने में सफल रहे। इस प्रकार संयुक्त परिवार की एकता की रक्षा का उनका प्रयास पूर्ण सफल रहा।

(iii) यह कथन पन्ना धाय का है और सामली से कहा गया है। यह कथन अत्याचारी राजा बनवीर के बारे में है। बनवीर कुँवर उदय सिंह का संरक्षक था परन्तु उसके दिल में खोट था। वह कुँवर की हत्या करके राज्य को अपने कब्जे में लेना चाहता था। उसके इरादों की भनक पन्ना धाय को हो गई थी। उसी सम्बन्ध में ये बातचीत हो रही थी।

(iv) धाय माँ ने कहा कि मौका तो आ गया है कीरत ! कुँवर जी की रक्षा करने का। उनके प्राण संकट में हैं। वह अपनी टोकरी में कुँवर जी को लिटा ले और ऊपर से जूठी पत्तलों से उन्हें ढक दे। वह उन्हें यहाँ से सुरक्षित ले जाए और बेरिस नदी के किनारे मिले। कीरत ने कहा ठीक है अन्नदाता! मुझे कोई सिपाही रोकेगा नहीं, क्योंकि आते समय भी किसी ने नहीं रोका।

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