ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – भिक्षुक [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह आता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को – भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
भिक्षुक लोगों से क्या माँग रहा है?

उत्तर:
भिक्षुक लोगों से अपनी क्षुधा शान्त करने के लिए मुट्ठी दो मुट्ठी अनाज माँग रहा है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह आता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को – भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
भिक्षुक की झोली कैसी है?

उत्तर :
भिक्षुक की झोली फटी-पुरानी है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह आता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को – भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
इन पंक्तियों के आधार पर भिक्षुक की दीन दशा का वर्णन कीजिये?

उत्तर:
भिक्षुक कितना दुर्बल है, इसका सहज ही अनुमान उसका पेट और पीठ देखकर लगाया जा सकता है। काफी समय से भोजन न मिलने के कारण उसके पेट-पीठ एक जैसे हो चुके हैं। वह बुढ़ापे और दुर्बलता के कारण लाठी के सहारे चल रहा है।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह आता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को – भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
शब्दार्थ लिखिए – टूक, पथ, लकूटिया

उत्तर:
टूक – टुकड़े
पथ – रास्ता
लकूटिया – लाठी, लाठिया

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
भिक्षुक के आँसुओं के घूँट पी जाने का क्या कारण है?

उत्तर:
भिक्षुक भूख के मारे व्याकुल है, साथ में उसके बच्चे भी हैं। भिक्षुक शरीर से भी दुर्बल है। भीख में जब उसे कुछ नहीं मिलता तब वह आँसुओं के घूँट पी जाता है।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
भूख मिटाने की विवशता उनसे क्या करवाती है?

उत्तर:
भिक्षुक को जब कुछ नहीं मिलता तो वे जूठी पत्तलें चाटने के लिए विवश हो जाते हैं। जूठी पत्तलों में जो कुछ थोड़ा बहुत अन्न बचा था वे उसी को खाकर अपनी भूख शांत करने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
‘और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।

उत्तर:
पउपर्युक्त पंक्ति का आशय भूख की विवशता से है। भिक्षुक जब सड़क पर खड़े होकर जूठी पत्तलों को चाटकर अपनी भूख को मिटाने का प्रयास कर रहे थे तब सड़क के कुत्ते भी उन्हीं पत्तलों को पाने के लिए भिक्षुक पर झपट पड़े थे।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
शब्दार्थ लिखिए – ओंठ, सड़क, कुत्ते, झपट, आँसू, विधाता

उत्तर:
ओंठ – ओष्ठ
सड़क – मार्ग
कुत्ते – श्वान
झपट – छिनना
आँसू – अश्रु
विधाता – ईश्वर

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – संदेह

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“तुमसे अपराध होगा? यह क्या कह रही हो? मैं रोता हूँ, इसमें मेरी ही भूल है। प्रायश्चित करने का यह ढंग नहीं, यह मैं धीरे-धीरे समझ रहा हूँ, किंतु करूँ क्या? यह मन नहीं मानता।”
उपर्युक्त अवतरण के वक्ता तथा श्रोता का परिचय दें।

उत्तर:
उपर्युक्त अवतरण का वक्ता रामनिहाल है। जो कि श्रोता श्यामा के यहाँ ही रहता है। श्यामा एक विधवा, समझदार और चरित्रवान महिला है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“तुमसे अपराध होगा? यह क्या कह रही हो? मैं रोता हूँ, इसमें मेरी ही भूल है। प्रायश्चित करने का यह ढंग नहीं, यह मैं धीरे-धीरे समझ रहा हूँ, किंतु करूँ क्या? यह मन नहीं मानता।”
श्रोता के वक्ता के बारे में क्या विचार हैं?

उत्तर :
शश्रोता अर्थात् रामनिहाल के वक्ता श्यामा के बारे में बड़े उच्च विचार है।
रामनिहाल श्यामा के स्वभाव से अभिभूत है। वह जिस प्रकार से अपने वैधव्य का जीवन जी रही है। वह रामनिहाल की नज़र में काबिले तारीफ़ है। वह श्यामा की सहृदयता और मानवता के कारण उसे अपना शुभ चिंतक, मित्र और रक्षक समझता है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“तुमसे अपराध होगा? यह क्या कह रही हो? मैं रोता हूँ, इसमें मेरी ही भूल है। प्रायश्चित करने का यह ढंग नहीं, यह मैं धीरे-धीरे समझ रहा हूँ, किंतु करूँ क्या? यह मन नहीं मानता।”
क्या वाकई में वक्ता से कोई अपराध हो गया था?

उत्तर:
नहीं, वक्ता से कोई अपराध नहीं हुआ था।
रामनिहाल अपना सामान बांधें लगातार रोये जा रहा था। अत: वक्ता यह जानना चाह रही थी कि कहीं उससे तो कोई भूल नहीं हो गई जिसके कारण रामनिहाल इस तरह से रोये जा रहा था।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“तुमसे अपराध होगा? यह क्या कह रही हो? मैं रोता हूँ, इसमें मेरी ही भूल है। प्रायश्चित करने का यह ढंग नहीं, यह मैं धीरे-धीरे समझ रहा हूँ, किंतु करूँ क्या? यह मन नहीं मानता।”
रामनिहाल के रोने का कारण क्या है?

उत्तर:
रामनिहाल को लगता है कि उससे कोई बड़ी भूल हो गई है और जिसका उसे प्रायश्चित करना पड़ेगा और इसी भूल के संदर्भ में वह रो रहा है।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मेरी महत्त्वकांक्षा, मेरे उन्नतिशील विचार मुझे बराबर दौड़ाते रहे। मैं अपनी कुशलता से अपने भाग्य को धोखा देता रहा। यह भी मेरा पेट भर देता था। कभी-कभी मुझे ऐसा मालूम होता है कि यह दाँव बैठा कि मैं अपने-आप पर विजयी हुआ और मैं सुखी होकर संतुष्ट होकर चैन से संसार के एक कोने में बैठ जाऊँगा, किंतु वह मृग मरीचिका थी।”
यहाँ पर किसके बारे में बात की जा रही है?

उत्तर:
यहाँ पर स्वयं रामनिहाल अपने विषय में बातचीत कर रहा है। अपने जीवन में अति महत्त्वाकांक्षी होने के कारण एक जगह टिक नहीं पाया। हर समय सामान अपनी पीठ पर लादे घूमता रहा।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मेरी महत्त्वकांक्षा, मेरे उन्नतिशील विचार मुझे बराबर दौड़ाते रहे। मैं अपनी कुशलता से अपने भाग्य को धोखा देता रहा। यह भी मेरा पेट भर देता था। कभी-कभी मुझे ऐसा मालूम होता है कि यह दाँव बैठा कि मैं अपने-आप पर विजयी हुआ और मैं सुखी होकर संतुष्ट होकर चैन से संसार के एक कोने में बैठ जाऊँगा, किंतु वह मृग मरीचिका थी।”
रामनिहाल की महत्त्वकांक्षा उससे क्या करवाती रही?

उत्तर:
रामनिहाल की महत्त्वकांक्षा और उसके उन्नतिशील विचार उसे बराबर दौड़ाते रहे। वह बड़ी कुशलतापूर्वक अपने भाग्य को धोखा देता रहा और अपना निर्वाह करता रहा।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मेरी महत्त्वकांक्षा, मेरे उन्नतिशील विचार मुझे बराबर दौड़ाते रहे। मैं अपनी कुशलता से अपने भाग्य को धोखा देता रहा। यह भी मेरा पेट भर देता था। कभी-कभी मुझे ऐसा मालूम होता है कि यह दाँव बैठा कि मैं अपने-आप पर विजयी हुआ और मैं सुखी होकर संतुष्ट होकर चैन से संसार के एक कोने में बैठ जाऊँगा, किंतु वह मृग मरीचिका थी।”
प्रस्तुत पंक्तियों का क्या आशय है?

उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों का आशय मनुष्य की कभी भी न पूरी होने वाली इच्छाओं से हैं। मनुष्य हमेशा अपनी हर इच्छा को अंतिम इच्छा समझता है और सोचता है कि बस यह पूरी हो जाय तो वह चैन की साँस लें। परंतु हर एक खत्म होने वाली इच्छा के बाद एक नई इच्छा का जन्म होता है और इसके साथ ही मनुष्य का असंतोष भी बढ़ता जाता है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मेरी महत्त्वकांक्षा, मेरे उन्नतिशील विचार मुझे बराबर दौड़ाते रहे। मैं अपनी कुशलता से अपने भाग्य को धोखा देता रहा। यह भी मेरा पेट भर देता था। कभी-कभी मुझे ऐसा मालूम होता है कि यह दाँव बैठा कि मैं अपने-आप पर विजयी हुआ और मैं सुखी होकर संतुष्ट होकर चैन से संसार के एक कोने में बैठ जाऊँगा, किंतु वह मृग मरीचिका थी।”
प्रस्तुत अवतरण में मृग मरीचिका से क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
प्रस्तुत अवतरण में मृग मरीचिका से तात्पर्य इंसान की कभी भी खत्म होने वाली इच्छाओं से है। रामनिहाल हमेशा सोचता था कि एक दिन वह संतुष्ट होकर कोने में बैठ जाएगा लेकिन ऐसा कभी भी संभव नहीं हो पाया।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मनोरमा घबरा उठी। उसने कहा – “चुप रहिए, आपकी तबीयत बिगड़ – रही है, शांत हो जाइए!”
कौन, किसे और क्यों शांत रहने के लिए कह रहा है?

उत्तर:
यहाँ पर मनोरमा अपने पति मोहनबाबू को शांत रहने के लिए कह रही है।
नाव पर घूमते समय बातों ही बातों में मोहनबाबू उत्तेजित हो जाते हैं और अजनबी रामनिहाल के सामने कुछ भी कहने लगते हैं इसलिए उनकी पत्नी मनोरमा चाहती है कि उसके पति शांत रहे।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मनोरमा घबरा उठी। उसने कहा – “चुप रहिए, आपकी तबीयत बिगड़ – रही है, शांत हो जाइए!”
मोहनबाबू कौन हैं और वे क्यों परेशान हैं?

उत्तर:
मोहनबाबू रामनिहाल के दफ़्तर के मालिक थे।
मोहनबाबू को संदेह था कि उनकी पत्नी मनोरमा और दफ़्तर में काम करने वाले उनके निकट संबंधी बृजकिशोर मिलकर उसके खिलाफ़ षडयंत्र रच रहे और उन्हें पागल साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए मोहनबाबू परेशान थे।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मनोरमा घबरा उठी। उसने कहा – “चुप रहिए, आपकी तबीयत बिगड़ – रही है, शांत हो जाइए!”
मोहनबाबू का किससे और क्यों मतभेद था?

उत्तर:
मोहनबाबू का अपनी पत्नी से वैचारिक स्तर पर मतभेद था। मोहनबाबू किसी भी विचार को दार्शनिक रूप से प्रकट करते थे जिसे उनकी पत्नी समझ नहीं पाती थी और यही उनके मतभेद का कारण था।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मनोरमा घबरा उठी। उसने कहा – “चुप रहिए, आपकी तबीयत बिगड़ – रही है, शांत हो जाइए!”
मोहनबाबू मनोरमा से माफ़ी क्यों माँगते हैं?

उत्तर:
नाव पर घूमते समय बातों ही बातों में मोहनबाबू का अपनी पत्नी से मतभेद हो जाता है और जिसके परिणास्वरूप वे अपनी पत्नी पर संदेह करते हैं ये बात अजनबी रामनिहाल के सामने प्रकट कर देते हैं। जब मोहनबाबू थोड़ा शांत हो जाते हैं तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हो जाता है तब वे अपनी पत्नी से माफ़ी माँगते हैं।

प्रश्न घ-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रामनिहाल हत बुद्धि अपराधी – श्यामा को देखने लगा, जैसे उसे कहीं भागने की राह न हो।
रामनिहाल ने श्यामा क्या बताया?

उत्तर:
रामनिहाल ने श्यामा को बताया कि बृजकिशोर बाबू चाहते हैं कि अदालत मोहनबाबू को पागल करार कर दे और उन्हें मोहनबाबू का निकट संबंधी होने के कारण सारी संपत्ति का प्रबंधक बना दे।

प्रश्न घ-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रामनिहाल हत बुद्धि अपराधी – श्यामा को देखने लगा, जैसे उसे कहीं भागने की राह न हो।
रामनिहाल किस संदेह से ग्रसित था?

उत्तर:
रामनिहाल इस संदेह से ग्रसित था कि मनोरमा उसे प्यार करती है और इसलिए बार-बार उसे पत्र लिख कर बुला रही है।

प्रश्न घ-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रामनिहाल हत बुद्धि अपराधी – श्यामा को देखने लगा, जैसे उसे कहीं भागने की राह न हो।
रामनिहाल हत बुद्धि क्यों हो गया?

उत्तर:
रामनिहाल अभी तक यह संदेह कर रहा था कि मनोरमा उससे प्यार करती है और इसलिए बार-बार पत्र लिखकर उसे बुला रही है पर जब श्यामा ने रामनिहाल को बताया कि वह एक दुखिया स्त्री है जो बृजकिशोर जैसे कपटी व्यक्ति के कारण उसकी सहायता चाहती है।
यह सुनकर रामनिहाल हत बुद्धि हो गया।
इस तरह जब श्यामा ने रामनिहाल के व्यर्थ के संदेह का निराकरण कर दिया तो रामनिहाल हत बुद्धि हो गया।

प्रश्न घ-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रामनिहाल हत बुद्धि अपराधी – श्यामा को देखने लगा, जैसे उसे कहीं भागने की राह न हो।
अंत में श्यामा ने रामनिहाल को क्या सुझाव दिया?

उत्तर:
रामनिहाल की सारी बातें सुनने के बाद श्यामा यह जान गई कि रामनिहाल व्यर्थ के संदेह के कारण परेशान है। तब श्यामा ने उसके संदेह का निराकरण किया और रामनिहाल को सुझाव दिया कि मनोरमा एक दुखिया स्त्री है और रामनिहाल को उसकी सहायता करनी चाहिए।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – विनय के पद [कविता]

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – विनय के पद [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
ऐसो कौ उदार जग माहीं।
बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर, राम सरस कोउ नाहीं॥
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी।
सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी॥
जो संपति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं।
सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच सहित हरि दीन्ही॥
तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो।
तौ भजु राम, काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो॥
तुलसीदासजी किसके भजन के लिए कह रहे हैं?

उत्तर:
तुलसीदासजी भगवान श्री राम के भजन के लिए कह रहे हैं।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
ऐसो कौ उदार जग माहीं।
बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर, राम सरस कोउ नाहीं॥
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी।
सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी॥
जो संपति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं।
सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच सहित हरि दीन्ही॥
तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो।
तौ भजु राम, काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो॥
श्री राम ने परम गति किस-किस को प्रदान की?

उत्तर :
श्री राम ने जटायु जैसे सामान्य गीध पक्षी और शबरी जैसी सामान्य स्त्री को परम गति प्रदान की।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
ऐसो कौ उदार जग माहीं।
बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर, राम सरस कोउ नाहीं॥
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी।
सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी॥
जो संपति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं।
सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच सहित हरि दीन्ही॥
तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो।
तौ भजु राम, काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो॥
रावण को कैसे वैभव प्राप्त हुआ?

उत्तर:
रावण ने भगवान शंकर को अपने दस सिर अर्पण करके वैभव की प्राप्ति की।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
ऐसो कौ उदार जग माहीं।
बिनु सेवा जो द्रवे दीन पर, राम सरस कोउ नाहीं॥
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ज्ञानी।
सो गति देत गीध सबरी कहँ प्रभु न बहुत जिय जानी॥
जो संपति दस सीस अरप करि रावन सिव पहँ लीन्हीं।
सो संपदा विभीषण कहँ अति सकुच सहित हरि दीन्ही॥
तुलसीदास सब भांति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो।
तौ भजु राम, काम सब पूरन करहि कृपानिधि तेरो॥
राम ने कौन-सी संपत्ति विभीषण को दे दी?

उत्तर:
रावण ने जो संपत्ति अपने दस सिर अर्पण करके प्राप्त की थी उसे श्री राम ने अत्यंत संकोच के साथ विभीषण को दे दी।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही।
सो छोड़िये
तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी।
बलिगुरु तज्यो कंत ब्रजबनितन्हि, भये मुद मंगलकारी।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहां लौं।
अंजन कहां आंखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहां लौं।
तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासों हाय सनेह राम-पद, एतोमतो हमारो।।
कवि के अनुसार हमें किसका त्याग करना चाहिए?

उत्तर:
कवि के अनुसार जिन लोगों के प्रिय राम-जानकी जी नहीं है उनका त्याग करना चाहिए।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही।
सो छोड़िये तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी।
बलिगुरु तज्यो कंत ब्रजबनितन्हि, भये मुद मंगलकारी।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहां लौं।
अंजन कहां आंखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहां लौं।
तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासों हाय सनेह राम-पद, एतोमतो हमारो।।
उदाहरण देकर लिखिए किन लोगों ने भगवान के प्यार में अपनों को त्यागा।

उत्तर:
प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकशिपु को, विभीषण ने अपने भाई रावण को, बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य को और ब्रज की गोपियों ने अपने-अपने पतियों को भगवान प्राप्ति को बाधक समझकर त्याग दिया।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही।
सो छोड़िये तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी।
बलिगुरु तज्यो कंत ब्रजबनितन्हि, भये मुद मंगलकारी।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहां लौं।
अंजन कहां आंखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहां लौं।
तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासों हाय सनेह राम-पद, एतोमतो हमारो।।
जिस अंजन को लगाने से आँखें फूट जाएँ क्या वो काम का होता है?

उत्तर:
नहीं जिस अंजन को लगाने से आँखें फूट जाएँ वो किसी काम का नहीं होता है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जाके प्रिय न राम वैदेही
तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही।
सो छोड़िये तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषन बंधु, भरत महतारी।
बलिगुरु तज्यो कंत ब्रजबनितन्हि, भये मुद मंगलकारी।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहां लौं।
अंजन कहां आंखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहां लौं।
तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासों हाय सनेह राम-पद, एतोमतो हमारो।।
उपर्युक्त पद द्वारा तुलसीदास क्या संदेश दे रहे हैं?

उत्तर:
उपर्युक्त पद द्वारा तुलसीदास श्री राम की भक्ति का संदेश दे रहे है। तथा भगवान प्राप्ति के लिए त्याग करने को भी प्रेरित कर रहे हैं।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – बड़े घर की बेटी

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – बड़े घर की बेटी

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह इसलिए नहीं कि उसे अपने सास-ससुर, देवर या जेठ आदि से घृणा थी बल्कि उसका विचार था कि यदि बहुत कुछ सहने पर भी परिवार के साथ निर्वाह न हो सके तो आए दिन के कलह से जीवन को नष्ट करने की अपेक्षा अच्छा है कि अपनी खिचड़ी अलग पकाई जाय।
बेनी माधव के कितने पुत्र थे उनका परिचय दें।

उत्तर:
बेनी माधव के दो बेटे थे बड़े का नाम श्रीकंठ था। उसने बहुत दिनों के परिश्रम और उद्योग के बाद बी.ए. की डिग्री प्राप्त की थी और इस समय वह एक दफ़्तर में नौकर था। छोटा लड़का लाल बिहारी सिंह दोहरे बदन का सजीला जवान था।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह इसलिए नहीं कि उसे अपने सास-ससुर, देवर या जेठ आदि से घृणा थी बल्कि उसका विचार था कि यदि बहुत कुछ सहने पर भी परिवार के साथ निर्वाह न हो सके तो आए दिन के कलह से जीवन को नष्ट करने की अपेक्षा अच्छा है कि अपनी खिचड़ी अलग पकाई जाय।
श्रीकंठ कैसे विचारों के व्यक्ति थे?

उत्तर :
श्रीकंठ बी.ए. इस अंग्रेजी डिग्री के अधिपति होने पर भी पाश्चात्य सामजिक प्रथाओं के विशेष प्रेमी न थे, बल्कि वे बहुधा बड़े जोर से उसकी निंदा और तिरस्कार किया करते थे। वे प्राचीन सभ्यता का गुणगान उनकी प्रकृति का प्रधान अंग था। सम्मिलित कुंटुब के तो वे एक मात्र उपासक थे। आजकल स्त्रियों में मिलजुलकर रहने में जो अरुचि थी श्रीकंठ उसे जाति और समाज के लिए हानिकारक समझते थे।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह इसलिए नहीं कि उसे अपने सास-ससुर, देवर या जेठ आदि से घृणा थी बल्कि उसका विचार था कि यदि बहुत कुछ सहने पर भी परिवार के साथ निर्वाह न हो सके तो आए दिन के कलह से जीवन को नष्ट करने की अपेक्षा अच्छा है कि अपनी खिचड़ी अलग पकाई जाय।
गाँव की स्त्रियाँ श्रीकंठ की निंदक क्यों थीं?

उत्तर:
श्रीकंठ स्त्रियों में मिलजुलकर रहने में जो अरुचि थी उसे जाति और समाज के लिए हानिकारक समझते थे। वे प्राचीन सभ्यता का गुणगान और सम्मिलित कुंटुब के उपासक थे। इसलिए गाँव की स्त्रियाँ श्रीकंठ की निंदक थीं। कोई-कोई तो उन्हें अपना शत्रु समझने में भी संकोच नहीं करती थीं।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह इसलिए नहीं कि उसे अपने सास-ससुर,देवर या जेठ आदि से घृणा थी बल्कि उसका विचार था कि यदि बहुत कुछ सहने पर भी परिवार के साथ निर्वाह न हो सके तो आए दिन के कलह से जीवन को नष्ट करने की अपेक्षा अच्छा है कि अपनी खिचड़ी अलग पकाई जाय।
आनंदी की सम्मिलित कुंटुब के बारे में राय अपने पति से अलग क्यों थी?

उत्तर:
आनंदी स्वभाव से बड़ी अच्छी स्त्री थी। वह घर के सभी लोगों का सम्मान और आदर करती थी परंतु उसकी राय संयुक्त परिवार के बारे में अपने पति से ज़रा अलग थी। उसके अनुसार यदि बहुत कुछ समझौता करने पर भी परिवार के साथ निर्वाह करना मुश्किल हो तो अलग हो जाना ही बेहतर है।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“लालबिहारी को भावज की यह ढिठाई बुरी मालूम हुई तिनकर बोला मैके में तो जैसे घी की नदियाँ बहती हो। स्त्रियाँ गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर उससे मैके की निंदा नहीं सही जाती।”
आनंदी और उसके देवर के बीच झगड़े का क्या कारण था?

उत्तर:
आनंदी ने सारा पावभर घी मांस पकाने में उपयोग कर दिया था जिसके कारण दाल में घी नहीं था। दाल में घी का न होना ही उनके झगड़े का कारण था।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“लालबिहारी को भावज की यह ढिठाई बुरी मालूम हुई तिनकर बोला मैके में तो जैसे घी की नदियाँ बहती हो। स्त्रियाँ गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर उससे मैके की निंदा नहीं सही जाती।”
लालबिहारी के किस कथन से आनंदी को दुःख पहुँचा और क्यों?

उत्तर:
घी की बात को लेकर लालबिहारी ने अपनी भाभी को ताना मार दिया कि जैसे उनके मायके में घी को नदियाँ बहती हैं और यही आनंदी के दुःख का कारण था क्योंकि आनंदी बड़े घर की बेटी थी उसके यहाँ किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“लालबिहारी को भावज की यह ढिठाई बुरी मालूम हुई तिनकर बोला मैके में तो जैसे घी की नदियाँ बहती हो। स्त्रियाँ गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर उससे मैके की निंदा नहीं सही जाती।”
उपर्युक्त संवाद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए?

उत्तर:
आनंदी बड़े घर की बेटी होने के कारण किफायत नहीं जानती थी इसलिए आनंदी ने हांडी का सारा घी मांस पकाने में उपयोग कर दिया जिसके कारण दाल में डालने के लिए घी नहीं बचा और इसी कारणवश देवर और भाभी में झगडा हो जाता है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“लालबिहारी को भावज की यह ढिठाई बुरी मालूम हुई तिनकर बोला मैके में तो जैसे घी की नदियाँ बहती हो। स्त्रियाँ गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है,पर उससे मैके की निंदा नहीं सही जाती।”
स्त्रियाँ गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर उससे मैके की निंदा नहीं सही जाती से क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
उपर्युक्त संवाद से तात्पर्य स्त्री आत्मगौरव से है। भले ही स्त्रियों की शादी हो जाए, काम के सिलसिले में उन्हें दूसरे शहर और घर में रहना पड़े, सफलता के शिखर को छू लें परंतु मायका ऐसा संवेदनशील विषय है जिसे स्त्री कभी भी छोड़ नहीं पाती है। वे सब कुछ सह लेगी लेकिन कभी भी अपने माता-पिता और मायके की बुराई नहीं सुन सकती।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
इलाहबाद का अनुभव रहित झल्लाया हुआ ग्रेजुएट इस बात को न समझ सका। उसे डिबेटिंग – क्लब में अपनी बात पर अड़ने की आदत थी, इन हथकंडों की उसे क्या खबर?
यहाँ पर इलाहबाद का अनुभव रहित झल्लाया हुआ ग्रेजुएट किसे संबोधित किया जा रहा है और वह क्या नहीं समझ पा रहा था?

उत्तर:
यहाँ पर बेनी माधव सिंह के के बड़े पुत्र श्रीकंठ को अनुभव रहित झल्लाया हुआ ग्रेजुएट संबोधित किया जा रहा है।
श्रीकंठ अपनी पत्नी की शिकायत पर अपने पिता के सामने घर से अलग हो जाने का प्रस्ताव रखता है। जिस समय वह ये बातें करता है वहाँ पर गाँव के अन्य लोग भी उपस्थित होते हैं। बेनी माधव अनुभवी होने के कारण घर के मामलों को घर में ही सुलझाना चाहते थे और यही बात श्रीकंठ को समझ नहीं आ रही थी। पिता के समझाने पर भी वह लोगों के सामने घर से अलग होने की बात दोहरा रहा था।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
इलाहबाद का अनुभव रहित झल्लाया हुआ ग्रेजुएट इस बात को न समझ सका। उसे डिबेटिंग – क्लब में अपनी बात पर अड़ने की आदत थी, इन हथकंडों की उसे क्या खबर?
बेनी माधव सिंह ने अपने बेटे का क्रोध शांत करने के लिए क्या किया?

उत्तर:
अनुभवी बेनी माधव सिंह ने अपने बेटे का क्रोध शांत करने के लिए कहा कि वे उसकी बातों से सहमत है श्रीकंठ जो चाहे कर सकते हैं क्योंकि उनके छोटे बेटे से अपराध तो हो ही गया है साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बुद्धिमान लोग मूर्खों की बात पर ध्यान नहीं देते। लालबिहारी बेसमझ लड़का है उससे जो भी भूल हुई है उसे श्रीकंठ बड़ा होने के नाते माफ़ कर दे।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
इलाहबाद का अनुभव रहित झल्लाया हुआ ग्रेजुएट इस बात को न समझ सका। उसे डिबेटिंग – क्लब में अपनी बात पर अड़ने की आदत थी, इन हथकंडों की उसे क्या खबर?
गाँव के लोग बेनी माधव सिंह के घर आकर क्यों बैठ गए थे?

उत्तर:
गाँव में कुछ कुटिल मनुष्य ऐसे भी थे जो बेनी माधव सिंह के संयुक्त परिवार और परिवार की नीतिपूर्ण गति से जलते थे उन्हें जब पता चला कि अपनी पत्नी की खातिर श्रीकंठ अपने पिता से लड़ने चला है तो कोई हुक्का पीने, कोई लगान की रसीद दिखाने के बहाने बेनी माधव सिंह के घर जमा होने लगे।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
इलाहबाद का अनुभव रहित झल्लाया हुआ ग्रेजुएट इस बात को न समझ सका। उसे डिबेटिंग – क्लब में अपनी बात पर अड़ने की आदत थी, इन हथकंडों की उसे क्या खबर?
उपर्युक्त कथन का संदर्भ स्पष्ट करें।

उत्तर:
श्रीकंठ क्रोधित होने के कारण अपने पिता से सबके सामने लड़ पड़ते हैं। पिता नहीं चाहते थे कि घर की बात बाहर वालों को पता चले परंतु श्रीकंठ अनुभवी पिता की बातें नहीं समझ पाता और लोगों के सामने ही पिता से बहस करने लगता है। उपर्युक्त कथन श्रीकंठ की इसी नासमझी को बताने के लिया कहा गया है।

प्रश्न घ-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
बेनी माधव बाहर से आ रहे थे। दोनों भाईयों को गले मिलते देखकर आनंद से पुलकित हो गए और बोल उठे, बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।”
आनंदी की शिकायत का क्या परिणाम हुआ?

उत्तर:
आनंदी का अपने देवर के साथ दाल में घी न डालने पर झगड़ा हो गया था और गुस्से में उसके देवर ने आनंदी पर खड़ाऊँ फेंककर दे मारी थी। आनंदी ने इस बात की शिकायत जब अपने पति श्रीकंठ से की तो वह गुस्से से आग-बबूला हो गया और पिता के सामने जाकर घर से अलग होने की बात कह डाली।

प्रश्न घ-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
बेनी माधव बाहर से आ रहे थे। दोनों भाईयों को गले मिलते देखकर आनंद से पुलकित हो गए और बोल उठे, बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।”
आनंदी को अपनी बात का पछतावा क्यों हुआ?

उत्तर:
आनंदी ने गुस्से में आकर अपने पति से शिकायत तो कर दी परंतु दयालु व संस्कारी स्वभाव की होने के कारण मन-ही-मन अपनी बात पर पछताने भी लगती है कि क्यों उसने अपने पर काबू नहीं रखा और व्यर्थ में घर में इतना बड़ा उपद्रव खड़ा कर दिया।

प्रश्न घ-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
बेनी माधव बाहर से आ रहे थे। दोनों भाईयों को गले मिलते देखकर आनंद से पुलकित हो गए और बोल उठे, बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।”
बेनी माधव ने ने आनंदी को बड़े घर की बेटी क्यों कहा?

उत्तर:
आनंदी का देवर जब घर छोड़कर जाने लगा तो स्वयं आनंदी ने आगे बढ़कर अपने देवर को रोक लिया और अपने किए पर पश्चाताप करने लगी। आनंदी ने अपने अपमान को भूलकर दोनों भाईयों में सुलह करवा दी थी। अत: बिगड़े हुए काम को बना देने के कारण बेनी माधव ने आनंदी को बड़े घर की बेटी कहा।

प्रश्न घ-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
बेनी माधव बाहर से आ रहे थे। दोनों भाईयों को गले मिलते देखकर आनंद से पुलकित हो गए और बोल उठे, बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।”
‘बड़े घर की बेटी’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।

उत्तर:
इस काहनी के माध्यम से लेखक ने स्पष्ट किया है कि किसी भी घर में पारिवारिक शांति और सामंजस्य बनाए रखने में घर की स्त्रियों की अहम् भूमिका होती है। घर की स्त्रियों अपनी समझदारी से टूटते और बिखरते परिवारों को भी जोड़ सकती है। साथ की लेखक ने संयुक्त परिवारों की उपयोगिता को भी इस कहानी के माध्यम से सिद्ध किया है।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – सूर के पद [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
कौन किसको सुलाने का प्रयास कर रहा है?

उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने माता यशोदा का कृष्ण के प्रति प्यार को प्रदर्शित किया है। यहाँ पर माता यशोदा कृष्ण को सुलाने का प्रयास कर रही है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
यशोदा बालक कृष्ण को सुलाने के लिए क्या-क्या यत्न कर रही है?

उत्तर :
यशोदा जी बालक कृष्ण को सुलाने के लिए पलने में झुला रही हैं। कभी प्यार करके पुचकारती हैं और लोरी गाती रहती है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
कृष्ण को सोता हुआ जानकर यशोदा क्या करती हैं?

उत्तर:
कृष्ण को सोते समझकर यशोदा माता चुप हो जाती हैं और दूसरी गोपियों को भी संकेत करके समझाती हैं कि वे सब भी चुप रहे।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहे न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥
सूरदास के अनुसार यशोदा कौन-सा सुख पा रही हैं?

उत्तर:
सूरदास जी कहते हैं कि जो सुख देवताओं तथा मुनियों के लिये भी दुर्लभ है, वही श्याम को बालरूप में पाकर लालन-पालन तथा प्यार करने का सुख यशोदा प्राप्त कर रही हैं।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
खीजत जात माखन खात।
अरुन लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात॥
कबहुँ रुनझुन चलत घुटुरुनि, धूरि धूसर गात।
कबहुँ झुक कै अलक खैँचत, नैन जल भरि जात॥
कबहुँ तोतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा, निमिष तजत न मात॥
इस दोहे में सूरदास जी ने क्या वर्णन किया है?

उत्तर:
इस दोहे में सूरदास जी ने श्रीकृष्ण के अनुपम बाल सौन्दर्य का वर्णन किया है।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
खीजत जात माखन खात।
अरुन लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात॥
कबहुँ रुनझुन चलत घुटुरुनि, धूरि धूसर गात।
कबहुँ झुक कै अलक खैँचत, नैन जल भरि जात॥
कबहुँ तोतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा, निमिष तजत न मात॥
बाल कृष्ण कैसे चलते हैं?

उत्तर:
बाल कृष्ण घुटनों के बल चलते हैं। उनके पैरों में घुंघरुओं की आवाज़ आती है।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
खीजत जात माखन खात।
अरुन लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात॥
कबहुँ रुनझुन चलत घुटुरुनि, धूरि धूसर गात।
कबहुँ झुक कै अलक खैँचत, नैन जल भरि जात॥
कबहुँ तोतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा, निमिष तजत न मात॥
बाल कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन कीजिए।

उत्तर:
बाल कृष्ण बहुत सुंदर हैं। उनके नेत्र सुंदर हैं, भौंहें टेढ़ी हैं तथा वे बार-बार जम्हाई ले रहे हैं। उनका शरीर धूल में सना है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
खीजत जात माखन खात।
अरुन लोचन, भौंह टेढ़ी, बार-बार जँभात॥
कबहुँ रुनझुन चलत घुटुरुनि, धूरि धूसर गात।
कबहुँ झुक कै अलक खैँचत, नैन जल भरि जात॥
कबहुँ तोतरे बोल बोलत, कबहुँ बोलत तात।
सूर हरि की निरखि सोभा, निमिष तजत न मात॥
बाल कृष्ण कैसी जबान में बोलते हैं?

उत्तर:
बाल कृष्ण तोतली जबान में बोलते हैं।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को, तेरौ सुत न कहैहौं॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
उपर्युक्त पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
उपर्युक्त पद महाकवि सूरदास द्वारा रचित है। इस पद में बाल कृष्ण अपनी यशोदा माता से चंद्रमा रूपी खिलौना लेने की हठ कर रहे हैं उसका वर्णन किया गया है।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को, तेरौ सुत न कहैहौं॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
अपनी हठ पूरी न होने पर बाल कृष्ण अपनी माता को क्या-क्या कह रहे हैं?

उत्तर:
अपनी हठ पूरी न होने पर बाल कृष्ण अपनी माता को कहते हैं कि जब तक उन्हें चाँद रूपी खिलौना नहीं मिल जाता तब तक वह न तो भोजन ग्रहण करेंगे, न चोटी गुँथवाएगे, न मोतियों की माला पहनेंगे, न उनकी गोद में आएँगे, न ही नंद बाबा और यशोदा माता के बेटे कहलाएँगे।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को, तेरौ सुत न कहैहौं॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
यशोदा माता श्रीकृष्ण को मनाने के लिए क्या कहती है?

उत्तर:
यशोदा माता श्रीकृष्ण को मनाने के लिए उनके कान में कहती है, तुम ध्यान से सुनो। कहीं बलराम न सुन ले। तुम तो मेरे चंदा हो और में तुम्हारे लिए सुंदर दुल्हन लाऊँगी।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं।
जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥
सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं।
ह्वै हौं पूत नंद बाबा को, तेरौ सुत न कहैहौं॥
आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं।
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं॥
तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं॥
सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं॥
माँ यशोदा की बात सुनकर श्रीकृष्ण की क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर:
माँ यशोदा की बात सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं माता तुझको मेरी सौगन्ध। तुम मुझे अभी ब्याहने चलो।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – मेघ आए [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरकाए।
मेघ रूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?

उत्तर:
मेघ रूपी मेहमान के आने से हवा के तेज बहाव के कारण आँधी चलने लगती है जिससे पेड़ कभी झुक जाते हैं तो कभी उठ जाते हैं। दरवाजे खिड़कियाँ खुल जाती हैं। नदी बाँकी होकर बहने लगी। पीपल का वृक्ष भी झुकने लगता है, तालाब के पानी में उथल-पुथल होने लगती है, अंत में आसमान से वर्षा होने लगती है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरकाए।
‘बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरकाए।’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :
उपर्युक्त पंक्ति का भाव यह है कि मेघ के आने का प्रभाव सभी पर पड़ा है। नदी ठिठककर कर जब ऊपर देखने की चेष्टा करती है तो उसका घूँघट सरक जाता है और वह तिरछी नज़र से आए हुए आंगतुक को देखने लगती है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरकाए।
मेघों के लिए ‘बन-ठन के, सँवर के’ आने की बात क्यों कही गई है?

उत्तर:
कवि ने मेघों में सजीवता लाने के लिए बन ठन की बात की है। जब हम किसी के घर बहुत दिनों के बाद जाते हैं तो बन सँवरकर जाते हैं ठीक उसी प्रकार मेघ भी बहुत दिनों बाद आए हैं क्योंकि उन्हें बनने सँवरने में देर हो गई थी।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये
बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरकाए।
शब्दार्थ लिखिए – बन ठन के, बाँकी चितवन, पाहून, ठिठकना

उत्तर:

शब्द अर्थ
बन ठन के सज-धज के
बाँकी चितवन तिरछी नजर
पाहुन अतिथि
ठिठकना सहम जाना

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
‘क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी, क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि नायिका को यह भ्रम था कि उसके प्रिय अर्थात् मेघ नहीं आएँगे परन्तु बादल रूपी नायक के आने से उसकी सारी शंकाएँ मिट जाती है और वह क्षमा याचना करने लगती है।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
लता ने बादल रूपी मेहमान को किस तरह देखा और क्यों?

उत्तर:
लता ने बादल रूपी मेहमान को किवाड़ की ओट में से देखा क्योंकि एक तो वह बादल को देखने के लिए व्याकुल हो रही थी और दूसरी ओर वह बादलों के देरी से आने के कारण रूठी हुई भी थी।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
कवि ने पीपल के पेड़ के लिए किस शब्द का प्रयोग किया है और क्यों?

उत्तर:
कवि ने पीपल के पेड़ के लिए ‘बूढ़े’ शब्द का प्रयोग किया है क्योंकि पीपल का पेड़ दीर्घजीवी होता है। जिस प्रकार गाँव में मेहमान आने पर बड़े-बूढ़े आगे बढ़कर उसका अभिवादन करते हैं वैसे ही मेघ रूपी दामाद के आने पर गाँव के बुजुर्ग पीपल का पेड़ आगे बढ़कर उनका स्वागत करते हैं।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।
शब्दार्थ लिखिए – बरस, सुधि, अकुलाई, ढरके

उत्तर:

शब्द अर्थ
बरस वर्ष
सुधि सुध
अकुलाई व्याकुल
ढरके ढलकना

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – अपना – अपना भाग्य

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – अपना – अपना भाग्य

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैंने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली-सी मूर्ति हमारी तरफ आ रही थी। मैंने कहा – “होगा कोई”
लेखक किसके साथ कहाँ बैठा था?

उत्तर:
लेखक अपने मित्र के साथ नैनीताल में संध्या के समय बहुत देर तक निरुद्देश्य घूमने के बाद एक बेंच पर बैठे थे?

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैंने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली-सी मूर्ति हमारी तरफ आ रही थी। मैंने कहा – “होगा कोई”
बादलों का लेखक ने कैसा वर्णन किया है?

उत्तर :
लेखक अपने मित्र के साथ नैनीताल में संध्या के समय बहुत देर तक निरुद्देश्य घूमने के बाद एक बेंच पर बैठे थे। उस समय संध्या धीरे-धीरे उतर रही थी। रुई के रेशे की तरह बादल लेखक के सिर को छूते हुए निकल रहे थे। हल्के प्रकाश और अँधियारी से रंग कर कभी बादल नीले दिखते, तो कभी सफ़ेद और फिर कभी जरा लाल रंग में बदल जाते।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैंने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली-सी मूर्ति हमारी तरफ आ रही थी। मैंने कहा – “होगा कोई”
लेखक ने नैनीताल की उस संध्या में कुहरे की सफेदी में क्या देखा?

उत्तर:
लेखक ने उस शाम एक दस-बारह वर्षीय बच्चे को देखा जो नंगे पैर, नंगे सिर और एक मैली कमीज लटकाए चला आ रहा था। उसकी चाल से कुछ भी समझ पाना लेखक को असंभव सा लग रहा था क्योंकि उसके पैर सीधे नहीं पड़ रहे थे। उस बालक का रंग गोरा था परंतु मैल खाने से काला पड़ गया था, ऑंखें अच्छी, बड़ी पर सूनी थी माथा ऐसा था जैसे अभी से झुरियों आ गईं हो।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
मैंने देखा कि कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली-सी मूर्ति हमारी तरफ आ रही थी। मैंने कहा – “होगा कोई”
लेखक और मित्र ने उस बालक के विषय में कौन-सी बातें जानी?

उत्तर:
नैनीताल की संध्या के समय लेखक और उसके मित्र जब एक बेंच पर बैठे थे तो उनकी मुलाकात एक दस-बारह वर्षीय बालक से होती है। दोनों को आश्चर्य होता है कि इतनी ठंड में यह बालक बाहर क्या कर रहा है। वे उससे तरह-तरह के प्रश्न करते हैं। उससे उन्हें पता चलता है कि वो कोई पास की दुकान पर काम करता था और उसे काम के बदले में एक रूपया और जूठा खाना मिलता था।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“अजी ये पहाड़ी बड़े शैतान होते हैं। बच्चे-बच्चे में अवगुण छिपे रहते हैं – आप भी क्या अजीब हैं उठा लाए कहीं से-लो जी यह नौकर लो।”
उपर्युक्त अवतरण में किस की बात की जा रही है?

उत्तर:
उपर्युक्त अवतरण में एक दस-बारह वर्षीय पहाड़ी बालक की बात की जा रही है।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“अजी ये पहाड़ी बड़े शैतान होते हैं। बच्चे-बच्चे में अवगुण छिपे रहते हैं – आप भी क्या अजीब हैं उठा लाए कहीं से-लो जी यह नौकर लो।”
प्रस्तुत कथन के वक्ता का परिचय दें।

उत्तर:
प्रस्तुत कथन के वक्ता लेखक के वकील मित्र हैं और साथ ही होटल के मालिक भी हैं।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“अजी ये पहाड़ी बड़े शैतान होते हैं। बच्चे-बच्चे में अवगुण छिपे रहते हैं – आप भी क्या अजीब हैं उठा लाए कहीं से-लो जी यह नौकर लो।”
लेखक उस बच्चे को वकील साहब के पास क्यों ले गए?

उत्तर:
लेखक को रास्ते में एक दस-बारह वर्षीय बालक मिला जिसके पास कोई काम और रहने की जगह नहीं थी। लेखक के एक वकील मित्र थे जिन्हें अपने होटल के लिए एक नौकर की आवश्यकता थी इसलिए लेखक उस बच्चे को वकील साहब के पास ले गए।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“अजी ये पहाड़ी बड़े शैतान होते हैं। बच्चे-बच्चे में अवगुण छिपे रहते हैं – आप भी क्या अजीब हैं उठा लाए कहीं से-लो जी यह नौकर लो।”
वकील साहब उस बच्चे को नौकर क्यों नहीं रखना चाहते थे?

उत्तर:
वकील उस बच्चे को नौकर इसलिए नहीं रखना चाहते थे क्योंकि वे और लेखक दोनों ही उस बच्चे के बारे में कुछ जानते नहीं थे। साथ ही वकील साहब को यह लगता था कि पहाड़ी बच्चे बड़े शैतान और अवगुणों से भरे होते हैं। यदि उन्होंने ने किसी ऐरे गैरे को नौकर रख लिया और वह अगले दिन वह चीजों को लेकर चंपत हो गया तो। इस तरह भविष्य में चोरी की आशंका के कारण वकील साहब ने उस बच्चे को नौकरी पर नहीं रखा।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
पर बतलाने वालों ने बताया कि गरीब के मुँह पर छाती, मुट्ठियों और पैरों पर बर्फ की हल्की-सी चादर चिपक गई थी, मानो दुनिया की बेहयाई ढँकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफ़ेद और ठंडे कफ़न का प्रबंध कर दिया था।
यहाँ पर गरीब किसे और क्यों संबोधित किया गया है?

उत्तर:
यहाँ पर गरीब उस पहाड़ी बालक को संबोधित किया गया, जो कल रात ठंड के कारण मर गया था। उस बालक के कई भाई-बहन थे। पिता के पास कोई काम न था घर में हमेशा भूख पसरी रहती थी इसलिए वह बालक घर से भाग आया था यहाँ आकर भी दिनभर काम के बाद जूठा खाना और एक रूपया ही नसीब होता था।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
पर बतलाने वालों ने बताया कि गरीब के मुँह पर छाती, मुट्ठियों और पैरों पर बर्फ की हल्की-सी चादर चिपक गई थी, मानो दुनिया की बेहयाई ढँकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफ़ेद और ठंडे कफ़न का प्रबंध कर दिया था।
लड़के की मृत्यु का क्या कारण था?

उत्तर:
लड़का अपनी घर की गरीबी से तंग आकर काम की तलाश में नैनीताल भाग कर आया था। यहाँ पर आकर उसे एक दुकान में काम मिल गया था परंतु किसी कारणवश उसका काम छूट जाता है और उसके पास रहने की कोई जगह नहीं रहती है। उस दिन बहुत अधिक ठंड थी और उसके पास कपड़ों के नाम पर एक फटी कमीज थी इसी कारण उसे रात सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बितानी पड़ी और अत्यधिक ठंड होने के कारण उस लड़के की मृत्यु हो गई।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
पर बतलाने वालों ने बताया कि गरीब के मुँह पर छाती, मुट्ठियों और पैरों पर बर्फ की हल्की-सी चादर चिपक गई थी, मानो दुनिया की बेहयाई ढँकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफ़ेद और ठंडे कफ़न का प्रबंध कर दिया था।
‘दुनिया की बेहयाई ढँकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफ़ेद और ठंडे कफ़न का प्रबंध कर दिया था’- इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का आशय सामान्य जनमानस की संवेदन-शून्यता और स्वार्थ भावना से है। एक पहाड़ी बालक गरीबी के कारण ठंड से ठिठुरकर मर जाता है। परंतु प्रकृति ने उसके तन पर बर्फ की हल्की चादर बिछाकर मानो उसके लिए कफ़न का इंतजाम कर दिया। जिसे देखकर ऐसा लगता था मानो प्रकृति मनुष्य की बेहयाई को ढँक रही हो।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
पर बतलाने वालों ने बताया कि गरीब के मुँह पर छाती, मुट्ठियों और पैरों पर बर्फ की हल्की-सी चादर चिपक गई थी, मानो दुनिया की बेहयाई ढँकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफ़ेद और ठंडे कफ़न का प्रबंध कर दिया था।
‘अपना अपना भाग्य’ कहानी के उद्देश्य पर विचार कीजिए।

उत्तर:
प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य आज के समाज में व्याप्त स्वार्थपरता, संवेदनशून्यता और आर्थिक विषमता को उजागर करना है। आज के समाज में परोपकारिता का अभाव हो गया है। निर्धन की सहायता करने की अपेक्षा सब उसे अपना-अपना भाग्य कहकर मुक्ति पा लेते हैं। हर कोई अपनी सामजिक जिम्मेदारी से बचना चाहता है। किसी को अन्य के दुःख से कुछ लेना-देना नहीं होता।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – वह जन्मभूमि मेरी [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
ऊँचा खड़ा हिमालय आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक, नित सिंधु झूमता है।
गंगा यमुना त्रिवेणी नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली पग-पग छहर रही है।
वह पुण्य भूमि मेरी, वह स्वर्ण भूमि मेरी।
कवि किस भूमि की बात कर रहा है?

उत्तर:
कवि अपनी जन्मभूमि भारतमाता की बात कर रहा है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
ऊँचा खड़ा हिमालय आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक, नित सिंधु झूमता है।
गंगा यमुना त्रिवेणी नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली पग-पग छहर रही है।
वह पुण्य भूमि मेरी, वह स्वर्ण भूमि मेरी।
कवि ने हिमालय के बारे में क्या कहा है?

उत्तर :
कवि कहते है कि हिमालय इतना ऊँचा है मानो आसमान को चूम रहा है। वह हमारे भारत की रक्षा करता है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
ऊँचा खड़ा हिमालय आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक, नित सिंधु झूमता है।
गंगा यमुना त्रिवेणी नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली पग-पग छहर रही है।
वह पुण्य भूमि मेरी, वह स्वर्ण भूमि मेरी।
त्रिवेणी नदियों के नाम लिखिए।

उत्तर:
गंगा, यमुना और सरस्वती त्रिवेणी नदियाँ है।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
ऊँचा खड़ा हिमालय आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक, नित सिंधु झूमता है।
गंगा यमुना त्रिवेणी नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली पग-पग छहर रही है।
वह पुण्य भूमि मेरी, वह स्वर्ण भूमि मेरी।
शब्दार्थ लिखिए :
मातृभूमि, सिंधु, नित, पुण्य भूमि

उत्तर:

शब्द अर्थ
मातृभूमि जन्म भूमि
सिंधु समुद्र
नित प्रतिदिन
पुण्य भूमि पवित्र भूमि

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
झरने अनेक झरते जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़िया चहक रही हैं, हो मस्त झाड़ियों में।
अमराइयाँ घनी हैं कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है, तन मन सँवारती है।
वह धर्मभूमि मेरी, वह कर्मभूमि मेरी।
कवि ने भारत के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है?

उत्तर:
पकवि ने भारत के लिए जन्मभूमि, मातृभूमि, धर्मभूमि तथा कर्मभूमि विशेषणों का प्रयोग किया है।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
झरने अनेक झरते जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़िया चहक रही हैं, हो मस्त झाड़ियों में।
अमराइयाँ घनी हैं कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है, तन मन सँवारती है।
वह धर्मभूमि मेरी, वह कर्मभूमि मेरी।
झरने कहाँ झरते हैं?

उत्तर:
पझरने भारत माता की पवित्र पहाड़ियों पर झरते हैं।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
झरने अनेक झरते जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़िया चहक रही हैं, हो मस्त झाड़ियों में।
अमराइयाँ घनी हैं कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है, तन मन सँवारती है।
वह धर्मभूमि मेरी, वह कर्मभूमि मेरी।
भारत की हवा कैसी है? उसका हम पर क्या प्रभाव होता है?

उत्तर:
भारत में बहने वाली हवा सुगंधित है। यह हमारे तन-मन को सँवारती है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।
झरने अनेक झरते जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़िया चहक रही हैं, हो मस्त झाड़ियों में।
अमराइयाँ घनी हैं कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है, तन मन सँवारती है।
वह धर्मभूमि मेरी, वह कर्मभूमि मेरी।
शब्दार्थ लिखिए :
अमराइयाँ, मलय, पवन

उत्तर:

शब्द अर्थ
अमराइयाँ आम के पेड़ों के बाग
मलय पर्वत का नाम
पवन हवा

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी वह मातृभूमि मेरी।
जन्मे जहाँ थे रघुपति, जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई, वंशी पुनीत गीता।
गौतम ने जन्म लेकर, जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई, जग को दिया दिखाया।
वह युद्ध-भूमि मेरी, वह बुद्ध-भूमि मेरी।
वह मातृभूमि मेरी, वह जन्मभूमि मेरी।
कवि भारत की भूमि को पावन क्यों मानते हैं?

उत्तर:
पकवि भारत की भूमि को पावन मानते हैं क्योंकि यहाँ राम, सीता, श्रीकृष्ण तथा गौतम जैसे महान अवतार अवतरित हुए थे।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी वह मातृभूमि मेरी।
जन्मे जहाँ थे रघुपति, जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई, वंशी पुनीत गीता।
गौतम ने जन्म लेकर, जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई, जग को दिया दिखाया।
वह युद्ध-भूमि मेरी, वह बुद्ध-भूमि मेरी।
वह मातृभूमि मेरी, वह जन्मभूमि मेरी।
गौतम कौन थे? उन्होंने क्या उपदेश दिया था?

उत्तर:
गौतम बौद्ध धर्म चलाने वाले महापुरुष थे। उन्होंने जीवों पर दया रखने का उपदेश दिया।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी वह मातृभूमि मेरी।
जन्मे जहाँ थे रघुपति, जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई, वंशी पुनीत गीता।
गौतम ने जन्म लेकर, जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई, जग को दिया दिखाया।
वह युद्ध-भूमि मेरी, वह बुद्ध-भूमि मेरी।
वह मातृभूमि मेरी, वह जन्मभूमि मेरी।
‘श्रीकृष्ण ने सुनाई, वंशी पुनीत गीता’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि यह वहीं पवन भारत भूमि है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। गोकुल और मथुरा की गोपियों को अपनी मुरली की धुन से मोहित कर दिया था तथा कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वह जन्मभूमि मेरी वह मातृभूमि मेरी।
जन्मे जहाँ थे रघुपति, जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई, वंशी पुनीत गीता।
गौतम ने जन्म लेकर, जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई, जग को दिया दिखाया।
वह युद्ध-भूमि मेरी, वह बुद्ध-भूमि मेरी।
वह मातृभूमि मेरी, वह जन्मभूमि मेरी।
शब्दार्थ लिखिए :
रघुपति, वंशी, पुनीत, जंग

उत्तर:

शब्द अर्थ
रघुपति भगवान श्री राम
वंशी बांसुरी
पुनीत पवित्र
जंग संसार

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – नेता जी का चश्मा

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – नेता जी का चश्मा

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
इसी नगरपालिका के उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार ‘शहर’ के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी यह कहानी उसी प्रतिमा के बारे में है,बल्कि उसके भी एक छोटे-से हिस्से के बारे में।
हालदार साहब कब और कहाँ-से क्यों गुजरते थे?

उत्तर:
हालदार साहब हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में एक कस्बे से गुजरते थे। जहाँ बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति लगी थी।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
इसी नगरपालिका के उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार ‘शहर’ के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी यह कहानी उसी प्रतिमा के बारे में है, बल्कि उसके भी एक छोटे-से हिस्से के बारे में।
कस्बे का वर्णन कीजिए।

उत्तर :
कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। जिसे पक्का मकान कहा जा सके वैसे कुछ ही मकान और जिसे बाज़ार कहा जा सके वैसा एक ही बाज़ार था। कस्बे में एक लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, एक सीमेंट का कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक नगरपालिका थी।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
इसी नगरपालिका के उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार ‘शहर’ के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी यह कहानी उसी प्रतिमा के बारे में है, बल्कि उसके भी एक छोटे-से हिस्से के बारे में।
नगरपालिका के कार्यों के बारे में बताइए।

उत्तर:
उस कस्बे नगरपालिका थी तो कुछ-न कुछ करती भी रहती थी। कभी कोई सड़क पक्की करवा दी, कभी कुछ पेशाबघर बनवा दिए, कभी कबूतरों की छतरी बनवा दी तो कभी कवि सम्मलेन करवा दिया।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
इसी नगरपालिका के उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार ‘शहर’ के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी यह कहानी उसी प्रतिमा के बारे में है, बल्कि उसके भी एक छोटे-से हिस्से के बारे में।
शहर के मुख्य बाज़ार में प्रतिमा किसने लगवाईं थी और उस प्रतिमा की क्या विशेषता थी?

उत्तर:
शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी थी।
उस मूर्ति की विशेषता यह थी कि मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची और सुंदर थी। नेताजी फौजी वर्दी में सुंदर लगते थे। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और तुम मुझे खून दो… आदि याद आने लगते थे। केवल एक चीज की कसर थी जो देखते ही खटकती थी नेताजी की आँख पर संगमरमर चश्मा नहीं था बल्कि उसके स्थान पर सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वाह भाई! क्या आइडिया है। मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती, लेकिन चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है?
प्रस्तुत कथन के वक्ता का परिचय दें।

उत्तर:
प्रस्तुत कथन के वक्ता हालदार साहब हैं। वे अत्यंत भावुक और संवेदनशील होने के साथ एक देशभक्त भी हैं। उन्हें देशभक्तों का मज़ाक उड़ाया जाना पसंद नहीं है। वे कैप्टन की देशभावना के प्रति सम्मान और सहानुभूति रखते हैं।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वाह भाई! क्या आइडिया है। मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती, लेकिन चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है?
प्रस्तुत कथन के श्रोता का परिचय दें।

उत्तर:
प्रस्तुत कथन का श्रोता पानवाला है। पानवाला पूरी की पूरी पान की दुकान है, सड़क के चौराहे के किनारे उसकी पान की दुकान है। वह काला तथा मोटा है, उसकी तोंद भी निकली हुई है, उसके सिर पर गिने-चुने बाल ही बचे हैं। वह एक तरफ़ ग्राहक के लिए पान बना रहा है, वहीं दूसरी ओर उसका मुँह पान से भरा है। पान खाने के कारण उसके होंठ लाल तथा कहीं-कहीं काले पड़ गए हैं। स्वभाव से वह मजाकिया है। वह बातें बनाने में माहिर है।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वाह भाई! क्या आइडिया है। मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती, लेकिन चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है?
कस्बे से गुजरते समय हालदार साहब को क्या आदत पड़ गई थी?

उत्तर:
कस्बे से गुजरते समय हालदार साहब को उस कस्बे के मुख्य बाज़ार के चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखने की आदत पड़ गई थी।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
वाह भाई! क्या आइडिया है। मूर्ति कपड़े नहीं बदल सकती, लेकिन चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है?
मूर्ति का चश्मा हर-बार कौन और क्यों बदल देता था?

उत्तर:
मूर्ति का चश्मा हर-बार कैप्टन बदल देता था। कैप्टन असलियत में एक गरीब चश्मेवाला था। उसकी कोई दुकान नहीं थी। फेरी लगाकर वह अपने चश्मे बेचता था। जब उसका कोई ग्राहक नेताजी की मूर्ति पर लगे फ्रेम की माँग करता तो कैप्टन मूर्ति पर अन्य फ्रेम लगाकर वह फ्रेम अपने ग्राहक को बेच देता। इसी कारणवश मूर्ति पर कोई स्थाई फ्रेम नहीं रहता था।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
प्रस्तुत कथन में नेताजी का ओरिजिनल चश्मा से क्या तात्पर्य है?

उत्तर:
प्रस्तुत कथन में नेताजी का ओरिजिनल चश्मा से तात्पर्य नेताजी के बार-बार बदलने वाले फ्रेम से है। मूर्तिकार ने नेताजी की मूर्ति बनाते समय चश्मा नहीं बनाया था। नेताजी बिना चश्मे के यह बात एक गरीब देशभक्त चश्मेवाले कैप्टन को पसंद नहीं आती थी इसलिए वह नेताजी की मूर्ति पर उसके पास उपलब्ध फ्रेमों से एक फ्रेम लगा देता था।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
मूर्तिकार कौन था और उसने मूर्ति का चश्मा क्यों नहीं बनाया था?

उत्तर:
मूर्तिकार उसी कस्बे के स्थानीय विद्यालय का मास्टर मोतीलाल था। मूर्ति बनाने के बाद शायद वह यह तय नहीं कर पाया होगा कि पत्थर से पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाये या फिर उसने पारदर्शी चश्मा बनाने की कोशिश की होगी मगर उसमें असफल रहा होगा।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
“वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है पागल!”कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।

उत्तर:
पानवाले ने कैप्टन को लँगड़ा तथा पागल कहा है। जो कि अति गैर जिम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण वक्तव्य है। कैप्टन में एक सच्चे देशभक्त के वे सभी गुण मौजूद हैं जो कि पानवाले में या समाज के अन्य किसी वर्ग में नहीं है। वह भले ही लँगड़ा है पर उसमें इतनी शक्ति है कि वह कभी भी नेताजी को बग़ैर चश्मे के नहीं रहने देता है। अत: कैप्टन पानवाले से अधिक सक्रिय तथा विवेकशील तथा देशभक्त है।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
“लेकिन भाई! एक बात समझ नहीं आई।” हालदार साहब ने पानवाले से फिर पूछा, “नेताजी का ओरिजिनल चश्मा कहाँ गया?”
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?

उत्तर:
चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं रहा परन्तु चश्मेवाला एक देशभक्त नागरिक था। उसके हृदय में देश के वीर जवानों के प्रति सम्मान था। वह अपनी ओर से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर अवश्य लगाता था उसकी इसी भावना को देखकर लोग उसे कैप्टन कहते थे।

प्रश्न घ-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
हालदार साहब भावुक हैं। इतनी सी बात पर उनकी आँखें भर आईं।
हालदार साहब ने अपने ड्राईवर को चौराहे पर रुकने के लिए मना क्यों किया?

उत्तर:
करीब दो सालों तक हालदार साहब उस कस्बे से गुजरते रहे और नेताजी की मूर्ति में बदलते चश्मे को देखते रहे फिर एक बार ऐसा हुआ कि नेताजी के चेहरे पर कोई चश्मा नहीं था। पता लगाने पर हालदार साहब को पता चला कि मूर्ति पर चश्मा लगाने वाला कैप्टन मर गया और अब ऐसा उस कस्बे में कोई नहीं था जो नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाता इसलिए हालदार साहब ने अपने ड्राईवर को चौराहे पर न रुकने का निर्देश दिया।

प्रश्न घ-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
हालदार साहब भावुक हैं। इतनी सी बात पर उनकी आँखें भर आईं।
हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?

उत्तर:
कैप्टन की मृत्यु के बाद हालदार साहब को लगा कि क्योंकि कैप्टन के समान अब ऐसा कोई अन्य देश प्रेमी बचा न था जो नेताजी के चश्मे के बारे में सोचता। हालदार साहब स्वयं देशभक्त थे और नेताजी जैसे देशभक्त के लिए उसके मन में सम्मान की भावना थी। यही सब सोचकर हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे।

प्रश्न घ-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
हालदार साहब भावुक हैं। इतनी सी बात पर उनकी आँखें भर आईं।
मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?

उत्तर:
मूर्ति पर लगे सरकंडे का चश्मा इस बात का प्रतीक है कि आज भी देश की आने वाली पीढ़ी के मन में देशभक्तों के लिए सम्मान की भावना है। भले ही उनके पास साधन न हो परन्तु फिर भी सच्चे हृदय से बना वह सरकंडे का चश्मा भी भावनात्मक दृष्टि से मूल्यवान है। अतः उम्मीद है कि बच्चे गरीबी और साधनों के बिना भी देश के लिए कार्य करते रहेंगे।

प्रश्न घ-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
हालदार साहब भावुक हैं। इतनी सी बात पर उनकी आँखें भर आईं।
हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?

उत्तर:
उचित साधन न होते हुए भी किसी बच्चे ने अपनी क्षमता के अनुसार नेताजी को सरकंडे का चश्मा पहनाया। यह बात उनके मन में आशा जगाती है कि आज भी देश में देश-भक्ति जीवित है भले ही बड़े लोगों के मन में देशभक्ति का अभाव हो परंतु वही देशभक्ति सरकंडे के चश्मे के माध्यम से एक बच्चे के मन में देखकर हालदार साहब भावुक हो गए।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – स्वर्ग बना सकते हं [कविता]

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – स्वर्ग बना सकते हं [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी,
हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण,
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन विघ्न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शांति कहाँ इस भव को।
कवि ने भूमि के लिए किस शब्द का प्रयोग किया हैं और क्यों?

उत्तर:
कवि ने भूमि के लिए ‘क्रीत दासी’ शब्द का प्रयोग किया हैं क्योंकि किसी की क्रीत (खरीदी हुई) दासी नहीं है। इस पर सबका समान रूप से अधिकार है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी,
हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण,
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन विघ्न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शांति कहाँ इस भव को।
धरती पर शांति के लिए क्या आवश्यक है?

उत्तर :
धरती पर शांति के लिए सभी मनुष्य को समान रूप से सुख-सुविधाएँ मिलनी आवश्यक है।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी,
हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण,
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन विघ्न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शांति कहाँ इस भव को।
भीष्म पितामह युधिष्ठिर को किस नाम से बुलाते है? क्यों?

उत्तर:
भीष्म पितामह युधिष्ठिर को ‘धर्मराज’ नाम से बुलाते है क्योंकि वह सदैव न्याय का पक्ष लेता है और कभी किसी के साथ अन्याय नहीं होने देता।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
धर्मराज यह भूमि किसी की, नहीं क्रीत है दासी,
हैं जन्मना समान परस्पर, इसके सभी निवासी।
सबको मुक्त प्रकाश चाहिए, सबको मुक्त समीरण,
बाधा-रहित विकास, मुक्त आशंकाओं से जीवन।
लेकिन विघ्न अनेक सभी इस पथ पर अड़े हुए हैं,
मानवता की राह रोककर पर्वत अड़े हुए हैं।
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं जब तक मानव-मानव को,
चैन कहाँ धरती पर तब तक शांति कहाँ इस भव को।
शब्दार्थ लिखिए – क्रीत, जन्मना, समीरण, भव, मुक्त, सुलभ।

उत्तर:

शब्द अर्थ
क्रीत खरीदी हुई
जन्मना जन्म से
समीरण वायु
भव संसार
मुक्त स्वतंत्र
सुलभ आसानी से प्राप्त

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फँसा परस्पर ही शंका में भय में,
लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में।
प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर,
भोग सकें जो उन्हें जगत में कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक-सा सुख पर सकते हैं;
चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं,
‘प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि ईश्वर ने हमारे लिए धरती पर सुख-साधनों का विशाल भंडार दिया हुआ है। सभी मनुष्य इसका उचित उपयोग करें तो यह साधन कभी भी कम नहीं पड़ सकते।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फँसा परस्पर ही शंका में भय में,
लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में।
प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर,
भोग सकें जो उन्हें जगत में कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक-सा सुख पर सकते हैं;
चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं,
मानव का विकास कब संभव होगा?

उत्तर:
कमानव के विकास के पथ पर अनेक प्रकार की मुसीबतें उसकी राह रोके खड़ी रहती है तथा विशाल पर्वत भी राह रोके खड़े रहता है। मनुष्य जब इन सब विपत्तियों को पार कर आगे बढ़ेगा तभी उसका विकास संभव होगा।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फँसा परस्पर ही शंका में भय में,
लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में।
प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर,
भोग सकें जो उन्हें जगत में कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक-सा सुख पर सकते हैं;
चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं,
किस प्रकार पल में धरती को स्वर्ग बना सकते है?

उत्तर:
ईश्वर ने हमारे लिए धरती पर सुख-साधनों का विशाल भंडार दिया हुआ है। सभी मनुष्य इसका उचित उपयोग करें तो यह साधन कभी भी कम नहीं पड़ सकते। सभी लोग सुखी
होंगे। इस प्रकार पल में धरती को स्वर्ग बना सकते है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जब तक मनुज-मनुज का यह सुख भाग नहीं सम होगा,
शमित न होगा कोलाहल, संघर्ष नहीं कम होगा।
उसे भूल वह फँसा परस्पर ही शंका में भय में,
लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में।
प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर,
भोग सकें जो उन्हें जगत में कहाँ अभी इतने नर?
सब हो सकते तुष्ट, एक-सा सुख पर सकते हैं;
चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं,
शब्दार्थ लिखिए – शमित, विकीर्ण, कोलाहल, विघ्न, चैन, पल।

उत्तर:

शब्द अर्थ
शमित शांत
विकीर्ण बिखरे हुए
कोलाहल शोर
विघ्न रूकावट
चैन शांति
पल क्षण

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – महायज्ञ का पुरस्कार

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – महायज्ञ का पुरस्कार

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
‘पर सब दिन न जात एक समान अकस्मात् दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा।’
प्रस्तुत पाठ के आधार पर सेठ जी की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:
प्रस्तुत पाठ लेखक यशपाल द्वारा रचित है। प्रस्तुत पाठ में सेठ जी कुछ ख़ास विशेषताओं का उल्लेख किया है। सेठजी बड़े विन्रम और उदार थे। सेठ जी इतने बड़े धर्मपरायण थे कि कोई साधू-संत उनके द्वार से निराश न लौटता, भरपेट भोजन पाता। उनके भंडार का द्वार हमेशा सबके लिए खुला रहता। उन्होंने बहुत से यज्ञ किए और दान में न जाने कितना धन दिन दुखियों में बाँट दिया था। यहाँ तक की गरीब हो जाने के बावजूद भी उन्होंने अपनी उदारता को नहीं छोड़ा और पुन:धन प्राप्ति के बाद भी ईश्वर से सद्बुद्धि ही माँगी।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
‘पर सब दिन न जात एक समान अकस्मात् दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा।’
सेठजी के दुःख का कारण क्या था?

उत्तर :
सेठ जी के उदार होने के कारण कोई भी उनके द्वार से खाली नहीं जाता था परंतु अकस्मात् सेठ जी के दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा। ऐसे समय में संगी-साथियों ने भी मुँह फेर दिया और यही सेठ जी के दुःख का कारण था।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
‘पर सब दिन न जात एक समान अकस्मात् दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा।’
सेठानी ने सेठ को क्या सलाह और क्यों दी?

उत्तर:
उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी। यज्ञों के फल का क्रय-विक्रय हुआ करता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता। जब बहुत तंगी हुई तो एक दिन सेठानी ने सेठ को सलाह दी कि क्यों न वे अपना एक यज्ञ बेच डाले। इस प्रकार बहुत अधिक गरीबी आ जाने के कारण सेठानी ने सेठ को अपना यज्ञ बेचने की सलाह दी।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
‘पर सब दिन न जात एक समान अकस्मात् दिन फिरे और सेठ जी को गरीबी का मुँह देखना पड़ा।’
धन्ना सेठ की पत्नी के संबंध में क्या अफ़वाह थी?

उत्तर:
धन्ना सेठ की पत्नी के संबंध में यह अफ़वाह थी कि उसे कोई दैवीय शक्ति प्राप्त है जिससे वह तीनों लोकों की बात जान सकती है।

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह देख सेठ का दिल भर आया – ”बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
सेठ जी ने अपना यज्ञ बेचने का निर्णय क्यों लिया?

उत्तर:
सेठ जी को जब पैसों को बहुत तंगी होने लगी और सेठानी ने उन्हें यज्ञ बेचने का सुझाव दिया। सेठानी की यज्ञ बेचने की बात पर पहले सेठ बड़े दुखी हुए परंतु बाद में तंगी का विचार त्यागकर सेठ अपना एक यज्ञ बेचने के लिए तैयार हो गए।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह देख सेठ का दिल भर आया – ”बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
यज्ञ बेचने के लिए सेठ जी कहाँ गए?

उत्तर:
कुंदनपुर नाम का एक नगर था, जिसमें एक बहुत सेठ रहते थे। लोग उन्हें धन्ना सेठ कहते थे। धन की उनके पास कोई कमी न थी। विपद्ग्रस्त सेठ ने उन्हीं के हाथ एक यज्ञ बेचने का का विचार किया। इस तरह सेठ जी ने कुंदनपुर के धन्ना सेठ के पास अपना यज्ञ बेचने गए।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए :
यह देख सेठ का दिल भर आया – ”बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
सेठ जी ने कहाँ विश्राम और भोजन करने की सोची?

उत्तर:
सेठ जी बड़े तड़के उठे और कुंदनपुर की ओर चल दिए। गर्मी के दिन थे सेठ जी सोचा कि सूरज निकलने से पूर्व जितना ज्यादा रास्ता पार कर लेगें उतना ही अच्छा होगा परंतु आधा रास्ता पार करते ही थकान ने उन्हें आ घेरा। सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
यह देख सेठ का दिल भर आया – ”बेचारे को कई दिन से खाना नहीं मिला दीखता, तभी तो यह हालत हो गई है।”
सेठ जी ने अपना सारा भोजन कुत्ते को क्यों खिला दिया?

उत्तर:
सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया। पोटली से लोटा-डोर निकालकर पानी खींचा और हाथ-पाँव धोए। उसके बाद एक लोटा पानी ले पेड़ के नीचे आ बैठे और खाने के लिए रोटी निकालकर तोड़ने ही वाले थे कि क्या देखते हैं एक कुत्ता हाथ भर की दूरी पर पड़ा छटपटा रहा था। भूख के कारण वह इतना दुर्बल हो गया कि अपनी गर्दन भी नहीं उठा पा रहा था। यह देख सेठ का दिल भर आया और उन्होंने अपना सारा भोजन धीरे-धीरे कुत्ते को खिला दिया।

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
”सेठ जी ! यज्ञ खरीदने के लिए हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा।”
उपर्युक्त अवतरण के वक्ता का परिचय दें।

उत्तर:
उपर्युक्त अवतरण की वक्ता कुंदनपुर के धन्ना सेठ की पत्नी हैं। धन्ना सेठ की पत्नी बड़ी विदुषी स्त्री थीं। उनके बारे में यह प्रचलित था कि उन्हें कोई दैवीय शक्ति प्राप्त है जिसके कारण वे तीनों लोकों की बात जान लेती हैं। इसी शक्ति के बल पर वह जान लेती हैं यज्ञ बेचने वाले सेठ अत्यंत उदार, कर्तव्यपरायण और धर्मनिष्ठ हैं।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
”सेठ जी ! यज्ञ खरीदने के लिए हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा।”
श्रोता को वक्ता की किस बात पर आश्चर्य हुआ?

उत्तर:
श्रोता धन्ना सेठ की पत्नी ने जब वक्ता सेठ जी से अपना महायज्ञ बेचने की बात की तो उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि महायज्ञ की बात तो छोड़िए सेठ ने बरसों से कोई सामान्य यज्ञ भी नहीं किया था।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
”सेठ जी ! यज्ञ खरीदने के लिए हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा।”
सेठ जी धन्ना सेठ की पत्नी की बात सुनकर क्या सोचने लगे?

उत्तर:
धन्ना सेठ की पत्नी ने जब महायज्ञ की बात की तो सेठजी सोचने लगे कि इन्हें यज्ञ तो खरीदना नहीं है नाहक ही मेरी हँसी उड़ा रही हैं क्योंकि जिस महायज्ञ की वे बात कर रही है वो तो उन्होंने किया ही नहीं है।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
”सेठ जी ! यज्ञ खरीदने के लिए हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा।”
धन्ना सेठ की पत्नी ने सेठ के किस काम को महायज्ञ बताया और क्यों?

उत्तर:
धन्ना सेठ ही पत्नी के अनुसार स्वयं भूखे रहकर चार रोटियाँ किसी भूखे कुत्ते को खिलाना ही महायज्ञ है। इस तरह यज्ञ कमाने की इच्छा से धन-दौलत लुटाकर किया गया यज्ञ, सच्चा यज्ञ नहीं है, निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म ही सच्चा यज्ञ महायज्ञ है।

प्रश्न घ-i:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, ”धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”
उपर्युक्त अवतरण की वक्ता का परिचय दें।

उत्तर:
उपर्युक्त अवतरण की वक्ता सेठ की पत्नी है। सेठ की पत्नी भी बुद्धिमत्ती स्त्री है। मुसीबत के समय अपना धैर्य न खोते हुए उसने अपने पति को अपना एक यज्ञ बेचने की सलाह दी। विपत्ति की स्थिति में वह अपने पति को ईश्वर पर विश्वास और धीरज धारण करने को कहती है। इस प्रकार सेठ की पत्नी भी कर्तव्य परायण, धीरवती, ईश्वर पर निष्ठा रखने वाली और संतोषी स्त्री थी।

प्रश्न घ-ii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, ”धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”
वक्ता ने अपने पति की रज मस्तक पर क्यों लगाई?

उत्तर:
सेठानी के पति जब कुंदनपुर गाँव से धन्ना सेठ के यहाँ से खाली हाथ घर लौटे तो पहले तो वे काँप उठी पर जब उसे सारी घटना की जानकारी मिली तो उनकी वेदना जाती रही। उनका ह्रदय यह देखकर उल्लसित हो गया कि विपत्ति में भी उनके पति ने अपना धर्म नहीं छोड़ा और इसी बात के लिए सेठानी ने अपने पति की रज मस्तक से लगाई।

प्रश्न घ-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, ”धीरज रखें,भगवान सब भला करेंगे।”
सेठानी भौचक्की-सी क्यों खड़ी हो गई?

उत्तर:
रात के समय सेठानी उठकर दालान में दिया जलाने आईं तो रास्ते में किसी चीज से टकराकर गिरते-गिरते बची। सँभलकर आले तक पहुँची और दिया जलाकर नीचे की ओर निगाह डाली तो देखा कि दहलीज के सहारे पत्थर ऊँचा हो गया है जिसके बीचों बीच लोहें का कुंदा लगा है। शाम तक तो वहाँ वह पत्थर बिल्कुल भी उठा नहीं था अब यह अकस्मात कैसे उठ गया? यही सब देखकर सेठानी भौचक्की-सी खड़ी हो गई।

प्रश्न घ-iv:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
विपत्ति में भी मेरे पति ने धर्म नहीं छोड़ा। धन्य हैं मेरे पति! सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, ”धीरज रखें,भगवान सब भला करेंगे।”
सेठ को धन की प्राप्ति किस प्रकार हुई?

उत्तर:
सेठानी ने जब सेठ को बुलाकर दालान में लगे लोहे कुंदे के बारे में बताया तो सेठ जी भी आश्चर्य में पड़ गए। सेठ ने कुंदे को पकड़कर खींचा तो पत्थर उठ गया और अंदर जाने के लिए सीढ़ियाँ निकल आईं। सेठ और सेठानी सीढ़ियाँ उतरने लगे कुछ सीढ़ियाँ उतरते ही इतना प्रकाश सामने आया कि उनकी आँखें चौंधियाने लगी। सेठ ने देखा वह एक विशाल तहखाना है और जवाहरातों से जगमगा रहा है। इस तरह सेठ को धन की प्राप्ति हुई।

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – गिरिधर की कुंडलियाँ [कविता]

ICSE Class 10 Hindi Solutions साहित्य सागर – गिरिधर की कुंडलियाँ [कविता]

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प्रश्न क-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
लाठी से क्या-क्या लाभ होते हैं?

उत्तर:
लाठी संकट के समय हमारी सहायता करती है। गहरी नदी और नाले को पार करते समय मददगार साबित होती है। यदि कोई कुत्ता हमारे ऊपर झपटे तो लाठी से हम अपना बचाव कर सकते हैं। अगर हमें दुश्मन धमकाने की कोशिश करे तो लाठी के द्‌वारा हम अपना बचाव कर सकते हैं। लाठी गहराई मापने के काम आती है।

प्रश्न क-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
‘बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै’ – पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :
इस पंक्ति का भाव यह है कि कंबल को बाँधकर उसकी छोटी-सी गठरी बनाकर अपने पास रख सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर रात में उसे बिछाकर सो सकते हैं।

प्रश्न क-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
कमरी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है?

उत्तर:
कंबल (कमरी) बहुत ही सस्ते दामों में मिलता है। यह हमारे ओढ़ने तथा बिछाने के काम आता है। कंबल को बाँधकर उसकी छोटी-सी गठरी बनाकर अपने पास रख सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर रात में उसे बिछाकर सो सकते हैं।

प्रश्न क-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
लाठी में हैं गुण बहुत, सदा रखिये संग।
गहरि नदी, नाली जहाँ, तहाँ बचावै अंग।।
तहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारे।
दुश्मन दावागीर होय, तिनहूँ को झारै।।
कह गिरिधर कविराय, सुनो हे दूर के बाठी।
सब हथियार छाँडि, हाथ महँ लीजै लाठी।।
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
शब्दार्थ लिखिए – कमरी, बकुचा, मोट, दमरी

उत्तर:

शब्द अर्थ
कमरी काला कंबल
बकुचा छोटी गठरी
मोट गठरी
दमरी दाम, मूल्य

प्रश्न ख-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
‘गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय’ – पंक्ति का भावार्थ लिखिए।

उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में गिरिधर कविराय ने मनुष्य के आंतरिक गुणों की चर्चा की है। गुणी व्यक्ति को हजारों लोग स्वीकार करने को तैयार रहते हैं लेकिन बिना गुणों के समाज में उसकी कोई मह्त्ता नहीं। इसलिए व्यक्ति को अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए।

प्रश्न ख-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
कौए और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि क्या स्पष्ट करते हैं?

उत्तर:
कौए और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि कहते है कि जिस प्रकार कौवा और कोयल रूप-रंग में समान होते हैं किन्तु दोनों की वाणी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है। कोयल की वाणी मधुर होने के कारण वह सबको प्रिय है। वहीं दूसरी ओर कौवा अपनी कर्कश वाणी के कारण सभी को अप्रिय है। अत: कवि कहते हैं कि बिना गुणों के समाज में व्यक्ति का कोई नहीं। इसलिए हमें अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए।

प्रश्न ख-iii:
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
संसार में किस प्रकार का व्यवहार प्रचलित है?

उत्तर:
कवि कहते हैं कि संसार में बिना स्वार्थ के कोई किसी का सगा-संबंधी नहीं होता। सब अपने मतलब के लिए ही व्यवहार रखते हैं। अत:इस संसार में मतलब का व्यवहार प्रचलित है।

प्रश्न ख-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥
साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
शब्दार्थ लिखिए –
काग, बेगरजी, विरला, सहस

उत्तर:

शब्द अर्थ
काग कौवा
बेगरजी नि:स्वार्थ
विरला बहुत कम मिलनेवाला
सहस हजार

प्रश्न ग-i:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥
कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
कैसे पेड़ की छाया में रहना चाहिए और कैसे पेड़ की छाया में नहीं?

उत्तर:
कवि के अनुसार हमें हमें सदैव मोटे और पुराने पेड़ों की छाया में आराम करना चाहिए क्योंकि उसके पत्ते झड़ जाने के बावज़ूद भी वह हमें शीतल छाया प्रदान करते हैं। हमें पतले पेड़ की छाया में कभी नहीं बैठना चाहिए क्योंकि वह आँधी-तूफ़ान के आने पर टूट कर हमें नुकसान पहुँचा सकते हैं।

प्रश्न ग-ii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥
कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
‘पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम। दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥’- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि जिस प्रकार नाव में पानी भरने से नाव डूबने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में हम दोनों हाथ से नाव का पानी बाहर फेंकने लगते है। ठीक वैसे ही घर में धन बढ़ जाने पर हमें दोनों हाथों से दान करना चाहिए।

प्रश्न ग-iii:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥
कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
कवि कैसे स्थान पर न बैठने की सलाह देते हैं?

उत्तर:
कवि हमें किसी स्थान पर सोच समझकर बैठने की सलाह देते है वे कहते है कि हमें ऐसे स्थान पर नहीं बैठना चाहिए जहाँ से किसी के द्वारा उठाए जाने का अंदेशा हो।

प्रश्न ग-iv:
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।
छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥
जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।
जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥
कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।
पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥
पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
राजा के दरबार में, जैये समया पाय।
साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥
जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।
हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥
कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।
अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥
शब्दार्थ लिखिए – बयारि, घाम, जर, दाय

उत्तर:

शब्द अर्थ
बयारि हवा
घाम धूप
जर जड़
दाय रुपया-पैसा